राजनीति विज्ञान (Political Science)

तुलनात्मक राजनीति की समस्याएं | Problems of Comparative Politics in Hindi

तुलनात्मक राजनीति की समस्याएं
तुलनात्मक राजनीति की समस्याएं

तुलनात्मक राजनीति की समस्याएं

तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन में कुछ ऐसी गम्भीर समस्यायें विद्यमान है जो के उसके विकास को एक स्वतन्त्र अनुशासन बनने की इसके महत्वाकांक्षा को ठेस पहुँचाती है। एम० कार्टिस के अनुसार तुलनात्मक राजनीति का सम्बन्ध राजनीतिक संस्थाओं का कार्य कलापों और राजनीतिक व्यवहार में पायी जाने वाली महत्वपूर्ण निरन्तरताओं, समानताओं और विभिन्नताओं से है और जब तक समानताओं तथा विभिन्नताओं की तुलना के मूल प्रत्ययों की समुचित जानकारी की समस्या पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाएगा तब तक तुलनात्मक राजनीति का अध्ययन समस्याग्रस्त रहेगा।

सरटोरी के अनुसार भी एक व्यापक स्तर पर कुछ ऐसे प्रत्ययों का निर्माण करना ही होगा, जिनका आधार व्यापार जानकारी और तुलनात्मक हो। यदि ऐसा नहीं किया गया तो राजनीति में अपेक्षित तुलनात्मक सम्भव नहीं बन सकेगी। हैक्शर ने कहा है, तदनुसार अवधारणात्मक अथवा प्रत्यात्मक संरचना की तुलना एक न्यूनतम अनिवार्यता है। जी०के० राबर्ट्स ने चार प्रमुख धाराओं पर ध्यान आकर्षित किया है-

1. प्रत्ययों के निर्माण और उनकी परिभाषा की समस्या ।

2. एब्सट्रेक्शन निकालने के स्तर और वर्गीकरण की समस्या।

3. तुलना और मापन की भाषा सम्बन्धी समस्या।

4. अनुवाद तथा संस्कृति की परिभाषिक शब्दावली की समस्या ।

1. प्रत्ययों का निर्माण और उनकी स्पष्ट परिभाषा की समस्या पर विजय पाना आवश्यक है। प्रत्ययों के दो मूलभूत कार्य होते है- प्रथम सिद्धान्त की इकाई के रूप में और दूसरे, सामग्री के संकलन में सहायता के रूप में, ये दोनों की कार्य समुचित रूप में तभी निष्पादित किये जा सकते है, जबकि स्पष्ट रूप से पारिभाषित और परस्पर सम्बन्धित प्रत्यय सुलभ हों यह कार्य इतना महत्वपूर्ण है कि इसका स्थान विवेचना, तुलना मापन सिद्धान्त निर्माण, सिद्धान्त परीक्षण आदि से भी महत्वपूर्ण माना जाना चाहिये।

2. तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र में एबस्ट्क्शन स्तरों का भी विशेष महत्व है। तुलनात्मक राजनीतिक जाँच का मूल उद्देश्य सार्वभौम प्रकृति के उन विवरणों को खोजना है जो किसी विशिष्ट सांस्कृतिक परिवेश में उपयुक्त बैठने तक ही सीमित न हो बल्कि सभी जगह सदैव लागू होते हैं।

3. तुलना एवं मापन की भाषा की समस्या स्वतः स्पष्ट है। ज्ञान की प्रत्येक शाखा जो एक स्वतन्त्र अनुशासन बनाने की कामना रखती हो, अपनी उपयुक्त भाषा और शैली के निर्माण की ओर अग्रसर होती है।

4. तुलनात्मक अध्ययन के क्षेत्र में विभिन्न राष्ट्रों की संस्कृतियों के अध्ययन और विदेशी भाषा के प्रयोग के महत्व की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

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shubham yadav

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