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दृश्य-श्रव्य सामग्री का निर्माण तथा चुनाव के सामान्य सिद्धान्त | दृश्य-श्रव्य साधनों की सीमाएँ

दृश्य-श्रव्य सामग्री का निर्माण तथा चुनाव के सामान्य सिद्धान्त
दृश्य-श्रव्य सामग्री का निर्माण तथा चुनाव के सामान्य सिद्धान्त

दृश्य-श्रव्य सामग्री का निर्माण तथा चुनाव के सामान्य सिद्धान्त

दृश्य-श्रव्य सामग्री का निर्माण तथा चुनाव के सामान्य सिद्धान्त- प्रसारकर्त्ता को दृश्य-श्रव्य सामग्री का चुनाव करते समय निम्नांकित बातों को दृष्टिगत रखना चाहिए-

1. साधनों की सरलता- साधन को सरलतापूर्वक देखा, समझा तथा प्रयुक्त किया जा सकता हो और प्रसारकर्ता आसानी से नियंत्रित कर सकता हो तथा स्थानीय कारीगरों से उसकी मरम्मत की जानी सम्भव हो। उदाहरणार्थ गीत, नाटक अथवा कठपुतली तमाशा आदि।

2. श्रोताओं के बौद्धिक स्तर के उपयुक्त हो- ऐसे साधनों का निर्माण व चुनाव किया जाना चाहिए जो उनके बौद्धिक स्तर के अनुरूप हो। यदि लोग अशिक्षित हैं या कम योग्यता के स्तर के हैं तो कठपुतली, ड्रामा, नौटंकी आदि सामग्री अधिक प्रभावशाली होगी। यदि समूह में लोग शिक्षित हैं तो ब्लैक बोर्ड, पोस्टर्स इत्यादि प्रभावशाली होंगे।

3. दृश्य-श्रव्य सामग्री को ले जाने की सरलता- एक स्थान से दूसरे स्थान पर सरलता से ले जाई जाने वाली सामग्री का चयन करना चाहिए। जैसे- पोस्टर इत्यादि।

4. उद्देश्य – जिस विषय के लिये दृश्य-श्रव्य शिक्षण साधनों का चयन करना है वे मस्तिष्क में स्पष्ट होने चाहियें जैसे कि केवल साधारण जानकारी देनी है या सुझाव व समाधान प्रस्तुत करना है या फिर शीघ्र क्रियान्वयन करना है।

जैसे यदि पर्यावरण प्रदूषण से अवगत कराना है तो हम पोस्टर का प्रयोग कर सकते हैं। लेकिन यदि पर्यावरण प्रदूषण की समस्या का तुरन्त समाधान करना है तो इसके लिये लाउडस्पीकर, चलचित्र, टेलीविजन आदि का प्रयोग करना चाहिये।

5. साधन व्यावहारिक हों- साधन ऐसे चुनने चाहिए जिसमें व्यावहारिक कठिनाई न आती हो अथवा सामान्य कार्यकर्ता चला सकता हो, जैसे ग्रामीण क्षेत्रों के लिए विद्युत से चलने वाले साधनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

6. समुदाय का भौतिक तथा सांस्कृतिक वातावरण- प्रसार कार्यकर्ता को जहाँ प्रसार कार्य करना है वहाँ के भौतिक व सांस्कृतिक वातावरण को भी जानना चाहिये। भौगोलिक वातावरण के अन्तर्गत जलवायु, तापमान दशाएं तथा सांस्कृतिक वातावरण के अन्तर्गत उनके मूल्य, आकांक्षाएँ, रीति-रिवाज, परम्पराएँ आदि जाननी चाहिये और उसके अनुसार ही दृश्य- श्रव्य साधनों का चुनाव करना चाहिये।

7. दृश्य-श्रव्य सामग्री महँगी न हो- भारत एक निर्धन है, इसलिए सामग्री ऐसी हो जिनमें अधिक लागत हो अर्थात् जो सरलता से खरीदी जा सकती हो अपेक्षाकृत सस्ती हो। जैसे-पोस्टर आदि।

8. दृश्य-श्रव्य साधनों की सीमितता- प्रसार कार्यकर्ता को किसी क्षेत्र विशेष के लिये दृश्य-श्रव्य साधनों का प्रयोग करने से पूर्व उनकी सीमितताएँ जान लेनी चाहिये। जैसे चार्ट केवल साक्षर व्यक्तियों के लिये ही उपयुक्त होते हैं। इसी तरह विद्युत चालित दृश्य-श्रव्य साधन केवल उसी स्थान पर प्रयोग में लाये जा सकते हैं जहाँ विद्युत की उपयुक्त व्यवस्था है। ऐसे स्थानों के लिये ब्लेक बोर्ड, फिलिप चार्ट, फ्लेश चार्ट, फ्लेश कार्ड आदि उपयुक्त रहते हैं। इसलिए प्रसार कार्यकर्त्ता को दृश्य-श्रव्य साधनों की सीमितता को देखते हुये ही उनका चुनाव करना चाहिये।

9. आकर्षक एवं प्रभावोत्पादक हो– दृश्य-श्रव्य सामग्री का प्रमुख उद्देश्य लोगों को आकर्षित करना भी है। इसलिए यह आकर्षित करने वाली सुन्दर तथा मन पर प्रभाव डालने वाली होनी चाहिए। उसके लिये उपयुक्त रंगों व डिजाइन का प्रयोग उचित है।

10. समूह चयन– यदि समूह छोटा है तो ऐसे साधनों का चुनाव उचित है जो एक छोटे समूह के लिए आवश्यक हों, जैसे- 15 या 20 व्यक्तियों के लिए फ्लैश कार्डस और 50-60 लोगों के लिए फिल्म आदि।

11. तकनीकी व अन्य कुशलताएँ- प्रसार शिक्षा के कुछ दृश्य-श्रव्य साधन ऐसे समूह होते हैं जिनके प्रयोग के लिये उच्च स्तर की तकनीकी कुशलता की आवश्यकता होती है। तकनीकी कुशलता के अभाव में उनसे प्रसार कार्य नहीं किया जा सकता है इसलिए तकनीकी कुशलता न होने पर उन शिक्षण साधनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

अन्य कुशलताओं के अन्तर्गत दृव्य-श्रव्य साधनों का प्रस्तुतीकरण, चेहरे के हाव- भाव, संकेतों का नियंत्रण आदि सम्मिलित किए जाते हैं।

दृश्य-श्रव्य साधनों की सीमाएँ

दृश्य-श्रव्य साधनों की कुछ सीमाएँ भी हैं जिनके कारण कुछ स्थानों में प्रसार कार्य के लिये इनका प्रयोग सीमित हो जाता है। यह निम्नांकित हैं-

1. इन शिक्षण साधनों में व्यय अधिक होता है इसलिए धन सीमित होने पर इनका प्रयोग नहीं किया जा सकता।

2. इन शिक्षण साधनों के निर्माण व इनके द्वारा प्रचार-प्रसार के लिये अनुभवी और प्रशिक्षित प्रसार कार्यकर्त्ता की आवश्यकता होती है।

3. दृश्य-श्रव्य साधनों के प्रयोग से पूर्व प्रसार कार्यकर्ता को उस क्षेत्र व समुदाय के व्यक्तियों की रुचियों बौद्धिक स्तर व मनोवृत्तियों का ज्ञान होना आवश्यक होता है।

4. दृश्य-श्रव्य साधनों का त्वरित साधनों के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता है। इनके प्रयोग से पूर्व उद्देश्य और इसकी सफलता के वांछित प्रभावों का आयोजन करना पड़ता है।

5. दृश्य-श्रव्य साधनों का प्रयोग बढ़ा-चढ़ाकर नहीं करना चाहिये। इससे संदेश तो गौण हो जाता है और साधन अधिक महत्वपूर्ण बन जाता है। जैसे नाटकों व कठपुतली प्रदर्शन को यदि अधिक मनोरंजक बना दिया जाता है तो मनोरंजन अधिक हो जाने से संदेश गौण हो जाता है। अतः संदेश प्रसार का ध्यान रखना चाहिये।

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shubham yadav

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