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सांस्कृतिक विघटन के लिये उत्तरदायी प्रमुख कारण
सांस्कृतिक विघटन के कारण- यह निम्नलिखित हैं-
1. पाश्चात्य संस्कृति
अपना देश अति प्राचीन काल से औपनिवेश के रूप में रहा जिसके कारण अनेक संस्कृतियों ने भारतीय संस्कृति को धूल-धूषरित किया। शक्, यवन, हूण, पारथियन तुर्क, मुगल, ईरानी, तुरानी संस्कृतियों ने अपने को प्रतिस्थपित करने के लिये भारतीय संस्कृति को व्याज्य योग्य बताते रहे। फ्रांसीसी, ब्रिटानी, डच, पुर्तगाली यहाँ अपनी संस्कृति को सम्पूर्ण देश में पोषित करने के लिये, अनेक कुचक्रकारी व्यवस्थाओं, अभिलेखों, साहित्यिक ग्रन्थों, ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर अव्यवहारिक, दकियानूसी, रूढ़िवादी, अवैज्ञानिक बातकर उन्होंने भारतीय संस्कृति को प्रस्तुत किया गया। भारतीय संस्कृति में इतने छिद्रानिवेषण हुए जिसके फलस्वरूप भरतवंशियों के मन में सन्देह की स्थिति उत्पन्न होने लगी और पाश्कीय संस्कृतियों की ओर जनमानस उन्मुख होने लगा। आज की भोगमयी संस्कृति के कारण जनमानस त्राहि-त्राहि कर रहा है और अपनी भारतीय संस्कृति की ओर आकृष्ट हो रहा है।
2. लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति
लार्ड मैकाले ने भारतीय शिक्षा के बारे में कहा था कि यदि सदासर्वदा के लिये भारतीयों को सांस्कृतिक गुलाम बनाना है तो वैदिक शिक्षा पद्धति को निम्नतर स्थिति में पहुँचाना पड़ेगा और इस प्राच्य शिक्षा पद्धति के स्थान पर अंग्रेजी शिक्षा पद्धति को थोपना पड़ेगा। एक समय के बाद गोरे अंग्रेज तो चले जायेंगे परन्तु भारत में काले अंग्रेज बने रहेंगे।” वर्तमान परिदृश्य में भारतीय परम्परात्मक व्यवस्थाओं को लोग हेय की दृष्टि से देख रहे हैं। वैदिक कर्मकाण्ड वेशभूषा को लोग हास्यास्प्रद स्वरूप में देखते हैं और आधुनिकता को पूर्ण मानकर कृत्यों को अन्जाम देते हैं। आज प्रत्येक प्रकार के कार्यों में सांस्कृतिक विघटन के तत्व विद्यमान रहते हैं।
3. उत्शृंखल साहित्य व चलचित्रों की बाहुल्यता
साहित्य समाज का दर्पण माना गया है। – वर्तमान परिदृश्य में एक ऐसा साहित्यकारों का काकस बन गया है जो साहित्य के द्वारा अश्लीलता, नग्नता व संकीर्णता को परोसने में जुटा है। भारतीय संस्कृति को लघु रूप और वैदेशिक संस्कृतियों को श्रेष्ठ बताने में छल-प्रपंच को माध्यम बना रहे हैं। अपनी लेखनी के द्वारा चलचित्रों में फूहड़ गीत व कथानक पिरोने में संलिप्त हैं। अपने नापाक कारनामें को फिल्मों, टेलीफिल्मों, उपन्यासो, नाटकों, संस्मरणों के माध्यम से युवाओं को दिग्भ्रर्मित कर रहे हैं। अपनी लाखों हजारों वर्ष पूर्व प्राचीन भारतीय संस्कृति को महत्वहीन बताने में जुटे हुये हैं। फलस्वरूप भारतीय संस्कृति में विघटन हो रहा है।
4. स्वचालतीकरण व इन्टरनेट के प्रति अनुरागम्कता
सार्वभौमीकरण के कारण सम्पूर्ण विश्व मुट्ठी में समाहित है। मशीनी युग व स्वचालतीकरण ने व्यक्ति को काहिल कर दिया है। अतिभोगवादिता की ओर मानव उन्मुख होने लगा है। दोहन के स्थान पर मानव शोषण करने पर अमादा हो गया है। योग के स्थान पर भोग को महत्व देने लगा है। इन्टरनेट सेवाओं ने मानव को आन्दोलित कर दिया है। युवा वर्ग भटकाव की स्थिति में निरन्तर आगे बढ़ रहा है। भारतीय संस्कृति के मूल से युवा एवं बच्चे भटकते जा रहे हैं। जिसके फलस्वरूप सांस्कृतिक विघटन को बढ़ावा मिल रहा है।
5. मूल संस्थाओं में अस्थिरता
व्यक्ति का भरण-पोषण व समाजीकरण परिवार रूपी संस्था के माध्यम से होता है। आज परिवार का स्वरूप संयुक्त परिवार के स्थान पर नाभिकीय होने के कारण बच्चों को संस्कार नहीं मिल पा रहे हैं। दादी-बाबा, नानी-नाना के द्वारा जो ऐतिहासिक, सामाजिक, धार्मिक परिवेश बच्चों को सहज ही प्राप्त हो जाते थे, आज अत्यन्त कठिन हो गये हैं। शिक्षण संस्थाएँ व्यावसायिक हो गयी हैं। बच्चों पर यथेष्ट ध्यान नहीं दे पा रही हैं। त्याग, समर्पण, निष्ठा, प्रेम, किताबी भाषा के हिस्से बनते जा रहे हैं। नैसंगर्गिक स्थितियों से व वातावरण से आज का मानव अलग-थलग होता जा रहा है। बनावटी, मिलावटी, कृत्रिम व्यवस्थाओं व्यक्ति उलझता जा रहा है। मन्दिर, मठ, गुरुद्वारे जहाँ सतसंग का ज्ञान प्राप्त होता था, आज इनके प्रति प्राथमिकता में कमी आती जा रही है जिसके कारण मानव विचलित व्यवहार व नियमहीनता की ओर बढ़ रहा है। फलस्वरूप सांस्कृतिक विघटन दिग्दर्शित हो रहा है।
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