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सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ, परिभाषा, सिद्धांत, विशेषताएँ एवं मान्यताएँ

सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ
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सूक्ष्म शिक्षण का अर्थ 

सूक्ष्म शिक्षण अध्यापक शिक्षा के क्षेत्र में एक नवाचार है जो वर्तमान समय में शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालयों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है। उस सूक्ष्म शिक्षण के फलस्वरूप छात्राध्यापकों/छात्राध्यापिकाओं में प्रशिक्षण के दौरान कक्षा-अध्यापन के कौशल को विकसित करने का प्रयत्न किया जाता है। सूक्ष्म शिक्षण एक प्रकार की प्रयोगशाला विधि है जिसमें छात्राध्यापक/छात्राध्यापिका के शिक्षण कौशल का अभ्यास बिना वास्तविक कक्षा-शिक्षण का वातावरण तैयार किए हुए अर्थात् विद्यालयी छात्रों से रहित वातावरण में कराया जाता है जिससे भावी अध्यापकों के कक्षा-कक्ष शिक्षण के कौशलों में पारंगत बनाया जाता है। उस प्रकार सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक-प्रशिक्षण के क्षेत्र में एक नवीण नियंत्रित अभ्यास की प्रक्रिया है।

सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी प्रविधि है जो शिक्षकों में शिक्षण दक्षता विकसित करने का प्रयास करती है। शिक्षण एक सोदेश्यपूर्ण प्रक्रिया है जिनमें अनेक कौशल सन्निहित होते हैं। तथा उद्देश्य लेखन कौशल, प्रस्तावना कौशल प्रश्नोत्तर कौशल, प्रदर्शन कौशल, पुनर्बलन कौशल, व्याख्या कौशल, श्यामपट्ट कौशल, छात्र सहभागिता कौशल, उद्दीपन परिवर्तन कौशल, दृष्टान्त कौशल, शिक्षण सामग्री उपयोग कौशल, खोजी प्रश्न कौशल, पाठ समापन कौशल आदि हैं। अध्यापक शिक्षा के अन्तर्गत भावी शिक्षकों को उक्त सभी शिक्षण कौशलों के सफल सम्पादन हेतु दक्ष बनाया जाता है। शिक्षक प्रशिक्षण में छात्राध्यापक एक ही साथ सभी कौशलों में पारंगत नहीं हो सकता है। अतः इस विचारधारा के फलस्वरूप शिक्षण प्रशिक्षण केन्द्रों में सूक्ष्म-शिक्षण की अवधारणा प्रकाश में आयी।

इस प्रकार सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक-शिक्षा कार्यक्रम के क्षेत्र में शिक्षण कार्य के उन्नयन के लिए एक महत्त्वपूर्ण नवाचार है। इसका विकास स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका में सन् 1961 में रूचिसन बुश तथा एलेन ने सर्वप्रथम नियंत्रित रूप में “संकुचित अध्ययन अभ्यास क्रम” प्रारम्भ करके किया। सन् 1963 ई. में ए. डब्ल्यू. ड्वेट एलन ने इस उपागम की विस्तृत व्याख्या की तथा इसे सूक्ष्म शिक्षण की संज्ञा प्रदान की। अतः डी. एलेन को सूक्ष्म शिक्षण का जन्मदाता माना जाता है । इस सूक्ष्म शिक्षण के अन्तर्गत प्रत्येक छात्राध्यापक 10 छात्रों को एक छोटा-सा पाठ पढ़ाता था और अन्य छात्राध्यापक विभिन्न प्रकार की भूमिका का निर्वहन करते थे। इसके अन्तर्गत विडियो टेप रिकार्डर का प्रयोग भी छात्राध्यापकों के शिक्षण व्यवहार में वांछित परिवर्तन के लिए किया जाता है। इस प्रविधि का उपयोग शिक्षक-प्रशिक्षणों के व्यवहार परिवर्तन और उनमें विशिष्ट कौशलों के विकास के लिए किया जाता है वास्तविक कक्षा शिक्षण की जटिलताओं को कम करते हुए शिक्षण कार्य को लघु रूप में सम्पन्न करना ही इसका महत्त्वपूर्ण उद्देश्य है। इसमें कक्षा के आकार, विषय-वस्तु के प्रकरण, शिक्षण के समय, को छोटा कर लिया जाता है किन्तु कौशल विशेष का कार्य अपेक्षाकृत अधिक व्यापक बना लिया जाता है जिससे कि प्रशिक्षणार्थी को प्रत्येक शिक्षण कौशल में सिद्धहस्त बनाया जा सके।

सूक्ष्म शिक्षण की परिभाषाएँ (Definition of Micro-teaching)

सूक्ष्म शिक्षण के सम्प्रत्यय को स्पष्ट करते हुए विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से इसे परिभाषित किया है, इसमें से कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं-

(i) ए.डब्लू.डी. एलेन के अनुसार “सूक्ष्म शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाँटना है।”

(ii) स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसार- “सूक्ष्म शिक्षण अध्यापन, अभ्यास, कक्षा आकार व कक्षा अवधि में न्यूनीकृत अनुमाप है ।”

(iii) शिक्षा विश्वकोष के अनुसार- “सूक्ष्म शिक्षण वास्तविक निर्मित तथा अध्यापक अभ्यास का न्यूनीकृत अनुमाप है जो शिक्षक-प्रशिक्षण, पाठ्यक्रम विकास व अनुसंधान में प्रयुक्त किया जाता है।”

(iv) अरबिन के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण, वास्तविक कक्षा शिक्षण की अपेक्षा एक अनुकरणीय शिक्षण है।”

(v) एलेन एवं ईव के अनुसार “सूक्ष्म-शिक्षण को ऐसी नियंत्रित अभ्यास प्रणाली के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसके द्वारा विशिष्ट शिक्षण व्यवहारों पर ध्यान देकर नियंत्रित परिस्थितियों में शिक्षण अभ्यास किया जा सकता है।”

(vi) एम.बी. बुच के अनुसार – ” सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक-शिक्षण तकनीकी हैं, जो शिक्षकों को सुस्पष्ट शिक्षण कौशलों को लागू करने की इजाजत देती है ताकि वे पाँच से दस मिनट के योजनाबद्ध श्रृंखला में वास्तविक छात्रों के छोटे समूह के आक्रमण को वीडियो टेप पर परिणाम देखने के मौके के साथ ध्यानपूर्वक पाठ तैयार कर सकें।”

(vii) पीक व टकर के अनुसार “सूक्ष्म शिक्षण विडियो टेप फीड बैक के प्रयोग से प्रमुख शिक्षण-कौशलों के विकास को संक्षिप्त रूप से जानने के लिए प्रयोगात्मक विधि की एक प्रणाली है।”

(viii) एन.सी. सिंह के अनुसार- ” सूक्ष्म शिक्षण का सरलीकृत रूप है जिसमें शिक्षक पाँच छात्रों के समूह को पाँच से बीस मिनट तक के समय में पाठ्यक्रम की एक छोटी-सी इकाई का शिक्षण प्रदान करता है। “

(ix) बी.के. पासी के अनुसार – “सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण तकनीक है जो छात्र-अध्यापक यह अपेक्षा रखती है कि वे किसी तथ्य को थोड़े-से छात्रों को कम समय में किसी विशिष्ट शिक्षण कौशल के माध्यम से शिक्षण दें।”

(x) बी.एम. शोर के अनुसार “सूक्ष्म-शिक्षण कम अवधि, कम छात्रों तथा कम शिक्षण क्रियाओं वाली प्रविधि है ।”

(xi) किलफ्ट एवं उनके सहयोगी के अनुसार “सूक्ष्म-शिक्षण प्रशिक्षण की वह विधि है जो शिक्षण अभ्यास को किसी कौशल विशेष तक सीमित करके तथा कक्षा के आकार एवं शिक्षण अवधि को घटाकर शिक्षण को अधिक सरल एवं नियंत्रित करती है। “

(xii) डेविड यंग के अनुसार ” सूक्ष्म शिक्षण एक ऐसी प्रविधि है, जो अनुभवी एवं अनुभवहीन दोनों प्रकार के अध्यापकों को अपने शिक्षण के परिमार्जन हेतु नवीन अवसर प्रदान करती है। “

(xiii) एन.के. जंगीरा एवं अजीत सिंह के अनुसार ” सूक्ष्म शिक्षण एक प्रशिक्षण स्थिति हैं जिसमें सामान्य कक्षा शिक्षण की जटिलताओं को एक समय में एक ही शिक्षण कौशल का अभ्यास करके पाठ्यवस्तु को किसी एक सम्प्रत्यय तक सीमित करके, छात्रों की संख्या को पाँच से दस तक सीमित करके तथा पाठ की अवधि पाँच से दस मिनट करके शिक्षण अभ्यास कराया जाता है।”

(14) एटोन्स एवं मोल्सि के अनुसार- सूक्ष्म अध्यापन, अध्यापन की एक सुगम स्थिति है जिससे कार्य साधारण कक्षा से अधिक नियंत्रित होता है तथा जिसमें छात्राध्यापक को आवश्यक प्रतिपुष्टि मिलती है, दूसरे शब्दों में यह अध्यापक अभ्यास की एक विधि है जिसमें अधिक नियंत्रण प्रचुर विश्लेषण तथा प्रतिपुष्टि की एक नयी प्रणाली का उपयोग है।”

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह परिभाषा सूक्ष्म- शिक्षण के संदर्भ में दी जा सकती है—”सूक्ष्म शिक्षण छात्राध्यापकों/छात्रा अध्यापिकाओं के प्रशिक्षण की एक ऐसी शिक्षण-कौशल में प्रविधि है जिसमें कक्षा के आकार को कम कर दिया जाता है, समय को कम कर दिया जाता है, पाठ्यवस्तु को संक्षिप्त कर दिया जाता है और एक समय में एक प्रशिक्षण दिया जाता है।”

सूक्ष्म शिक्षण में, सामान्य शिक्षण के तत्त्वों को सूक्ष्म रूप प्रदान किया जाता है-

(i) कक्षा का आकार कम करके 5 से 10 विद्यार्थी ही एक समय में लिए जाते हैं।

(ii) पढ़ाने की अवधि घटाकर 5 से 10 मिनट कर दी जाती है।

(iii) विषय-वस्तु के प्रकरण के आकार को संक्षिप्त कर दिया जाता है।

(iv) शिक्षण कार्य के दौरान अनेक शिक्षण कौशलों के स्थान पर प्राय: एक शिक्षण कौशल पर ही अभ्यास किया जाता है।

सूक्ष्म-शिक्षण के सिद्धांत (Principle of Micro-Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण प्रविधि का सैद्धान्तिक रूप से प्रतिपादन करते हुए एलेन व रेयान (1969) ने अपनी पुस्तक ‘माइक्रो टीचिंग’ में सूक्ष्म शिक्षण की निम्नलिखित मान्यताएँ दी हैं (i) सूक्ष्म शिक्षण एक वास्तविक अध्यापन है जिसमें शिक्षण स्थिति की रचना इस प्रकार की जाती है कि अध्यापक एवं छात्र एक साथ अभ्यास करते हैं-

(ii) सूक्ष्म शिक्षण द्वारा सामान्यशिक्षण की जटिलताओं को कम किया जाता है; यथा-यथा का आकार, विषय क्षेत्र, समय को संक्षिप्त कर दिया जाता है तथा एक पूर्व निर्धारित विशिष्ट शिक्षण कौशल का अभ्यास किया जाता है।

(iii) सूक्ष्म विशाल विशिष्ट कार्य पर केन्द्रित होती है; यथा-शिक्षण-कौशल, शिक्षण क्रियाएँ, पाठ्यक्रम सम्बन्धी कार्य तथा शिक्षण विधियों के प्रदर्शन से सम्बन्धित कार्य आदि । शिक्षण अभ्यास में आवश्यक माना गया है। इस प्रविधि में छात्रों की संख्या परीविक्षण एवं प्रतिपुष्टि पर कठोर नियंत्रण रखा जाता है ।

(iv) सूक्ष्म-शिक्षण द्वारा शिक्षण में साधारण ज्ञान को प्रतिपुष्टि द्वारा विस्तृत किया जाता है।

सूक्ष्म-शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Micro-teaching)

सूक्ष्म शिक्षण की अग्रलिखित विशेषताएँ हैं-

(i) सूक्ष्म शिक्षण समीक्षात्मक विश्लेषण की प्रभावशाली प्रविधि है।

(ii) यह प्रभावी शिक्षण तैयार करने के लिए प्रशिक्षण प्रविधि है।

(iii) कक्षा शिक्षण के दौरान उत्पन्न समस्याओं एवं कठिनाईयों को सूक्ष्म-शिक्षण के द्वारा दूर किया जा सकता है।

(iv) यह कम समय में अधिक दक्षता प्रदान करने वाली प्रविधि है।

(v) सेवारत् व सेवापूर्ण शिक्षकों के लिए उपयोगी है।

(vi) सूक्ष्म शिक्षण शिक्षक व्यवहार में परिमार्जन कर उसे कक्षोचित व्यवहार में अवगत कराया जाता है जिससे कि उनसे सुधार हो सके।

(vii) विडियो टेप रिकार्डिग द्वारा छात्रों की कमियों को सूक्ष्म शिक्षण में अवगत कराया जाता है जिससे कि उनमें सुधार हो सके।

(viii) निरीक्षक छात्राध्यापक ही निर्देशक के रूप में कार्य करता है।

(ix) इसमें कक्षा का आकार समयाविधि, विषय वस्तु का आकार संक्षिप्त होता है।

(x) सूक्ष्म शिक्षण व्यक्तिगत शिक्षण की प्रविधि है।

(xi) सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।

(xii) यह शिक्षक शिक्षा के क्षेत्र में नई खोज से सम्बन्धित है।

(xiii) सूक्ष्म शिक्षण, शिक्षण के अन्तर्गत-

(a) कक्षा का आकार घटाकर 5 से 10 विद्यार्थी ही रखा जाता है।

(b) सूक्ष्म शिक्षण में शिक्षण अवधि घटाकर 5 से 10 मिनट कर दी जाती है।

(c) विषय-वस्तु के प्रकरण के आकार को संक्षिप्त कर दिया जाता है।

(d) शिक्षण के दौरान अनेक शिक्षण कौशलों के स्थान पर प्राय: एक शिक्षण कौशल का ही अभ्यास किया जाता है।

(xiv) सूक्ष्म शिक्षण के द्वारा छात्राध्यापक अपना स्वयं का मूल्यांकन कर सकता है।

(xv) सूक्ष्म शिक्षण शिक्षकों की व्यावहारिक परिपक्वा का विकास रहता है।

सूक्ष्म-शिक्षण की मान्यताएँ (Assumptions of Micro-Teaching)

सूक्ष्म शिक्षण की निम्नलिखित मूलभूत मान्यताएँ हैं—

(i) सूक्ष्म-शिक्षण, शिक्षण का एक अति लघु एवं सरल रूप है।

(ii) प्रभावशाली सूक्ष्म-शिक्षण के लिए शिक्षण व्यवहार के प्रारूप आवश्यक होते हैं।

(iii) सूक्ष्म शिक्षण एक उपचारात्मक प्रक्रिया होती है।

(iv) अपेक्षित व्यवहार में परिवर्तन लाने में पृष्ठ-पोषण की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

(v) छात्राध्यापक को शिक्षण का उत्तम प्रशिक्षण देने के लिए शिक्षण-क्रियाओं का वस्तुनिष्ठ प्रेक्षण आवश्यक होता है।

(vi) शिक्षण में सुधार लाने के लिए समुचित अवसर दिए जाने चाहिए।

(vii) व्यक्तिगत क्षमताओं का विकास करके शिक्षण प्रक्रिया को उन्नत बनाया जा सकता है।

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shubham yadav

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