परिवीक्षा क्या है ?
परिवीक्षा में अपराधी को सजा के बदले सशर्त मुक्त कर दिया जाता है और उनसे आशा की जाती है कि परिवीक्षा की अवधि में अपना आचरण उत्तम रखेगा। इस सम्बन्ध में प्रमुख विद्वान सदरलैंड के अनुसार, “परिवीक्षा दण्डनीय ठहराये गये अपराध की उस समय की अवस्था है जिसमें अपराधी की सजा को मुअत्तिल करा दिया गया है और जिसमें अच्छा व्यवहार बनाये रखने की शर्त के साथ अपराधी को स्वतंत्रता दे दी जाती है। इसके साथ ही राज्य अपने व्यक्तिगत निरीक्षण के द्वारा अपराधी को अच्छा व्यवहार बनाये रखने में सहायता देने का प्रयास करता है।”
इस प्रकार प्रथम अपराधी को दण्ड सुनाने के बाद दण्ड देने के बजाये परिवीक्षा पर छोड़ दिया जाता है। छूटने से पहले उसे इस बात का प्रमाण पत्र देना पड़ता है कि परिवीक्षा काल में वह उत्तम आचरण रखेगा। समाज में सामंजस्य स्थापित करने के लिए अपराधी को निर्देशन एवं सहायता सरकार की ओर से प्रदान की जाती है। परिवीक्षा अधिकार सरकार की ओर से परिवीक्षा पर छोड़े गये अपराधी की देख-रेख करता है। भारत में अपराधियों को परिवीक्षा पर छोड़ने की व्यवस्था सन् 1888 में की गई थी। सन् 1958 में भारत सरकार ने परिवीक्षा अधिनियम पास किया जिसके अन्तर्गत विभिन्न राज्यों ने अलग अलग अधिनियम पारित किये। राजस्थान के प्रत्येक जिले में एक परिवीक्षा अधिकारी की नियुक्ति सन् 1967 में की गई। परिवीक्षा अधिकारी दो कार्य करते हैं परिवीक्षा में छोड़े गये व्यक्ति की जांच पड़ताल करना तथा उसकी देख-रेख करना। चेन्नई में 1937 तथा उत्तर प्रदेश में 1938 में प्रोबेशन अधिनियम पारित किया गया था।
अपराधी को परिवीक्षा में छोड़ने के कई लाभ हैं। इससे अपराधी की मनोवृत्ति में परिवर्तन होता है तथा उसे भविष्य में समाज विरोधी कार्य न करने की प्रेरणा मिलती है। वह जेल के दूषित वातावरण से बच जाता है। वह अनुशासन के प्रति जागरूक होता है। इससे राज्य सरकार को आर्थिक लाभ भी होता है क्योंकि जेल में रखने पर उस पर खाने, कपड़े आदि का खर्चा परिवीक्षा पर छोड़ने पर यह बच जाता है। कुछ लोगों का यह मानना है कि परिवीक्षा में छोड़ने पर वह व्यक्ति उसी माहौल में चला जायेगा जहाँ से वह अपराधी बना था।
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