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सामुदायिक विकास योजना के मूल तत्व
सफल सामुदायिक विकास कार्यक्रम में निम्नलिखित मूल तत्वों पर बल दिया जाता है-
1. क्रिया-कलाप समुदाय की बुनियादी आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
2. सतत कार्यवाही होनी चाहिए और विविध उद्देशीय कार्यक्रम की स्थापना होनी चाहिए।
3. व्यक्तियों की अभिवृत्तियों के परिवर्तन महत्वपूर्ण है जितना विकास को प्रारभिक अवस्था में सामुदायिक विकास के द्वारा भौतिक उपलब्धि।
4. सामुदायिक विकास का उद्देश्य व्यक्तियों के समुदाय कार्यो में अधिक और बेहतर सहभागी होना, स्थानीय शासन के विभिन्न रूपों को पुनर्जीवित करना और उन्हें प्रभावशाली स्थानीय प्रशासन की ओर ले जाना जहाँ वे अभी भी कार्य न कर रहे हों।
5. किसी भी कार्यक्रम को पूरा उद्देश्य वहाँ के स्थानीय नेतृत्व को पहचानना, बढ़ावा देना और प्रशिक्षण देना।
6. पूर्ण रूप से प्रभावशाली होने के लिए समुदाय के स्वयं सेवी संस्थाओं की शासन से आन्तरिक व बाह्य दोनों प्रकार की सहायता की आवश्यकता पड़ती हैं।
7. राज्य स्तर पर सामुदायिक विकास कार्यक्रम के लिए निम्नलिखित आवश्यकताएं होती है जैसे- स्थिर नीति को अपनाना, विशेष प्रशासनिक व्यवस्थाएँ, कर्मचारीगण की भर्ती एवं प्रशिक्षण, स्थानीय व राज्य संसाधनों का जुटाव, शोध का संगठन, प्रयोग एवं मूल्यांकन।
8. ऐच्छिक अशासकीय संगठनों का सामुदायिक विकास कार्यक्रम में स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पूर्ण रूप से उपयोग करना चाहिए।
9. समुदाय परियोजना में स्त्रियों तथा युवा वर्ग के सहभागी होने में अधिक विश्वास रखने से विकास कार्यक्रम को बढ़ावा मिलता है।
10. स्थानीय स्तर पर आर्थिक और सामाजिक प्रगति होने पर विस्तृत राष्ट्रीय पैमाने पर समानान्तर विकास अवश्य होता है।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम के दर्शन
1. कार्य अनुभूत आवश्यकता पर आधारित हो- समुदाय का उन समस्याओं के समाधान में कार्यक्रम सहायक होना चाहिए जो उस समय विद्यमान हो।
2. कार्य इस कल्पना पर आधारित होना चाहिए कि व्यक्ति गरीबी और तकलीफ से मुक्त रहना चाहते हैं। यह कल्पना की जाती है कि समुदाय के सदस्य रहन-सहन का स्तर चाहते जो उन्हें पर्याप्त भोजन की कमी स्वास्थ्यजनक परिस्थितियों की कमी, वस्त्र व आवास की कमी की तकलीफ से मुक्त कर सके। सामाजिक दृष्टि से व्यक्तियों की चार इच्छाएं होती है- सुरक्षा, मान्यता, प्रत्युर और नवीन अनुभव।
3. यह कल्पना की जाती है कि व्यक्ति स्वयं की जीवन को नियन्त्रित करने के लिए स्वतन्त्रता चाहता है कि आर्थिक, धार्मिक, शैक्षणिक और राजनीतिक संस्थाएं जिनके अन्तर्गत वे रहते हैं उनका रूप निश्चित करना चाहता है।
4. व्यक्ति के मूल्य को नियत विचार दिया जाये इस कार्यक्रम में सहकारिता सामूहिक निर्णय लेना, स्वप्रेरित परिवर्तन, आत्म-निर्भरता, सामाजिक उत्तरदायित्व, नेतृत्व और कार्य करने की क्षमता का समावेश किया जाये।
5. स्वयं की सहायता करना- व्यक्ति स्वयं की समस्याओं के समाधान की स्वयं ही योजना बनाता है और कार्य करता है। यदि समुदाये की समस्याओं की पूर्ण रूप से सुधारने का प्रयत्न बाह्य अभिकरण द्वारा किया जाता है तो सामुहिक निर्णय, स्व-प्रेरित परिवर्तन, आत्म-निर्भरता, नेतृत्व आदि का विकास नहीं हो पाता और यह नहीं कहा जा सकता कि समुदाय का विकास हो रहा है।
6. व्यक्ति सबसे बड़ा संसाधन है- सुधारात्मक गतिविधियों में व्यक्तियों के सहभागी होने पर भी विकसित होते हैं।
7. कार्यक्रम के अन्तर्गत अभिवृत्तियाँ, आदतों, सोचने के तरीको, व्यक्तियों के सम्बन्धों में परिवर्तन ज्ञान के स्तर में परिवर्तन, बौद्धिक स्तर बढ़ाकर, कौशल में परिवर्तन आता है।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम में मुख्य तत्व हैं-
1. उद्देश्य- आर्थिक, सामाजिक स्तर को उठाना।
2. सामान्य तत्व जिन्हें परिवर्तन की आवश्यकता है- घर, जन सेवाएं और ग्रामीण समुदाय।
3. विशिष्ट तत्व जिन्हें परिवर्तन की आवश्यकता है- रहन, सहन परिस्थितियाँ, स्वास्थ्य, शिक्षा सहकारी संस्थाएं संगठनों की सेवाएं आदि।
4. तत्व – जिन्हें परिवर्तन की आवश्यकता है जैसे- व्यक्ति-पुरूष, स्त्री और गाँव में रहने वाला युवा वर्ग ।
5. परिवर्तित प्रतिनिधि (1) ऐच्छिक स्थानीय नेता, (2) व्यवसायिक – ग्रामीण कार्यकर्ता और विस्तार विशेषज्ञ।
6. व्यवसायिक और वस्तु संसाधन खण्ड, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर का स्टाफ अपने संसाधनों के साथ जो कार्यक्रम में नियुक्त रखते हैं।
सामुदायिक विकास योजना की विशेषताएं
1. सभी वर्गो को लाभ – यह कार्यक्रम सभी व्यक्तियों, बच्चे-बूढ़ें, स्त्री-पुरुष अमीर- गरीब सभी वर्गो को चाहें किसी धर्म जाति के मानने वाले ही समान रूप से विकास के लिए हैं। क्योंकि यह क्षेत्र की समस्त जनता एवं विकास की योजना है।
2. स्थानीय साधनों पर आधारित विकास योजना- इसमें स्थानीय प्रयत्न, स्थानीय नेतृत्व, स्थानीय कुशलता, स्थानीय साधनों तथा आवश्यकताओं पर अधिक बल दिया जाता है। जिससे लोग इसमें सक्रियता से भाग ले सकें।
3. स्वनिर्भरता मनोवृत्ति का विकास- इस कार्यक्रम का मुख्य आधार अपनी सहायता स्वयं करने के लिए प्रेरित करना है। लोग स्वयं अपनी समस्या समझे और उसका समाधान के सिद्धान्त का पता लगायें तथा स्थानीय स्तर पर उपलब्ध साधनों का समुचित उपयोग कर सकें।
4. ग्रामीण जनता में प्रेरणा शक्ति का विकास- इस कार्यक्रम की मूलभूत विशेषता यह है कि समुदाय प्रगति के लिए प्रेरक शक्ति बनता है। इस कार्यक्रम के माध्यम से लोगों को आत्म-विश्वासी, सक्षम एवं उत्तरदायी बनता है।
5. आपसी सहयोग एवं ग्रामीण नेतृत्व का विकास- इस कार्यक्रम के द्वारा लोगों में आपसी सहयोग की भावना विकसित हो जाती है जिससे वह अपनी समस्या का स्वयं समाधान कर सकें।
6. इसका संचालन लोकतान्त्रिक विधि से किया जाता है।
7. इस कार्यक्रम के द्वारा जनता में आत्म-विश्वासों रूढ़िवादी, भाग्यवादी दृष्टिकोण तथा उनके कार्य करने के ढंग में परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है।
8. इसमें भौतिक विकास की अपेक्षा मानवीय तथा सामाजिक विकास पर अधिक बल दिया जाता है।
सामुदायिक विकास योजना के क्षेत्र एवं महत्व
सामुदायिक विकास योजना का क्षेत्र तथा महत्व – सामुदायिक विकास योजना के अन्तर्गत क्रियान्वित कार्यक्रम ही इसका क्षेत्र है। इसमें इतने कार्यक्रम है जो ग्रामीण जनता के बहुमुखी विकास को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार इस योजना का क्षेत्र बहुत व्यापक है। संक्षेप में आर्थिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास हेतु जितने भी कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं, सभी इसके क्षेत्र में सम्मिलित किये जाते हैं।
जहाँ तक इसके महत्व का प्रश्न है वह द्वितीय पंचवर्षीय योजना में उद्धृत है, जैसे- “संक्षेप में यह देहात में रहने वाले 6 करोड़ परिवारों के दृष्टिकोण को परिवर्तित करने, उनमें नये ज्ञान और जीवन के लिए तरीकों के प्रति उत्साह उत्पन्न करने और उनमें एक बेहतर जीवन के लिए महत्वाकांक्षा और जीवन का संकल्प भरने की समस्या है। जनतंत्रीय नियोजन में विस्तार सेवाएं और सामुदायिक संगठन प्राण शक्ति के मुख्य स्रोत हैं और ग्राम विकास सेवाएं में साधन हैं जिनके द्वारा सहयोगी आत्म सहायता तथा स्थानीय प्रयत्नों से ग्राम और ग्राम समूह, अधिकाधिक मात्रा में सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक उन्नति दोनों प्राप्त कर सकते हैं और राष्ट्रीय योजना में भागीदार बन सकते हैं।”
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