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भारत में बाल अपराध के कारण
भारत में बाल अपराध के कारण- बाल अपराध के लिए कोई एक कारण उत्तरदायी नहीं है। अनेक ऐसे कारण हैं जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बाल-अपराध के लिए उत्तरदायी हैं-
1. आवारापन (Vagrancy)
जब बच्चे बिना किसी उद्देश्य के इधर उधर घूमते हैं तो उनके व्यवहार को आवारापन कहा जाता है।
2. भगोड़ापन (Truancy)
जब कोई विद्यार्थी स्कूल से बिना किसी सूचना के भाग जाता है, तो उसे भगोड़ा कहते हैं।
3. पारिवारिक दशाएं (The Family Conditions)
नष्ट घर, अर्द्ध नष्ट घर, अवैध पितृता तथा अवांछनीय सन्तान, अनैतिक परिवार, माता पिता द्वारा अपेक्षा अतिव्यस्त माता-पिता, मनोरंजन की कमी, कमजोर पारिवारिक नियंत्रण, भाई बहन का प्रभाव अत्यधिक तनाव, अत्यधिक प्रेम आदि पारिवारिक दशाएं बाल अपराध को बढ़ावा देती है।
4. पूर्व अपराधी विशेषताएं (Pre-delinquency Symptoms)
दुर्व्यवहार, चोरी, आलसीपन, लड़ाकू आक्रमणकारी, अत्यधिक स्वार्थी, विध्वसंकारी निर्दयी, पहनावे की अधिक परवाह, आदतन आज्ञाकारी, आदि विशेषताएं बाल अपराध को बढ़ावा देती हैं।
5. व्यक्तित्व सम्बन्धी कारक (Personality Factors)
व्यक्तित्व मानव की आन्तरिक और बाहरी विशेषताओं का पुंज है। व्यक्तित्व के अन्तर्गत चार तत्व आते हैं जिनका बाल अपराध से सम्बन्ध है :
(अ) शारीरिक और प्राणिशास्त्रीय कारक
(आ) मनोवैज्ञानिक कारक
(इ) चरित्र
(ई) व्यवहार और आदते
6. शारीरिक कारक (Physical Factors)
शारीरिक दोष, स्थायी दुर्बलता, स्थायी कमजोरी, तेज बीमारी, शारीरिक दोष आदि ऐसे शारीरि कारक हैं जो बाल अपराध को बढ़ावा देते हैं।
7. पड़ोस (Neighbourhood)
परिवार के बाद पडोस महत्त्वपूर्ण प्राथमिक समूह है – जिसका व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण हाथ होता है। पड़ोस का प्रभाव अपराधी प्रवृत्तियों पर गहरा होता है।
8. औद्योगीकरण (Industrialization)
आधुनिक युग औद्योगीकरण का युग है। निरन्तर औद्योगीकरण हो रहा है। इस औद्योगीकरण से समाज के परम्परागत ढाँचे में परिवर्तन हो रहे हैं, जिनसे बाल अपराधों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
9. आर्थिक कारण (Economic Factors)
निर्धनता, व्यापार चक्र, असीमित चाह भुखमरी, बेकारी, मौसमी बेकारी, आर्थिक असन्तोष आदि ऐसे अनेक आर्थिक कारक हैं जो बाल-अपराधो की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
10. संगति और बाल (Companionship and Juvenile Gangs)
लड़के और लड़कियों शायद ही कभी अपराध करते हों। सामान्यतः वे दूसरों के साथ में ही ऐसे कार्य करते हैं। लड़के बाल अपराध का आरम्भ स्कूल की अनुपस्थिति से करते हैं। फिर छोटे मोटे अपराध करते हैं और अधिक गम्भीर अपराध करने लगते हैं। टैफ्ट का कहना है कि बाल अपराधी गिरोह अपने सदस्यों को ऊधमबाजी करना, दूसरों की वस्तुओं को नाश करना अपराध करने की विधियों सिखलाते हैं।
11. मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological Factors)
मानसिक हीनता, उद्योगों का संघर्ष और अस्थिरता, हीनता की भावना, साइको पैथिक बालक, न्यूरोटिक बालक आदि अवस्थाएँ बाल अपराध को प्रोत्साहन देती हैं।
12. समुदाय तथा बाल अपराध (Influence of Community Institutions)
(i) मनोरंजन के साधनों का अभाव- चंचलता बाल-अपराध का स्वभाव है किन्तु जब यहीं चंचलता अपराध की ओर प्रवृत्त करती है तो बाल अपराध को आराम के समय का काम कहा जाता है।
(ii) चलचित्र – सिनेमा व्यावसायिक मनोरंजन के साधनों में सर्वोपरि है, परन्तु इसका प्रभाव बहुत ही बुरा पड़ता है। सिनेमा के गीत, नृत्य और ड्रेस का बालकों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है। सिनेमा की घटनाओं से बालक शीघ्र उत्तेजित हो जाते हैं, और सरलता से अपराध की ओर प्रवृत्त हो जाते है।
(iii) समाचार पत्र – अधिकांश समाचार पत्रों का उद्देश्य अधिक से अधिक धन कमाना है। समाचार पत्र का दूसरा उद्देश्य नेतागिरी है। समाचार पत्र अपराध की विधि बताकर अपराध को सामान्य बनाकर अपराध को आकर्षक दिखाकर न्याय को प्रभावित करके अपराधी को प्रतिष्ठा देकर बाल अपराध को प्रोत्साहन देते हैं।
(iv) अश्लील साहित्य व स्कूल का वातावरण भी बच्चों को अपराधी बनाने में सहयोगी होती हैं।
13. निवास सम्बन्धी कारक (Residential Factors)
बालक जैसे वातावरण में जैसे पड़ोस तथा जैसी स्थितियों में रहता है, बहुधा वैसा ही बनता है। यदि आस-पास का वातावरण अच्छा है, बालक भी अच्छा बनेगा। यदि वातावरण गन्दा है, बुरा है, अवांछनीय है तो बालक पर वैसे ही संस्कार पड़ेगें। गन्दे मकान बाल अपराधी बच्चों का अधिक उत्पादन करते हैं।
14. जनसंख्या की गतिशीलता (Mobility of Population)
बाल अपराध ऐसे क्षेत्रों में अधिक होते हैं जहाँ भिन्न भाषा और प्रजाति वाले लोग रहते हैं। नये पड़ोस के साथ बड़े पैमाने पर सामन्जस्य करने की आवश्यकता, व्यवहार का छिन्न भिन्न हो जाना, घरेलू उत्साह और एकता का कम हो जाना व अत्यधिक जनसंख्या अपराध के लिए उत्तरदायी हैं।
15. युद्ध (War)
युद्धकाल में समाज का विघटन बहुत बढ़ जाता है। युद्ध में अनेक पिताओं की मृत्यु हो जाती है, अनेक घर नष्ट हो जाते हैं। युद्ध के परिणामस्वरूप निम्नलिखित समस्यायें खड़ी हो जाती हैं –
(i) अवैध मातृत्व तथा सन्तान की समस्या ।
(ii) अनाथ बालकों तथा उनके समाजीकरण की समस्या ।
(iii) अपाहिजों की समस्या।
(iv) सामाजिक सामंजस्य की समस्या ।
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