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अनुवाद किसे कहते हैं? इसका स्वरूप स्पष्ट कीजिए।
अनुवाद एक कला (Art) है। अन्य कलाओं की भाँति इस कला में भी निपुणता के लिए निरन्तर अभ्यास की आवश्यकता है। अनुवाद का विदेशी भाषा सीखने में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इससे हिन्दी-अंग्रेजी या अन्य भाषाओं की योग्यता बढ़ती है। अनुवाद के द्वारा ही अंग्रेजी आदि भाषाएँ बोलने एवं लिखने में सुगमता होती है। अनुवाद के माध्यम से ही अन्य भाषाओं की पुस्तकों एवं ग्रन्थों का अध्ययन सम्भव है, अन्यथा उन ग्रन्थों में निहित ज्ञान से वंचित रह जाना पड़ता है। स्पष्ट है कि अनुवाद एक भाषा से दूसरी भाषा में सम्प्रेषण करने की वह प्रक्रिया है, जिससे
उस भाषा का ज्ञान होता है। इस सम्प्रेषण की प्रक्रिया को ही संस्कृत एवं हिन्दी में अनुवाद तथा अंग्रेजी में ट्रांसलेशन (Translation) कहा जाता है। अनुवाद के लिए तर्जुमा, भाषा, टीका, रूपान्तर, उल्था, भाषान्तर, भाषांतरण, अन्तरण आदि शब्दों का भी प्रयोग किया जाता है। अनुवाद शब्द की व्युत्पत्ति ‘वद्’ धातु से हुई है। वद् धातु में घञ प्रत्यय लगाने से वाद शब्द बना तथा उसमें अनु उपसर्ग लगा देने से अनुवाद शब्द प्रयोग में आया। इसमें ‘वद्’ का अर्थ बोलना या कहना तथा अनु का अर्थ बाद या उपरान्त लिया जाता है। इस प्रकार अनुवाद शब्द का अर्थ हुआ- किसी के कहने के बाद कहना। शब्दार्थ विन्तामणि कोश में अनुवाद शब्द की इसी अर्थ में अभिव्यक्ति हुई है ‘प्राप्तस्य पुनः कथने’ अर्थात् पहले कहे गये अर्थ को पुनः कहना। डॉ० सत्यदेव मिश्र एवं डॉ० रामाश्रय सविता ने अपनी पुस्तक ‘अनुवादः अवधारणा और, आयाम’ में लिखा है कि ‘प्राचीन भारत में शिक्षा की मौखिक परम्परा थी। गुरु का वाणी का शिष्य अनुवचन (दोहराते) करते थे। उस समय अनुवाद की प्रक्रिया अनुवचन या अनुकथन अथवा पुनरावृत्ति तक सीमित थी। संस्कृत भाषा में वेद का कोई प्रभाग (सेक्शन) भी अनुवाद कहा जाता था, काचित वेद का उतना भाग जिसे एक बार गुरु से सुनकर दुहराया अथवा सीखा जा सके।’
इस प्रकार अनुवाद शब्द का अर्थ पुनः कहना, पुरावृत्ति अथवा पुनः कथन आदि बताया गया है, जैसा कि प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में निहित उक्तियों से भी स्पष्ट है, यथा-
अन्वेको वदति यद्ददाति (ऋग्वेद 2.13.3)
कालानुवाद परीत्य (यास्क रचित निरुक्त-12.12)
आवृत्तिरनुवादो वा (भर्तृहरि-2.1.15)
जातस्य कथनमनुवादः (जैमिनीय न्यायमाला -1.4.6)
संस्कृत साहित्य में अनुवाद की परम्परा अत्यन्त प्राचीन काल से रही है। वहाँ अनुवाद के लिए भाषान्तर एवं रूपान्तर के लिए छाया, टीका एवं भाष्य आदि शब्द भी प्रयुक्त होते रहे हैं। इस तरह अनुवाद शब्द का प्रयोग संस्कृत साहित्य की देन है। अट्ठारहवीं सदी तक संस्कृत के अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषाओं में भी अनुवाद शब्द का प्रयोग होने लगा था। जिसमें हिन्दी, मराठी, गुजराती, बंगला, असमिया, उड़िया, पंजाबी, तेलुगू एवं कन्नड़ आदि मुख्य हैं। अधिकांश प्राचीन ग्रन्थों का अनुवाद इन भाषाओं में हुआ है। यह बात और है कि बंगला में अनुवादों की परम्परा अन्य भाषाओं की अपेक्षा प्राचीन है।
हिन्दी साहित्य में अनुवाद की परम्परा का श्रीगणेश भारतेन्दु युग से माना जाता है। भारतेन्दु काल में अधिकांश साहित्यकारों ने संस्कृत, अँगरेजी, बंगला आदि भाषाओं के नाटकों एवं उपन्यासों का अनुवाद हिन्दी में किया यथा— अनूदित नाटकों में भवभूति के उत्तररामचरित का देवदत्त तिवारी तथा लाला सीताराम, कालिदास के अभिज्ञान शाकुन्तलम् का नन्दलाल तथा विश्वनाथ दूबे, बंगला के नाटककार माइकेल मधुसूदन के नाटक ‘पद्मावती’ का बालकृष्ण भट्ट शामैष्ठा का रामाचरण शुक्ल तथा अंग्रेजी नाटकों में ‘मरचेन्ट ऑफ वेनिस’, मेकबेथ आदि का हिन्दी अनुवाद प्रसिद्ध है।
इसी तरह अंग्रेजी एवं बंगला उपन्यासों का ही हिन्दी में अनुवाद किया गया। यथा-बंगला उपन्यासकार रमेशचन्द्र दत्त कृत ‘बंग विजेता’ एवं बंकिमचन्द्र कृत ‘दुर्गेश नन्दिनी’ का हिन्दी रूपान्तर गदाधर सिंह ने किया। अन्य भारतीय भाषाओं में भी उन्नीसवीं तथा बीसवीं सदी के मध्य व्यवस्थित रूप से अनुवाद किये जाते रहे हैं, किन्तु स्फुट विचारों को छोड़कर अनुवाद के सिद्धान्त पक्ष पर कोई भी व्यवस्थित विशद एवं मौलिक चिन्तन नहीं किया गया, जबकि बींसवी सदी में ही पाश्चात्य जगत में अनुवाद के विभिन्न पक्षों पर गहन चिन्तन किया गया और नये-नये विचार सामने आये।
कुछ विद्वानों का मानना है कि हिन्दी का अनुवाद शब्द अँगरेजी के ट्रांसलेशन (Translation) है शब्द का पर्याय है, जबकि कुछ विद्वानों का मत है कि अनुवाद शब्द संस्कृत से हिन्दी में आया। अंगरेजी के ट्रांसलेशन का पर्याय कहना मात्र भ्रम है। व्युत्पत्ति की दृष्टि से ट्रांसलेशन शब्द लैटिन भाषा के ‘ट्रांस’ और अंग्रेजी भाषा के ‘लेशन’ शब्द के संयोग से निर्मित मिश्रित शब्द है। इसमें ट्रांस का अर्थ है पार तथा लेशन का अर्थ है ले जाना; अर्थात पार ले जाना। इस प्रकार ट्रांसलेशन शब्द का अर्थ हुआ— एक भाषा के कथ्य को दूसरी भाषा के पार ले जाना या उतारना अर्थात एक भाषा के अर्थ को ठीक उसी तरह दूसरी भाषा में कहना।
कुछ विश्व-भाषाओं में ‘ट्रांसलेशन’ अथवा अनुवाद के समानार्थी प्रचलित शब्द इस प्रकार हैं-
French-Treduire
German-Upersetzen
Hungarian-Lefordete
Italian-Translare
Portugese-Traduzir
Rummanian-A Traduce
Spanish-Traducir, Trasladur
इस प्रकार स्पष्ट है कि एक भाषा की कही हुई बात को किसी दूसरी भाषा में लिखना या कहना अनुवाद करना कहा जाता है; अर्थात यदि अंग्रेजी में कुछ सोचा जाय और हिन्दी में उसे कहना हो तो यह ध्यान रखा जाय कि-
वांछित भाषा में हमारे विचारों के समानान्तर भाषा क्या होगी। कौन-कौन से शब्द प्रयुक्त होंगे और उनका क्रम क्या होगा। कितने प्रकार से उस बात को कहा जा सकता है। इसी भाषान्तर की कला को अनुवाद कहते हैं।
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