सम्प्रदायवाद या साम्प्रदायिकता को दूर करने के सुझाव
सम्प्रदायवाद या साम्प्रदायिकता की समस्या को हल करने के उद्देश्य से केन्द्रीय स्तर पर राष्ट्रीय एकता परिषद का गठन किया गया। 16 अक्टूबर, 1969 को दिल्ली में हुई इसकी बैठक में यह तय किया गया कि देश के सभी राजनीतिक दलों को जन साधारण में साम्प्रदायिक सदभाव जाग्रत करने के लिए विचार-विमर्श तथा शिक्षा के व्यापक कार्यक्रम अपनाने चाहिये। इस बैठक में इस बात पर भी जोर दिया गया कि देश की प्रशासनिक इकाइयों को साम्प्रदायिक दंगों को समाप्त करने हेतु कठोर कदम उठाने चाहिये। इस अवसर पर इस ओर भी ध्यान आकृष्ट किया गया कि अल्पसंख्यक समूहों की समस्याओं के निराकरण पर विशेष ध्यान दिया जाए। हिन्दुस्तान टाइम्स में 31 अक्टूबर, 1968 के अंक में बुद्धिजीवी और साम्प्रदायिकता का विनाश नामक लेख में बताया कि भारत में अल्पसंख्यकों की समस्याओं के कारण साम्प्रदायिकता की समस्या का विकास होता है। यदि बहुसंख्यक हिन्दू इन अल्पसंख्यकों को सहयोग प्रदान करें तो यह समस्या हल हो सकती है। लेख में समाज वैज्ञानिक द्वारा अनुसन्धान कार्य किये जाने पर भी जोर दिया गया। 1968 में मुख्यमन्त्रियों के सम्मेलन में भी इस विषय पर काफी चर्चा की गयी। साम्प्रदायिकता की समस्या को हल करने के लिए निम्नांकित सुझावों पर ध्यान दिया जाना चाहिये :
1. साम्प्रदायिक सहिष्णुता का प्रचार किया जाए। विभिन्न सम्प्रदायों के त्योहारों और उत्सवों को सामूहिक रूप से राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाए और उन्हें परस्पर सम्पर्क में आने का अधिकाधिक अवसर प्रदान किया जाए जिससे वे एक-दूसरे को समझ सकेंगे, पारस्परिक सद्भाव पैदा होगा और शान्ति रह सकेगी।
2. गांधी जी एवं विनोबाजी ने साम्प्रदायिकता को समाप्त करने के लिये शांति सेना बनाने का सुझाव दिया है जो विभिन्न स्थानों पर शान्ति कायम करने, दंगों का दमन करने, पारस्परिक एकता विश्वास एवं मैत्री पैदा करने का कार्य करें।
3. सामाजिक तत्वों एवं राजनीतिक स्वार्थी समूहों से सख्ती के साथ निपटा जाए।
4. प्रजातान्त्रिक मूल्यों के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति के महत्व को मान्यता दी जाए। धर्म निरपेक्षता के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी के मूल्यों को पूर्णतया स्वीकार किया जाए।
5. डॉ राजेन्द्र प्रसाद ने साम्प्रदायिकता को समाप्त करने के लिये विभिन्न सम्प्रदाय के लोगों द्वारा सहजीवन व्यतीत करने का सुझाव दिया है। इससे प्रेम, सद्भाव, मैत्री एवं विश्वास पैदा होगा।
6. साम्प्रदायिकता के आधार पर लड़े गये चुनावों को अवैध घोषित किया जाए।
7. साम्प्रदायिकता की समस्या के निवारण के लिए चलचित्र, रेडियो, टेलीविजन, पत्र पत्रिकाओं के माध्यम से साम्प्रदायिक एकता एवं सद्भाव का प्रचार किया जाना चाहिये।
8. साम्प्रदायिक सदभाव पैदा करने में स्त्रियों द्वारा विशेष योगदान दिया जा सकता है। अतः उन्हें शिक्षित कर राष्ट्रीय हितों एवं सामाजिक सुधारों के प्रति जागरूक बनाया जाए।
9. देश की सम्पूर्ण जनसंख्या के लिये सामाजिक सुरक्षा की पूर्ण व्यवस्था करना अत्यन्त आवश्यक है। भारत का साधारण व्यक्ति अनेक असुरक्षाओं के मध्य रहता है। साधारण जनता जो कि अभावों के बीच पलती है, विविध प्रकार के खतरों से सुरक्षा प्रदान करना सरकार का प्रमुख दायित्व है। राष्ट्रीय आय तथा साधनों को इस प्रकार से काम में लिया जाना चाहिये कि अधिकतर लोगों की अधिका से अधिक आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके। इसके लिए शोषण एवं एकाधिकार को समाप्त करना आवश्यक है।
10. किसी भी राजनीतिक दल अथवा संगठन को धार्मिक आधार पर घृणा एवं वैमनस्य फैलाने की स्वतन्त्रता नहीं दी जानी चाहिये।
11. साम्प्रदायिकता की समस्या के निवारण के लिये अल्पसंख्यकों की दशा सुधारने का प्रयत्न किया जाए। उन्हें शिक्षित करने तथा नौकरी एवं व्यापार करने की पूर्ण सुविधाएँ दी जायें। उनमें बेकारी एवं निर्धनता की समस्या को हल किया जाए।
12. लोगों को नैतिक एवं राजनीतिक स्वार्थी समूहों से सख्ती के साथ निपटा जाए।
13. अनिवार्य शिक्षा द्वारा लोगों में ज्ञान की ज्योति जलायी जाए। शिक्षा का पाठ्यक्रम इस प्रकार का हो जो पारस्परिक सद्भाव, राष्ट्रीय चरित्र एवं एकीकरण को बढ़ावा दे। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा की नीति तैयार की जानी चाहिये।
14. प्रशासनिक शिथिलता को समाप्त किया जाए एवं साम्प्रदायिक तनाव पैदा करने वालों के विरुद्ध कठोर उदम उठाया जाए। अधिकारियों को प्रशासकीय कार्य एवं दायित्वों को पूर्ण गम्भीरता के साथ निभाना चाहिए। स्वच्छ प्रशासन तभी सम्भव है जब राजनीतिज्ञों का हस्तक्षेप कम-से-कम हो।
15. साम्प्रदायिकता को समाप्त करने के लिये यह आवश्यक है कि ग्राम स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के नेता समाज और देश के हितों को प्रधानता देते हुए प्रगतिशील दृष्टिकोण अपनायें नेताओं की जाति, धर्म भाषा, प्रान्तीयता और संकीर्ण स्वार्थो के दृष्टिकोण से सोचने और कार्य करने की प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना होगा ।
16. सम्पूर्ण देशवासियों के लिए समान सामाजिक विधान बनाये जाएँ जिससे पारस्परिक भेदभाव समाप्त होंगे एवं एकता को बल मिलेगा।
17. अल्पसंख्यकों को पृथक से दी जाने वाली सुविधाएँ समाप्त की जाएँ क्योंकि सभी एक विशाल भारत के अंग हैं, अतः किसी के लिए भी विशेष सुविधाएँ जुटाना उपयुक्त नहीं है। गुजरात, बिहार एवं उत्तर-प्रदेश मे हुए दंगों का एक कारण अल्पसंख्यकों को दी जाने वाली विशेष सुविधाएँ हैं।
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