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ध्वनि प्रदूषण का आशय (Meaning of Sound Pollution)
अन्य प्रदूषकों की ही भांति शोर भी हमारी प्रगति एवं आधुनिक सभ्यता का ही एक परोत्पाद (by-product) है। विभिन्न उद्योग-धन्धों में प्रयुक्त यन्त्र तथा मानव द्वारा अपनी सुख-सुविधा हेतु प्रयोग में लाये जाने वाले अनेक यन्त्र शोर का कारण है। कारखानों में लगी मशीनों की भड़भड़, ट्रकों के इंजन की घर्राहट, रेलगाड़ियों की धड़धड़ाहट, जेट विमानों की घुर्राहट आदि यही तो हैं हमारे आस-पास गूंजने वाली विभिन्न कोलाहल पूर्ण ध्वनियाँ, जोकि हमारी आधुनिक प्रगति की देन हैं। औद्योगीकरण की तेज रफ्तार के कारण इस शोर का घातक घेरा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
मैक्सवैन के अनुसार, “शोर वह ध्वनि है जो अवांछनीय है। यह वायुमण्डलीय प्रदूषण का एक प्रमुख प्रकार है।”
ध्वनि प्रदूषण व शोर का मापन (Measurement of Noise and Intensity)
शोर एक सापेक्षिक तथ्य है जिसे अनुभव के आधार पर वर्गीकृत करना कठिन है। कुछ लोगों को ‘पॉप’ संगीत तीव्र शोर लगता है वहीं यह अन्य लोगों को मधुर भी लगता है।
अतः अनुभव से इसमें भिन्नता नहीं की जा सकती। इसी कारण ध्वनि अथवा शोर मापन हेतु वैज्ञानिकों ने एक पद्धति विकसित की जिसमें ध्वनि की प्रबलता को ऊर्जा के पारस्परिक सम्बन्ध के माध्यम से मापन किया जाता है। ध्वनि के मापन में ‘डेसीबल’ इकाई का प्रयोग किया जाता है जिस यन्त्र से शोर का मापन किया जाता है उसे डेसीबल मीटर कहते हैं।
ध्वनि प्रदूषण के स्रोत (Sources of Noise Pollution )
ध्वनि प्रदूषण के स्रोतों को दो भागों में बांटा गया है –
1. प्राकृतिक स्रोत (Natural Sources)- शोर के प्राकृतिक स्रोतों में बादलों की गड़गड़ाहट, बिजली की कड़क, तूफानी हवाएं, ऊँचे पहाड़ों से तेजी से गिरते पानी की ध्वनि, भूकम्प, ज्वालामुखियों के फूटने से उत्पन्न ध्वनियों और जंगली जानवरों से उत्पन्न जीवों की ध्वनियाँ इस प्रदूषण में सम्मिलिति की जा सकती है।
2. कृत्रिम स्रोत (Artificial Sources)- औद्योगीकरण एवं यातायात की सुविधाओं के निरन्तर विकास तथा अन्य मानवीय क्रियाओं से उत्पन्न शोर, ध्वनि प्रदूषण का प्रमुख कारण है। ध्वनि प्रदूषण के कृत्रिम स्रोतों को निम्नांकित भागों में विभाजित किया जा सकता है –
(i) औद्योगिक संस्थानों द्वारा उत्पन्न शोर
(ii) परिवहन के साधनों द्वारा उत्पन्न शोर
(iii) मनोरंजन के साधनों द्वारा उत्पन्न शोर
ध्वनि प्रदूषण के दुष्प्रभाव (Harmful Effects of Noise Pollution)
विविध माध्यों से शोर प्रदूषण में निरन्तर वृद्धि हो रही है। शोर से मानव सर्वाधिक प्रभावित होता है। श्रवण शक्ति पर शोर का प्रभाव अत्यधिक होता है, क्योंकि कानों के माध्यम से ही हम सुनते हैं और कठोर एवं तीव्र शोर की पीड़ा भी इन्हें ही सहन करनी होती है। कानों के अतिरिक्त मानसिक तनाव एवं सरदर्द का एक कारण ध्वनि प्रदूषण है। एक फ्रांसीसी अध्ययन के अनुसार पेरिस में मानसिक तनाव के 70 प्रतिशत मामलों की वजह हवाई अड्डों का शोर है।
शोर का प्रभाव हृदय एवं पाचन तन्त्र पर भी होता है। शोर के कारण दैनिक जीवन में सामाजिक तनाव, लडाई-झगड़े, मानसिक अस्थिरता, कुठा,
पागलपन आदि दोष भी हो जाते हैं। आस्ट्रिया के एक शब्दवेत्ता का यह कथन सत्य है कि शोर मनुष्य को समय से पूर्व बूढ़ा कर देता है।
ध्वनि प्रदूषण पर नियन्त्रण के उपाय (Methods of Controlling Noise Pollution)
इस सम्बन्ध में कतिपय उपाय निम्नलिखित हैं-
1. वे उद्योग जिनसे अत्यधिक शोर होता हो उन्हें आबादी वाले क्षेत्रों से इतना दूर स्थापित करना चाहिये कि उसके समीप शोर का प्रभाव न हो ।
2. उद्योगों के अन्दर भी इस प्रकार की व्यवस्था होनी चाहिये।
3. उद्योगों में मशीनों का उचित रखरखाव होना चाहिये।
4. इस प्रकार के पुराने एवं जीर्ण-क्षीर्ण वाहन जो अत्यधिक शोर करते हैं उनके सड़को पर चलने पर रोक लगाना आवश्यक है।
5. वाहनों में प्रयुक्त हॉर्न एवं सायरन की ध्वनि को अत्यधिक तेज न करके मधुर बनाया जा सकता है। हॉर्न के अनावश्यक प्रयोग पर रोक लगानी चाहिये।
6. जहाँ तक सम्भव हो नगरों के बाहर मुद्रिका सडके (Ring roads) होनी चाहिये। उन्हीं पर भारी वाहनों को चलाना चाहिये।
7. नगर में यदि अधिकांश सड़के एक मार्गी (One way) होंगी तो वाहन तेजी से चलेंगे तथा हार्न का प्रयोग भी कम करना होगा।
8. रेलों के शोर को बेलास्टविहीन (Ballastless) रेल मार्गों के निर्माण द्वारा कम किया जा सकता है।
9. रेल इंजनों, विशेषकर रेल हॉर्न की आवाज नियन्त्रित होनी चाहिये।
10. हवाई अड्डों पर शोर एक चिन्ता का विषय है।
11. जेट इंजन के शोर को नियन्त्रित करने हेतु उनके टर्बोजेट इंजनों पर शोर अवशोषक का प्रयोग किया जाने लगा है।
12. शोर प्रदूषण का एक रूप घरेलू क्लब एवं थियेटर का माध्यम तेजी से बजता संगीत है।
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