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हिन्दी की संवैधानिक स्थिति
‘राष्ट्रभाषा’ के सम्बन्ध में अमर कथाशिल्पी, उपन्यास सम्राट् मुंशी प्रेमचंद का यह कथन है कि “भारत की राष्ट्रीयता एक राष्ट्रभाषा पर निर्भर है, और दक्षिण के हिन्दी-प्रेमी राष्ट्रभाषा काल प्रचार करके राष्ट्र का निर्माण कर रहे हैं। राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्रभाषा का बोध हो ही नहीं सकता। जहाँ राष्ट्र है, वहाँ राष्ट्रभाषा का होना लाजिमी है। अगर सम्पूर्ण भारत को एक राष्ट्र बनाना है तो उसे एक भाषा का आधार लेना पड़ेगा।”
इसी प्रकार महात्मा गाँधी ने भी देश के स्वाधीन होते ही, समकालीन जन-प्रतिनिधियों को सचेत करते हुए कहा था- “हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित करने में एक दिन भी खोना देश को भारी सांस्कृतिक नुकसान पहुंचाना है- जिस तरह हमारी आजादी को जबरदस्ती छीनने वाले अंगरेजों की सियासी हुकूमत को हमने सफलता पूर्वक इस देश से निकाल दिया; उसी तरह हमारी संस्कृति को दबाने वाली अँगरेजी भाषा को भी यहाँ से निकाल बाहर करना चाहिए।”
इससे स्पष्ट है कि सन् 1947 ई. तक हिन्दी राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने के साथ-साथ राजभाषा का दर्जा प्राप्त करने में भी सक्षम हो चुकी थी। जब भारत की संविधान सभा में इस पर विधिवत् विचार-विमर्श हुआ तो मान लिया गया कि राष्ट्रभाषा के रूप में तो हिन्दी पहले से ही प्रतिष्ठित है, अब इसे वैधानिक रूप से राजभाषा का भी दर्जा दिया जाना चाहिए।
भारतीय संविधान में राजभाषा सम्बन्धी प्रमुख प्रावधानों एवं उपबन्धों को चार वर्गों में बाँटा जा सकता है-
(क) संसद में प्रयुक्त होने वाली भाषा,
(ख) विधान-मंडलों में प्रयुक्त होने वाली भाषा,
(ग) संघ की राजभाषा,
(घ) विधि-निर्माण और न्यायालयों में प्रयुक्त होने वाली भाषा।
(क) संसद में प्रयुक्त होने वाली भाषा- भाग- 5, अनुच्छेद- 120 (1) में कहा गया है कि “भाग-17 में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु अनुच्छेद-348 के अधीन, संसद में कार्य हिन्दी में या अँगरेजी में किया जायेगा।” परन्तु– “यदि कोई व्यक्ति हिन्दी में या अँगरेजी में विचार प्रकट करने में असमर्थ है तो लोकसभा का अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति उसे अपनी मातृभाषा में बोलने की अनुमति दे सकात है।”
अनुच्छेद- 120(2) में कहा गया है— “जब तक संसद विधि द्वारा कोई और उपबन्ध न करे, तब तक संविधान के आरम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि समाप्त होने के पश्चात्, ‘या अँगरेजी में’ वाला अंश नहीं रहेगा।” अर्थात् 26 जनवरी, 1965 से संसद का कार्य केवल हिन्दी में होगा।
(ख) विधान मण्डल में प्रयुक्त होने वाली भाषा – भाग-6, अनुच्छेद-210 (1) में कहा गया है कि “भाग – 71 में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु अनुच्छेद- 348 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, राज्य के विधानमण्डल में कार्य राज्य की राजभाषा या भाषाओं में या हिन्दी में या अँगरेजी में किया जायेगा।” परन्तु विधानसभा का अध्यक्ष या विधान परिषद् का सभापति ऐसे किसी सदस्य को अपनी मातृभाषा में बोलने की अनुमति दे सकता है जो उपर्युक्त भाषाओं में से किसी में भी विचार प्रकट नहीं कर सकता।
अनुच्छेद-210(2) में कहा गया है- “जब तक विधान-मंडल विधि द्वारा कोई और उपबन्ध न करे, जब तक इस संविधान के आरम्भ में पन्द्रह वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने के बाद ‘या अँगरेजी में’ वाला अंश नहीं रहेगा।” हिमांचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, और त्रिपुरा में पन्द्रह वर्ष के स्थान पर ‘पच्चीस’ वर्ष की छूट अँग्रेजी प्रयोग के लिए दी गयी है।
(ग) संघ की राजभाषा – भाग-17, अनुच्छेद-343 (1) के अनुसार- “संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। तथा “संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा।”
अनुच्छेद-343(2) के अनुसार- “खंड (1) किसी बात के होते हुए भी, इस संविधान के आरम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि तक संघ के उन प्रशासकीय प्रयोजनों के लिए अँगरेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके लिए उसका प्रयोग किया जा रहा है।”
अनुच्छेद-343 (3) के अनुसार- “इस अनुच्छेद में किसी बात के होते हुए भी, संसद उक्त पंद्रह वर्ष की अवधि के पश्चात् विधि द्वारा– (क) अँगरेजी भाषा का, या (ख) अंकों के देवनागरी के रूप में ऐसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग का उपबन्ध कर सकेगी जो ऐसी विधि में बताये जायें।”
अनुच्छेद-344(1) में कहा गया है- “राष्ट्रपति इस संविधान के प्रारम्भ से पाँच वर्ष की समाप्ति पर और तत्पश्चात् ऐसे प्रारम्भ से 10 वर्ष की समाप्ति पर, आदेश द्वारा एक आयोग का गठन करेंगे। इस आयोग में एक अध्यक्ष तथा आठवीं अनुसूची में बतायी गयी विभिन्न भाषाओं का प्रतिनिधित्व करने वाले ऐसे अन्य प्रतिनिधि होंगे जिन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जायेगा।”
अनुच्छेद-344(2) में आयोग के निम्न कर्तव्य बताये गये हैं- (क) संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिए हिन्दी भाषा के अधिकाधिक प्रयोग की सिफारिश, (ख) संघ के सभी या किन्हीं प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा की सिफारिश, (ग) संघ के किसी एक या अधिक विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए प्रयोग किये जाने वाले अंकों के रूप की सिफारिश (घ) संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच या एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच पत्रादि की भाषा और उनके प्रयोग के सम्बन्ध में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सौंपे गये किसी अन्य विषय में सिफारिश
अनुच्छेद-344(3) के अनुसार- “आयोग अनुच्छेद-344(2) के अधीन अपनी सिफारिशें करते समय भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक प्रगति का और लोक सेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के व्यक्तियों के न्यायसंगत दावों और हितों का सम्यक् ध्यान रखेगा।”
अनुच्छेद-344(4) के अनुसार- “राजभाषा सम्बन्धी संसदीय समिति में कुल 30 सदस्य होंगे जिनमें से बीस लोकसभा के और दस राज्यसभा के सदस्य होंगे। इन सदस्यों का निर्वाचन क्रमशः लोकसभा और राज्यसभा के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा किया जायेगा।”
अनुच्छेद-344(5) में कहा गया है— “समिति अनुच्छेद-344(1) के अधीन गठित आयोग की सिफारिशों की जाँच करके उस पर अपनी राय राष्ट्रपति को देगी।”
अनुच्छेद-344(6) में कहा गया है- “अनुच्छेद-343 में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति अनुच्छेद-344(5) के अधीन समिति की रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् इस सारी रिपोर्ट या उसके किसी भाग के अनुसार आदेश जारी कर सकेंगे।”
(घ) उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों आदि की भाषा- संविधान के भाग 17 के अनुच्छेद-348 (1) में कहा गया है- “जब तक संसद विधि द्वारा कोई और उपबन्ध न करे, तन तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्रवाइयाँ, संसद के प्रत्येक सदन या किसी राज्य के विधान-मण्डल के सदन या प्रत्येक सदन में प्रस्तुत किये जाने वाले सभी विधेयक या प्रस्तावित संशोधन, संसद या किसी राज्य के विधानमंडल द्वारा पारित सभी अधिनियम और राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा जारी किये गये अध्यादेश अँगरेजी में होंगे।
अनुच्छेद- 348 (2) में किसी राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से, सम्बद्ध राज्य के उच्च न्यायालय की कार्रवाइयों में हिन्दी भाषा या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली किसी अन्य भाषा के प्रयोग को प्राधिकृत करने का अधिकार दिया गया है।
अनुच्छेद-348(3) के अनुसार- किसी राज्य के विधानमण्डल उनसे सम्बन्धित संशोधनों में यदि राज्यपाल की अनुमति से अँगरेजी भाषा के अलावा किसी अन्य प्रस्तुत विधेयकों तथा भाषा के प्रयोग की अनुमति है तो उसका अँगरेजी प्राधिकृत पाठ वही माना जायेगा जो राज्यपाल के प्राधिकार से प्रकाशित अँगरेजी भाषा में अनुवाद किया गया होगा।
अनुच्छेद-349 में कहा गया है– “इस संविधान के प्रारम्भ से पन्द्रह वर्ष की अवधि के दौरान अनुच्छेद–348 (1) में उल्लिखित किसी प्रयोजनों के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा के सम्बन्ध में कोई विधेयक या संशोधन राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के बिना संसद के किसी सदन में प्रस्तुत नहीं किया जायेगा।”
भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक समृद्धि हिन्दी, और उसके उद्भव स्रोत की भाषाओं में देखी जा सकती है अर्थात् भारत की सांस्कृतिक भाषा और राष्ट्रीय चेतना की भाषा के रूप में हिन्दी को शत-प्रतिशत स्वीकृति मिलनी चाहिए। जिस तरह एक राष्ट्र-ध्वज, एक राष्ट्रगीत, एक राष्ट्रगान, एक राष्ट्रपक्षी, एक राष्ट्रपशु, एक राष्ट्रचिह्न और एक राष्ट्रपति जैसी इकाइयाँ भारत के राष्ट्रीय गौरव और एकत्व भाव का परिचय देती हैं, उसी तरह एक भाषा को राष्ट्रभाषा की पदवी मिलनी चाहिए। राष्ट्रवादी भारतीयों को राष्ट्रभाषा हिन्दी की विभिन्न समस्याओं पर गम्भीरता से पुनर्विचार करते हुए सर्वप्रिय और सार्वदेशिक भाषा हिन्दी को अब राष्ट्रभाषा की स्वाधीनता प्रदान कर देनी चाहिए।
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- पत्राचार का स्वरूप स्पष्ट करते हुए कार्यालयीय और वाणिज्यिक पत्राचार को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
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- प्रयोजन मूलक हिन्दी का आशय स्पष्ट कीजिए।
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