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सैयद वंश का इतिहास PDF-Sayyid dynasty in Hindi सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

सैयद वंश का इतिहास PDF-Sayyid dynasty in Hindi सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

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सैयद वंश का इतिहास PDF-Sayyid dynasty in Hindi सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

सैयद वंश का इतिहास PDF-Sayyid dynasty in Hindi सम्पूर्ण जानकारी हिंदी में

सैयद वंश (1414 ई.-1451 ई.)

  • मुहम्मद-बिन-तुगलक के शासनकाल में आरंभ हुई दिल्ली- सल्तनत का विघटन की प्रक्रिया, उसकी मृत्यु के पश्चात भी चलती रही। तुगलक वंश के शासन की समाप्ति (1414 ई.) तक उत्तरी, पूर्वी एवं दक्षिणी भागों में अनेक स्वतंत्र राज्यों का उदय हो गया। तैमूर के आक्रमण ने विशाल साम्राज्य को समाप्त कर दिया। दिल्ली की गद्दी पर भी नए राजवंश का शासन स्थापित हुआ। पहले सैयदो और पुनः लोदियों ने 1526 ई. तक दिल्ली पर शासन किया। 1526 ई. में मुगलों ने (बाबर) लोदी वंश को समाप्त कर भारत में मुगल-सत्ता की स्थापना की थी।
  • सैय्यद वंश स्वयं को इस्लाम धर्म के संस्थापक पैगम्बर मुहम्मद का वंशज मानते थे। भारत में सैय्यद वंश की सत्ता का सस्थापक खिज्र खां अपना सीधा संबंध पैगम्बर से जोड़ता है परंतु इसके लिए स्पष्ट प्रमाण उपलब्ध नहीं है। इतना निश्चित है कि खिज्र खां के पूर्वज अरब देश से आकर भारत में बस गए। सल्तनत के अधीन सैय्यदों ने अपने लिए महत्वपूर्ण स्थान बना लिया।

प्रमुख शासक

1. खिज्र खां 1414-1421 ई.)

  • सैयद वंश का संस्थापक खिज्र खाँ था। इसके पिता का नाम नासिरूलमुल्क मर्दान दौलत था। वह फिरोज शाह का अमीर था। उसके दत्तक पुत्र मलिक सुलेमान का पुत्र था।
  • सल्तनत काल में शासन करने वाला यह एक मात्र ‘शिया वंश’ था।
  • दौलत खां ने अपनी स्थिति कमजोर देखकर खिज्र खां के सामने आत्मसर्पण कर दिया। दिल्ली पर खिज्र खां ने अधिकार कर लिया। 1414 ई. में खिज खां दिल्ली का सुल्तान बन बैठा।
  • खिज्र खाँ ने सुल्तान की उपाधि धारण नहीं की, उसने ‘रैयत-ए-आला’ की उपाधि ली। उसने अपने सिक्कों पर तुगलक सुल्तानों का नाम उत्कीर्ण कराया था।
  • जब तैमूर ने भारत पर आक्रमण किया तो संभवत: खिज्र खां ने उसकी सहायता की और उसकी अधीनता स्वीकार कर ली। इससे प्रसन्न होकर भारत से वापस जाते समय तैमूर ने खिज्र खां को सुल्तान और दीपालपुर की सूबेदारी सौंप दी।
  • वह अपने शासनकाल में तैमूर के पुत्र एवं उत्तराधिकारी शाहरूख के प्रतिनिधि के रूप में शासन करने का दिखावा करता रहा। 20 मई, 1421 ई. को खिज्र खां की मृत्यु हो गयी थी।

2. मुबारकशाह (1421-1434 ई.)

  • खिज्र खां के पश्चात उसका पुत्र मुबारक खान मुबारकशाह के नाम से मई 1421 ई. को दिल्ली का सुल्तान बना।
  • वह खिज्र खां रैयत-ए-आला की उपाधि से संतुष्ट नहीं था। इसलिए उसने स्वयं को सुल्तान घोषित किया।
  • मुबारकशाह सैय्यद वंश का सबसे महान शासक था। वह कठिन परिस्थितियों में गद्दी पर बैठा था। उसके समय में अनेक विद्रोह हुए जिनका सामना उसने वीरतापूर्वक किया।
  • उसने 1433 ई. में मुबारकाबाद (यमुना नदी) नामक एक नए नगर बसाया था। विख्यात इतिहासकार वाहिया-बिन-अहमद सरहिंदी उसका समकालीन और आश्रित था। उसकी पुस्तक तारीख-ए-मबारकशाही में मुबारकशाह के कार्यों का वर्णन मिलता है।
  • मुबारक शाह ने शाह की उपाधि धारण की थी, अपने नाम का खुतबा पढ़ावाया था और अपने नाम के सिक्के जारी किये थे।
  • मुबारकशाह से असंतुष्ट लोगों को संगठित करना आरंभ कर दिया। उसने सुल्तान की हत्या की योजना बनाई। 19 फरवरी, 1434 ई. में सिद्धपाल नामक
    व्यक्ति द्वारा सुल्तान की हत्या करने में सफल हुए।

3. मुहम्मद शाह (1434-1443 ई.)

  • मुबारकशाह के बाद उनके दत्तक पुत्र मोहम्मद शाह गद्दी पर बैठा। वह मुबारक शाह के भाई फरीद खां का पुत्र था। मुहम्मद शाह एक अयोग्य शासक सिद्ध हुआ। अपनी अयोगयता से उसने सैय्यद वंश के पतन का मार्ग प्रशस्त किया। मुहम्मदशाह सुल्तान तो बन गया परंतु शासन पर वास्तविक नियंत्रण वजीर सरवरूलमुल्क का ही बना रहा।
  • मोहम्मद शाह ने उसे खान-ए-जहाँ की उपाधि प्रदान की। मुबारक शाह के हत्यारों में शामिल मीरान सद्र को मुईनुलमुल्क की उपाधि से विभूषित किया गया। अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए सरवर-उल-मुल्क ने इक्ताओं का पुनर्वितरण कर अपने समर्थकों का एक दल तैयार किया।
  • कमाल-उल-मुल्क को कमाल खां की उपाधि के साथ वजीर के पद पर नियुक्त किया गया।
  • मुहम्मद शाह ने अफगानी बहलोल का सम्मान किया, उसे अपना पुत्र कह कर पुकारा और खान-ए-खाना की उपाधि से विभूषित किया। दिल्ली के बीस करोड़ (20 कोस) की परिधि में अमीर उसके विरोधी हो गए थे। ऐसी स्थिति में 1443 ई. में मुहम्मदशाह की मृत्यु हो गयी।

4. अलाउद्दीन आलम शाह (1443-1476 ई.)

  • मुहम्मद शाह के पश्चात उसका पुत्र अलाउद्दीन शाह आलम शाह की उपाधि धारण कर गद्दी पर बैठा। यह सैय्यद वंश का अंतिम शासक था। जो अपने वंश के शासकों में सर्वाधिक अयोग्य सिद्ध हुआ। इसके समय में यह कहावत लोकप्रिय ‘देखों शाह-ए-आलम का राज्य दिल्ली से पालम तक’ हो गया। इसी के समय में दिल्ली सल्तनत के शासन की बागडोर सैय्यदों से निकलकर लोदियों के हाथ में चली गयी।
  • अंत में सुल्तान 1447 ई. में बदायूं चला गया और वहीं स्थायी रूप से बस गया। शासक बनने से पूर्व अलाउद्दीन शाह बदायूं का राज्यपाल रह चुका था। बदायूं जाने से पूर्व उसने दिल्ली का शासन अपने पत्नी के दो भाइयों जो क्रमश: शहना-ए-शहर व अमीरे कोहथे को सौंप दिया। शीघ्र ही दिल्ली की सत्ता के लिए दोनों भाइयों में विवाद हुआ जिसमें एक मारा गया। दूसरे भाई को दिल्ली की जनता ने मार डाला। बहलोल लोदी ने लोदी वंश के नाम से एक नए राजवंश की स्थापना 1451 ई. में हुई थी।

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