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सामाजिक परिवर्तन के प्रभावकारी तत्त्व या कारक

सामाजिक परिवर्तन के प्रभावकारी तत्त्व या कारक
सामाजिक परिवर्तन के प्रभावकारी तत्त्व या कारक

सामाजिक परिवर्तन के प्रभावकारी तत्त्व या कारक (Effective elements or factors of social change)

सामाजिक परिवर्तन क्यों होता है? अथवा सामाजिक परिवर्तन के क्या कारण हैं? इन प्रश्नों के उत्तर में यह कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन किसी एक कारक या कारण से नहीं होता। समाजशास्त्रियों के मत में सामाजिक परिवर्तन के अनेक कारक हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख अग्रलिखित प्रकार हैं-

1. प्रौद्योगिक कारक (Technical factors)

आधुनिक युग को प्रौद्योगिक युग कहा जाता है। अतः प्रौद्योगिकीय कारक वर्तमान काल में सामाजिक परिवर्तन का सबसे महत्त्वपूर्ण कारक है। कोई भी नवीन आविष्कार या यन्त्र आविष्कृत होता है तो वह हमारे सामाजिक जीवन को अवश्य प्रभावित करता है। औद्योगीकरण के परिणामस्वरूप विशाल नगरों का विकास होता है तथा नगरों की जनसंख्या जैसे-जैसे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे व्यक्तिगत सम्बन्धों में शिथिलता आती जाती है। परिणामस्वरूप सामुदायिक जीवन का ह्रास होता जाता है। बड़े नगरों में अपराध तथा व्यभिचार बड़ी तीव्रता से फैलते हैं। उद्योग-धन्धों के विकास के कारण गाँवों से लोग नगरों में आकर बसने लग जाते हैं, इससे एक ओर तो नगरों में मकानों की समस्या उत्पन्न होती है तो दूसरी ओर नगरों में स्त्री और पुरुषों के अनुपात में भेद हो जाता है। प्रौद्योगिकी विकास के कारण स्त्रियों को भी काम करने के अवसर मिलते हैं। इससे उनकी आर्थिक दशा में सुधार होता है।

2. सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक (Social and cultural factors)

वास्तव में संस्कृति सामाजिक संगठन को सुसंगठित बनाये रखने वाली शक्ति है। सोरोकिन ने संस्कृति की विशेषताओं में होने वाले परिवर्तन को सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख कारण माना है। यथार्थ हमारा सामाजिक जीवन हमारे विश्वास, धर्म, प्रथाओं, संस्थाओं, रूढ़ियों आदि पर निर्भर है। में अत: इनमें कोई भी परिवर्तन होता है तो वह सामाजिक जीवन में भी परिवर्तन लाता है। सांस्कृतिक कारक सामाजिक परिवर्तन के लिये अधिक प्रभावशाली सिद्ध होते हैं क्योंकि प्रौद्योगिकी का रूप स्वयं समाज की संस्कृति के द्वारा निर्धारित होता है। उदाहरण के लिये- धर्म संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष है, जिसके द्वारा यह निर्धारित किया जाता है कि समाज का ढाँचा किस प्रकार का होगा तथा कौन व्यक्ति उत्पादन का कार्य करेंगे और कौन रक्षा का ? बेवर का मत हैं कि, “जब धार्मिक आदर्शों में परिवर्तन होता है तो व्यक्तियों के विचारों, विश्वासों, उत्पादन की प्रविधियों और आचरण करने के ढंग में भी परिवर्तन आ जाता है।” यूरोप में भौतिकवाद चरम सीमा पर पहुँच चुका है। अत: वहाँ की संस्कृति अब भौतिकता से आध्यात्मवाद की ओर बढ़ रही है। इसके विपरीत भारत की संस्कृति अपने आध्यात्मवाद से हटकर भौतिकता की ओर बढ़ रही है।

3. भौगोलिक कारक (Geographical factors) 

आज के युग में मानव ने विज्ञान के क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति कर ली है, इस पर भी वह प्रकृति या भौगोलिक दशाओं पर पूर्ण रूप से विजय प्राप्त नहीं कर पाया है। इस कारण ही भौगोलिक दशाएँ अपने ढंग से सामाजिक परिवर्तन का एक कारक बन जाती हैं। अन्य शब्दों में, गर्मी, ठण्डक, वर्षा, आर्द्रता, तापक्रम, प्रकाश, मिट्टी की विशेषता, भूमि की बनावट, प्राकृतिक आपदा, भूकम्प आदि विभिन्न भौगोलिक तथा प्राकृतिक शक्तियाँ व्यक्तियों के विचारों और क्रियाओं को प्रभावित करती हैं, उन्हें उत्साहित या निरुत्साहित करती हैं। इन्हीं के अनुसार सामाजिक जीवन संगठित होता है और इसमें परिवर्तन होते हैं।

4. जनसंख्यात्मक कारक (Population factors) 

सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में जनसंख्यात्मक कारक विशेष रूप से प्रभावशाली सिद्ध होते हैं। अन्य शब्दों में, जनसंख्या की विशेषताएँ विभिन्न प्रकार के सामाजिक परिवर्तनों को उत्पन्न करती हैं। जब किसी देश की जनसंख्या अत्यधिक हो जाती है तो वहाँ के समाज में अनेक प्रकार के परिवर्तन जन्म लेते हैं। अति-जनसंख्या से तात्पर्य है- देश में पोषण के लिये खाद्यान्न की कमी होना और जनसंख्या का द्रुत गति से बढ़ना। इस प्रकार की अवस्था में समाज में भुखमरी, महामारी, निर्धनता तथा बेकारी आदि का बोलबाला हो जाता है और जनसाधारण का स्वास्थ्य तथा रहन-सहन का स्तर गिर जाता है, परिणामस्वरूप व्यक्तिगत विघटन और पारिवारिक विघटन को अप्रत्यक्ष रूप से प्रोत्साहन मिलता है।

5. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological factors)

यदि ध्यानपूर्वक देखा जाय तो हमें ज्ञात होगा कि समाज में परिवर्तन इस कारण भी हो रहा है कि सभ्यता की प्रगति और दिखावटी सम्बन्धों के मध्य व्यक्ति के मस्तिष्क में अनेक संघर्ष जन्म लेने लग जाते हैं। उदाहरण के लिये- पुरातनपन्थी वृद्ध व्यक्ति प्राचीन परम्पराओं की रक्षा का प्रयास करते हैं जबकि युवक नवीन सामाजिक व्यवस्थाओं के प्रति अपना उत्साह प्रकट करते हैं। इस प्रकार की अवस्था दोनों वर्गों में मानसिक तनाव बढ़ जाता है तथा नवीन सामाजिक मूल्यों का जन्म होता है। में

6. आर्थिक कारक (Economical factors) 

आर्थिक कारक भी सामाजिक परिवर्तन का एक प्रभावशाली कारक है। सम्पत्ति का रूप, व्यवसाय की प्रकृति, व्यक्तियों का जीवन-स्तर, सम्पत्ति का वितरण, वर्ग संघर्ष तथा उत्पादन का स्वरूप आदि ऐसे कुछ प्रमुख आर्थिक कारक हैं, जो पर्याप्त सीमा तक सामाजिक जीवन को प्रभावित करते हैं। इनमें किसी भी स्थिति में होने वाला परिवर्तन सामाजिक स्थिति में भी परिवर्तन ला देता है। जिन देशों में सम्पत्ति का रूप पूँजीवादी होता है, वहाँ समाज में निर्धन तथा धनी का भेद या आर्थिक विषमता पायी जाती हैं तथा शोषण और उत्पीड़न का बोलबाला रहता है। इसके विपरीत जब सम्पत्ति का रूप समाजवादी हो जाता है तो समाज का सम्पूर्ण ढाँचा ही बदल जाता है।

7. राजनैतिक कारक (Political factors) 

सामाजिक कारकों के बाद सर्वाधिक परिवर्तन का कार्य राजनैतिक स्तर पर होता है। देश का जनसमूह किसी न किसी राजनैतिक दल अथवा सदस्यों से जुड़ा होता है जो उस देश के रहने वालों को अपनी विचारधारा से जोड़ते तथा मोड़ते हैं। राजनैतिक लोग अपने भाषणों तथा व्याख्यानों से वहाँ के निवासियों का मानसिक परिवर्तन कर देते हैं। इसी प्रकार जाति-पाँति, धर्म तथा प्रान्तीयता से ऊपर उठकर त्यागी लोग जब परम्परागत रूढ़ियों का परित्याग कर सामाजिक चेतना लाते हैं तब भी समाज में सामाजिक परिवर्तन दृष्टिगोचर होते हैं।

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shubham yadav

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