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स्वस्थ रहने के लिये शरीर के विभिन्न अंगों की साफ-सफाई किस प्रकार की जानी चाहिये?

स्वस्थ रहने के लिये शरीर के विभिन्न अंगों की साफ-सफाई
स्वस्थ रहने के लिये शरीर के विभिन्न अंगों की साफ-सफाई

स्वस्थ रहने के लिये शरीर के विभिन्न अंगों की साफ-सफाई

स्नान से शरीर पर लगी धूल-मिट्टी साफ हो जाती है। स्नान करते समय शरीर के सभी अंगों को साफ करना चाहिये। शीत ऋतु में तेल की मालिश प्रातःकाल की धूप में करके बाद में स्नान करना चाहिये। स्नान ठण्डे, गुनगुने या गरम पानी से ऋतु के अनुसार प्रात:काल करना चाहिये। यह भी आवश्यक है कि तौलिया साफ हो, नहीं तो वह साफ करने की अपेक्षा शरीर को गन्दा करेगा।

स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये। वस्त्र द्वारा हमारा सम्पूर्ण शरीर ढँका रहता है। उनकी स्वच्छता पर विशेष ध्यान दिया जाय। छात्रों को साफ वस्त्रों के महत्व से परिचित, कराया जाना चाहिये । गन्दे वस्त्र पहनने से शरीर में से बदबू आती है तथा त्वचा सम्बन्धी रोग हो जाते हैं। वस्त्र हल्के और ढीले होने चाहिये, जिससे पर्याप्त हवा प्राप्त हो सके। अधिक तंग वस्त्र असुविधा पैदा करते हैं और रक्त संचार सुविधाजनक रूप से नहीं हो पाता है।

1. हाथ-पैरों की सफाई (Cleaning of Hands and Feets) – कुछ खाने-पीने से पूर्व हाथों को भली-भाँति साबुन से धोकर साफ तौलिये से पोंछ लेना चाहिये, शौच क्रिया के पश्चात् साबुन से धोना अति आवश्यक है। स्नान करते समय पैरों की सफाई पर ध्यान देना आवश्यक है।

2. नाखूनों की स्वच्छता (Cleaning of Nails) – बढ़े नाखून यदि काटे नहीं जाते और वे आवश्यकता से अधिक बढ़ जाते हैं तो उनमें मैल भर जाता है और भोजन करते समय मैल पेट में चला जाता है। पेट में पहुँचकर यह मैल विष का कार्य करता है और अनेक पेट सम्बन्धी रोगों को जन्म देता है।

3. बालों की स्वच्छता (Cleaning of Hairs) – बालों की सफाई करने से उनकी जड़ें साफ हो जाती हैं और सिर में लीकें या जूँ नहीं पड़तीं जिसके परिणामस्वरूप सिर में खुजली मचा करती है। बालों को साबुन से धोने की अपेक्षा रीठे या त्रिफले, बेसन, दही तथा शिकाकाई से भी धोया जा सकता है।

4. नाक की स्वच्छता (Cleaning of Nose) – यदि नाक की सफाई नहीं की जाती है तो धूल के कण धीरे-धीरे करके जमा होते रहते हैं, जिससे श्वांस लेने में बाधा आ सकती है। जब छीकें आयें तो नाक पर रूमाल को रखना भी आवश्यक है।

5. गले की स्वच्छता (Cleaning of Throat) – गले की स्वच्छता पर भी ध्यान देना आवश्यक है। यदि बालक के गले में खराश होती है तो लाल दवा से कुल्ले करवाने चाहिये या गर्म पानी में नमक डालकर गरारे कराये जा सकते हैं।

6. कान की स्वच्छता (Cleaning of Ears ) – कान की स्वच्छता की उपेक्षा करने पर जीवाणु मध्यकर्ण में पहुँचकर उनकी कोमल अस्थियों को नष्ट कर देते हैं, जिससे बहरापन हो जाता है। कान के ऊपरी भाग को जल से ठीक प्रकार धोया जाय, लेकिन कान के छेदों में पानी ‘नहीं जाना चाहिये। कान के छेद में कभी-कभी सरसों का हल्का गुनगुना तेल डाला जाय।

7. दाँतों की स्वच्छता (Cleaning of Tooth) – दाँतों के गन्दे रहने से उनमें मैल जमा हो जाता है, जो भोजन के साथ पेट में जाकर विष उत्पन्न कर देते हैं। दूसरे, दाँतों को साफ न करने से उनमें कीड़े लग जाते हैं या पायरिया नामक रोग हो जाता है, जिससे मुख से बदबू आने लगती है। कभी-कभी दाँतों से पस भी निकलने लगता है जो पेट में जाकर सिर दर्द तथा विभिन्न रोगों को उत्पन्न करता है। ऐसी दशा में आवश्यक है कि छात्र प्रात: और सायं दाँतों की नित्य सफाई करें। दाँतों की सफाई किसी अच्छे मंजन, दातौन या पेस्ट से की जाय।

8. नेत्रों की स्वच्छता (Cleaning of Eyes)- नेत्रों को गन्दे कपड़े या रूमाल से नहीं मलना चाहिये क्योंकि ऐसा करने से आँखों में रूमाल या कपड़े का मैल जाकर आँखों को जीवाणुओं से आक्रान्त कर सकता है। द्वितीय, आँखों को नित्य प्रायः शीतल जल या त्रिफला के पानी से धोया जाय। यदि आँख लाल हो जाती है तो उन्हें गुलाब जल या फिटकरी मिले पानी से धोया जाय।

अच्छी आदतें (Good Habits) – समय पर उठना, समय पर सोना, दाँत साफ करना, भोजन करने पहले अच्छी तरह से साबुन से हाथ धोना, नित्य स्नान तथा वस्त्रों की साफ-सफाई करनी चाहिये ।

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shubham yadav

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