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सामूहिक परामर्श से क्या आशय है? | सामूहिक परामर्श की प्रक्रिया | सामूहिक परामर्श के पहलू

सामूहिक परामर्श
सामूहिक परामर्श

सामूहिक परामर्श से क्या आशय है?

सामूहिक परामर्श से क्या आशय है- सामूहिक परामर्श एक भ्रामक शब्द है। निर्देशन में विविध प्रकार के सामूहिक कार्यों को जिन नामों से पुकारा जाता है, वे अधिक स्पष्ट नहीं हैं। यही तथ्य सामाजिक परामर्श के बारे में सत्य है।

कुछ विशेषज्ञ निर्देशन के क्षेत्र में सामूहिक परामर्श शब्द के प्रयोग पर आपत्ति प्रकट करते हैं। उनके मतानुसार परामर्श तो दो व्यक्तियों – परामर्शदाता और उपबोध्य के मध्य स्थित सम्बन्ध है। यह एक व्यक्तिगत प्रक्रिया है। अतः सामूहिक परामर्श एक अनुपयुक्त नाम है। पश्चिमी देशों में मुख्यतः निर्देशन विशेषज्ञों सामूहिक परामर्श को निर्देशन की विधि के रूप में स्वीकार नहीं किया, लेकिन उन्हीं देशों में परामर्श के लिये बढ़ते दबाव और परामर्शदाताओं के अभाव में सामूहिक परामर्श को एक विधि के रूप में स्वीकार किया। यह विधि धन और समय की दृष्टि से अधिक मितव्ययी होने से लोगों का ध्यान इसकी ओर आकर्षित हुआ।

सामूहिक परामर्श में दो प्रकार के समूह होते हैं

1. बन्द समूह – इस समूह में एक बार चयनित सदस्य ही रहते हैं। समूह की कार्यशील अवस्था में कोई नवीन सदस्य सम्मिलित नहीं होता है।

2. सतत समूह – इस प्रकार के समूह में कभी भी कोई भी नया सदस्य सम्मिलित हो सकता है।

सामूहिक परामर्श में परामर्शदाता और उपबोध्य दोनों के निश्चित उत्तरदायित्व होते हैं। इसमें छात्रों में परस्पर सम्बन्ध बनाने में सहायता की जाती है। सभी सदस्य समूह की आचार संहिता का पालन करना सीखते हैं।

परामर्शदाता इस प्रक्रिया का केन्द्र बिन्दु होता है जो इच्छित दिशा में समूह को निर्देशित करता है। परामर्श की कार्यकुशलता पर सामूहिक परामर्श की सफलता निर्भर रहती है। सामूहिक परामर्श का उद्देश्य प्रत्येक सदस्य को अपनी अन्तर्दृष्टि को विकसित करने और ऐसे अनुभव अर्जित करने में सहायता करना है जो व्यक्तित्व विकास और समस्या समाधान में सहायता कर सकें। यह विधि आत्मसम्मान और भावनात्मक सुरक्षा के विकास में सहायक होती है।

सामूहिक परामर्श में समूह में समरूपता का होना आवश्यक है। इसीलिये समूह में समान आयु, समान योग्यता या समान समस्या वाले उपबोध्यों को सम्मिलित करना चाहिये। :

सामूहिक परामर्श की प्रक्रिया

सामूहिक परामर्श के समूह में छात्रों को स्वेच्छा से सम्मिलित होने की स्वतंत्रता देनी चाहिये, लेकिन परामर्शदाता को समूह के सदस्यों की संख्या पर ध्यान देना चाहिये। समूह छोटा होना चाहिये जिसमें 20 से अधिक सदस्य नहीं होने चाहिये। बैक नामक विद्वान के मतानुसार अग्र प्रकार के व्यक्तियों को समूह में सम्मिलित नहीं करना चाहिये-

1. ऐसे व्यक्ति जिनका वास्तविकता से कोई सम्पर्क नहीं है।

2. अनैतिक व्यवहार करने वाले।

3. ऐसे स्वयं भू नेता जो समूह के अधिकांश समय पर अपना एकाधिकार जमाते हैं।

4. मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति।

सामूहिक परामर्श के पहलू

रोजर्स द्वारा सुझाये गये सामूहिक परामर्श के पहलू अधोलिखित हैं-

1. सांवेगिक परित्याग,

2. अभिवृत्तियों का क्रमशः अन्वेषण,

3. इच्छित तत्त्वों की बढ़ती चेतनायुक्त जागरूकता,

4. परिवर्तित सन्दर्भ में समस्या का परिवर्तित प्रत्यक्षीकरण,

5. समूह और आत्म का परिवर्तित विचार,

6. चेतनापूर्ण नियंत्रित क्रिया की नवीन दिशा,

7. सामाजिक और पारस्परिक सम्बन्धों में सुधार

सामूहिक परामर्श के पहलुओं को व्यावहारिक रूप देने के सोपान

सामूहिक परामर्श के पहलुओं के व्यावहारिक पक्ष को विकसित करने में अधोलिखित सोपान सहायक हो सकते हैं-

1. उपस्थिति – समूह में छात्र का उपस्थित होना महत्त्व रखता है। यह उपस्थिति स्वेच्छा से होती है। उपस्थिति बाध्यता से नहीं होनी चाहिये। व्यक्ति की उपस्थिति ही समूह के अन्य सदस्यों के साथ सम्बन्ध को दर्शाती है। समूह के सदस्यों में परस्पर तथा परामर्शदाता के साथ सम्बन्ध धीरे-धीरे के विकसित होते हैं।

2. स्वीकृति — स्वीकृति से आशय है कि उपबोध्य समूह की सदस्यता को कितना महत्त्व देता है तथा अन्य सदस्यों को कितना स्वीकार करता है।

3. सुनना और अवलोकन करना- सामूहिक परामर्श में समस्या का समाधान करना एक जटिल कार्य है। इस कार्य के लिये परामर्शदाता को एक अच्छा श्रोता और सूक्ष्म अवलोकनकर्त्ता होना आवश्यक है। सामूहिक परामर्श में समूह के सभी सदस्यों में यह गुण होना चाहिये।

4. सामूहिक और व्यक्तिगत अवबोध में वृद्धि करना – सामूहिक परामर्श में समूह तथा स्वयं को समझना आवश्यक है। ऐसी अनेक प्रविधियाँ हैं जो स्वयं के और अन्य सदस्यों के कार्यों को समझने में उपयोगी होती हैं।

5. समस्या समाधान– समस्या समाधान के लिये क्रियाओं की योजना बनाना भी समूह में स्वास्थ्यप्रद वातावरण बनाने में सहायक होता है। सामूहिक परामर्श का लक्ष्य समूह द्वारा लिया गया निर्णय है जो समस्या के समाधान पर केन्द्रित होता है।

6. मूल्यांकन एवं समापन प्रक्रिया – सामूहिक परामर्श का समापन एक कठिन कार्य है। परामर्शदाता के अनुभव तथा समूह का स्वरूप तथा पहले के सूत्रों की प्रगति परामर्श के समापन में निर्णय की भूमिका निभाते हैं। समूह की प्रगति के मूल्यांकन की क्रिया परामर्शदाता द्वारा अपने विवेक से करनी चाहिये।

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shubham yadav

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