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सामुदायिक अभिकर्ता संस्थाओं के प्रकार
विद्यालय में अध्ययनरत छात्रों की अनेक आवश्यकतायें जैसे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और मनोरंजन सम्बन्धी होती हैं। इन आवश्यकताओं की सन्तोषप्रद सन्तुष्टि करने में विद्यालय असमर्थ होते हैं। अतः अनेक एजेन्सियों जैसे बाल निर्देशन, क्लिनिक गला, नाक क्लिनिक, अभिभावक संगठन, चिकित्सा, सेवायें, धार्मिक संगठन, युवक संगठन आदि की सेवाओं की आवश्यकता होती है अर्थात् युवक के निर्देशन में विद्यालय और सामुदायिक एजेन्सीज भागीदार होते हैं। यह निर्देशन कार्यकर्ता का उत्तरदायित्व है कि वह पड़ोसी तथा विस्तृत समुदाय में उपलब्ध स्रोतों का पता लगाये उनकी सहायता प्राप्त करने का प्रयास करे। भारत में अभी तक निर्देशन मार्ग में समुदाय के स्रोतों की सहायता प्राप्त करने के प्रयास नहीं किये गये हैं। कुछ महत्त्वपूर्ण सामुदायिक स्रोत निम्नलिखित हैं-
1. चिकित्सा सेवा
विद्यालय के निकटवर्ती समुदाय में चिकित्सालय स्थित होते हैं जहाँ विभिन्न प्रकार के रोगों के विशेषज्ञ चिकित्सक होते हैं। विद्यालय में बालकों के स्वास्थ्य परीक्षण के समय पाये जाने वाले गम्भीर रोगों से ग्रसित छात्रों को इन विशेषज्ञों के पास भेजना चाहिये। निर्देशन कर्मचारी को (i) दन्त चिकित्सक या नाक, गला, कान विशेषज्ञ, (ii) हृदय रोग, (iii) हड्डियों की बीमारी, (iv) फेफड़े तथा श्वाँस आदि क्षेत्र के विशेषज्ञों के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिये। इस कार्य में माता-पिता का सहयोग आवश्यक है। यदि माता-पिता निर्धन हैं और चिकित्सा के भार को वहन करने में असमर्थ हैं तो समुदाय के ऐसे लोगों से सम्पर्क करना चाहिये जो सहर्ष आर्थिक सहायता प्रदान कर सकते हैं।
2. मानसिक स्वास्थ्य सेवायें
गम्भीर रूप से मानसिक रोगों से पीड़ित छात्रों का उपचार निर्देशन कर्मचारियों द्वारा सम्भव नहीं होता है। इसीलिये ऐसे छात्रों को तुरन्त सामुदायिक मानसिक स्वास्थ्य क्लिनिक में सही उपचार के लिये भेजना चाहिये। बाल निर्देशन क्लिनिक भी ऐसे बालकों के उपचार में सहायता प्रदान करती हैं। सामाजिक मनोवैज्ञानिक कार्यकर्त्ता कुसमायोजित बालकों के माता पिता का उपचार करते हैं। भारतवर्ष में घूमने-फिरने वाले क्लिनिक की अधिक आवश्यकता है जो बिखरे ग्रामों में यह सेवा प्रदान कर सके।
3. सामाजिक संस्थायें
विद्यालय में अध्ययनरत छात्र कभी-कभी ऐसी समस्यायें प्रस्तुत करते हैं जिनके समाधान के लिये परामर्शदाता को विद्यालय से बाहर की एजेन्सीज की सहायता की आवश्यकता होती है। सामाजिक अभिकर्ताओं को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-
(क) सार्वजनिक, (ख) निजी, (ग) व्यापारिक सार्वजनिक अभिकर्ता को करों द्वारा प्राप्त धन में से आर्थिक सहायता प्राप्त होती है। निजी अभिकर्ता को लोगों से स्वेच्छापूर्वक दान प्राप्त होता है। इसके विपरीत व्यापारिक अभिकर्ता शुल्क वसूल करके अपनी क्लिनिक चलाते हैं। सामुदायिक स्रोत में व्यापारिक अभिकर्त्ता को सम्मिलित नहीं किया जाता है क्योंकि मालिक के लिये लाभ प्रदान करने की दृष्टि से चलायी जाती हैं। सार्वजनिक और निजी एजेन्सीज समुदाय की भलाई के लिये स्थापित की जाती है, अतः अधिकतर ये परस्पर सहयोग से कार्य करती है। सामाजिक संस्थाओं की सहायता की आवश्यकता ऐसे छात्रों को अधिक होती है जिनके घर का वातावरण ठीक नहीं होता है। माता-पिता झगड़ते रहते हैं या बच्चे अनाथ होते हैं या गरीबी के कारण अध्ययन नहीं कर सकते हैं। परामर्शदाता को ऐसी सामाजिक इकाइयों के सम्पर्क में रहना पड़ता है।
4. धार्मिक समूह
समुदाय में अनेक धार्मिक संगठन होते हैं जो छात्रों को अनेक रूपों में सहायता प्रदान कर सकते हैं। अनेक छात्रों में नैतिक मूल्यों तथा धार्मिक विश्वासों में सन्देह पैदा हो जाता है। ऐसे छात्रों की समस्या का निवारण धार्मिक संगठन कर सकते हैं। धार्मिक संस्थायें अनाथालय भी चलाती हैं और निर्धन छात्रों को आर्थिक सहायता प्रदान करके सहयोग प्रदान करती हैं।
5. राजकीय एजेन्सीज
नवयुवक सेवायें राजकीय अभिकर्त्ता द्वारा स्थानीय, राज्य स्तर तथा राष्ट्र स्तर पर प्रदान की जाती हैं। उदाहरण के लिये नियोजन कार्यालय विद्यालय में छात्रों को नियुक्ति में सहायता कर सकता है। राजकीय विभाग जैसे दन्त चिकित्सा, संक्रामक रोग विभाग, विकलांग छात्रों की सहायता का विभाग, बाल कल्याण विभाग, गूंगे तथा अन्ध राजकीय विद्यालय, शिक्षा विभाग आदि इस क्षेत्र में सहायता प्रदान करते हैं।
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