अनुक्रम (Contents)
शिक्षा के निरौपचारिक साधन- Non-formal modes of education
शिक्षा के निरौपचारिक साधन निम्नलिखित है-
सुदूर शिक्षा (Distance Education)
आज के प्रजातांत्रिक युग में शिक्षा का लाभ प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचाना अनिवार्य-सा हो गया है । यदि बहुत-से व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों तक नहीं आ सकते तो हमें शिक्षा को उनके दरवाजे तक ले जाना होगा। पैगम्बर मुहम्मद साहब ने ठीक ही कहा है कि—“यदि पहाड़ मेरे पास नहीं आ सकता तो (उसे सिखाने के लिये) मैं उसके पास जाऊँगा।”
अतः शिक्षा को सभी व्यक्तियों की देहरी तक ले जाने के लिये हमें किसी दूसरी पद्धति की व्यवस्था करनी होगी और यह पद्धति है दूर शिक्षा । इस शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य देश के सुदूर भागों में रहने वाले सभी का व्यक्तियो के लिये शिक्षा संबंधी सुविधाओं की व्यवस्था करना ।
कुछ विद्वानों ने दूर शिक्षा को स्पष्ट शब्दों में परिभाषित करने का प्रयास किया-
1. पीटर्स (Peters)- “दूरस्थ शिक्षा एक ऐसी शिक्षा प्रणाली है जिसकी सहायता से व्यक्ति के ज्ञान, कौशल एवं व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है । इस शिक्षण प्रणाली में उच्च कोटि की शिक्षण सामग्री संचार साधनों द्वारा पहुँचायी जाती है।”
2. मूरे (Moore)– “दूरस्थ शिक्षा, शिक्षण विधियों का वह परिवार है जिसमें सीखने की कला के साथ-साथ शिक्षण कला को भी महत्त्व दिया जाता है। इसमें अध्यापक तथा छात्र के बीच विचारों का आदान-प्रदान पत्राचार, रेडियो, दूरसंचार तथा अन्य कई यंत्रों के माध्यम से किया जाता है।
सुदूर शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्त्व (Its Need and Importance)
आज की शिक्षा प्रणाली का विकास तब किया गया था जब शिक्षा प्राप्त करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम थी । इन थोड़े से व्यक्तियों के लिये मौखिक प्रणाली ही पर्याप्त समझी जाती थी। अब शैक्षिक तकनीकी के विकास के कारण अनेक लोगों की शिक्षा की व्यवस्था करना सरल हो गया है। इस प्रगति के कारण अब किसी भी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में व्यक्ति शिक्षा प्राप्त करने में विशेष कठिनाई अनुभव नहीं करेगा। किसी भी व्यवसाय में लगा व्यक्ति जिसने अपनी विगत विषम परिस्थितियों के कारण अपनी शिक्षा को बीच में ही छोड़ दिया है अथवा वह व्यक्ति जो जीवन पर्यन्त शिक्षा प्राप्त करने का आकांक्षी है, दूर शिक्षा प्रणाली के माध्यम से अपनी शिक्षा को आगे बढ़ा सकता है अथवा अपन अधूरी शिक्षा को पूरी कर सकता है। यदि व्यक्ति को इस प्रकार शिक्षा मिल जाती है तो इससे केवल उसी का लाभ न होगा वरन् पूरे राष्ट्र को लाभ मिलेगा। इसीलिये संसार के सभी विकसित एवं विकासशील देशों में दूर शिक्षा पद्धति को लागू किया जा रहा है। इस पद्धति ने सभी शिक्षा-मर्मज्ञ तथा प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। आज दूर शिक्षा की उपयोगिता इतनी बढ़ गई है कि लगभग साठ देशों ने मिलकर एक अन्तर्राष्ट्रीय दूर शिक्षा परिषद् की स्थापना की है। इससे स्पष्ट है कि दूर – शिक्षा प्रणाली की उपयोगिता को संसार के अनेक देश भली प्रकार समझने लगे हैं।
सुदूर शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of D.E.)
सुदूर शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
1. उन विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान करना जो सामाजिक एवं आर्थिक कारणों से उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके हैं।
2. लोगों को शिक्षा के समान अवसर प्रदान करना तथा शिक्षा संबंधी असमानताओं को दूर करना।
3. शिक्षा पद्धति के प्रत्येक क्षेत्र में लचीलापन लाना।
4. शिक्षा के स्तर में सुधार लाने के लिये प्रयास करना ।
5. शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से राष्ट्रीय एकता स्थापित करने के प्रयास करना ।
6. कार्यरत व्यक्तियों के लिये शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना ।
7. शिक्षा के विस्तार के लिये कार्य करना ।
8. शोध कार्य के लिये व्यापक अवसर प्रदान करना ।
सन् 1961 में केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार बोर्ड ने पत्राचार के माध्यम से शिक्षा देने का निर्णय किया और U.G.C. के अध्यक्ष डॉ० डी० एस० कोठारी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जिसने पत्राचार के माध्यम से शिक्षा देने का सुझाव दिया । तत्कालीन केन्द्रीय शिक्षा मंत्री डॉ० के० एल० श्रीमाली ने कार्यक्रम का उद्घाटन करते समय इस प्रकार की शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बताये-
1. भारत के विकास के लिये पत्राचार के माध्यम से उच्च स्तर पर अच्छी और कम खर्चीली शिक्षा व्यवस्था को आयोजित करना ।
2. उन सभी योग्य एवं इच्छुक विद्यार्थियों के लिये उच्च स्तर की शिक्षा की व्यवस्था करना जो निजी, आर्थिक अथवा अन्य किसी कारण से सामान्य महाविद्यालयों में प्रवेश नहीं ले सके।
3. सभी शिक्षित नागरिकों को उनके वर्तमान व्यवसाय में बिना किसी बाधा के शिक्षा की सुविधा प्रदान करना । U.G.C. ने भी पत्राचार शिक्षा को प्रोत्साहन दिया। उसके अनुसार पत्राचार शिक्षा निम्नलिखित प्रकार के विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को पूरी करेगी-
1. वे विद्यार्थी जिन्हें घरेलू हालात या अन्य किन्हीं कारणों से औपचारिक शिक्षा को बीच में ही छोड़ देना पड़ा हो।
2. वे विद्यार्थी जो देश के दूरस्थ स्थानों पर रहते हैं तथा जहाँ शिक्षा सुविधाएँ उपलब्ध नहीं हैं।
3. वे विद्यार्थी जिन्हें अपने यौवन काल में शिक्षा में रुचि नहीं थी लेकिन अब उनमें रुचि पैदा हो गई है।
4. वे विद्यार्थी जिन्हें किसी कारणवश महाविद्यालय या विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं मिल सका यद्यपि उनमें उच्च शिक्षा प्राप्त करने की क्षमता है।
5. वे विद्यार्थी जो शिक्षा को जीवन पर्यन्त प्रक्रिया मानते हैं और एक से अधिक विषय में शिक्षा प्राप्त करने के इच्छुक हैं ।
6. कार्यरत व्यक्तियों के लिये शिक्षा सुविधायें उपलब्ध कराना।
कोठारी आयोग (Kothari Commission, 64-66) ने पत्राचार शिक्षा की शक्ति को रखते हुए इस प्रकार की दूरगामी शिक्षा को सुदृढ़ बनाने का सुझाव दिया। उसके अनुसार पत्राचार शिक्षा को दूसरे देशों, जैसे- U.S.A., स्वीडन, रूस, जापान, आस्ट्रेलिया आदि में शिक्षा के साधन के रूप में अच्छा प्रयोग किया जा रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं कि पत्राचार शिक्षा सामान्य महाविद्यालयों में दी गई शिक्षा के बिल्कुल समान है। इस प्रकार की शिक्षा की सुविधायें व्यापक स्तर पर दी जानी चाहिये। इस सहयोग के सुझाव के अनुसार अनेक विश्वविद्यालयों में पत्राचार शिक्षा के विभाग स्थापित किये गये तथा सभी प्रकार की स्नातक एवं स्नातकोत्तर डिग्रियाँ प्राप्त करने के लिये शिक्षा की व्यवस्था की गई।
सुदूर शिक्षा की विशेषतायें (Characteristics of D.E.)
डेसमण्ड कीगन ने दूरस्थ शिक्षा की विभिन्न परिभाषाओं का विश्लेषण करके इसकी निम्नलिखित विशेषतायें बतायी हैं-
1. दूर शिक्षा में अध्यापक और विद्यार्थी एक-दूसरे से दूर रहते हैं। इस प्रकार यह परम्परागत शिक्षण प्रणाली से भिन्न है।
2. इस प्रकार की शिक्षा में अनेक शिक्षण साधनों, दृश्य-श्रव्य सामग्री जैसे रेडियो, टेलीविजन, प्रोजेक्टर, कम्प्यूटर आदि की सहायता से शिक्षक एवं विद्यार्थी में संपर्क स्थापित किया जाता है।
3. यह स्वयं शिक्षा व्यवस्था से भिन्न है, क्योंकि इसमें सीखने की व्यवस्था को पूरी योजना के साथ संगठित किया जाता है।
4. इसमें शिक्षण प्रक्रिया के बजाय शक्ति की शिक्षा को अधिक महत्त्व दिया जाता है और समय-समय पर अध्यापक एवं विद्यार्थी को संपर्क कार्यक्रम के माध्यम से विचार-विमर्श करने के अवसर प्रदान किये जाते हैं ताकि छात्र अपनी समस्याओं का समाधान कर सकें।
5. दूरस्थ शिक्षा में औद्योगिक संगठन की भाँति एक बड़े संगठनात्मक प्रयास की आवश्यकता होती है ताकि शिक्षक व विद्यार्थी में ठीक से तालमेल स्थापित किया जा सके। इस प्रकार, दूरस्थ शिक्षा दूरगामी अधिगम का ही प्रतिनिधित्व करती है।
सुदूर शिक्षा उपलब्ध कराने के साधन (Agencies Providing Distance. Education)
दूरस्थ शिक्षा में रेडियो, दूरदर्शन, वीडियो कैसेट, टेपरिकॉर्डर आदि का उपयोग छात्रों के लिये किया जाता है। इन सबके अतिरिक्त संपर्क कार्यक्रम के द्वारा अध्यापक एवं विद्यार्थियों को एक-दूसरे के संपर्क में लाने का प्रयास किया जाता है। समाचार प्रसारण, पुस्तकालय सुविधा, चलता-फिरता अध्यापन केन्द्र तथा दत्त-कार्य के मूल्यांकन के द्वारा इस शिक्षा को प्रभावी बनाने का प्रयास किया जाता है। दत्त कार्य के मूल्यांकन में देरी नहीं की जाती। उन पर अध्यापक की टिप्पणी छात्र के लिये विशेष लाभकारी सिद्ध होती है। इससे उन्हें आवश्यक प्रतिपुष्टि तथा पुनर्बलन मिलता है ।
उपरोक्त साधनों के अतिरिक्त दूर शिक्षा में पत्राचार कार्यक्रम तथा खुला विश्वविद्यालय की विशेष भूमिका रहती है। विश्व में खुले विश्वविद्यालयों की संख्या 30 है। ये विश्वविद्यालय अधिकतर चीन, जापान, इंग्लैण्ड, पश्चिमी जर्मनी, स्पेन, कनाडा, श्रीलंका, पाकिस्तान आदि देशों में हैं। भारत में भी चार खुले विश्वविद्यालय हैं जिनमें तीन राज्य स्तर पर हैं तथा एक राष्ट्रीय स्तर पर है। सर्वप्रथम 1982 में आन्ध्र प्रदेश में खुला विश्वविद्यालय स्थापित किया गया। बाद में, 1985 में दिल्ली में इन्दिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) (इग्नू) स्थापित हुआ ।
(2) खुला विश्वविद्यालय (Open University)
सुदूर शिक्षा के क्षेत्र में खुला विश्वविद्यालय नवीनतम प्रयोग है। इन्दिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU Sept., 1985) को यह दायित्व सौंपा गया है कि वह देश में सुदूर शिक्षण-अधिगम व्यवस्था -का संचालन करे तथा इसके मानक निर्धारित करे। सन् 1987 से विश्वविद्यालय विभिन्न प्रकार के डिप्लोमा कोर्सेज प्रदान कर रही है; जैसे—सुदूर शिक्षा, प्रबन्धन, ग्रामीण विकास, कम्प्यूटर साइंस आदि । 1988 में इस विश्वविद्यालय ने सृजनात्मक लेखन तथा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में भी डिप्लोमा सर्टिफिकेट देने प्रारम्भ किये हैं। वर्तमान में पूर्व – स्नातक स्तर के विभिन्न पाठ्यक्रमों को प्रारम्भ करने का विचार है, विशेषकर स्त्रियों के शिक्षक प्रशिक्षण क्षेत्र में ।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Historical Perspective)- सुदूर शिक्षा का विचार 19वीं शताब्दी में सबसे पहले पश्चिम के कुछ औद्योगिक क्षेत्र में अग्रणी देशों के मस्तिष्क में उभरा। लेकिन, उस समय इस प्रोग्राम का जो स्वरूप था वह व्यावसायिक अधिक था। यह – एक प्रकार का पत्राचार के माध्यम से व्यक्तिगत ट्यूशन का ही प्रयास था। ऐतिहासिक दृष्टि से जो प्रयास इस क्षेत्र में सर्वप्रथम हुए, वे इस प्रकार हैं-
1. जर्मनी में प्रयास (Attempt in Germany) — जर्मनी में इसका प्रारम्भ चार्ल्स टुसेंट एक फ़्रैंच द्वारा 1856 में पत्राचार द्वारा भाषा शिक्षण के एक स्कूल की स्थापना के साथ हुआ।
2. संयुक्त राज्य में प्रयास (Attempt in U.S.) USA में में सुदूर शिक्षा पत्राचार के माध्यम से 1890 में विसकोन्सिन विश्वविद्यालय तथा शिकागो विश्वविद्यालय में प्रारम्भ की गई।
3. ऑस्ट्रेलिया में प्रयास (Attempt in Australia)— ऑस्ट्रेलिया में इसका प्रारम्भ 1910 में ग्रंड़ी द्वारा पत्राचार द्वारा एक ग्रामीण स्वास्थ्य इन्स्पेक्टर को प्रशिक्षण देने से प्रारम्भ हुई ।
4. सोवियत संघ में प्रयास (Attempt in Soviet Union)— सोवियत संघ में इसका सूत्रपात अक्टूबर, 1947 की क्रान्ति के साथ हुआ तथा माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा पत्राचार के माध्यम से दी जाने लगी।
5. नीदरलैंड में प्रयास (Attempt in Netherland)- 1947 में बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए पत्राचार के माध्यम से दूरस्थ शिक्षा का शुभारम्भ किया गया।
6. ब्रिटेन में प्रयास (Attempt in Britain )—1969 में अधिक से अधिक लोगों को शैक्षिक अवसर प्रदान करने की दृष्टि से ब्रिटेन में पहला मुक्त विश्वविद्यालय खोला गया।
7. कुछ अन्य मुक्त विश्वविद्यालय (Some Other Open Universities) – विश्व के कुछ अन्य प्रसिद्ध मुक्त विश्वविद्यालय हैं—कोलम्बो का मुक्त विश्वविद्यालय, श्रीलंका का मुक्त विश्वविद्यालय, नीदरलैंड मुक्त विश्वविद्यालय, स्पेनिश मुक्त विश्वविद्यालय, पश्चिम जर्मनी का फर्न मुक्त विश्वविद्यालय, चीन का केन्द्रीय रेडियो एवं टेलीविजन विश्वविद्यालय ।
उपरोक्त के अतिरिक्त समय-समय पर खुले पत्राचार द्वारा शिक्षा प्रदान करने वाले। विश्वविद्यालयों का विवरण इस प्रकार है-
दिल्ली विश्वविद्यालय (1962); पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला (1967); मैसूर विश्वविद्यालय (1969); पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ (1971); शिमला विश्वविद्यालय, हिमाचल (1971); कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र (1976); जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू (1976); कश्मीर विश्वविद्यालय, श्रीनगर (1976); मेरठ विश्वविद्यालय, मेरठ; बम्बई विश्वविद्यालय, बम्बई; राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, मदुराई विश्वविद्यालय, मदुराई; केरल विश्वविद्यालय, केरल; भोपाल विश्वविद्यालय, भोपाल, अन्नामलाई विश्वविद्यालय, तमिलनाडु, उत्कल विश्वविद्यालय, उड़ीसा, उदयपुर विश्वविद्यालय, राजस्थान आदि ।
इसी क्रम में कुछ अन्य मुक्त विश्वविद्यालयों का विवरण इस प्रकार है—
आन्ध्र प्रदेश मुक्त विश्वविद्यालय (1982); ओपन स्कूल, दिल्ली (1983); इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, दिल्ली (1985); नालन्दा मुक्त विश्वविद्यालय, बिहार (1987); कोटा मुक्त विश्वविद्यालय, राजस्थान (1987) आदि ।
मुक्त विश्वविद्यालय की विशेषतायें (Features of Open University)
मुक्त विश्वविद्यालय की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. तनावरहित प्रवेश (Relaxed Entry)।
2. स्व-गति अधिगम (Self-pacing Learning) |
3. लचीलापन (Flexibility)।
4. गृह – आधारित (Home-based) ।
5. हस्तान्तरण सुविधा (Transfer Facilities) ।
6. सम्प्रेषण तकनीक (Communication Technology)।
7. शिक्षण की गुणवत्ता (Quality of Teaching) |
8. विविध कार्यक्रम (Diversified Programmes) ।
मुक्त विश्वविद्यालय के उद्देश्य (Objectives of Open University)
मुक्त विश्वविद्यालय के प्रमुख उद्देश्य इस प्रकार हैं-
1. उच्च शिक्षा हेतु प्रचुर मात्रा में अवसर उपलब्ध कराना ।
2. ऐसे लोगों को शैक्षिक अवसर प्रदान करना जो ऐसे अवसरों से किन्हीं कारणों से वंचित रह गये थे।
3. शिक्षा को एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया बनाना।
4. ऐसे लोगों की सहायता करना जो सेवाकाल में रहते हुए नये विषयों का अध्ययन करना चाहते हैं अथवा अपने ज्ञान को अपडेट करना चाहते हैं ।
5. ड्राप आउट्स को शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध कराना।
6. व्यावसायिक क्षेत्रों में कार्यरत् लोगों को उनके क्षेत्र विशेष में होने वाली नवीन जानकारियों से अवगत कराना।
7. सेवारत् व्यावसायिक लोगों को प्रशिक्षण प्रदान कराना ।
8. अधिगमकर्त्ताओं को नई शैक्षिक तकनीक की सहायता से शिक्षित करना ।
9. उच्च शिक्षा में प्रति व्यक्ति लागत को कम करना ।
मुक्त विश्वविद्यालय में शिक्षण विधि (Methods of Teaching)
मुक्त विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार की शिक्षण विधियों का प्रयोग छात्रों को शिक्षित करने में किया जाता है; जैसे- रेडियो व टेलीविजन प्रसारण, टेपरिकॉर्डिंग आदि। इस कार्य हेतु एक टीम गठित की जाती है जिसमें विषय विशेषज्ञ, टी० वी० निर्माता, स्टाफ ट्यूटर्स व शैक्षिक तकनीशियन आदि होते हैं। विभिन्न प्रकार के दत्त कार्य भी छात्रों से कराये जाते हैं। मुक्त विश्वविद्यालय में मुख्य रूप से शिक्षण के तीन स्रोत हैं ।
1. डाक प्रणाली (Mailed Parcels)- इन पार्सलों के माध्यम से छात्र को उसके दिये गये पते पर मुद्रित पठन सामग्री भेजी जाती है जिनमें नोट्स भी सम्मिलित होते हैं।
2. अंशकालीन टयूटर्स (Part time tutors) — छात्रों को उनके खाली समय में पढ़ाया जा सके, इसके लिये अंशकालीन ट्यूटर्स की भी व्यवस्था की जाती है।
3. अध्ययन केन्द्र (Study Centres) छात्रों की सुविधा हेतु विभिन्न स्थानों पर अध्ययन केन्द्र भी खोले जाते हैं जहाँ छात्र अपनी सुविधा से एकत्रित हो सकें।
मुक्त विश्वविद्यालय के लाभ (Benefits of Open University)
मुक्त विश्वविद्यालयों के प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-
1. शैक्षिक सुविधाओं के समान अवसर (Equality of Educational Opportunity)— इसके अन्तर्गत सभी को शिक्षा प्राप्ति के समान अवसर उपलब्ध कराये जाते हैं। जो छात्र किन्हीं कारणों से कॉलेज या विश्वविद्यालय में प्रवेश नहीं ले पाते हैं उनकी आकांक्षाओं को यहाँ पूरा करने का प्रयास किया जाता है। अनावश्यक रूप से किसी को प्रवेश से मना नहीं किया जाता ।
2. सर्व सुलभ (Easy Access)- मुक्त विश्वविद्यालय ऐसे लोगों को भी शिक्षा प्रदान करते हैं जो व्यक्तिगत सम्पर्क कार्यक्रमों में अनिवार्य उपस्थित होने के कारण अंशकालिक, सांध्य कॉलेज तथा पत्राचार पाठ्यक्रमों के माध्यम से भी शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं।
3. आवश्यकताओं की पूर्ति (Fulfilment of Needs)- मुक्त विश्वविद्यालयों को यह निर्देश दिये गये हैं कि वे उच्च आकांक्षा से प्रेरित वयस्कों को उनकी आवश्यकताओं के सन्दर्भ में शिक्षा प्रदान करें।
4. मानकों में सुधार (Improvement in Standards)- इन विश्वविद्यालयों में जो पाठ तैयार कराये जाते हैं वे उच्च श्रेणी के शिक्षकों द्वारा तैयार कराये जाते हैं जिससे निःसन्देह उच्च शिक्षा के मानकों में सुधार लाने में सहायता मिलती है।
5. नवीनतम जानकारी (Latest Developments)- इन विश्वविद्यालयों में अपने विशिष्ट क्षेत्रों में कार्य करने वाले लोगों को उनके विषय में होने वाली प्रगति, खोजों तथा नवीन तथ्यों की जानकारी से समयबद्ध तरीके से सम्पर्क में रखा जाता है ताकि उनमें व्यावसायिक कुशलता का विकास हो सके ।
6. सहज प्रवेश (Liberal Admission)— इन विश्वविद्यालयों में प्रवेश प्रक्रिया अत्यन्त सहज है। किसी प्रकार के बन्धन यहाँ नहीं होते। न तो उम्र सम्बन्धी, न योग्यता सम्बन्धी और न ही क्षेत्र सम्बन्धी । इन विश्वविद्यालयों के द्वार उन सभी के लिये हमेशा खुले रहते हैं जो आगे पढ़ना चाहते हैं तथा अपने सपनों को साकार करना चाहते हैं ।
7. मितव्ययी (Economical)- क्योंकि इन विश्वविद्यालयों में छात्र संख्या बहुत अधिक होती है, परिणामस्वरूप उच्च शिक्षा पर प्रति व्यक्ति लागत कम आती है जो देश की आर्थिक दृष्टि से बहुत उपयोगी है क्योंकि उच्च शिक्षा के विस्तार में आर्थिक कारण बाधक बन जाते हैं।
8. बोझ में कमी (Reduces Burden)- मुक्त विश्वविद्यालय परम्परागत विश्वविद्यालयों के बोझ को कम कर देते हैं क्योंकि मुक्त विश्वविद्यालय छात्रों की एक बड़ी संख्या को अपने यहाँ रोके रहती है जो बढ़ती हुई जनसंख्या के आलोक में अत्यन्त सार्थक एवं उपयोगी है। – पत्राचार शिक्षा अनौपचारिक शिक्षा का एक आधुनिक तरीका है। यह शिक्षा पत्राचार के माध्यम से, डाक द्वारा, व्यक्तिगत सम्पर्क कार्यक्रमों के द्वारा, श्रव्य दृश्य सामग्री के माध्यम से प्रदान की जाती है। पत्राचार शिक्षा व्यवस्था का केन्द्र-बिन्दु घर पर पढ़ने के लिए अध्ययन सामग्री जुटाना, व्यक्तिगत सम्पर्क कार्यक्रमों का आयोजन करना, छात्रों से प्रत्युत्तर प्राप्त करना, पुस्तकालय सुविधाएँ प्रदान करना, अध्ययन केन्द्र खोलना आदि बातों में निहित रहता है।
(3) पत्राचार शिक्षा (Correspondence Education)
पत्राचार शिक्षा अनौपचारिक शिक्षा का एक आधुनिक तरीका है। यह शिक्षा पत्राचार के माध्यम से, डाक द्वारा, व्यक्तिगत सम्पर्क कार्यक्रमों के द्वारा, श्रव्य दृश्य सामग्री के माध्यम से प्रदान की जाती है। पत्राचार शिक्षा व्यवस्था का केन्द्र-बिन्दु घर पर पढ़ने के लिए अध्ययन सामग्री जुटाना, व्यक्तिगत सम्पर्क कार्यक्रमों का आयोजन करना, छात्रों से प्रत्युत्तर प्राप्त करना, पुस्तकालय सुविधाएँ प्रदान करना, अध्ययन केन्द्र खोलना आदि बातों में निहित रहता है।
पत्राचार शिक्षा का दर्शन (Basic Philosophy of CE)—प्रोफेसर एस. एस. चिब लिखते हैं कि पत्राचार शिक्षा की मूल विचारधारा अत्यन्त सरल है। इसकी मान्यताएँ हैं कि-
1. शिक्षा एक जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है।
2. कोई भी न छोटा है, न बड़ा है, न इतना बूढ़ा है कि वह पढ़ न सके।
3. कोई भी व्यक्ति नये विचारों, नई विधियों तथा नये प्रत्ययों को समझने की क्षमता रखता है।
4. किसी स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय या अन्य किसी संस्था का नियमित छात्र न होना सीखने के लिए कोई बाधक तत्त्व नहीं है ।
5. एक वयस्क यह बात आसानी से समझता है कि न पढ़ने के क्या नुकसान हैं और अगर वह इस तथ्य को नहीं जानता तो उसे यह बात आसानी से समझाई जा सकती है।
6. निष्कर्ष रूप में, पत्राचार शिक्षा की यह मान्यता है कि हमें हर व्यक्ति का सम्मान करना चाहिये तथा उसे उसकी पहचान बनाने में व ऊँचा उठने में सहायता करनी चाहिये । साथ ही, ऐसा करने में हमें भौगोलिक, आर्थिक परिस्थिति, सामाजिक स्तर, आयु व लिंग आदि को कोई महत्त्व नहीं देना चाहिये ।
पत्राचार शिक्षा की विशेषताएँ (Characteristics of CE)
पत्राचार शिक्षा की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
1. अनौपचारिक शिक्षा (Non-Formal education) ।
2. अधिगमकर्त्ता केन्द्रित (Learner centred) ।
3. नमनीयता (Flexibility)।
4. अप्रत्यक्ष शिक्षा (Indirect education) |
5. जन शिक्षा (Mass education) |
6. जन साधन (Mass media ) ।
7. सर्व सुलभ (Easy Access) ।
8. डिग्री, डिप्लोमा की बाध्यता नहीं (Degree or Diploma not essential)।
9. मितव्ययी (Economical)।
पत्राचार शिक्षा के उद्देश्य (Objectives of CE)
पत्राचार शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1. स्कूल, कॉलिज तथा उपयोगी शिक्षा को विद्यार्थी के द्वार तक स्वयं पहुँचाना।
2. शिक्षा के क्षेत्र की अपार सम्भावनाओं को एक सटीक रास्ता प्रदान करना, विशेषकर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में।
3. शिक्षा का कम खर्चीला तथा प्रभावी तरीका उपलब्ध कराना।
4. उन लोगों को शैक्षिक सुविधाएँ प्रदान करना जो पढ़ने की तीव्र इच्छा रखते हैं, अपने ज्ञान में वृद्धि करना चाहते हैं तथा अपनी व्यावसायिक दक्षता में सुधार लाना चाहते हैं
5. उन सभी लोगों के लिये उच्च शिक्षा के द्वार खोलना जो किसी भी कारण से उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाये हैं, वे कारण चाहे व्यक्तिगत हों, आर्थिक हो, नियमित रूप से स्कूल-कॉलेज जाने में असमर्थ रहे हों अथवा इनमें प्रवेश न ले पाये हों ।
6. पढ़े-लिखे लोगों को अपने ज्ञान में वृद्धि के अवसर उपलब्ध कराना, बिना अपने वर्तमान व्यवसाय में किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न किये।
7. समाज के सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों की सहायता करना ताकि वे समाज के शिक्षित एवं उपयोगी नागरिक बन सकें ।
पत्राचार शिक्षा व्यवस्था के मुख्य तत्त्व (Essentials of Correspondence Scheme of Education)
पत्राचार शिक्षा व्यवस्था के मुख्य तत्त्व अधोलिखित हैं-
1. अध्ययन सामग्री (Study Material) – पत्राचार शिक्षा व्यवस्था का सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्व छात्रों को अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराना है जो मेनुअल, पम्फलेट, पुस्तक, मुद्रित अथवा साइक्लोस्टाइल, हस्तलिखित किसी भी रूप में हो सकती है। लेकिन यहाँ यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यह सामग्री विषय विशेषज्ञों के द्वारा तैयार की गई हो, पाठ्यक्रम पर आधारित हो तथा उचित प्रकार के उदाहरणों आदि से युक्त हो ताकि विषय को समझने में कोई कठिनाई ना हो।
2. उत्तर प्रपत्र (Response Sheets)— छात्रों को गृह कार्य के लिये जो उत्तर प्रपत्र दिये जायें वे सुव्यवस्थित एवं संरचित हों क्योंकि इनके प्रयोग से प्रत्येक पाठ या इकाई से सम्बन्धित दत्त कार्य के उत्तर देने में करेंगे। छात्रों को चाहिये कि वे इन गृह कार्यों को नियमित रूप से जमा करें। साथ ही, सम्बन्धित शिक्षक गण से भी यह आशा की जाती है। कि वे इन प्रपत्रों का मूल्यांकन, टिप्पणी, ग्रेड, सुझाव देते हुए समय से छात्रों को लौटायें ताकि उन्हें अपनी त्रुटियों का पता लग सके और वे उनमें सुधार कर सकें ।
3. व्यक्तिगत सम्पर्क कार्यक्रम (Personal Contact Programme—PCP)— PCP पत्राचार शिक्षा की आत्मा होते हैं। PCP छात्रों में रुचि उत्पन्न करने, व्यक्तिगत अहसास कराने तथा शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को जीवंत बनाने के लिये अति आवश्यक हैं। इनके माध्यम से छात्रों को समय-समय पर आवश्यक निर्देशन एवं ट्यूटोरियल सहायता भी प्रदान की जा सकती है। इस कार्यक्रम के तहत निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना आवश्यक है-
(i) PCP योजना (Plan for holding PCP’s )—PCP कार्यक्रम ऐसे स्थानों पर आयोजित किये जाने चाहिये जो नजदीक हों तथा जहाँ अधिक-से-अधिक छात्र आ सकें।
(ii) PCP समयावधि (Duration of PCP)- PCP के समय 2 दिन से लेकर 20 दिन तक चल सकता है। PCP समयावधि बहुत लम्बी नहीं होनी चाहिए क्योंकि बहुत-से छात्र इसमें अधिक समय नहीं दे सकते।
(iii) PCP समय (Time for holding PCP)- पहला PCP तब लगाया जाना चाहिये जब पाठ्यक्रम का कुछ भाग दिया गया हो तथा छात्र PCP आयोजित किये जाने की आवश्यकता महसूस कर रहे हों।
(iv) PCP संख्या (Number of PCP)—PCP’s की संख्या अर्थात् कितने PCP’s आयोजित किये जायें, यह शिक्षकों की संख्या तथा छात्रों की सुविधा पर निर्भर करती है ।
(v) अध्ययन केन्द्र (Study Centres )—इन अध्ययन केन्द्रों पर आस-पास के क्षेत्रों से स्थानीय छात्र, जिस कोर्स का वे अध्ययन कर रहे हैं उससे सम्बन्धित समस्याओं का निराकरण एवं दिशा-निर्देश प्राप्त करने के लिए आसानी से आ सकती हैं। साथ ही, इन केन्द्रों पर पुस्तकालयों तथा प्रयोगशालाओं की भी अच्छी व्यवस्था होनी चाहिये ताकि छात्रों को व्यावसायिक एवं तकनीकी विषयों का प्रयोगात्मक प्रशिक्षण ठीक से प्राप्त हो सके। ये केन्द्र सांध्यकाल, सप्ताहंत, तथा अन्य अवकाश के दिनों में खुले रहने चाहिए तथा छात्रों की सहायता के लिये अध्यापक भी उपलब्ध रहने चाहिए ।
PCP के लाभ (Advantages of PCP’s ) — PCP’s के मुख्य लाभ इस प्रकार हैं-
1. सक्रिय सहयोग की भावना (Sense of Active Participation)— छात्रों में इनके माध्यम से अधिगम प्रक्रिया में सक्रिय सहयोग की भावना उत्पन्न होती है ।
2. विचार-विमर्श के अवसर (Opportunity for Discussion ) — इस PCP’s में छात्रों को अपने साथियों से तथा अपने अध्यापकों से अपनी विभिन्न प्रकार की समस्याओं पर विचार-विमर्श करने के अवसर प्राप्त होते हैं ।
3. अभिप्रेरणा (Motivation)— इन केन्द्रों पर छात्रों को अध्ययन हेतु सुयोग्य अध्यापकों तथा सहपाठियों से अभिप्रेरणा प्राप्त होती है जो किसी भी कार्य में सफलता प्राप्त करने में महत्वपूर्ण योगदान रखती है।
4. मित्र-मंडली (Friend-Circle) — इन केन्द्रों पर छात्रों के अपने आस-पास एवं दूर-दराज से आये संगी-सार्थियों से गहन मित्रता करने के अवसर प्राप्त होते हैं जिनका जीवन में अपना ही महत्त्व होता है।
5. सुधार (Improvement)- इन केन्द्रों पर छात्र एवं शिक्षक एक साथ कार्य करते हुए एक-दूसरे को पर्याप्त रूप से समझ लेते हैं। परिणामस्वरूप शिक्षक वर्ग छात्रों की उन प्रतिक्रियाओं से अवगत हो जाते हैं जो वे अपने पाठ्यक्रम तथा संस्थान के प्रति रखते हैं । इस प्रकार बहुत-सी ऐसी बातें संज्ञान में आती हैं जिन पर अमल कर इन केन्द्रों को प्रभावी एवं सार्थक बनाने में महत्त्वपूर्ण मदद मिल जाती है।