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समावेशी विद्यालयों के लिए ढांचागत सुविधाए

समावेशी विद्यालयों के लिए ढांचागत सुविधाए
समावेशी विद्यालयों के लिए ढांचागत सुविधाए

समावेशी विद्यालयों के लिए ढांचागत सुविधाएं (infrastructural facilities for Inclusive school)

समावेशी विद्यालयों में विशेष सुविधाओं की आवश्यकता होती हैं। वे निम्नलिखित हैं-

1. विशेष विद्यालय- समावेशी बालकों के लिये विशेष विद्यालयों की व्यवस्था करना न्यायोचित रहता है क्योंकि उनकी अक्षमता इस स्तर की होती है कि वे सामान्य रूप से प्रयोग में आने वाली शिक्षण सामग्री द्वारा शिक्षित नहीं किये जा सकते हैं। इसके लिये उन्हें विशिष्ट प्रकार के शिक्षण, प्रशिक्षण, पाठ्य सामग्री तथा सहायक उपकरणों की आवश्यकता होती है, जिन्हें सामान्य विद्यालयों में उपलब्ध कराना असम्भव है। इसके लिये इनको अपने स्वयं के कार्यों को भली प्रकार कर सकने के प्रशिक्षण उपलब्ध कराना चाहिये ताकि स्वावलम्वी बन सकें।

2. देखभाल – शारीरिक रूप से पीड़ित बालकों को कई कारणों से दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके विद्यालय को शारीरिक दोषों को दूर करवाने के लिये उचित इलाज कराने की व्यवस्था करायी जानी चाहिये तथा ऐसे शिक्षकों को प्रशिक्षण देना चाहिये जो ऐसे बालकों की उचित देखभाल कर सकें।

3. उपचार सुविधा – विकलांग बालकों को समय-समय पर अपने विद्यालयों में उपचारात्मक कैम्प की व्यवस्था करनी चाहिये तथा अध्यापक व दूसरे छात्रों को ऐसे बालकों का सहयोग करना चाहिये तथा विद्यालय के नियम इन बालकों के लिये लचीले होने चाहिये।

4. विशिष्ट पाठ्यक्रम – सामान्य रूप से पाठ्यक्रम का निर्धारण औसत क्षमता वाले बालकों की आवश्यकताओं को दृष्टिगत रखते हुए किया जाना चाहिये पिछड़े बालक (विशेष रूप से बौद्धिक न्यूनता वाले बालक) इस पाठ्यक्रम को कुशलता के साथ पूर्ण करने में असफल रहते हैं। अतः उनके लिये सरल एवं छोटे पाठ्यक्रम का, जो उनकी अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं, क्षमताओं व रुचियों के अनुरूप हो, निर्धारण करना उपयोगी रहता है। इन बालकों को विद्वान बनाने के स्थान पर उपयोगी नागरिक व कुशल कार्यकर्त्ता बनाना इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य होना चाहिये तथा काष्ठ शिल्प, गृह शिल्प, पुस्तक शिल्प आदि को इनके पाठ्यक्रम में समावेशित किया जाना चाहिये।

5. शिक्षण विधियाँ – न्यून बौद्धिक क्षमता अथवा विषय इकाई के मूल सिद्धांतों की अज्ञानता के कारण पिछड़े बालक सामान्य रूप से प्रचलित शिक्षण विधियों, जैसे – व्याख्यान, व्याख्यान प्रदर्शन आदि से सीखने में कठिनाई का अनुभव करते हैं। अतः इनके शिक्षण के लिये इन विधियों में पर्याप्त परिमार्जन की आवश्यकता होती है। इन्हें स्थूल (Concrete ) सामग्री और प्रत्यक्ष अनुभवों की सहायता लेकर तथा विषय-वस्तु की छोटी-छोटी इकाइयों में बाँटकर सरल तरीकों से पढ़ाया जाना चाहिये। पढ़ाई गई इकाइयों की बार-बार पुनरावृत्ति (Drill) व अभ्यास भी बहुत आवश्यक होता है दृश्य-श्रव्य ( Audio visual) सामग्री का आवश्यकतानुसार उपयोग करना चाहिये तथा उन्हें सीखने के लिये प्रोत्साहित करते रहना चाहिये। सांवेगिक अथवा अन्य कारणों से पिछड़ जाने वाले बालकों के लिये अभिनय, प्रोजेक्ट विधि, खेल विधि आदि नवीन शिक्षण विधियों का प्रयोग इस उपचारात्मक शिक्षण में विशेष महत्त्व रखता है।

6. विशेष अध्यापक- विद्यालयों में विशिष्ट बालकों के लिये विशेष विशिष्ट पाठ्यक्रम व परिमार्जित शिक्षण विधियों को अपनाने का उद्देश्य तभी पूर्ण हो सकता है जबकि शिक्षक इन सब परिवर्तनों को प्रभावी व सफल रूप दे सकें। ऐसा शिक्षक अधिक व्यावहारिक व अनुभवी होना चाहिये। उसे बाल मनोविज्ञान का अच्छा ज्ञान हो, बालकों की विशिष्ट कमियों व कठिनाइयों को समझने की क्षमता व रुचि रखता हो तथा उसमें पर्याप्त धैर्य शक्ति हो ताकि वह बालकों के लगातार असफल होने पर भी अपने आपको निरंतर सफलता के प्रयास के क्रम में लगाये रखे। पिछड़े बालकों को जिसे प्रोत्साहन, प्रशंसा, लगातार सहायता व सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार की अत्यधिक आवश्यकता होती है, एक कुशल शिक्षक ही प्रगति के मार्ग पर, स्थायित्व के साथ ला सकता है। इसके अतिरिक्त पिछड़े बालकों के शिक्षण में अत्यधिक आवश्यक है कि शिक्षण के द्वारा अपनाई गई शिक्षण विधि बाल केन्द्रित हो।

7. पाठ्यान्तर क्रियाएँ, विविध अनुभव तथा वर्गीकृत पाठ्यक्रम- विद्यालयों में पाठ्यान्तर क्रियाओं की उचित व्यवस्था का न होना प्रायः सामान्य व उच्च प्रतिभा सम्पन्न बालकों में भी शिक्षा के प्रति अरुचि उत्पन्न कर देता है। उच्च प्रतिभा सम्पन्न बालक की अपनी विशेष क्षमताओं व जिज्ञासाओं की सन्तुष्टि के लिये पर्याप्त साधन उपलब्ध नहीं हो पाते हैं; जैसे पुस्तकालय में उनके स्तर की ज्ञानवर्धक अथवा स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करने वाली पुस्तकों का अभाव, खेल कक्ष में खेल सामग्री का पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होना, शैक्षिक उद्देश्य के परिभ्रमण व पिकनिक की व्यवस्था का न होना आदि। इन्हीं सब कारणों से ये बालक कुण्ठित हो जाते हैं; शिक्षा के प्रति अरुचि दिखाते हैं और अपनी क्षमताओं के अनुरूप उपलब्धि का प्रदर्शन नहीं कर पाते हैं। अतः इनके लिये विशिष्ट पाठ्यक्रम के अतिरिक्त खेलकूद, मनोरंजन व पुस्तकालय आदि की उचित व्यवस्था का होना अति आवश्यक है। साथ ही बालकों का उनकी व्यक्तिगत विभिन्नताओं के नृत्य, संगीत, कला व नेतृत्व प्रदर्शन के अवसर प्रदान किये जाने चाहिये। सम्भव हो तो इन्हें अनुरूप अभिनय, अभिव्यक्त कलाओं (Expressive arts) का भी प्रशिक्षण प्रदान किया जाये। इसके अतिरिक्त इन बालकों को अपनी विशिष्ट क्षमताओं, रुचियों, आयु व बौद्धिक स्तर के अनुरूप वर्कशाप प्रशिक्षण, विभिन्न हस्तकलाओं का प्रशिक्षण, व्यावसायिक प्रशिक्षण, ऑनर्स पाठ्यक्रम, एन.सी.सी., सुरक्षा नियमों, प्राथमिक चिकित्सा प्रशिक्षण आदि भी प्रदान किये जा सकते हैं।

8. समय-सारणी (Time-table) – ऐसे बालक प्रायः अधिक समय तक ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते तथा सामान्य बालकों के साथ प्रगति में असमर्थता का अनुभव करते हैं। अतः इनके लिये समय-सारणी का निर्धारण पृथक् रूप से किया जाना उचित रहता है। यह समय-सारणी लचीली (Flexible) होनी चाहियें तथा उमसें पीरियड्स छोटे होने चाहिये। सम्भव है कि ये बालक कभी किसी विषय विशेष समस्या को समझने व सीखने में सामान्य से अधिक समय ले लें अथवा कभी किसी विषय को निर्धारित पीरियड में पढ़ने में अरुचि दिखायें। इसके अतिरिक्त समय-सारणी बनाते समय इन बालकों की आवश्यकताओं के अनुरूप विभिन्न पाठ्येत्तर व पाठ्यान्तर क्रियाओं को भी उचित महत्त्व, स्थान व समय मिले इसका ध्यान रखना चाहिये।

9. परीक्षा प्रणाली- कभी-कभी दोषपूर्ण परीक्षा प्रणाली भी बालकों के पिछड़ेपन के लिये उत्तरदायी होती है । जैसे सभी प्रश्न-पत्रों का पूर्ण रूप से आत्मनिष्ठ होना, परीक्षा में पाठ्यक्रम से बाहर की विषयवस्तु पर प्रश्न पूछ लेना, प्रश्न-पत्र की भाषा का अस्पष्ट होना, बालक को प्रत्युत्तर देने के लिये पर्याप्त समय न मिल पाना, परीक्षकों द्वारा उत्तर-पुस्तिका के मूल्यांकन से लापरवाही बरतना तथा सभी बालकों के लिये समान मानकों का निर्धारण कर देना आदि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से पिछड़पन, समान आयु वर्ग व समान क्षमताओं वाले बालकों की उपलब्धि के आधार पर आंका जाना चाहिये न कि कक्षा के सभी विभिन्न आयु वर्गों व क्षमताओं वाले बालकों की उपलब्धि के आधार पर। अतः परीक्षकों को चाहिये कि पिछड़े वर्ग की शैक्षिक उपलब्धि परीक्षा लेते समय इन सब बातों का ध्यान रखें, प्रश्न-पत्रों को अधिक वस्तुनिष्ठ (Objective) बनायें, सरल भाषा का प्रयोग करें तथा प्रश्न-पत्र में उन सभी पाठ्यांशों से प्रश्न पूछें जिनको वह कक्षा में पढ़ा चुकें हैं। प्राय: कुछ धीमी गति से सीखने व प्रत्युत्तर देने वाले बालक प्रश्न-पत्र को पूरा करने में सामान्य से अधिक समय लेते हैं। अतः समय का निर्धारण इन बालकों की गति को ध्यान में रखते हुए करें। साथ ही इन बालकों के मूल्यांकन में प्राप्तांकों के अतिरिक्त उनके शैक्षिक व व्यक्तिगत इतिहास, एक डोट्ल आलेख, प्रगति आख्या, सामूहिक आलेख आदि का समावेश रहना चाहिये।

परीक्षण प्रणाली व मूल्यांकन के तरीकों में परिमार्जन के अतिरिक्त पिछड़े बालकों की उपलब्धि को बढ़ाने के लिये परीक्षाफल को शीघ्र घोषित करना चाहिये तथा सफल व असफल दोनों ही वर्गों के बालकों को किसी-न-किसी रूप में प्रोत्साहित करते रहना चाहिये और फीडबैक, पुरस्कार तथा प्रलोभन आदि का प्रयोग करना चाहिये।

10. निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था- सही विषयों व अन्य क्रियाओं का चुनाव न कर सकने के कारण भी बहुत से बालक उस क्षेत्र में लगातार असफल होते जाते हैं। अतः विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं की व्यवस्था उपचारात्मक व निवारक दोनों दृष्टिकोणों से आवश्यक है जिससे कि बालक अपनी क्षमताओं, रुचियों, अभिवृत्ति व अभिरुचि के अनुरूप है ही विभिन्न विषयों, खेलों व अन्य क्रियाओं का चयन कर सकें।

11. अनुभवी शिक्षा मनोवैज्ञानिक की सहायता लेना- मनोवैज्ञानिक कारणों से पिछड़े बालकों की शिक्षा के सम्बन्ध में अनुभवी शिक्षा मनोवैज्ञानिकों की सेवाएँ भी काफी मूल्यवान सिद्ध हो सकती हैं। ये मनोवैज्ञानिक, अध्यापकों व माता-पिता को बालक के व्यक्तित्व व शिक्षा सम्बन्धी ऐसे तथ्यों से परिचित करवाने में सहायक होते हैं जो उनके पिछड़ेपन के पूर्ण या आंशिक रूप से जिम्मेदार होते हैं। वस्तुतः प्रत्येक उच्चतर विद्यालय में समावेशी बालकों के सर्वांगीण विकास हेतु विद्यालयी परामर्शदाताओं अथवा विद्यालीय मनोवैज्ञानिकों की नियुक्ति आवश्यक प्रतीत होती है जो उनकी कमियों एवं कमजोरियों को समझ कर उनका निराकरण कर उनका उचित मार्गदर्शन कर सकें।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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