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सिविल प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों के निष्पादन के विभिन्न क्षेत्र

सिविल प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों के निष्पादन के विभिन्न क्षेत्र
सिविल प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों के निष्पादन के विभिन्न क्षेत्र

सिविल प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों के अन्तर्गत समहित आज्ञप्ति के निष्पादन के विभिन्न ढंग (क्षेत्र) का वर्णन करे ? Describe the different manner (scope) of execution of decree under the provisions of the Code of Civil Procedure

सिविल प्रक्रिया संहिता के प्राविधानों के निष्पादन के विभिन्न क्षेत्र – न्यायालय द्वारा किसी सम्पत्ति से सम्बन्धित अधिकार के सम्बन्ध में दी गई आज्ञप्ति पर्याप्त उपचार नहीं है जब तक उस आज्ञप्ति को लागू कराकर व्यथित पक्षकार को उपचार प्रदान न कराया जाय। न्यायालय की प्रक्रिया द्वारा उसकी आज्ञप्तियों को प्रवर्तित या लागू (Enforce) कराने को ही आज्ञप्ति का निष्पादन कहते हैं।

आज्ञप्तियों को लागू कराने हेतु पक्षकारों को न्यायालय में उचित अवधि के अन्तर्गत आवेदन देना होता है। आज्ञप्ति (decree) के निष्पादन से सम्बन्धित नियम सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 36 से 74 तथा आदेश 21 में अन्तर्निहित किये गये हैं। ये उपबन्ध उन्हीं आज्ञप्तियों पर लागू होते हैं जो (प्रवर्तनीय) निष्पादन योग्य होते हैं।

यदि किसी आज्ञप्ति के विरुद्ध निर्धारित समयावधि में अपील नहीं की जाती है या यदि आज्ञप्ति के विरुद्ध अपील की गई होती है तो अन्तिम अपील न्यायालय द्वारा पारित आज्ञपित (Decree) निष्पादन योग्य होती है क्योंकि अपील के मामलों में प्रारम्भिक न्यायालय की आज्ञप्ति उच्चतर (Higher) न्यायालय की आज्ञप्ति में विलीन हो जाती है तथा अन्तिम आज्ञप्ति ही निष्पादन योग्य होती है। साधारण रूप से आज्ञप्ति जिस न्यायालय द्वारा पारित की गई होती है (प्रथम बार का न्यायालय) उसी न्यायालय द्वारा निष्पादित (लागू) की जाती है। यदि प्रथम बार के न्यायालय की

आज्ञप्ति के विरुद्ध अपील की गई है तथा प्रथम अपीलीय या द्वितीय अपीलीय न्यायालय ने आज्ञप्ति पारित की है तो प्रथम या द्वितीय न्यायालय द्वारा पारित आज्ञप्ति भी प्रथम बार के न्यायालय या मूल न्यायालय जिसने अपील के पूर्व आशप्ति पारित की है या जिसकी आज्ञप्ति के विरुद्ध अपील गई है, आज्ञप्ति उसी के द्वारा निष्पादित करने के लिए प्रेषित कर दी जाती है।

मान ले वाराणसी के जिला न्यायालय या मुन्सिफ न्यायालय द्वारा कोई आज्ञप्ति पारित की गई है तथा उसकी अपील उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में की गई है तो उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा अपील के निस्तारण में निर्गत आज्ञप्ति वाराणसी के जिला या मुन्सिफ न्यायालय (जैसा कि मामला है) द्वारा निष्पादित की जायेगी।

यदि आज्ञपित पारित करने वाले प्रथम न्यायालय का अस्तित्व समाप्त हो गया है तो उस न्यायालय द्वारा आज्ञप्ति निष्पादित की जायेगी जहाँ यदि वह न्यायालय न होता तो वाद दाखिल किया गया होता (धारा-37) तथा ऐसा न्यायालय ऐसे वाद को परीक्षण करने का अधिकार रखता या उसे आज्ञप्ति के निष्पादन के लिए आवेदन सुनने का अधिकार होता यह उल्लेखनीय है कि प्रथम बार के न्यायालय का क्षेत्राधिकार आज्ञप्ति पारित करने के पश्चात दूसरे न्यायालय को अन्तरित कर दिया गया है तो भी उसका आज्ञप्ति निष्पादित करने का क्षेत्राधिकार समाप्त नहीं होता।

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धारा 38 के अनुसार आज्ञप्ति या तो उसे पारित करने वाले न्यायालय द्वारा या उस न्यायालय द्वारा जिसे वह निष्पादन के लिए प्रेषित की गई है निष्पादित की जा सकेगी। विहित (निर्धारित Prescribed) शर्तों तथा सीमाओं के अधीन न्यायालय आज्ञप्तिधारी

आज्ञपित के निष्पादन के सामान्य ढंग (General Modes of Execusion of Decree)

(Decree holder) के आवेदन पर निम्नलिखित ढंगों में से किसी एक ढंग द्वारा आज्ञप्ति के निष्पादन (प्रवर्तन Enforcement) के लिए आदेश दे सकेगा

1. सम्पत्ति के परिदान द्वारा,

2. गिरफ्तारी या कारावास में निरोध (Detention) द्वारा,

3. सम्पत्ति की कुर्की (attachment) द्वारा, 4. सम्पत्ति के विक्रय द्वारा,

5. प्रापक (आदाता) (Receiver) की नियुक्ति द्वारा,

6. ऐसे अन्य ढंग से जैसा कि अनुतोष के स्वरूप से अपेक्षित हों।

1. किसी सम्पत्ति के परिदान (Delivery) द्वारा

निष्पादन करने वाला न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि (विवाद) मूल सम्पत्ति जिस पर कब्जे का या स्वामित्व का दावा किया गया है व्यथित पक्षकार को परिदान (Deliver) की जाय।

2. आज्ञप्ति के निष्पादन में निर्णीत की गिरफ्तारी तथा निरोध के सम्बन्ध में नियम (Rules regarding the arrest and Detention of Judgement Debtor in execution of decree)

किसी आज्ञप्ति के निष्पादन का सबसे प्रभावी तरीका निर्णीत ऋणी की गिरफ्तारी का है। एक आज्ञप्ति के निष्पादन में निर्णीत ऋणी को किसी भी दिन गिरफ्तार किया जा सकता है। ऐसा व्यक्ति शीघ्रता से न्यायालय के समक्ष लाया जायेगा।

न्यायालय में लाने से पूर्व ऐसे व्यक्ति को उस जिले के सिविल कारागार (civil prison) में निरुद्ध किया जा सकता है जिसमें निरोध का आदेश देने वाला न्यायालय स्थित है। यदि ऐसे न्यायालय के क्षेत्राधिकार में सिविल कारागार की सुविधा नहीं है तो वहाँ निर्णीत ऋणी को ऐसे स्थान पर निरुद्ध किया जा सकता है जहाँ कि राज्य सरकार ने ऐसे निर्णीत ऋणी को निरुद्ध करने के लिए निर्धारित किया है। परन्तु किसी निर्णीत ऋणी के निरुद्ध करने पर निम्न प्रतिबन्ध हैं :

1. इस धारा के अधीन किसी निर्णीत ऋणी को गिरफ्तार करने के प्रयोजन से उसके निवास गृह में सूर्यास्त के पश्चात तथा सूर्योदय के पूर्व प्रवेश नहीं किया जा सकता।

2. किसी निर्णीत ऋणी के निवास गृह का बाहरी द्वारा तोड़कर तब तक नहीं खोला जायगा जब तक कि ऐसा निवास गृह निर्णीत ऋणी के कब्जे में न हो तथा निर्णत ऋणी अपने तक पहुँच देने से मना करता हो। परन्तु यदि किसी अधिकृत अधिकारी ने ऐसे निवास गृह में सम्यक रूप से पहुँच कर ली हैं तो वह किसी ऐसे कमरे का द्वार तोड़ सकेगा जिसमें उसे निर्णीत ऋणी के पाये जाने का विश्वास हो।

3. यदि कमरा (Room) किसी स्त्री के वास्तविक कब्जे (actual occupancy) में है जो कि निर्णत ऋणी नहीं है तथा जो देश की रूढ़ि के अनुसार लोक के समक्ष नहीं आती तो गिरफ्तारी करने के लिए अधिकृत अधिकारी के लिए यह आवश्यक होगा कि वह वहाँ से उसे हट जाने के लिए युक्तियुक्त समय सूचित करने पर और उसे हट जाने के लिए उचित सुविधा देने के पश्चात गिरफ्तारी करने के लिए कमरे में घुस सकेगा।

4. यदि किसी निर्णीत ऋणी ने जिसे गिरफ्तार किया गया है, यदि धन की दैनगी (Payment) की आज्ञप्ति है तो वह आज्ञप्ति की धनराशि तथा गिरफ्तारी का खर्च गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को चुका दिया है तो ऐसा अधिकारी उसे तुरन्त उन्मोचित (release) या मुक्त कर देगा (धारा 55)

5. यदि किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी से जनता के संकट या असुविधा होने की संभावना है तो राज्य सरकार राजकीय गजट में अधिसूचना जारी करके यह व्यवस्था कर सकेगी कि वह व्यक्ति गिरफ्तारी के दायित्वाधीन नहीं होगा।

6. यदि कोई निर्णत ऋणी दिवालिया घोषित किये जाने की इच्छा प्रकट करता है वा न्यायालय इस बात से सन्तुष्ट है कि वह व्यक्ति एक माह के भीतर दिवालिया घोषित किये जाने

के लिए आवेदन कर देगा तो वहाँ न्यायालय ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तारी से उन्मोचित कर देगा। न्यायलय को अधिकार है कि वह यह आज्ञा प्रदान करें कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तारी करने के विरुद्ध संदर्शित किया जाय तथा न्यायालय यह आदेश देगा कि निर्णीत ऋणी को यथाशीघ्र न्यायालय के समक्ष लाया जाय। न्यायालय निर्णत ऋणी के उपस्थित होने के पश्चात यह प्रदर्शित करने का अवसर देगा कि उसे बन्दीगृह (कारागार) में क्यों न भेजा जाय।

निम्न व्यक्तियों को गिरफ्तारी से उन्मुक्ति प्राप्त है-

1. बारा 56 के अनुसार न्यायालय किसी धन के भुगतान हेतु आज्ञप्ति में किसी ऋणी को सिविल बन्दीगृह में निरुद्ध करने का आदेश नहीं देगा।

2. कोई न्यायाधीश, मजिस्ट्रेट या अन्य न्यायिक पदाधिकारी उस समय सिविल आदेशिका के अधीन गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा जब कि वह अपने न्यायालय को जा रहा हो। या न्यायालय से लौट रहा हो।

3. कोई भी संसद सदस्य या विधान सभा सदस्य या विधान परिषद सदस्य यथास्थिति संसद के किसी सदन या विधानसभा या विधान परिषद सदस्य के किसी अधिवेशन के दौरान बैठक या सम्मेलन के 40 दिन पूर्व या 40 दिन पश्चात गिरफ्तार या निरुद्ध नहीं किये जा सकेंगे (धारा 135-A) I

जीवन निर्वाह भत्ता-राज्य सरकार निर्णीत ऋणी की गिरफ्तारी पर उसके लिए मानदेय मासिक रूप से देय, निर्णीत ऋणी के वंश तथा राष्ट्रीयता के अनुरूप निर्धारित करेगी। तथा जब तक डिक्रीधारी न्यायालय में ऐसे मासिक भत्ते की धनराशि जमा न की जाय निर्णीत ऋणी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकेगा।

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1. यदि आज्ञप्ति 100 रुपये से अधिक राशि के लिए है तो वहाँ कोई निर्णीत ऋणी तीन माह से अधिक समयावधि के लिए निरुद्ध नहीं किया जा सकेगा।

2. यदि आज्ञप्ति 500 रुपये से अधिक परन्तु 1000 रुपये से कम धनराशि के लिए है तो वहाँ कोई निर्णीत ऋणी छः सप्ताह से अधिक समयावधि के लिए निरुद्ध नहीं किया जा सकेगा यदि निरोध की समयावधि तथा उन्मोचन देता है,

1. निर्णीत ऋणी निरोध के अधिपत्र में वर्णित धनराशि सिविल कारावास (civil prison) के भारसाधक अधिकारी (IN charge) को चुका देता है,

2. यदि उसके विरुद्ध आज्ञप्ति पूर्ण रूप से प्रभावी हो जाती है।

3. यदि जिस व्यक्ति के आवेदन पर उसे निरुद्ध किया गया है (डिक्कीधारी) आवेदन

4. यदि आज्ञप्तिधारी निर्णीत ऋणी का जीवन निर्वाह भत्ता चुकाने में विफल रहता है।

तो निर्णीत ऋणी को सिविल कारावास से मुक्त कर दिया जाएगा। रुग्णता के आधार पर उन्मोचन ( Release on the ground of illness ) निर्णीत ऋणी के निरोध पत्र को जारी होने के पश्चात यदि निर्णत ऋणी गम्भीर बीमारी से ग्रस्त हो जाता है या पहले से ही गम्भीर बीमारी से पीड़ित है तो उस आधार पर निरोध पत्र निरस्त किया जा सकेगा।

परन्तु यदि निर्णीत ऋणी को गिरफ्तार किया जा चुका हो व न्यायालय की राय है कि उसका स्वास्थ्य ठीक दशा में नहीं है या उसका स्वास्थ्य ऐसा नहीं है कि उसे सिविल कारावास में निरुद्ध किया जाय तो उसे उन्मोचित कर दिया जायेगा।

यदि निर्णीत ऋणी सिविल बन्दीगृह में सुपुर्द कर दिया गया है तो वहाँ उसे

1. संक्रामक या स्पर्शजन्य रोग होने का पता चलता है,

2. वह किसी गम्भीर रुग्णता से पीड़ित है तो न्यायालय द्वारा वह सिविल बन्दीगृह से उन्मोचित (release) कर दिया जायगा।

3. निर्णीत ऋणी की सम्पत्ति की कुर्की से सम्बन्धित नियम ( Rules regarding attachment of Property of Judgement debtor )-

निर्णत ऋणी की कुछ सम्पत्तियाँ डिक्री के निष्पादन में कुर्की तथा विक्रय के दायित्वाधीन हैं तथा कुछ सम्पत्तियाँ डिक्री के निष्पादन में कुर्की तथा विक्रय के अधीन नहीं है। इनका विवरण निम्न है-

सम्पत्ति जो डिक्री के निष्पादन में कुर्की और विक्रय के लिए दायित्वाधीन है किसी डिक्री के निष्पादन में निर्णीत ऋणी की भूमि, गृह, वस्तुएँ, धन बैंक, नोट, चेक, विनिमय पत्र, हुण्डी, बचतपत्र, सरकारी प्रतिभूतियाँ, धन के बन्धनामे, ऋण, निगम के अंश तथा अन्य विक्रय योग्य सब जंगम (movable) तथा स्थावर (Immovable) सम्पति जो कि निर्णीत ऋणी की है या

जिस पर या जिसके लाभों के ऊपर वह ऐसी व्यापक शक्ति (अन्तरित करने की शक्ति : disposing power) रखता है, जिसे वह अपने फायदे के लिए प्रयोग कर सकता है, किसी डिक्री के निष्पादन में कुर्क तथा विक्रय के दायित्वाधीन होता है। (धारा 60) निम्न सम्पत्तियाँ किसी डिक्री के निष्पादन में कुर्की या विक्रय के अधीन नहीं होंगी

1. निर्णीत ऋणी, उसकी पत्नी तथा उसकी सन्तानों के पहनने के आवश्यक वस्त्र, खाने के बर्तन, चारपाई तथा बिछौने एवं ऐसे निजी आभूषण जिन्हें कोई भी अपनी धार्मिक प्रथा के अनुसार पृथक नहीं कर सकती।

2. यदि निर्णीत ऋणी शिल्पी है तो उसके औजार, यदि निर्णत ऋणी कृषक है वहाँ उसके खेती के उपकरण, तथा उसके ऐसे जानवर या वीज जो न्यायालय की राय में उसकी जीविका के लिए आवश्यक है।

3. निर्णीत ऋणी का घर और दूसरी इमारतें उनके सामानों तथा स्थानों के साथ-साथ और उनसे निकटतम सम्बन्धित भूमि जो उसके उपयोग के लिए आवश्यक है।

4. निर्णीत ऋणी की लेखा पुस्तकें (Account Books)।

5. प्रतिकर (damages) के लिए केवल वाद लाने का अधिकार|

6. वैयक्तिक सेवा करने के लिए केवल वाद लाने का अधिकार।

7. वे वृत्तिकाएँ (Stipends) और उपदान (gratuities) जो कि सरकार के या किसी स्थानीय अधिकारी या अन्य नियोजन के निवृत्ति वेतन (pension) या कोई पारिवारिक निवृत्ति निधि (Family Pension fund), राजकीय निवृत्ति वेतन (Political Pension fund) या पूजा में चढ़ाई गई वस्तुओं को प्राप्त करने का अधिकार कुर्की तथा विक्रय से उन्मुक्त है।

8. श्रमिकों और घरेलू सेवकों की मजदूरी भले ही वह धन के रूप में देय हो।

9. यदि भरण पोषण की आज्ञप्ति नहीं है तो किसी डिक्री के निष्पादन में प्रथम चार सौ रुपये वेतन तथा बाकी दो तिहाई वेतन कुर्की से उन्मुक्त रहेगी।

10. ऐसे व्यक्तियों के वेतन तथा भत्ते जिन पर वायुसेवा अधिनियम 1950, सेना अधिनियम 1950 तथा नौसेना अधिनियम 1957 लागू है, कुर्की से उन्मुक्त रहेगी।

11. किसी ऐसे भविष्य निधि (Provident fund) के या से उत्पन्न सब अनिवार्य निक्षेप तथा राशियाँ और अन्य राशियाँ कुर्की से उन्मुक्त हैं।

10. ऐसे व्यक्तियों के वेतन तथा भत्ते जिन पर वायुसेवा अधिनियम 1950, सेना अधिनियम 1950 तथा नौसेना अधिनियम 1957 लागू है, कुर्की से उन्मुक्त रहेगी।

11. किसी ऐसे भविष्य निधि (Provident fund) के या से उत्पन्न सब अनिवार्य निक्षेप तथा राशियाँ और अन्य राशियाँ कुर्की से उन्मुक्त हैं।

12. किसी ऐसी विधि के या उससे उत्पन्न जिस पर लोक भविष्य निधि अधिनियम 1968 लागू है सब निदेश तथा अन्य राशियाँ कुर्की के दायित्वाधीन नहीं है।

13. निर्णीत ऋणी के जीवन बीमा पालिसियों के अधीन देय राशि कुर्की के अधीन नहीं है।

14. ऐसे निवासी भवन के पट्टाधारी (lessee) का हित जिसके किराया या वास सुविधा के नियंत्रण से सम्बन्धित विधि के उपबन्ध लागू है।

15. यदि सरकार या रेल कम्पनी ने अपने कर्मचारी को देय वेतन कुर्की से छूट प्रदान की है बशर्ते कि ऐसा अधिसूचना के अन्तर्गत किया गया है।

16. उत्तरजीवित्व (Survivorship) द्वारा उत्तराधिकार की प्रत्याशा (Expectancy) या केवल आकस्मिकताश्रित या सामान्य द्वारा अधिकार या हित।

17. भावी भरण पोषण का अधिकार (Right of Future maintenance)।

18. ऐसा कोई भत्ता जिसे किसी भारतीय विधि के अन्तर्गत उन्मुक्त घोषित किया गया है।

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19. जहाँ कि निर्णीत ऋणी भूराजस्व (Land Revenue) की देनगी के लिए दायित्वाधीन व्यक्ति है वहाँ ऐसी कोई जंगम सम्पत्ति जो कि राजस्व की बकाया वसूली के लिए विक्रय से उसे किसी तत्समय लागू विधि के अधीन छूट गया है। धारा 61 के अनुसार राज्य सरकार गजट में प्रकाशित साधारण या विशेष आदेश द्वारा घोषणा कर सकेगी कि कृषि उपज या कृषि उपज का कोई ऐसा भाग भूमि के सम्यक कर्षण (cultivation) तथा निर्णीत ऋणी के तथा उसके परिवार में अवलम्बन के लिए आगामी फसत तक के लिए आवश्यक हैं तो डिक्री के निष्पादन में कुर्की या विक्रय के दायित्व से छूट प्राप्त होगी।

धारा 62 के अनुसार डिक्री को निष्पादित करने वाला अधिकारी संगम (चल) सम्पत्ति को जब्त करने के लिए किसी निवास गृह में सूर्योदय के पश्चात तथा सूर्योदय के पूर्व प्रवेश नहीं कर सकेगा।

निवास गृह का बाहरी दरवाजा तोड़कर तब तक खोला नहीं जाएगा जब तक(1) ऐसा निवासगृह निर्णीत ऋणी के दखल में न हो।(2) निर्णीत ऋणी पहुंचा देने से इन्कार न करता हो या व्यवधान उत्पन्न न करता हो।

यदि निवास गृह का कोई कमरा किसी स्त्री के वास्तविक कब्जे में है जो देश की विधि के अनुसार लोक के समक्ष नहीं आती तो डिक्री की आदेशिका का निष्पादन करने वाला व्यक्ति ऐसे खी को सूचना देगा कि वह हट जाने के लिए स्वतंत्र है। वह उस स्त्री को हट जाने का समय प्रदान करते हुए हट जाने की उचित सुविधा प्रदान करेगा तथा उसके पश्चात ही कमरे में प्रवेश कर सकेगा। कई न्यायालयों की डिक्रियों के निष्पादन में कुर्क की गई सम्पत्ति-जहाँ कि सम्पत्ति कई न्यायालयों द्वारा दी गई एक से अधिक डिक्रियों के निष्पादन में कुर्क की जानी है वहाँ

सम्पत्ति सम्बन्धित सभी आपत्तियों का निवारण उच्च ग्रेड वाला न्यायालय करेगा। जहाँ ग्रेड का अन्तर नहीं है वहाँ आपत्तियों की अवधारणा उस न्यायालय द्वारा की जायेगी जिसकी डिक्री प्रथम हैं। (धारा 63) कुर्की के पश्चात अन्तरण का शून्य (void) होना-धारा 64 के अनुसार एक सम्पत्ति जिसे कुर्क करने का आदेश दिया जा चुका है उसका किसी प्रकार से वैयक्तिक हस्तान्तरण उस सीमा तक शून्य होगा जिस सीमा तक सम्पत्ति कुर्की के अन्तर्गत दायित्वाधीन है।

4. निर्णीत ऋणी के विरुद्ध डिक्री के निष्पादन में सम्पत्त का विक्रय (Execution of decree by sale of Property of Judgement Debtor )-

आदेश 21 नियम 64 के अनुसार डिक्री का निष्पादन करने वाला न्यायालय आदेश दे सकेगा कि आदेश द्वारा कुर्क भी गई और विक्रय के लिए दायित्वाधीन कोई सम्पत्ति या उसका कोई भाग डिक्री की चुकताई (satisfaction) के लिए यदि आवश्यक हो तो बेची जाय और ऐसे विक्रय से प्राप्ति या उसका अंश उस पक्षकार को दे दिया जाय जोकि डिक्री के अधीन उसे पाने का अधिकारी है।

5. प्रापक (Receiver) की नियुक्ति द्वारा

डिक्री के निष्पादन का एक यह भी ढंग है कि निर्णीत ऋणी की सम्पत्ति हेतु प्रापक (Receiver) नियुक्त किया जाय तथा वह प्रापक की डिक्री के अन्तर्गत दायित्वों को सम्पत्ति से पूरा कराये।

6. ऐसा अन्य ढंग जो कि अनुतोष के स्वरूप से अपेक्षित है

यदि न्यायालय के समक्ष किसी विशिष्ट अनुतोष (जैसे वैवाहिक अधिकारों के प्रत्यास्थापन या परक्राम्य लिखत के पृष्ठांकन के निष्पादन) की मांग की गई है तथा न्यायालय ने इस अनुतोष को स्वीकार करते हुए डिक्री पारित की है तो उसके निष्पादन का ढंग विशिष्ट होगा।

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shubham yadav

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