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पारिवारिक विघटन की परिभाषा
पारिवारिक विघटन का तात्पर्य पारिवारिक अव्यवस्था से है चाहे यह पारस्परिक निष्ठा और पारिवारिक नियंत्रण की कमी से सम्बन्धित हो अथवा व्यक्तिवादिता की वृद्धि से। इलियट एवं मैरिल के शब्दों में कहा जा सकता है कि “पारिवारिक विघंटन में हम किन्हीं भी उन बंधनों की शिथिलता असामंजस्य अथवा पृथक्करण को सम्मिलित करते हैं, जो समूह के सदस्यों को एक-दूसरे से बांधे रखते है।
इस प्रकार पारिवारिक विघटन का अर्थ केवल पति-पत्नी के बीच तनाव पैदा होना ही नहीं बल्कि माता-पिता और बच्चों के सम्बन्धों में तनाव उत्पन्न होना भी परिवार के लिये उतना ही अधिक घातक है।
मावॅरर के अनुसार- पारिवारिक विघटन का अर्थ पारिवारिक सम्बन्धों में बाधा पड़ना है अथवा यह संघर्षों की श्रृंखला का वह चरम रूप है जो परिवार की एकता के लिये खतरा पैदा करता है। यह संघर्ष किसी भी प्रकार के हो सकते हैं। इन संघर्षो की इसी श्रृंखला को पारिवारिक विघटन कह सकते है।”
इस कथन से स्पष्ट होता है कि पारिवारिक सम्बन्धों में सामान्य तनाव होना पारिवारिक विघटन नहीं है बल्कि परिवार के सदस्यों के बीच पारस्परिक तनाव जब समय-समय पर अनेक संघर्ष उत्पन्न करते रहते हैं तब इस दशा को हम पारिवारिक विघटन कहते हैं।
मार्टिन न्यूमेयर के अनुसार पारिवारिक विघटन का अर्थ परिवार के सदस्यों में मतैक्य एवं – निष्ठा का समाप्त हो जाना अथवा बहुधा पहले के सम्बन्धों का टूट जाना, पारिवारिक चेतना की समाप्ति हो जाना अथवा पृथकता में विकास हो जाना है।” पारिवारिक विघटन का यह अर्थ विघटन की प्रकृति के कारणों को ध्यान में रखते हुये दिया गया है। सामान्य शब्दों में कहा जा सकता है कि परिवार में जिस चेतना और निष्ठा के आधार पर सदस्य एक-दूसरे से बंधे रहते हैं और असीमित दायित्व की भावना को महसूस करते हैं, उसी चेतना और निष्ठा का कम हो जाना अथवा इसमें कोई गंभीर बाधा पड़ना ही पारिवारिक विघटन है।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि पारिवारिक विघटन तब उत्पन्न होता है जब परिवार में एकमतता समाप्त हो जाती है। सामाजिक मूल्यों का महत्व भी कम होने लगता है।
पारिवारिक विघटन के कारण
सामाजिक मूल्यों की भिन्नता के अनुसार विभिन्न समाजों में पारिवारिक विघटन के कारण एक-दूसरे से भिन्न हो सकते हैं। इसके फलस्वरूप पारिवारिक विघटन के कारणों की कोई ऐसी सूची नहीं बनायी जा सकती जो सभी समाजों में समान रूप से लागू होती हो फिर भी कुछ विद्वानों ने कुछ ऐसे सामान्य कारणों का विश्लेषण किया है जो अधिकांश समाजों में परिवारों के विघटन के लिये उत्तरदायी होते हैं ये कारण निम्नलिखित हैं.-
1. सामाजिक संरचना में परिवर्तन (Change in Social Structure)
सामाजिक ढांचे के निर्माण में सामाजिक मूल्यों तथा लोगों की प्रस्थिति और भूमिका का विशेष योगदान होता है। इनमें होने वाला परिवर्तन सामाजिक संरचना में भी परिवर्तन पैदा करके पारिवारिक संगठन पर अक्सर प्रतिकूल प्रभाव डालता है उदाहरण के लिये नये मूल्यों के कारण आज परिवार में सदस्यों की प्रस्थिति और भूमिका में परिवर्तन होने के साथ ही सदस्यों की भूमिकाओं में एक संघर्ष की दशा देखने को मिलती है। उदाहरण के लिये स्त्रियों से आज यह आशा की जाती है कि वे एक गृहिणी की भूमिका निभाने के साथ श्री आजीविका उपार्जित करने, साथी, सलाहकार, मित्र और प्रेमी की भूमिका को भी पूरा करें। इन भूमिकाओ से अनुकूलन न कर पाने से पारिवारिक विघटन की दशा पैदा हो जाती है। सामाजिक मूल्यों तथा प्रस्थिति में होने वाला परिवर्तन परिवार के सदस्यों में भूमिका संघर्ष तथा भूमिका असंतोष की समस्या को उत्पन्न करके भी विघटन की दशा उत्पन्न करता है।
2. परिवार में व्यक्तिवादिता (Individualism in Family)
परिवार के संगठन के लिये यह आवश्यक है कि परिवार अपने सदस्यों को उपयोगी सेवायें देता रहे तथा परिवार के सभी सदस्य पारस्परिक स्नेह, प्रेम तथा विश्वास के सम्बन्धों से बंधे रहें। जब परिवार द्वारा किये जाने वाले कार्य राज्य शिक्षा संस्थाओं तथा मनोरंजन केन्द्रों द्वारा पूरे किये जाने लगते हैं, तब व्यक्ति पर परिवार का प्रभाव कम होने लगता है। यह दशा व्यक्तिवादिता को प्रोत्साहन देकर परिवार के सदस्यों को अपने-अपने स्वार्थों को पूरा करने की प्रेरणा देने लगती है। जैसे-जैसे व्यक्तिवादिता बढ़ती है, सदस्यों के सम्बन्धों में दूरी आने लगती है। यह दूरी बहुत अधिक बढ़ जाने पर विवाह-विच्छेद तक की संभावना हो जाती है जो पारिवारिक विघटन का एक स्पष्ट लक्षण है।
3. वैयक्तिक तनाव (Personal Tensions)
जो तनाव पति अथवा पत्नी के व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं से उत्पन्न होते हैं, उन्हें वैयक्तिक तनाव अथवा प्राथमिक तनाव कहा जाता है। यदि पति और पत्नी का स्वभाव एक-दूसरे से भिन्न हो अथवा वे अपने वैवाहिक जीवन से अनुकूलन करने में असफल रहें तो उनके बीच तनाव उत्पन्न हो जाना एक स्वाभाविक घटना है। उदाहरण के लिये पति या पत्नी में से कोई भी एक यदि बहुत अधिक भावुक, सरलता से क्रोधित होने वाला, झगड़ालू, स्वार्थी अथवा दूसरे को विश्वास से देखने वाला हो तो परिवार के विघटित होने की संभावना हो जाती है।
4. परस्पर अविश्वास ( Mutual Distrust)
वर्तमान युग में नये सामाजिक मूल्यों व्यवसाय के नये-नये तरीको तथा आर्थिक जीवन में स्त्रियों के प्रवेश के कारण पति तथा पत्नी दोनों को ही अपने से विषम लिंग के लोगों के निकट सम्पर्क में आने के अवसर मिले हैं इसके फलस्वरूप अक्सर पति पत्नी के बीच अविश्वास की भावना पैदा होने लगती है। प्रेमविवाहों की बढ़ती हुयी संख्या के कारण भी विवाह के बाद साधारणतया पति और पत्नी एक-दूसरे को उतने विश्वास से नहीं देखते, जो विश्वास विवाह से पहले होता है। जैसे-जैसे अविश्वास होता है पारिवारिक विघटन की संभावना बढ़ती जाती है।
5. सामाजिक तनाव (Social Tensions)
सामाजिक तनाव का तात्पर्य उन तनावों से है। जो विवाह के पहले तथा विवाह के बाद की प्रस्थिति की भिन्नता का परिणाम होते हैं। इसे स्पष्ट करते हुये इलियट और मैरिल ने लिखा है कि यदि एक सुशिक्षित, शालीन तथा अनुशासित माता-पिता की पुत्री का विवाह किसी ऐसे परिवार में हो जाता है जहाँ अपव्यय, मादक द्रव्यों का प्रयोग, दूसरों की आलोचना तथा बच्चों के प्रति उदासीनता सामान्य विशेषताएं हो तो अक्सर ऐसी लड़की सामाजिक तनावों के कारण अपने पति के परिवार से अनुकूलन करने में कठिनता अनुभव करती है यदि ऐसे तनावों का निराकरण नहीं होता तो परिवार में विघटन की स्थिति उत्पन्न होने लगती है।
6. निर्धनता (Poverty)
निर्धनता एक ऐसे तनाव को जन्म देती है जो पारिवारिक विघटन का एक प्रमुख कारण बन जाता है। निर्धनता की दशा में पत्नी अपने पति को अयोग्य और लापरवाह समझने लगती है, शिक्षा और मनोरंजन की सुविधाएँ न मिलने से बच्चे अनुशासनहीन बन जाते हैं जबकि अनेक स्त्रियाँ आर्थिक सुविधाओं के अभाव में अनैतिक जीवन बिताने लगती हैं। आर्थिक तनावों के फलस्वरूप पुरुषों में मद्यपान, नशीली दवाओं के सेवन और मामूली अपराध करने की बढ़ती हुयी प्रवृत्ति देखी गयी है। निर्धनता के कारण मध्यम वर्ग के परिवारों में परिवार विघटन की संभावना तुलनात्मक रूप से अधिक रहती है।
7. अस्वस्थ मनोरंजन (Unhealthy Recreation)
परम्परागत रूप से परिवार का एक मुख्य प्रकार्य अपने सदस्यों को स्वस्थ मनोरंजन देना रहा है। ऐसा मनोरंजन अनुशासन चरित्र-निर्माण और कर्तव्य पालन का सबसे महत्वपूर्ण आधार रहा है। आज परिवार के सदस्य सिनेमा, टेलीविजन अथवा क्लेच के द्वारा जिस तरह का मनोरंजन प्राप्त करने लगे हैं, उससे माता-पिता के आदेशों का विरोध करने, रोमांटिक प्रेम में रुचि लेने, काल्पनिक व्यवहारों को जीवन का सत्य मानने तथा सामाजिक मूल्यों से भिन्न व्यवहार करने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। ऐसा मनोरंजन पारिवारिक संगठन को बहुत प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है। अक्सर इसका परिणाम पारिवारिक विघटन के रूप में हमारे सामने आता है।
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