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सामाजिक सर्वेक्षण की सीमाएं-limitation of social survey in Hindi
सामाजिक सर्वेक्षण की सीमाएं– सामाजिक घटनाओं के अध्ययन में सर्वेक्षण प्रविधि के भी अपने कुछ दोष अथवा सीमाएँ हैं। सामाजिक सर्वेक्षण की सीमाओं का उल्लेख निम्नलिखित रूप से किया गया है-
1. अध्ययन का सीमित क्षेत्र
सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा अध्ययन की जाने वाली समस्याओं और घटनाओं का क्षेत्र बहुत सीमित होता है। इसका तात्पर्य है कि जिस विषय का अध्ययन एक व्यापक क्षेत्र से सम्बन्धित होता है अथवा जो विषय बहुत से पक्षों में विभाजित होता है, उससे सम्बन्धित तथ्यों को सर्वेक्षण द्वारा प्राप्त करने बहुत कठिनाई होती है।
2. अमूर्त घटना के अध्ययन में अव्यवहारिक
सामाजिक सर्वेक्षण के द्वारा केवल उन्हीं घटनाओं का अध्ययन किया जा सकता है जो मूर्त अथवा स्थूल प्रकृति की होती हैं। जिन घटनाओं का सम्बन्ध व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों, मनोवृत्तियों, प्रत्याशाओं, विश्वासों जैस अमूर्त दशाओं से होता है, सर्वेक्षण विधि के द्वारा उनका अध्ययन करना यदि असंभव नहीं तो बहुत कठिन जरूर होता है।
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3. तात्कालिक समस्याओं के अध्ययन तक सीमित
सर्वेक्षण द्वारा केवल समय विशेष की सामाजिक घटनाओं तथा समस्याओं का ही अध्ययन किया जा सकता है। इसके द्वारा अतीत की घटनाओं को नहीं समझा जा सकता। एक विशेष स्थान अथवा समय पर किये गये सर्वेक्षण से प्राप्त तथ्यों को किसी दूसरे स्थान या समय के लिये उपयोगी नहीं कहा जा सकता।
4. अधिक समय और धन की आवश्यकता
सर्वेक्षण द्वारा तथ्यों को एकत्रित करने में अधिक समय लगता है तथा साथ ही यह एक खर्चीली विधि है। अनेक सर्वेक्षण इस तरह के होते हैं, जिनको पूरा करने में अनेक वर्ष लग जाते हैं। इसके फलस्वरूप सर्वेक्षण करने वाले लोगों के उत्साह और संयम को बनाये रखना कठिन हो जाता है। सर्वेक्षण करने वाले व्यक्तियों के वेतन और विभिन्न उपकरणों के उपयोग के लिये बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि अधिकांश सर्वेक्षण सरकारी अथवा अर्द्धसरकारी संगठनों द्वारा ही किये जाते हैं।
5. प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की कमी
किसी सर्वेक्षण से उपयोगी तथ्य तभी प्राप्त किये जा सकते हैं जब सर्वेक्षण करने वाले कार्यकर्ता समुचित रूप से प्रशिक्षित हो इसके विपरीत साधारणतया धन और समय की कमी के कारण ऐसे कार्यकर्ताओं को समुचित प्रशिक्षण नहीं मिल पाता। फलस्वरूप अधिकांश कार्यकर्ता वास्तविक तथ्यों को एकत्रित करने के प्रति उदासीन रहते हैं।
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6. विश्वसनीयता सन्देहपूर्ण
सामाजिक सर्वेक्षण द्वारा एकत्रित तथ्य हमेशा विश्वसनीय नहीं होते। इसका कारण यह है कि अप्रशिक्षित सर्वेक्षणकर्ता अक्सर अपने निजी विचारों, अनुभवों और पूर्वाग्रहों से प्रभावित होकर घटना को उसके वास्तविक रूप में नहीं देखते बल्कि मनमाने रूप से प्रस्तुत कर देते हैं। अनेक दशाओं में सर्वेक्षणकर्ता निहित स्वार्थी के कारण उन्हीं तथ्यों को एकत्रित करता है जिनके द्वारा पहले से ही निर्धारित एक विशेष निष्कर्ष दिया जा सके। उदाहरण के लिये जो समाचार पत्र एक विशेष विचारधारा से प्रभावित होते हैं, वे चुनाव पूर्व किये जाने वाले सर्वेक्षण के निष्कर्ष इस तरह प्रस्तुत कर देते हैं। जिससे उन्हीं की विचारधारा वाले राजनीतिक दल को जीतता हुआ दिखाया जा सके। इससे सर्वेक्षण के निष्कर्ष सन्देहपूर्ण और अवैज्ञानिक हो जाते हैं।
7. सिद्धांतों के निर्माण में अपर्याप्त
सर्वेक्षण से प्राप्त निष्कर्ष इतने सामान्य प्रकृति के होते हैं कि उनके आधार पर किसी सिद्धान्त का निर्माण नहीं किया जा सकता। सर्वेक्षण के आधार पर किसी समस्या के निराकरण से सम्बन्धित कुछ सुझाव तो दिये जा सकते हैं लेकिन ऐसे नियमों को ज्ञात नहीं किया जा सकता, जिनके आधार पर कोई उपयोगी सिद्धांत बनाया जा सके। यही कारण है कि अधिकांश सामाजिक सर्वेक्षणों का आयोजन किसी सामान्य उपकल्पना का परीक्षण करने के लिये ही किया जाता है। सामाजिक सर्वेक्षण की सीमाओं अथवा दोषों से यह स्पष्ट होता है कि इस प्रविधि का उपयोग बहुत सावधानी और निष्पक्षता से करके ही उपयोगी निष्कर्ष प्राप्त किये जा सकते हैं।
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