अनुक्रम (Contents)
मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा (Education of Mentally Retarted Children)
मंद बुद्धि बालकों की शिक्षा- हालांकि मंदबुद्धि बालकों शिक्षा की दिशा में वर्षों से प्रयास चल रहा था लेकिन इसे पहली बार राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में शामिल कर इस दिशा में एक ठोस पहल किया गया। तत्पश्चात् पाइड नामक योजना की शुरूआत की गई। तत्पश्चात् आवासीय कार्यक्रम शुरू किया गया लेकिन मानसिक मंद बच्चों की शिक्षा के लिए सरकारी स्तर पर एक भी विशिष्ट विद्यालय नहीं खोले गए।
1. विशिष्ट शिक्षा (Special Education Program)- विशिष्ट शिक्षण पद्धति के अंतर्गत मानसिक मंदताग्रस्त बालकों को विशिष्ट विद्यालयों के माध्यम से विशिष्ट प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों के जरिए शिक्षा दी जाती है। लेकिन मंद बुद्धि बच्चों को सामाजिक अंतरंगता स्थापित करने का मौका नहीं मिलता है। साथ ही गैर-विकलांग बालकों से विलगाव बना रहता है।
2. नियमित विद्यालय में विशिष्ट कक्षा (Special Class in Regular School)- नियमित विद्यालय में विशिष्ट कक्षा व्यवस्था के जरिए भी मानसिक मंद बालकों को शिक्षण-अधिगम की सुविधा मुहैया किया जा सकता है। इसके अंतर्गत मुख्यधारा के विद्यालयों में संसाधन कक्ष स्थापित किया जाता है। स्कूल अवधि में शिक्षक मंदबुद्धि बालकों को संसाधन कक्ष में शिक्षण-अधिगम कार्य करवाते हैं। अमूमन नियमित शिक्षा के माध्यम से प्राथमिक स्तर की शिक्षा ही हासिल कर पाते हैं। चूँकि मंदबुद्धि बच्चे मानसिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ नहीं किए जा सकते इसलिए ऐसे बच्चों में प्राथमिक अथवा उच्च प्राथमिक से आगे की शिक्षा हासिल करने का सामर्थ्य ही नहीं होता है।
3. समाकलित शिक्षा (Integrated Education)- समाकलित शिक्षा विकलांग व्यक्तियों के प्रसामान्यीकरण कार्यकलाप में अपेक्षाकृत एक नई प्रवृत्ति है। इससे, विकलांग . बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ यथासंभव शिक्षित किया जाता है। समाकलित शिक्षा 1974 से पूरे देश में लागू है। केन्द्र प्रयोजित इस योजना के तहत विकलांग बच्चों को पढ़ाने के लिए सामान्य स्कूलों को सरकार द्वारा निधि दी जाती है।
समाकलन प्रक्रिया में कई चिकित्सा सूचक लक्षण दिखाई देते हैं। पहला चिकित्सकीय लक्षण है मानसिक मंद व्यक्तियों और समुदाय के शेष सदस्यों से भौतिक दूरी कम करना और सामाजिक अंतर को कम किया जाना। का तात्पर्य मानसिक मंद व्यक्तियों और शेष व्यक्तियों में सामाजिक अन्योन्य संबंध स्थापित करना है तथा पारिवेशिक सुविधाओं में हिस्सेदार बनाना है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 में अनुबंधित है कि अल्प मानसिक मंद बच्चे यथा संभव अन्य बच्चों के साथ अपनी शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। क्रियात्मक कार्यक्रम (1992) में विचार किया गया है कि केवल उन्हीं विकलांग बच्चों जिनकी आवश्यकताएँ सामान्य स्कूलों में पूरी नहीं की जा सकती है उनके लिए विशेष स्कूल होने चाहिए। जिन बच्चों को विशेष स्कूलों में प्रवेश दिलाया जाता है उन्हें वे संप्रेषण कौशल, रोजमर्रा के कौशल और आधारभूत शैक्षणिक कौशल प्राप्त करके सामान्य स्कूलों में भेज दिया जाता है।
भारत सरकार ने विकलांग बच्चों के लिए समाकलित शिक्षा योजना प्रारंभ की है। सामान्य स्कूलों में विकलांग बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा के संवर्धन के लिए सौ प्रतिशत केन्द्रीय निधि मुहैया कराई गई है। मानसिक मंद बच्चों के संदर्भ में अल्प रूप से मानसिक मंद बच्चे और यहाँ तक कि बच्चों का शिक्षणीय ग्रुप सामान्य स्कूलों में प्रवेश पाते हैं और अध्यापकों की सुग्राहिता और विशेष सेवाओं के अभाव के कारण उन्हें स्कूल से निकाल दिए जाने की संभावना होती है। इन बच्चों को सेवाओं और शिक्षणीय ग्रुप के लिए विशेष कार्यक्रम की आवश्यकता होती है। कई वर्षों बाद, प्राथमिक विद्यालय में, बच्चों के शिक्षणीय ग्रुप को प्राग्व्यवसाय कौशल सहित विशेष शैक्षिक कार्यक्रम का प्रावधान किया गया है और ये अन्य बच्चों के साथ जितना संभव हो, उतने सह-पाठ्यक्रमिक और सह-पाठ्यचारी क्रियाकलापों में भाग लेते देते रहेंगे। यदि सामान्य स्कूलों में विशेष कक्षाएँ आयोजित की जाती हैं तो प्रशिक्षणीय बच्चे सह-पाठ्यचारी क्रियाकलापों में भी भाग ले सकते हैं। विशेष स्कूलों में अध्ययनरत बच्चों को सामान्य स्कूलों के अन्य बच्चों, जहाँ कहीं सभव हो, और विशेष कैम्पों में जिनमें बच्चों के दोनों ग्रुप भाग लेते हैं, के साथ शैक्षिक क्रियाकलापों से इतर क्रियाकलापों में भाग लेने देने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। स्कीम में शिक्षा के क्षेत्र में विकलांग बच्चों के सामान्यीकरण और समाकलन को प्रोत्साहित किया है।
वर्ग-कक्ष प्रबंधन तकनीक (Class-room Management Technique)
पुनर्बलन (Reinforcement) – यह प्रोत्साहन देने की तकनीक है। मानसिक मंद बालकों को भी वर्ग कक्ष में पुनर्बलन की आवश्यकता पड़ती है ताकि वे छोटे-मोटे कार्यों को आसानी से कर सकें। मानसिक मंदता वाले बच्चों को सिखाने के लिए निम्नलिखित पुनर्बलकों का प्रयोग किया जा सकता है :
1. प्राथमिक पुनर्बलक (Primary Reinforcers)- इस पुनर्बलक में प्रेरक मूल्य अधिक होते हैं इसलिए इनका प्रयोग छोटे बच्चों तथा नये कौशलों को सिखाने के लिए किया जाता है जैसे—केला, चॉकलेट, स्नैक्स आदि बच्चों के पसंद के खाद्य एवं पेय पदार्थ (कॉफी, दूध, सॉफ्ट ड्रिंक्स) प्राथमिक पुनर्बलक हैं।
2. द्वितीयक पुनर्बलक (Secondary Reinforcers)– ये मध्यस्थ पुनर्बलक हैं। शुरू में इसका कोई प्रेरक मूल्य नहीं होता है लेकिन पुनर्बलक के साथ संयोजन पुरस्कार के रूप में बदला जाता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं:
(i) वस्तु-संबंधी पुनर्बलक (Material Reward) – ये पुनर्बलक बच्चे के लिए तुरंत सहायक होते हैं, जैसे-पेंसिल, पेन, रबर, खिलौने, कलर, गेम्स आदि।
(ii) सामाजिक पुनर्बलक (Social Reward) – ये वे प्राकृतिक प्रकार हैं जो हमेशा उपलब्ध रहते हैं, जैसे- प्रशंसा करना, मुस्कुराना, सिर हिलाना, पीठ थपथपाना, ताली बजाना, गोद लेना, प्यार से चूमना, अच्छा, बहुत अच्छा, शाबाश बोलना, गले लगाना आदि।
(iii) क्रिया पुनर्बलक (Activity Reward)- इसमें ऐसे पुनर्बलक आते हैं जो क्रियान्वित किए जा सकें, जिनमें उस बच्चे की रुचि हो, जैसे-ड्राइंग, पेंटिंग, विशेष खेल करना, रंग भरना, गाना सुनना, साइकिल चलाना, तस्वीर की किताबें दिखाना, खिलौने से खेलना, घुमाने ले जाना आदि।
(iv) अवसर पुलर्बलक (Privilege Reinforcers)- बच्चे को वर्ग-मंत्री (मॉनीटर) बनाना, स्कूल का कप्तान बनाना, बच्चों के समूह का नेता बनाना आदि ।
(v) प्रतीक पुनर्बलक (Token Reward)- ये वे पुलर्बलक हैं, जिन्हें बाद में अधिक मूल्य के पुलर्बलकों से बदला जा सकता है, जैसे-स्टार या चेक मार्क्स, टोकन्स आदि जो बाद में दूसरी वस्तुओं से बदले जा सकते हैं।
वैयक्तिक शिक्षण रणनीतियाँ (Strategies for Individual Teachings)
1. इशारा करना (Prompting) – यह मंदबुद्धि बालकों को वैयक्तिक शिक्षण देने की एक प्रक्रिया है जो बच्चों को विशिष्ट व्यवहार सीखने में मदद करता है । यह तीन प्रकार के होते हैं :
(क) शारीरिक इशारा (Physical Prompting) – समाज में कुछ ऐसे बालक होते हैं जिन्हें कोई कार्य करने के लिए शारीरिक इशारे की आवश्यकता पड़ती है। वगैर इशारा पाए वे अपना दैनिक कार्याकलाप करने में भी असमर्थ होते हैं।
(ख) शाब्दिक इशारा (Verbal Prompting) – यह मंदबुद्धि बच्चों को किसी काम को करने के लिए दिए जाने वाला शाब्दिक अनुदेश है। इसके तहत पीड़ित बच्चे क्रमबद्ध रूप से अपने शिक्षक से मिले शाब्दिक अनुदेश का पालन करते हुए पूछे गए सवालों का जवाब देता है। उदाहरणार्थ-किताब उठाओ, कलम से लिखो आदि निर्देश देना।
(ग) मॉडलिंग (Modelling) – मॉडलिंग प्रक्रिया के अंतर्गत दिए जाने वाले अनुदेश को मंदबुद्धि बालकों के समक्ष प्रदर्शित किया जाता है और उन्हें उसकी पुनरावृत्ति करने को कहा जाता है।
(घ) मौखिक संकेत (Cueing) – शिक्षक के आंशिक इशारे से बच्चा यदि सही जवाब देता है उसे मौखिक संकेत कहते हैं। उदाहरणार्थ, मौखिक संकेत के जरिए मंदबुद्धि बालकों को बोलने और अभिनय करने के लिए संकेत देना ।
2. फेडिंग (Fading)– इशारों के त्वरित तरीके से हटा लेने के बाद वांछित व्यवहार स्वयं विलीन हो जाती है इशारों के क्रमबद्ध हटाव की प्रक्रिया ‘फेडिंग’ कहलाता है।
3. रूप या आकार देना (Shaping) – चूँकि वांछित लक्ष्य हासिल करने के लिए। मंदबुद्धि बालकों के व्यवहार को धीरे-धीरे उचित शक्ल या आकार देना जरूरी होता है। इसलिए वैयक्तिक शिक्षण के तहत बालकों के व्यवहार को एक कंक्रीट रूप दिया जाता है। इसी क्रम में एक शिक्षक बच्चों के वर्तमान व्यवहार को पुनर्बलन देता है।
4. श्रृंखलाबद्धता (Chaining)- जब एक बालक किसी जटिल कार्य को करने में असफल होता चला जाता है ऐसी परिस्थिति में पूरे कार्य को छोटे-छोटे कई आसान चरणों में बाँट दिया जाता है और बालक को श्रृंखलाबद्ध व्यवहारों को करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। पूरी प्रक्रिया को श्रृंखलाबद्ध कहा जाता है। यह दो प्रकार का होता है।
(क) अग्र श्रृंखलाबद्धता (Forward Chaining)- शिक्षण के दौरान प्रथम चरण, द्वितीय चरण से अंतिम चरण की ओर अग्रसर होने की प्रक्रिया को अग्र श्रृंखलाबद्धता कहा जाता है। जैसे- 1, 2, 3, 4, 10 आदि।
(ख) पश्च श्रृंखलाबद्धता (Backward Chaining)- शिक्षण के क्रम में अंतिम चरण से प्रथम चरण की ओर अग्रसर होने की प्रक्रिया को पश्च श्रृंखलाबद्धता कहा जाता है। उदाहरण-10, 9, 8, 2, 1 आदि।
5. कौशल एवं प्रशिक्षण (Skill Aquisition and Training)- बच्चे के किसी खास कौशल प्रदर्शन क्षमता को एक्वीजिशन कहा जाता है। इस स्टेज में किसी कार्य को करने के लिए किसी न किसी पुनर्बलक की आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ, जब-जब शिक्षक अच्छे कार्य के लिए छात्रों को प्रोत्साहित करते हैं तो बच्चे की अधिगम क्षमता बढ़ती है । लेकिन अधिगम को मेन्टेन करना जरूरी होता है। तत्पश्चात् उसका सामान्यीकरण भी जरूरी होता है।
शिक्षण के सिद्धांत (Principles of Teaching) :
(क) सरल से जटिल (Simple to Complex) – किसी भी कठिन कार्य को पूरा करने के लिए बच्चे को सरल निर्देश दिए जाएँ, तब धीरे-धीरे कठिन कार्य पूरा करने को कहा जाए, जैसे-लिखने के क्रम में सबसे पहले कलम पकड़ना सिखलाना।
(ख) ज्ञात से अज्ञात की ओर ( Known to Unknown)- जैसे – 1 – एक परिचित पौधे को दिखाकर पौधों के भागों में की जानकारी देना।
(ग) मूर्त से अमूर्त की ओर (Concrete to Abstract)- ठीक उसी प्रकार जैसे कि चित्र या वस्तु को बच्चा पहचानता है लेकिन शब्द नहीं जानता है। शब्द को सिखाने। के लिए चित्र या वस्तु की सहायता से उसे शब्द का ज्ञान कराना, जैसे-कमल फूल के चित्र को दिखाकर पूछते हैं, बच्चों यह क्या है ? तो बच्चा कहता है कि यह कमल फूल है, तब क + म + ल = कमल बनाते हैं फिर चिड़िया का चित्र दिखाकर मिट्टी के लौंध से चिड़िया बनाना सिखाते हैं।
(घ) पूर्ण से अंश की ओर (Whole to Part) – मानव चित्र को दिखाकर, जिसे । वह पूर्व से जानता है, और पूछने पर आदमी कहता है, सिर, कान, आँख, पेट, पीठ, हाथ, पैर, बाल, नाम, आदि शरीर के विभिन्न अंगों का ज्ञान कराते हैं और तब वह जानता है कि इन अंगों के मिलने से मानव शरीर की रचना होती है।
(ङ) बहु-तरीकों से सिखाना (Multi- Sensory Approach) – चित्र सामने रखकर उनके नाम का पहला अक्षर बड़े-बड़े साफ अक्षरों में लिखकर उसके नाम को पूरा करने को कहा जाता । इसके अंतर्गत बच्चा सुनकर, देखकर, स्पर्श कर, बोलकर उसकी पूर्ण जानकारी प्राप्त करता है, जैसे-तस्वीर का प्रयोग करना, फोटोग्राफ और चार्ट के प्रयोग द्वारा एक पौधे को दिखाकर अनेक पौधों की जानकारी देना । इस प्रकार बच्चा सीखकर इतना आत्मनिर्भर हो जाता है कि अपनी स्मरण शक्ति से, बिना पौधे, कमल को देखे या बिना चिड़िया को देखे, पौधा, कमल और चिड़िया बोल सके या बोध कर सके।
चूँकि प्रत्येक बच्चों के बीच वैयक्तिक भिन्नता पायी जाती है इसलिए उन्हें वैयक्तिक अनुदेश की जरूरत होती है। इसी सिद्धांत को शिक्षण-अधिगम के दौरान भी आत्मसात् करना चाहिए।
समावेशी शिक्षा ( Inclusive Education)
समावेशी शिक्षा के जरिए मानसिक मंद बच्चों को शिक्षण-अधिगम सुविधा मुहैया करायी जा सकती है। समावेशी शिक्षा का अर्थ विकलांग बच्चों को शिक्षा के दायरे में लाने या जो पहले से ही शिक्षा पा रहे हैं उसके साथ असमान व्यवहार कम करने के प्रयास करने से बहुत आगे की कोई चीज है। समावेशी शिक्षा के तहत मानसिक मंद बच्चों को मुख्यधारा के विद्यालयों के सामान्य वर्ग कक्ष में सामान्य बच्चों के साथ पढ़ने-लिखने का मौका मिलता है वह भी बाधारहित माहौल में यानी . विकलांग बच्चों को विशेष शिक्षा की उप-व्यवस्था में रहने की बजाय मुख्यधारा की शिक्षा में समावेशन का मौका मिलता है।
समावेशी वर्ग कक्ष में निम्नलिखित रणनीतियों को अपनाया जाता है-
(i) पूरी कक्षा में समावेशी अध्यापन (ii) सामूहिक अधिगम (iii) हमजोलियों की सीख (iv) गतिविधियों पर आधारित अधिगम (v) टीम दृष्टिकोण (vi) आकलन में समता।
व्यावसायिक प्रशिक्षण (Vocational Training)
चूँकि मानसिक मंद बच्चे मानसिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ नहीं हो सकते हैं इसलिए उन्हें व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जा सकता है ताकि वे मुख्यधारा में शामिल हो सकें।
खेल एवं मनोरंजन (Play & Recreation) – खेल और मनोरंजन के जरिए मानसिक मंद बालकों को अधिगम कौशल सिखाए जा सकते हैं। इसमें न केवल बालकों का शारीरिक सामर्थ्य का विकास होता है बल्कि समन्वय क्षमता भी बढ़ती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986) के अंतर्गत खेल, संगीत, आर्ट्स-क्राफ्ट कार्य को अधिगम प्रक्रिया का समन्वित अंग माना गया है। इसलिए मानसिक मंद बालकों की शिक्षा कार्यक्रम में संगीत, नृत्य, स्कॉउट, मॉडलिंग, पेंटिंग आदि को स्कूली पाठ्यचर्या में शामिल किया जाने लगा है मानसिक मंद बालकों की कलात्मक प्रतिभा को निखारने के लिए ‘इंटरनेशल कमेटी फॉर आर्ट्स विथ द हैण्डीकैप्ड’ की स्थापना 1974 में वाशिंगटन में किया गया। तब से पूरे विश्व में ‘वेरी स्पेशल आर्ट्स फेस्टिवल’ का आयोजन किया जा रहा है।
मंदबुद्धि बच्चों को खेल सुविधा मुहैया कराने के लिए वर्ष 1988 में स्पेशल ओलम्पिक्स इंडिया स्थापित किया गया । यह एक मान्यता प्राप्त संस्था है । 15 राज्य इसके सदस्य हैं । यह मंदबुद्धि बालकों को प्रशिक्षित करने वाले प्रशिक्षकों के लिए कोचिंग कैम्प के अलावा अंतर्राष्ट्रीय विशिष्ट ओलम्पिक खेल में विकलांग बच्चों को शामिल करने के लिए राष्ट्रीय खेल का आयोजन भी करती है।