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विस्मृति कम करने के उपाय | Ways of Minimising Forgetting in Hindi

विस्मृति कम करने के उपाय
विस्मृति कम करने के उपाय

विस्मृति कम करने के उपाय (Ways of Minimising Forgetting)

हम सबकी यह प्रबल इच्छा रहती है कि छात्र जो पढते हैं अथवा सीखते हैं, उसे अधिक से अधिक मात्रा तथा गुण में याद रखें यहाँ पर संक्षेप में उन विधियों पर प्रकाश डाला गया है जो धारणा को प्रबल बनाने में सहायक होती हैं।

1. बाल केन्द्रित अधिनियम शिक्षण- अधिगम की समस्त प्रक्रिया बालकों की आवश्यकताओं रूचियों तथा अभिरुचियों पर आधारित होनी चाहिए।

2. छात्रों की भागीदारी पर आधारित शिक्षण अधिगम- जहाँ तक सम्भव हो. शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में छात्रों की भागीदारी अधिक से अधिक होनी चाहिए। कक्षा में वे सदा सक्रिय रहें। उनके प्रश्न करने, उत्तर देने आदि के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।

3. पाठ की विषयवस्तु- कोलेसनिक का मत है- -पाठ की विषयवस्तु, अर्थपूर्ण और क्रमबद्ध बालक की मानसिक योग्यता के अनुसार होनी चाहिए, क्योंकि इस प्रकार की विषयवस्तु की विस्मृति की गति और मात्रा बहुत कम होती है। इसके अतिरिक्त, पाठ में आवश्यकता से अधिक तथ्य, तिथियां और विस्तृत सूचनाएँ नहीं होनी चाहिए।

4. बालक का स्मरण करने में ध्यान-पाठ को स्मरण करते समय बालक को अपना पूर्ण ध्यान उस पर केन्द्रित रखना चाहिए। वुडवर्थ के शब्दों में इसका कारण यह है-” पाठ स्मरण हो जाने के बाद जितना अधिक स्मरण किया जाता है, उतना ही अधिक वह स्मृति में धारण रहता है।”

5. पूरे पाठ का अर्थपूर्ण और क्रमबद्ध स्मरण- बालक को पूरा पाठ सोच-समझकर याद करना चाहिए। जब तक उसे पूरा पाठ याद न हो जाए, तब तक उसे स्मरण करने का कार्य स्थगित नहीं करना चाहिए। साथ ही, उसे पाठ को आंशिक रूप से स्मरण नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पाठ का भूल जाना स्वाभाविक है ।

6. पाठ का अधिक स्मरण- पाठ स्मरण हो जाने के बाद भी बालक को उसे कुछ समय तक और स्मरण करना चाहिए। इसका कारण बताते हुए नन ने लिखा है- “पाठ स्मरण हो जाने के बाद जितना अधिक स्मरण किया जाता है, उतना ही अधिक वह स्मृति में धारण रहता है।”

7. अधिक समय तक स्मरण रखने का विचार – बालक को पाठ यह विचार करके। स्मरण करना चाहिए कि उसे उसको बहुत समय के लिए याद रखना है। तभी वह उसे शीघ्र भूलने की सम्भावना को कम कर सकता है। बोरिंग, लैंगफील्ड एवं वील्ड ने लिखा है- “अधिक समय तक स्मरण रखने के विचार से याद किया हुआ पाठ अधिक समय तक स्मरण रहता है।”

8. विचार – साहचर्य के नियमों का पालन- पाठ स्मरण करते समय बालक को भी विचार- साहचर्य के नियमों का पालन करना चाहिए। उसे नवीन तथ्यों और घटनाओं का उन तथ्यों और घटनाओं से सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए, जिनको वह जानता है, ऐसा करने से यह सम्भवतः पाठ का विस्तरण नहीं करेगा।

9. पूर्ण व अन्तरयुक्त विधियों का प्रयोग-बालक को पाठ याद करने के लिए पूर्ण और अन्तरयुक्त विधियों का प्रयोग करना चाहिए।

10. सस्वर वाचन- बालक को पाठ बोल-बोलकर स्मरण करना चाहिए। वुडवर्थ के शब्दों में इसका कारण है” सक्रिय सस्वर वाचन के पश्चात् विस्मरण की गति धीमी होती है।”

11. स्मरण के बाद विश्राम- बालक को पाठ स्मरण करने के उपरान्त कुछ समय तक विश्राम अवश्य करना चाहिए, ताकि पाठ के स्मृति-चिन्ह उसके मस्तिष्क में स्पष्ट रूप से अंकित हो जाऐ वुडवर्थ के शब्दों में ” सीखने के बाद कुछ समय तक विश्राम का महत्त्व अनेक परीक्षणों द्वारा सिद्ध किया गया है।”

12. पाठ की पुरावृत्ति – पाठ को स्मरण करने के बाद बालक को उसे थोड़े-थोड़े समय के उपरान्त दोहराते रहना चाहिए। पाठ की जितनी अधिक पुनरावृत्ति हो जाती है, उतनी ही अधिक देर में वह भूलता है। वुडवर्थ ने लिखा है- “पुनः अधिगम स्मृति-चिन्हों को सजीव बनाता है और विस्मरण को कम करता है ।”

13. समय सारिणी जहाँ तक सम्भव हो दो समान विषयों के घण्टे एक दूसरे के बाद नहीं आने चाहिए।

14. समझ का स्मरण करना- समझ कर विषय सामग्री को याद करना चाहिए।

15. स्पष्ट लक्ष्य – छात्र के मन में यह स्पष्ट होना चाहिए कि उसे क्या सीखना है और किस बिन्दु पर विशेष ध्यान देना है।

निष्कर्ष – अध्यापक को विद्यालय के वातावरण और बालकों के शारीरिक, मानसिक और संवेगात्मक पहलुओं में इतने विवेक और कुशलता से सामंजस्य स्थापित करना चाहिए कि वे थकान का अनुभव न करें। पर इससे अधिक आवश्यक है बालकों में यह विश्वास उत्पन्न करना कि उनको अपने शिक्षा-सम्बन्धी कार्य में असफलता का सामना नहीं करना पड़ेगा। इसकी पुष्टि में सिम्पसन के अग्रांकित शब्द बहुत महत्त्वपूर्ण हैं- “अनावश्यक थकान उत्पन्न न होने देने के लिए शिक्षकों द्वारा सामंजस्य स्थापित किए जाने वाले अनेक कार्यों में सर्वश्रेष्ठ यह है कि वे बालक में आत्म-विश्वास और सुरक्षा की भावना का विकास करें। “

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shubham yadav

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