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सामाजिक सर्वेक्षण के प्रकार (Samajik Sarvekshan Ke Prakar)
वर्तमान समाजों की सामाजिक संरचना तथा लोगों की मनोवृत्तियों में तेजी से परिवर्तन हो रहा है। स्वाभाविक है कि इस दशा में सामाजिक समस्याओं के स्वरूप, तत्कालीन आवश्यकताओं तथा उपलब्ध साधनों को ध्यान में रखते हुये अनेक प्रकार के सामाजिक सर्वेक्षण आयोजित किये जाने लगे हैं। यही कारण है कि सर्वेक्षण की विषय वस्तु पद्धति तथा उद्देश्य को आधार मानते हुये विभिन्न विद्वानों ने सामाजिक सर्वेक्षण के अनेक प्रकारों का उल्लेख किया है। इस सम्बन्ध में ए. एफ. वेल्स के अनुसार. सामाजिक सर्वेक्षण दो प्रकार के होते हैं – प्रचार सर्वेक्षण तथा तथ्य एकत्रित करने वाले सर्वेक्षण अनेक दूसरे विद्वानों ने सर्वेक्षण की विषय-वस्तु, अध्ययन प्रविधि, सूचनाओं को संकलित करने के ढंग तथा सर्वेक्षण के उद्देश्यों के आधार पर भी सामाजिक सर्वेक्षण के अनेक प्रकारों का उल्लेख किया है। इस दृष्टिकोण से प्रस्तुत विवेचन में हम कुछ प्रमुख प्रकारों को ही आधार मानकर उनका संक्षेप में उल्लेख करेगें। जिससे सामाजिक सर्वेक्षण की प्रकृति को अधिक स्पष्ट रूप में समझा जा सके।
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1. जनगणना तथा निदर्शन सर्वेक्षण (Census and Sample Survey)
जनगणना सर्वेक्षण वह है जिसमें किसी विषय अथवा समस्या से सम्बन्धित सभी व्यक्तियों से प्रत्यक्ष सम्पर्क स्थापित करके सूचनाओं को एकत्रित किया जाता है। उदाहरण के लिये, यदि किसी महाविद्यालय में छात्र असंतोष के कारणों को ज्ञात करने के लिये सभी विद्यार्थियों से सम्पर्क स्थापित करके सूचनायें एकत्रित की जायें तो ऐसे सर्वेक्षण को ‘जनगणना सर्वेक्षण’ कहा जायेगा। यदि अध्ययन क्षेत्र छोटो हो तो ऐसा सर्वेक्षण वैयक्तिक अनुसंधानकर्ता द्वारा भी किया जा सकता है। इसके विपरीत यदि अध्ययन का क्षेत्र बहुत बड़ा होता है। तो जनगणना सर्वेक्षण के लिये अध्ययनकर्ताओं के एक दल की आवश्यकता होती है तथा ऐसा सर्वेक्षण बहुत खर्चीला भी होता है। इस स्थिति में जनगणना सर्वेक्षण किसी सरकारी संगठन द्वारा सम्पन्न करवाया जाता है। निदर्शन सर्वेक्षण वह है जिसमें सम्पूर्ण समग्र में से कुछ प्रतिनिधि इकाइयों का चयन कर लिया जाता है। निदर्शन यदि वैज्ञानिक विधि से किया जाये तो ऐसा सर्वेक्षण भी जनगणना सर्वेक्षण के समान ही उपयोगी सिद्ध होता है।
2. पूर्वगामी तथा मुख्य सर्वेक्षण (Pilot and Main Survey)
पूर्वगामी सर्वेक्षण वह सर्वेक्षण है जो किसी विषय अथवा समस्या की आरम्भिक जानकारी प्राप्त करने के लिये आयोजित किया जाता है। ऐसा सर्वेक्षण बहुत सरल और संक्षिप्त प्रकृति का होता है। इसके अन्तर्गत अध्ययनकर्ता अध्ययन विषय की सामान्य प्रकृति को जानने का प्रयत्न करता है, साथ ही वह कुछ सूचनादाताओं से स्वयं मिलकर यह देखने का प्रयत्न करता है कि किन-किन प्रविधियों तथा स्रोतों से सर्वोत्तम सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं। इस दृष्टिकोण से पूर्वगामी सर्वेक्षण एक अनौपचारिक सर्वेक्षण है जिसका उद्देश्य मुख्य सर्वेक्षण का आयोजन करने की कुशलता प्राप्त करना है। एकांक ने लिखा है कि “पूर्वगामी सर्वेक्षण किसी अध्ययन को क्रियान्वित करने के लिये वैकल्पिक विधियों का ज्ञान प्राप्त करने की एक विधि है। पूर्वगामी सर्वेक्षण कर लेने के पश्चात् सर्वेक्षण की जो वास्तविक क्रिया आरम्भ की जाती है उसी को हम मुख्य सर्वेक्षण कहते हैं।
3. नियमित तथा कार्यवाहक सर्वेक्षण (Regular and Ad hoc Survey)
नियमित सर्वेक्षण का अर्थ एक ऐसे सर्वेक्षण से है जो किसी समस्या अथवा विषय से सम्बन्धित सूचनाएँ एकत्रित करने के लिये लगातार अथवा एक लंबी अवधि तक चलता रहता है। ऐसे सर्वेक्षण का संचालन करने के लिये किसी स्थायी संस्था अथवा विभाग की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिये भारत सरकार के जनगणना विभाग द्वारा किये जाने वाले जनसंख्या सम्बन्धी सर्वेक्षण रिजर्व बैंक और स्टेट बैंक द्वारा संचालित साख-सुविधाओं तथा ऋणों के उपयोग सम्बन्धी सर्वेक्षण तथा समाज कल्याण विभाग द्वारा किये जाने वाला कल्याण कार्यक्रमों का मूल्यांकन नियमित सर्वेक्षण की प्रकृति को स्पष्ट करते हैं। कार्यवाहक सर्वेक्षण वह है जो किसी तत्कालिक समस्या का अध्ययन करने के लिये किसी अस्थायी संगठन अथवा वैयक्तिक अध्ययनकर्ता द्वारा आयोजित किया जाता है। जैसे ही सर्वेक्षण कार्य पूरा हो जाता है, सम्बन्धित संगठन को भी भंग कर दिया जाता है।
4. परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण (Quantitative and Qualitative Survey)
परिमाणात्मक सर्वेक्षण वह है जो किसी विषय से सम्बन्धित आँकड़ों को सांख्यिकी के रूप में प्रस्तुत करने में रुचि लेता है। जब कभी भी किसी समूह में साक्षरता का प्रतिशत, जातिगत संरचना, विवाह-विच्छेद की दर, बेरोजगारी की सीमा स्त्री-पुरुषों का अनुपात प्रति व्यक्ति आय अथवा आय-व्यय के संतुलन जैसे विषयों का अध्ययन करने के लिये सर्वेक्षण आयोजित किये जाते हैं तो इन्हें परिमाणात्मक सर्वेक्षण कहा जाता है। ऐसे सर्वेक्षणों में सांख्यिकीय पद्धति का उपयोग करके निष्कर्षो को प्रतिशत अथवा अनुपात के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। दूसरी ओर सर्वेक्षण जब किसी गुणात्मक विषय अथवा घटना से सम्बन्धित होता है तो उसे गुणात्मक सर्वेक्षण कहा जाता है। ऐसे सर्वेक्षणों का उद्देश्य किसी विशेष समूह की मनोवृत्तियों, विचारों, सामाजिक मूल्यों के प्रभाव तथा सामाजिक परिवर्तन की सीमा आदि का अध्ययन करना होता है।
5. आरंभिक तथा आवृत्तिमूलक सर्वेक्षण (Initial and Repetitive Survey)
यदि किसी क्षेत्र अथवा विषय से सम्बन्धित सर्वेक्षण प्रथम बार हो रहा है तो ऐसे सर्वेक्षण को आरंभिक सर्वेक्षण कहा जाता है। ऐसे सर्वेक्षण से एक बार जो निष्कर्ष प्राप्त होते हैं, उन्हें अंतिम निष्कर्ष मान लिया जाता है। इसी कारण कुछ विद्वान इसे अंतिम सर्वेक्षण भी कहते हैं। साधारणतया ऐसे सर्वेक्षण उन विषयों से सम्बन्धित होते हैं। जिनमें एक लम्बे समय तक कोई विशेष परिवर्तन नहीं होता तथा जिनका अध्ययन क्षेत्र तुलनात्मक रूप से सीमित होता है। दूसरी ओर यदि अध्ययन से सम्बन्धित अथवा समग्र की प्रकृति परिवर्तनशील होती है तो एक की विषय पर एक से अधिक बार सर्वेक्षण करने की आवश्यकता होती है। जिससे बदलती हुयी दशाओं के संदर्भ में आवश्यक तथ्य एकत्रित किये जा सके। ऐसे सर्वेक्षण को हम आवृत्तिमूलक सर्वेक्षण कहते हैं क्योंकि इसमें सर्वेक्षण की पुनरावृत्ति की जाती रहती है।
6. सार्वजनिक तथा गुप्त सर्वेक्षण (Public and Secret Survey)
सार्वजनिक सर्वेक्षण एक सामान्य सर्वेक्षण है जिसका प्रत्यक्ष सम्बन्ध जनसाधारण के जीवन और उसकी समस्याओं से होता है। इस दृष्टिकोण से सार्वजनिक सर्वेक्षण की सम्पूर्ण कार्यवाही किसी समूह अथवा जनता के सामने पूर्णतया स्पष्ट होती है। ऐसे सर्वेक्षण की रिपोर्ट भी जनता की सूचना के लिये प्रकाशित कर दी जाती है। राष्ट्रीय बचत, शिक्षा का प्रसार तथा जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़ों से सम्बन्धित सर्वेक्षण इसी प्रकार के सर्वेक्षण हैं। इसके विपरीत कुछ तथ्य इस प्रकृति के होते हैं कि उनसे सम्बन्धित निष्कर्षों को जनसामान्य के सामने स्पष्ट करना राष्ट्रीय हित में नहीं होता। इसके पश्चात् भी ये विषय वे होते हैं जिनका प्रशासकीय अथवा राजनीतिक कारणों से अध्ययन करना आवश्यक समझा जाता है। ऐसे विषयों से सम्बद्ध सभी सर्वेक्षण गुप्त सर्वेक्षण कहलाते हैं। उदाहरण के लिये सरकार की कर नीति पर जन सामान्य की प्रतिक्रियायें, श्वेत अपराधों की सीमा सैन्य शक्ति का विस्तार आदि का अध्ययन इसी प्रकार के सर्वेक्षण से किया जाता है।
7. प्राथमिक तथा द्वितीयक सर्वेक्षण (Primary and Secondary Survey)
सूचनाओं के स्रोत को ध्यान में रखते हुये सामाजिक सर्वेक्षण को प्राथमिक और द्वितीयक जैसे दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जा सकता है। प्राथमिक सर्वेक्षण एक प्रत्यक्ष सर्वेक्षण है जिसके अन्तर्गत सर्वेक्षणकर्त्ता स्वयं ही उत्तरदाताओं से सम्पर्क स्थापित करता है। इसके विपरीत यदि अध्ययन विषय इस तरह का हो जिस पर पहले भी अध्ययन किये जा चुके हो तथा उनके निष्कर्षो का सत्यापन करने की आवश्यकता महसूस की जा रही हो तो द्वितीयक सर्वेक्षण आयोजित किये जाते हैं। द्वितीयक सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं से नये सिरे से सूचनायें एकत्रित करने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि पहले से एकत्रित किये गये तथ्यों के आधार पर ही निष्कर्ष निकालने का प्रयत्न किया जाता है।
इस प्रकार स्पष्ट होता है कि सामाजिक सर्वेक्षण के प्रकारों की कोई निश्चित सूची नहीं बनाई जा सकती, क्योंकि अध्ययन-विषय की प्रकृति, अध्ययन के उद्देश्य तथा सूचनायें संकलित करने के ढंग के आधार पर सर्वेक्षण की प्रकृति एक-दूसरे से बहुत भिन्न हो सकती है।
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