आलंकारिक कढ़ाई क्या है?
आलंकारिक कढ़ाई- भारतवर्ष में प्राचीन काल से ही आलंकारिक कढ़ाई लोकप्रिय रही है। आज का भारत वैभवपूर्ण विरासत का उत्तराधिकारी है। इतिहास इसका साक्षी है कि भारत की कला एवं संस्कृति की धाक दूर-दूर तक के देशों तक फैली हुई थी। भारत के बने वस्त्रों और कलात्मक वस्तुओं के मध्यपूर्वी तथा पश्चिमी देशवासी ही सबसे बड़े खरीदार थे। वैदिक युग से ही भारतवासी रंग-बिरंगे सुन्दर वस्त्रों के प्रति रूचि रखते थे। इस समय के राज परिवार तथा सामंतों के वस्त्रों पर सोने-चाँदी के तारों से आलंकारिक कढ़ाई की जाती थी। उनके वस्त्रों पर सुनहली – रूपहली कढ़ाई के नमूने रहते थे। वस्त्रों पर रंग-बिरंगे धागों से कढ़ाई करके उनकी शोभा में वृद्धि की जाती है। कढ़ाई में धागों के अतिरिक्त सोने-चाँदी के महीन तार भी उपयोग में लाये जाते हैं। वस्त्र को अलंकृत करने के लिए गोटे, मोती, विभिन्न आकृति के बटन, काँच के टोडके, चमकीले प्लास्टिक की विभिन्न आकृतियाँ को टांगा जाता था । आलंकारिक कढ़ाई के अन्तर्गत निम्नलिखित कढ़ाई लोकप्रिय हैं-
1. क्विल्टिंग- क्विल्टिंग की प्रक्रिया के अन्तर्गत कपड़ों की दो तहों के मध्य रूई या अन्य विभिन्न रंगों की कपड़ों की तहें बिछा दी जाती हैं। तहों के बनाने के लिए ऊन, फ्लालेन, कम्बल, पोलिएस्टर, नायलॉन का प्रयोग किया जाता है। आजकल प्लास्टिक सीट या फॉम का प्रयोग अधिक लोकप्रिय है। सारी तहें बिछा लेने के बाद कपड़ों पर रनिंग स्टिच से इस प्रकार कढ़ाई की जाती है कि ऊपर के भाग में उभरा हुआ सुन्दर सा नमूना बन जाता है तथा कपड़े की सभी तहें आपस में दृढ़तापूर्वक जकड़ जाती है। इसके लिए बाहरी तह वाले कपड़े पर पूर्व में ही नमूना देखकर लेना उचित रहता है। पशु-पक्षियों, फूल-पत्तियों अथवा ज्यामितीय आकृतियों के नमूने अधिक लोकप्रिय हैं। आजकल क्विल्टिंग किये हुए रजाई, गद्दे, तकिये के गिलाफ, बेड कवर आदि बाजार में सहज रूप में उपलब्ध है। इनकी कीमतें अपेक्षाकृत अधिक होती हैं।
2. मोती टाँकना- वस्त्रों के अलंकृति करने के लिए मोती टाँगने की परम्परा सैकड़ों वर्षों से चली आ रही है। इससे कढ़ाई अधिक सुन्दर दिखाई देती है। महिलाओं द्वारा घर – पर पहने जाने वाले वस्त्रों को जैसे ब्लाउज, साड़ी, दुपट्टों, सलवार कुर्तों पर मोती भरकर – अलंकृत किया जाता है। ब्लाउज की पीठ, गले के चारों ओर, साड़ी के आँचल पर मोती टॉकने से वस्त्र सुन्दर दिखाई देता है। आजकल बटुए, हैण्ड बैग, वाल हैगिंग, टी0वी0 कवर एवं सजावटी वस्त्रों पर भी मोतियों के नमूने काढ़े जाते हैं।
मोती टाँगने के लिए सर्वप्रथम कोई आसान, सरल रेखाओं वाला नमूना चुनना चाहिए। नमूने की रेखा पर एक सिरे से धागा पिरोई हुई सुई निकालिए सुई की नोक में एक मोती पिरोकर सुई को धागे की ओर नीचे डालकर कुछ आगे पुनः बाहर निकाल ले। इसमें रनिंग स्टिच की तरह टाँके बनाए जाते हैं तथा हर टाँके में मोती पिरोया जाता है।
फूल बनाने के लिए गोल रंगीन मोती, पत्तियाँ आदि बनाने के लिए लम्बे रंगीन मोतियों का प्रयोग उचित है। मोतियों की कढ़ाई गहरे रंग के वस्त्रों पर अधिक शोभित होती है। मोती टांकने का कार्य अत्यन्त सरल है।
3. स्कैलोपिंग- वस्त्रों के अलंकरण के लिए वस्त्र के किनारों को सुन्दर आकृति प्रदान करना स्कैलोपिंग कहलाता है। जैसा किनारा बनाना हो वैसा नमूना किनारे पर उतार लिया जाता है। स्कैलोपिंग के लिए किनारों पर नमूना उतार लेने के पश्चात् नमूने की दोहरी रेखा के बीच का माना, मोटे धागे से रनिंग स्टिच द्वारा भरा जाता है। इसके बाद दोहरी रेखा पर उसी रंग के धागे बटन होल स्टिच से भराव का काम होता है। रनिंग स्टिच के धागे होने के कारण किनारों पर उभार आ जाता है। स्कैलोपिंग के साथ-साथ छिद्र युक्त नमूने भी बनाए जाते हैं। ऐसी स्थिति में छिद्रों के मध्य भाग का कपड़ा भी काट दिया जाता है। स्कैलोपिंग का कार्य एवं सावधानी से करने पर अत्यन्त सुन्दर प्रतीत होता है। कुशलता
4. नेटवर्क- नेटवर्क का आशय है जाली पर कढ़ाई करना, जाली पर क्रॉस स्टिच;- शेवरॉन स्टिच, रनिंग स्टिच, रफू टांका, सैटिन स्टिच, बटन होल स्टिच से कढ़ाई की जा सकती है। नेटवर्क को सम्पादित करने के लिए छिद्रों वाली मजबूत सफेद या रंगीन जाली का उपयोग किया जाता है। जाली पर कढ़ाई दो सूती वस्त्रों पर क्रॉस स्टिच के समान धागे गिनकर कढ़ाई की जाती है। जाली पर काम के अनुसार ही धागों का प्रयोग किया जाता है। जाली के छिद्र मोटे होने पर मोटे धागों तथा महीन काम के लिए चमकीले रेशमी धागों या रोलेक्स के तारों का उपयोग किया जाता है। वस्त्र पर उभार का प्रभाव डालने के लिए रंगीन मोटे धागे या ऊन का प्रयोग उपयुक्त होता है। जाली को मजबूती तथा अधिक सौन्दर्ययुक्त बनाने के लिए नीचे की ओर रेशमी नायलॉन के कपड़े का अस्तर भी लगाया जा सकता है। वस्त्र के किनारों पर लेसे टाँकने से या क्रोशिएँ वर्क की सुन्दर जाली बुन देने से वस्त्र के आकर्षण में वृद्धि हो जाती है। ब्लाउज की बाँहे, लेमन सेट, कुशन कवर, टीकोजी के लिए नेटवर्क की कढ़ाई उपयुक्त रहती है। दुपट्टे एवं पतले मझीने पर्दों की जाली पर भी कढ़ाई की जाती है।
5. शीशे टाँकना- इसमें काँच के टुकड़ों के द्वारा वस्त्र को अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक सुन्दर बनाया जाता है। आजकल इस कला का प्रचार-प्रसार अत्यन्त व्यापक हो गया है। राजस्थान तथा काठियावाड़ में इस प्रकार की कढ़ाई की जाती है। इस कढ़ाई में वस्त्र पर स्थान-स्थान पर नमूने के अनुसार शीशे टाँक दिये जाते हैं। फूलदार कढ़ाई में फूल के मध्य भाग में शीशा टाँकना विशेष लोकप्रिय है। ये शीशे दर्पण के छोटे गोल या अन्य आकृति के टुकड़े होते हैं।
शीशे टाँकने के लिए सर्वप्रथम शीशे को वस्त्र पर रखा जाता है। तत्पश्चात् उसे चारों ओर से स्टैम स्टिच द्वारा टाँक दिया जाता है। शीशे को वस्त्र पर टांकने के लिए कोई छिद्र नहीं होता अतएव इन्हें टाँकने के लिए ऐसे टाँकों का प्रयोग करते हैं जो टांके आर पार जाकर शीशे को यथास्थान स्थिर रख सकें। शीशे के आस पास का नमूना लेडी डेजी, फ्लाई स्टिच इत्यादि से रंग-बिरंगे मोटे धागों द्वारा बनाया जाता है। अथवा सम्पूर्ण कढ़ाई एक ही रंग के धागे से की जाती है। शीशे का काम ब्लाउज, घाघरों, चोलियों, कुशन कवर आदि पर अधिक होता है। शीशे का काम गहरे रंग के वस्त्रों पर सुन्दर लगता है।
6. सीपी, बटन एवं सलमा-सितारे टाँकना- वस्त्रों पर अलंकारिक कढ़ाई के लिए सीपी, विभिन्न आकार तथा रंगों के बटन तथा सलमा सितारों का भी उपयोग किया जाता है। ये सुनहले, रूपहले, ताँबे, पीतल अथवा अन्य धातु की पतली पतरों के बने गोल सितारों के आकार के टुकड़े होते हैं, जिनके मध्य भाग में छिद्र रहता है। इन्हीं छिद्रों की सहायता से इन्हें वस्त्रों पर टांका जाता है। प्राचीन काल में राजा-महाराजाओं, रानियों, सामन्तों के परिधानों, गद्दियों, मनसदों एवं सजावटी वस्त्रों पर सलमा- सितारों द्वारा कलात्मक कढ़ाई की जाती है। दुलहन के परिधानों पर भी सलमा-सितारों को टाँका जाता है।
इन्हीं की तरह सीप, चमकीले रंग-बिरंगे बटन एवं प्लास्टिक या काँच के टुकड़े, टोपी, बेल्ट, हैण्ड बैग पर टाँके जाते हैं।
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