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भाषा विकास में चौमस्की का विचार ( View of Chomsky in Language Development)
भाषा विकास में चौमस्की का विचार निम्न प्रकार हैं-
1. चौमस्की का व्याकरण सम्बन्धी विचार (Grammar Related Views of Chaumsky)– चौमस्की का मानना है कि एक भाषा वैज्ञानिक विद्वान जो व्याकरण सम्बन्धी विचार प्रस्तुत कर रहा है, वह कोई नियम या व्यवस्था से सम्बन्धित नियम या तथ्यों को प्रस्तुत नहीं कर रहा है, बल्कि वह तो अपने मस्तिष्क में उपस्थित व्याकरण सम्बन्धी व्यवस्था है या भाषा सम्बन्धी व्यवस्था है, उसको व्यक्त कर रहा है। दूसरे शब्दों में, एक भाषा वैज्ञानिक जो कि भाषा के व्याकरण की रचना कर रहा है, जो वास्तविक रूप में वह स्वज्ञान की एक झलक को प्रस्तुत कर रहा है। चौमस्की का मानना है कि व्यक्ति जिन तथ्यों और कारकों को उचित मानकर आत्मसात् कर चुका है, उन्हीं तथ्यों एवं कारणों को व्याकरण के स्वरूप में प्रस्तुत करता है।
2. ज्ञान के प्रकार (Types of Knowlede)- भाषा विकास के सन्दर्भ में चौमस्की स्वीकार करते हैं कि ज्ञान के दो प्रकार होते हैं। प्रथम ज्ञान के अन्तर्गत आन्तरिक ज्ञान एवं द्वितीय ज्ञान के अन्तर्गत मौन ज्ञान को शामिल किया जाता है। इस ज्ञान की प्राप्ति सामान्य रूप से किसी भी भाषा बोलने वाले से पूछने पर नहीं की जा सकती। मौन एवं आन्तरिक ज्ञान का विकास एक अस्पष्ट विचार है, क्योंकि किसी भी व्यक्ति के मौन ज्ञान एवं आन्तरिक ज्ञान का मूल्यांकन तब तक नहीं किया जा सकता जब तक इसके लिए कोई मूल्यांकन प्रणाली न बनायी जाये।
चौमस्की के ज्ञान सम्बन्धी विचारों को निम्न रूप से विश्लेषण किया जा सकता है-
(i) भाषा प्रयोग करने वाले व्यक्ति में अपनी भाषा का संरचना सम्बन्धी व्याकरण ज्ञान होता है तथा वह जिन शब्दों को, वाक्यों को प्रयोग में लाता है, उसकी समझ भी उसके अन्दर व्याप्त होती है।
(ii) भाषायी ज्ञान से पूर्व व्यक्ति बोलने वाले वाक्यों तथा भिन्न अर्थ रखने वाले वाक्यों के अर्थ को स्पष्ट रूप से समझा सकता है।
(iii) भाषायी ज्ञान से परिपक्व व्यक्ति वाले वाक्यों के मध्य सम्बन्धों की पहचान कर लेते हैं।
(iv) अनेक अवसरों पर भाषा प्रयोग करने वाले व्यक्ति को भाषायी नियमों का ज्ञान नहीं होता है, परन्तु भाषा के विषय में अनेक तथ्यों का ज्ञान होता है। भाषा बोलने वाला व्याकरण की दृष्टि से सही एवं गलत वाक्यों के अन्तर को पहचान लेता है।
(v) चौमस्की ने जिस ज्ञान के बारे में अपने विचार व्यक्त किये हैं उसमें हमारी बोलने और समझने की प्रक्रिया शामिल होती है अर्थात् हम किस वाक्य को किस प्रकार बोलते हैं एवं समझते हैं। इस कार्य के अन्तर्गत एक नियम की व्यवस्था का अनुकरण करते हुए हम बोलते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं होता है कि हम उस सम्पूर्ण व्यवस्था के बारे में जानते हैं।
3. भाषा का प्रयोग (Use of Lanuguage) – प्रतिदिन के कार्य-व्यापार को सुचारु रूप चलाने के लिए व्यक्ति भाषायी व्यवहार करता है। भाषा प्रयोग करने वाले की प्रमुख आवश्यकता यह है कि वह भाषा प्रयोग को भिन्न स्थितियों के अनुरूप परिवर्तित कर सके अर्थात् भाषा प्रयोग के माध्यम से वास्तविक स्थिति का प्रभावशाली वर्णन कर सके। परिस्थितिजन्य आरोह-अवरोह से पूर्ण भाषा को चौमस्की उपयुक्त मानते हैं। संवेदनशील परिस्थितियों में भाषा प्रयोग का अलग प्रकार एवं सुखद परिस्थिति के लिए वाक्य बोलने का प्रकार भिन्न होता है। इस प्रकार भाषा प्रयोग की योग्यता भी भाषा बोलने वाले में होनी चाहिए।
चौमस्की के भाषा विकास सम्बन्धी विचार पूर्णतः स्पष्ट नहीं हो पाते हैं। उसक सम्पूर्ण भाषायी विकास सम्बन्धी विचार व्याकरण पर आधारित है। चौमस्की ने अपने विचारों में भाषायी विकास का प्रमुख आधार व्याकरण को बनाया है। जो व्यक्ति व्याकरण के सम्बन्ध में विकसित एवं सकारात्मक दृष्टिकोण रखता है उसका भाषायी विकास तीव्र गति से होता है तथा जो व्यक्ति व्याकरण को भाषायी विकास के लिए आवश्यक नहीं मानते हैं उसका भाषायी विकास मन्द गति से होता है, क्योंकि इस प्रकार के व्यक्ति भाषा विकास के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखते हैं।