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दैव निदर्शन पद्धति की विवेचना कीजिए।
दैव निदर्शन का अर्थ है, वह निदर्शन, जो शोधकर्त्ता की अपनी इच्छा या निर्णय से नहीं, बल्कि दैवयोग से चुना जाये। दैव निदर्शन की परिभाषा पार्टेन (Parten) ने इस प्रकार की है, “दैव निदर्शन शब्द उस समय प्रयुक्त किया जाता है, जब समग्र में से प्रत्येक व्यक्ति या तत्व को चुने जाने का समान अवसर प्राप्त होता है।” इस प्रकार दैव निदर्शन, निदर्शन चुनने की ऐसी पद्धति है जिसमें चुनने वाला अपनी इच्छा से किसी इकाई को नहीं चुन सकता, बल्कि संयोग से जो इकाई निदर्शन में स्थान प्राप्त कर लेती है, उसी का अध्ययन किया जाता है। समग्र की सूची में से बिना पूर्व विचार या पक्षपात के सभी इकाइयों को समान महत्व देकर कुछ को चुन लिया जाता है। इन चुनी हुई इकाइयों को न तो छोड़ा जा सकता है और न बदला ही जा सकता है। दैवयोग से जो इकाई चुनी जाये, वह अनिवार्य रूप से अध्ययन का अंग बन जाती है। प्रत्येक इकाई को चुने जाने का समान अवसर होता है। दैव निदर्शन को समानुपातिक निदर्शन (Proportionate Sampling) भी कहा जाता है, क्योंकि निदर्शन में चुनी हुई इकाइयों का वही अनुपात होता है, जो उनके वर्गों का समग्र में अनुपात होता है। सामाजिक तथ्यों में विविधता अधिक होने के कारण शत-प्रतिशत समानुपातिक निदर्शन कठिन होता है, किन्तु फिर भी पर्याप्त मात्रा में यह अनुपात समान होता है।
दैव निदर्शन चुनने की प्रणालियाँ / पद्धतियाँ-
(i) लाटरी प्रणाली (Lottery Method)- लाटरी निकालने की विधि प्रायः सभी लोग जानते हैं। समग्र की समस्त इकाइयों को अलग-अलग कागज के टुकड़ों / कार्डों पर लिखकर किसी बर्तन आदि में रखकर मिला दिया जाता है। जितनी इकाइयां निदर्शन में लेनी हैं, उतनी निकाल ली जाती हैं। इस प्रकार जो भी इकाइयां दैव योग से निकलती हैं, उनका अध्ययन किया जाता है।
(ii) टिकट / कार्ड प्रणाली (Ticket or Card Method)- इसे टिकट प्रणाली भी कहा जाता है। यह प्रणाली भी लाटरी निकालने की तरह ही है। इसके अनुसार एक ही प्रकार के रंगीन कार्डों पर समग्र इकाइयों की संख्या लिख दी जाती है और इन कार्डों या टिकटों को एक ड्रम में भर दिया जाता है, फिर आंखे खोलकर कोई व्यक्ति उस ड्रम को पचास बार हिलाकर जितनी इकाइयाँ चुननी हों, उतने टिकट निकाल लिये जाते हैं और उनकी संख्या वाली इकाइयों को निदर्शन में शामिल कर लिया जाता है।
(iii) क्रमाङ्कन पद्धति (Regular Marking Method)- इस पद्धति के अनुसार किसी व्यवस्था या क्रम के अनुसार समग्र इकाइयों की संख्या लिख ली जाती है, फिर जितनी इकाइयां लेनी हों, उसके अनुसार किसी भी संख्या से प्रारम्भ करके अगली इकाइयां चुन ली जाती हैं। उदाहरण के लिये यदि किसी गांव में 100 परिवार हैं और 10 परिवार निदर्शन में लेने हैं, तो हर दसवाँ परिवार अध्ययन के लिये चुनना होगा। प्रारम्भ किसी भी संख्या से किया जा सकता है, जैसे-5, 15, 25, 35, 45, 55, 65, 75, 85, 95 32 9, 19, 29, 39, 49, 59, 69, 79, 89, 99 ये दस परिवार निदर्शन में आ जायेंगे। क्रमांकन के तीन आधार हैं- A, क्रम संख्या (Serial Marking), B. वर्णानुसार अंकन (Alphabetical Marking) और C. भौगोलिक अंकन (Geographical Marking) | क्रमांकन पद्धति में प्रत्येक इकाई को चुने जाने का समान अवसर होता है। इसमें आकस्मिक ढंग से चुनाव होने से निष्पक्षता तथा सत्यता की मात्रा अधिक रहती है किन्तु कई बार प्रारम्भिक सूची बनाने में ही पक्षपात की सम्भावना रहती है।
(iv) ग्रिड पद्धति (Grid Method) – यह पद्धति भौगोलिक क्षेत्र चुनने में उपयोगी है। यदि किसी समग्र क्षेत्र की कुछ क्षेत्रीय इकाइयां चुननी हों, तो उस विशाल क्षेत्र का मानचित्र सामने रख लिया जाता है। इस मानचित्र पर ग्रिड-प्लेट, जो सेल्युलाइड या किसी अन्य पारदर्शक पदार्थ की बनीं होती है, रख दी जाती है। इस प्लेट में वर्गाकार खाने कटे होते हैं, जिन पर नम्बर लिखे रहते हैं। यह पहले से ही निश्चय कर लिया जाता है कि किन नम्बरों को निदर्शन में लेना है। नम्बरों का निर्णय भी आकस्मिक किया जाता है। इस प्रकार मानचित्र के जिन भागों पर निर्धारित नम्बरों के कटे हुये वर्ग आ जाते हैं, उन पर निशान लगा लिया जाता है। यही भाग निदर्शन की इकाइयां होते हैं।
(v) टिप्पेट प्रणाली (Tippett Method)- प्रो. टिप्पेट (L.H.C. Tipett) ने चार अंकों वाली 40400 संख्याओं की एक सूची तैयार की। ये संख्यायें बिना किसी क्रम के कई पृष्ठों पर लिखी गई है। जब कोई अध्ययनकर्ता निदर्शन चुनना चाहता है, तो किसी भी पृष्ठ की उतनी संख्यायें उनमें से चुन लेता है, जितनी इकाइयां निदर्शन में लेनी हैं। समग्र की सूची में उसी संख्या वाली इकाइयों को चुन लिया जाता है। टिप्पेट की प्रथम 20 संख्यायें निम्नलिखित हैं-
2952, 4167, 2370, 0560, 2754, 6641, 9524, 7983, 9143, 3392, 1545, 3408, 1112, 1405, 9792, 1396, 2762, 6107, 9025.
इस पद्धति के अनुसार यदि 10,000 की समग्र इकाइयों में से हमें दस का अध्ययन करना है, तो पहले समग्र की संख्या के अनुसार सूची बनाई जायेगी और फिर इनमें से प्रथम द संख्याओं के अनुसार जो इकाइयां होंगी, वे निदर्शन में चुन ली जायेंगी। यदि समग्र की संख्या कम है, अर्थात् चार अंकों से भी कम है, तो फिर इन संख्याओं की पहली और दूसरी या आवश्यकतांनुसार संख्यायें ली जाती हैं। जो संख्या एक बार आ जाती है, उसे दुबारा नहीं लिया जाता। मान लीजिये, समग्र की संख्या केवल 108 हैं और हमें केवल दस इकाइयां निदर्शन में लेनी हैं, तो टिप्पेट अंकों के अन्तिम तीन या दो अंक छांट लिये जायेंगे अर्थात् निम्नलिखित दस संख्यायें चुनी जायेंगी-52, 67, 70, 60, 54, 41, 24, 83, 46 तथा 413, समग्र की सूची में से इन संख्याओं वाली इकाइयों को निदर्शन में स्थान मिल जायेगा। टिप्पेट प्रणाली अधिक वैज्ञानिक मानी जाती है तथा इसका प्रयोग भी बहुत अधिक होता है।
(iv) ढोल को घुमाकर (By Rotating the Drum) – यह विधि भी ‘कार्ड प्रविधि’ में डालकर के समान है, जिसमें लकड़ी या टीन के समान आकार में काटे गये गोल टुकड़े होते हैं। इन टुकड़ों पर 1, 2, 3, 4 आदि संख्यायें लिख दी जाती हैं और उन्हें एक ढोल या ड्रम उसे घुमा दिया जाता है। इसके बाद जितने निदर्शन चाहिए, उतने ही टुकड़े ड्रम को घुमा घुमाकर निकाल लिये जाते हैं। टुकड़ों में जो संख्या लिखी होती है, उस क्रम के व्यक्ति को निदर्शन में सम्मिलित कर लिया जाता हैं। बार-बार ड्रम घुमाकर निदर्शन प्राप्त करने के अतिरिक्त इस पद्धति में लॉटरी की प्रक्रिया भी अपनायी जा सकती है। इसके अनुसार एक बार ड्रम को खूब घुमाकर सब टुकड़ों को मिला दिया जाता है। इसके बाद किसी निष्पक्ष व्यक्ति/बालक से उसमें से जितने का निदर्शन चाहिए उतने टुकड़े निकाल लिये जाते हैं। इन टुकड़ों पर अंकित संख्या वाले व्यक्ति को निदर्शन में सम्मिलित कर लिया जाता है।
दैव निदर्शन पद्धति के लाभ/गुण-
(i) निष्पक्षता- इस निदर्शन प्रणाली में किसी प्रकार की अभिनति या पक्षपात की गुंजाइश नहीं रहती, क्योंकि प्रत्येक इकाई को निदर्शन में आने का अवसर प्राप्त होता है।
(ii) सरलता- यह निदर्शन की सबसे सरल पद्धति है, जिसमें किसी जटिल प्रक्रिया अथवा गूढ़ नियमों का पालन नहीं करना पड़ता।
(iii) प्रतिनिधित्वपूर्ण- दैव निदर्शन द्वारा, चुनी हुई इकाइयां अधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण होती हैं। प्रत्येक इकाई को समान अवसर प्राप्त होने के कारण दैव निदर्शन की इकाइयों में समग्र के अधिकाधिक लक्षण विद्यमान होते हैं।
(iv) अशुद्धता की जांच – प्रथम तो दैव निदर्शन में अशुद्धता की सम्भावना ही कम रहती है, फिर भी यदि अशुद्धता रह जाती है तो, तथ्यों के विश्लेषण में त्रुटियों का मूल्यांकन हो जाता है।
दैव निदर्शन की सीमाएँ / दोष-
(i) समग्र की सूची- दैव निदर्शन के लिये यह आवश्यक है कि समग्र की इकाइयों की विस्तृत और सम्पूर्ण सूची तैयार की जाये। विशाल समग्र की सूची तैयार करना कठिन है, अतः प्रायः आकस्मिक निदर्शन से ही काम चलाया जाता है अर्थात् पूर्ण रूप से दैव निदर्शन पद्धति का प्रयोग प्रायः ही नहीं किया जाता है।
(ii) सम्पर्क की कठिनाई – निदर्शन के चुनाव में अध्ययनकर्ता का कोई नियंत्रण नहीं होता। अतः ऐसी इकाइयां भी चुनी जाती हैं जो या तो बहुत दूर होती हैं या उनसे सम्पर्क स्थापित करने और सूचना प्राप्त करने में कठिनाई होती है। यद्यपि समस्त गुण सम्पन्न दूसरी ऐसी इकाई से सुविधापूर्वक तथा उपयोगी सम्पर्क स्थापित किया जा सकता है, जो उसका विकल्प हो, किन्तु नियमानुसार चुनी हुई इकाई में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
(iii) सजातीयता का अभाव- यदि समग्र की सभी इकाइयां समान आकार वाली नहीं हैं और उनमें सजातीयता का अभाव है, तो दैव निदर्शन पद्धति के द्वारा प्रतिनिधि इकाइयां नहीं चुनी जा सकतीं। ऐसी स्थिति में यह पद्धति उपयुक्त नहीं होती।
दैव निदर्शन में चयन सम्बन्धी सावधानियां (Precautions in The Selection Random Sampling)
(i) समग्र का निश्चय – निदर्शन चुनने से पूर्व समग्र ( Universe) का निश्चय ठीक प्रकार कर लेना चाहिये। प्रत्येक इकाई को समग्र सूची में ठीक-ठीक शामिल कर लेना चाहिये।
(ii) इकाइयों का आकार- जहां तक सम्भव हो, प्रत्येक दृष्टि से इकाइयों का आकार समान होना चाहिये।
(iii) इकाइयों की स्वतंत्रता- निदर्शन में आने वाली इकाइयां स्वतंत्र होनी चाहिये अर्थात् वे एक दूसरे पर अध्ययन के लिये निर्भर नहीं होनी चाहिये, जैसे- पिता के पश्चात् पुत्र का चुनाव आवश्यक हो जाता है। इस प्रकार कोई इकाई ऐसी न चुनी जाये, जो दूसरी चुनाव के किसी इकाई के चुनाव को आवश्यक बना दे।
(iv) इकाइयों से सम्पर्क- इकाइयां ऐसी होनी चाहिये, जिनसे सम्पर्क स्थापित किया जा सकें। एक बार चुनी हुई इकाई को बदलना नहीं चाहिये -।
संक्षेप में कहा जा सकता है कि इन सीमाओं के होते हुये भी तथा सावधानियों की, आवश्यकता के बावजूद, दैव निदर्शन पद्धति निदर्शन की सर्वोत्तम पद्धति है। इस विषय में एकॉफ (Ackoff) का कथन है, “दैव निदर्शन एक विचार से समस्त वैज्ञानिक निदर्शनों का मूल आधार है।”
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