B.Ed./M.Ed.

1911 ई0 के गोखले विधेयक का वर्णन कीजिए ।

1911 ई0 के गोखले विधेयक
1911 ई0 के गोखले विधेयक

1911 ई0 के गोखले विधेयक

गोपाल कृष्ण गोखले और प्राथमिक शिक्षा – गोपालकृष्ण गोखले का जन्म सन् 1866 ई० में महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार में हुआ था। सन् 1884 में बी०ए० पास करने में में के बाद वे “डेकन एजुकेशन सोसाइटी” के आजीवन सदस्य बन गये और सन 1902 ई0 तक फर्गुसन कालेज पूना में अध्यापन का कार्य करते रहे।

गोखले महोदय अध्यापन के कार्य के साथ साथ सार्वजनिक कार्यों में भाग लिया करते थे। वे पूना सार्वजनिक सभा के मन्त्री थे। उन्होंने अंग्रेजी-मराठी साप्ताहिक पत्र “सुधारक” का सम्पादन भी किया। इस पत्र में श्री अरविन्द के लेख भी प्रकाशित होते थे।

दक्षिण अफ्रीका के भारतीयों की दशा का अध्ययन करने के लिए 1902 ई० में वहाँ भी गये। 1905ई0 में उन्होंने भारतीय लोक सेवा मण्डल की स्थापना की। गाँधी जी उनसे इतना प्रभावित हुए कि इन्हें अपना गुरू मानते थे। 1915 ई0 में 49 वर्ष की आयु में गोखले का स्वर्गवास हो गया।

गोखले का प्रस्ताव (1910ई0 ) – देश में अनिवार्य व निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा की माँग को गति देने में सबसे अधिक कार्य गोपालकृष्ण गोखले ने किया। उन्होनें सोचा कि प्राथमिक  शिक्षा का प्रयोग यदि बड़ौदा राज्य में सफल हो सकता है तो भारत वर्ष के अन्य भागों में भी उसे सफलता मिल सकती है। परन्तु प्रशासन इस ओर से उदासीन था। अतः गोपालकृष्ण गोखले ने निश्चय किया कि भारतीय प्रशासन को इस कुम्भकर्णी निद्रा से जगाया जाये।

गोखले ने 19 मार्च 1910 ई० को केन्द्रीय विधानसभा में निम्नलिखित प्रस्ताव प्रस्तुत किया “यह सभा सुझाव देती है कि देश भर में प्राथमिक शिक्षा को निःशुल्क तथा अनिवार्य बनाने का कार्य प्रारम्भ कर दिया जाय और इस कार्य के लिए राजकीय तथा अराजकीय अधिकारियों का एक संयुक्त आयोग शीघ्र ही नियुक्त किया जाये।’

प्रस्ताव को प्रस्तुत करते समय गोखले का सुझाव – अपना विधियेक प्रस्तुत करते समय गोखले ने यह सुझाव दिया-

1. अनिवार्य शिक्षा की योजना में कन्याएं नहीं सम्मिलित होंगी।

2. जिन क्षेत्रों में 33 प्रतिशत बालक शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, वहीं निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा की योजना लागू की जायेगी।

3. वार्षिक आय-व्यय (बजट) प्रस्तुत करते समय शिक्षा की प्रगति का भी उल्लेख किया जाया करे।

4. प्राथमिक शिक्षा के निरीक्षण कार्य के लिए एक सचिव की नियुक्ति की जाये।

5. प्राथमिक शिक्षा का जो व्यय होगा उसे स्थानीय संस्थाएं तथा प्रान्तीय प्रशासन 1 और 2 के अनुपात से वहन करेंगे।

प्रशासन के आश्वासन पर गोपालकृष्ण गोखले ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया।

प्रस्ताव का प्रभाव- गोखले के प्रस्ताव का प्रभाव व्यापक रूप से पड़ा। इंग्लैण्ड और भारतवर्ष दोनों देशों में लोगों का ध्यान यहाँ की प्राथमिक शिक्षा की ओर गया। 1910 ई० में भारतवर्ष की सभी राजनैतिक संस्थाओं ने प्राथमिक शिक्षा की निःशुल्कता और अनिवार्यता के सम्बन्ध में प्रस्ताव पास किये। इंग्लैण्ड की लोकसभा में भारतीय मंत्री ने यह घोषणा की कि केन्द्रीय शिक्षा विभाग हिन्दुस्तान में साक्षरता का प्रसार करना चाहता है।

गोखले का विधेयक (1911ई0 ) – भारतवर्ष के विदेशी प्रशासन ने प्राथमिक शिक्षा की दिशा में कोई कार्य नहीं किया, अतएव गोखले ने 16 मार्च 1911 ई0 को केन्द्रीय धारासभा में एक विधेयक (प्राइवेट बिल) प्रस्तुत किया।

विधेयक सम्बन्धी सुझाव – गोपालकृष्ण गोखले ने विधेयक को प्रस्तुत करते समय उसके उद्देश्य इस प्रकार उद्घोषित किया-

“That this council recommends that a begining should be made in the direction of making elementary education free and compulsory through out the country, and that a mixed -commission of officials and non officials be ap pointed at a nearly date to frame definite proposals.”

विधेयक सम्बन्धी सुझाव – गोखले चाहते थे कि सरकारी तथा गैर सरकारी दोनों के सदस्य उनके विधेयक को स्वीकार कर लें। अपने विधेयक को प्रस्तुत करते समय उन्होंने निम्नांकित बातें कहीं –

1. प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता उन्हीं संख्याओं के क्षेत्र में लागू होगी, जहाँ बालकों का एक निश्चित प्रतिशत पाठशालाओं में शिक्षा प्राप्त कर रहा है। प्रतिशत को निर्धारित करने का अधिकार वायसराय का होगा।

2. स्थानीय संस्थाओं को यह अधिकार होगा कि वे इस नियम को पूरे क्षेत्र में लागू करें या क्षेत्रांश में।

3. प्रशासन से पूर्व स्वीकृति प्राप्त करके, स्थानीय संस्थाएं इसे लागू कर सकती है।

4. स्थानीय संस्थाएं चाहें तो शिक्षा सम्बन्धी कर भी लगा सकती हैं।

5. अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का व्यय स्थानीय संस्थाओं और प्रान्तीय सरकारें वहन करेगी स्थानीय संस्थाएं 1/3 व्यय वहन करेंगी।

6. जहा अनिवार्यता का नियम लागू होगा वहाँ 6 से 10 वर्ष तक के बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य होगी।

7. इस नियम का उल्लंघन करने पर अभिभावकों को दण्ड दिया जा सकता है।

8. यदि अभिभावक की आय 10रू0 मासिक के कम हो तो छात्र से शिक्षा शुल्क न लिया जाय।

9. शनैः शनैः कन्याओं के लिए भी प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी जाए।

प्रशासन का विरोध – प्रशासन उपरोक्त सामान्य बातों को भी स्वीकार करने के लिए तैयार न था। प्रशासकीय प्रवक्ता हरकोर्ट बटलर ने विधेयक का विरोध किया। उनका कहना था न तो इसकी माँग है और न ही देश इसके लिए तैयार है। गोखले ने इसके उत्तर में कहा कि बड़ौदा राज्य में निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा कई वर्षो से सफलता पूर्वक चल रही है। बटलर ने गोखले के उत्तर को स्वीकार न करते हुए कहा कि बड़ौदा राज्य का प्रशासन प्रजातन्त्रात्मक ढंग का नहीं है।

गोपाल कृष्ण गोखले ने पश्चिमी देशों के कई उदाहरण प्रस्तुत किये। परन्तु बटलर ने उन्हें भी अस्वीकार कर दिया और कहा कि भारतवर्ष की समानता इन देशों से नहीं की जा सकती। सरकार अपने उन्हीं पुराने तर्कों की आवृत्ति कर रही थी

1. स्थानीय संस्थाएं इसके पक्ष में नहीं है, वे इसका व्यय नहीं उठा सकती।

2. जनता की ओर से इसकी कोई मांग नहीं है।

3. शिक्षित भारतीय इसका विरोध कर रहे हैं।

4. अभी व्यक्तिगत आधार पर ही प्राथमिक शिक्षा के विकास का पर्याप्त अवसर है।

5. अनिवार्यता का सिद्धान्त शिक्षा सिद्धान्तों के प्रतिकूल है।

6. इससे प्रशासन सम्बन्धी कई समस्याएं उत्पन्न हो जायेगी।

7. प्रान्तीय सरकारें भी इसके पक्ष में नहीं है।

प्रस्ताव का अस्वीकार किया जाना- गोपालकृष्ण अब विवश थे। प्रशासन कोई भी सुनने को तैयार न था। न तो उसे भारतीय राज्यों के उदाहरण स्वीकार थे और न ही पश्चिमी देशों के जब विधेयक पर मत मिल गये तो वह गिर गया। विधेयक के पक्ष में 13 और विरोध में 38 मत आये।

विधेयक का प्रभाव- यद्यपि गोखले का प्रयास विफल गया परन्तु विफलता भी उनकी सफलता थी यथा –

1. देश के सभी भागों से लोग इस विधेयक के समर्थन में उठ खड़े हुए और स्थान स्थान पर निःशुल्क तथा अनिवार्य शिक्षा की माँग होने लगी।

2. लोकमत का प्रभाव प्रान्तीय प्रशासनों पर भी पड़ा और एक वर्ष में ही बम्बई, मद्रास, बंगाल इन तीनों प्रान्तों को छोड़कर शेष सभी प्रान्तों में प्राथमिक शिक्षा निःशुल्क कर दी गयी।

3. जिस समय केन्द्रीय विधान सभा में गोखले के विधेयक पर विचार चल रहा था, उस समय ब्रिटिश सम्राट जार्ज पंचम भारत में आये हुए थे। उन्होंने दिसम्बर 1911 ई० में दिल्ली दरबार में प्राथमिक शिक्षा के लिये 50 लाख रूपये धन राशि देने की घोषणा की।

4. 6 जनवरी 1912 ई० को कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रांगण में अभिनन्दन पत्र का उत्तर देते हुए जार्ज पंचम ने शिक्षा के सम्बन्ध में यह निष्कर्ष व्यक्त किये मेरी इच्छा है कि समस्त भारतवर्ष में विद्यालयों और महाविद्यालयों का जाल सा बिछा दिया जाय ताकि विद्या की ज्योति से लोगों के गृह प्रकाशित हो उठें और यहां पर कुशल और राजभक्त नागरिकों का निर्माण हो सके।

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shubham yadav

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