गृहविज्ञान

निदर्शन किसे कहते हैं? परिभाषा, प्रकार, विशेषतायें, उद्देश्य/लक्ष्य, गुण, लाभ/उपयोगिता/महत्व, दोष/सीमायें

निदर्शन किसे कहते हैं
निदर्शन किसे कहते हैं

निदर्शन किसे कहते हैं?

निदर्शन के अर्थ सामाजिक अनुसंधान की इस पद्धति के अन्तर्गत समूह में से किसी आधार पर कुछ प्रतिनिधि इकाइयाँ चुन ली जाती हैं और उनका गहन अध्ययन किया जाता है तथा अध्ययन से प्राप्त निष्कर्ष को पूरे समूह पर लागू किया जाता है। समग्र या समूह में से जो इकाइयाँ प्रतिनिधि के रूप में चुनी जाती हैं उन्हें निदर्शन न्यादर्श अथवा प्रतिदर्श के नाम से सम्बोध किया जाता है। हम सब अपने दैनिक जीवन मे किसी न किसी रूप में निदर्शन पद्धति का प्रयोग करते रहते हैं। गेहूँ, चावल, चीनी, दाल आदि को खरीदते समय इन विभिन्न पदार्थों के ढेरों के एक-एक दाने की परख नहीं करते हैं, वरन् प्रत्येक ढेर में से हाथ डालकर मुट्ठीभर निकाल लेते हैं और इस मुट्ठीभर पदार्थ का मूल्यांकन करने के बाद भाव की सुविधानुसार सम्बन्धित ढेर से जितने माल की आवश्यकता होती है, खरीद लेते है। कहने का अभिप्राय यह है कि इस मुट्ठीभर पदार्थ का मूल्यांकन सम्बन्धित ढेर के लिये होता है। इसी प्रकार गृह-स्वामिनी खिचड़ी को पकाते समय उसमें दो-चार दाने निकालकर जान लेती है कि खिचड़ी पकी है या नहीं। वास्तव में व्यावहारिक जीवन में इस प्रकार के अनेकों उदाहरण मिलते हैं। इन सब की मूल विधि पद्धति या प्रणाली यही है कि कुछ की परख करके सबके या संपूर्ण के बारे में अनुमान लगाना। इसी को निदर्शन (सैम्पल) पद्धति या निदर्शन प्रणाली कहा जाता है।

प्रतिदर्श (निदर्शन) की परिभाषा 

गुडे और हाट- “एक निदर्शन जैसा कि नाम से स्पष्ट है किसी विशाल सम्पूर्ण का छोटा प्रतिनिधि हैं।”

पी० वी० यंग- “एक सांख्यिकीय निदर्शन उस सम्पूर्ण समूह अथवा योग का एक अति लघु चित्र हैं जिसमें से कि निदर्शन लिया गया हैं।”

फ्रैंक याटन – “निदर्शन शब्द का प्रयोग केवल किसी समग्र चीज की इकाइयों के एक सेट या भाग के लिए किया जाना चाहिए जिसे इस विश्वास के साथ चुना गया है कि वह समग्र का प्रतिनिधित्व करेगा।”

निदर्शन पद्धति के मुख्य प्रकार (Important Types of Sampling Method) –

अनुसंधान में निदर्शन प्रणालियों में वैसे तो अनेक स्वरूप हैं लेकिन उनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं-

1. दैवनिदर्शन प्रणाली (Random Sampling Method)

2. वर्गीकृत या संस्तरित निदर्शन प्रणाली (Stratified Sampling Method)

3. सविचार निदर्शन प्रणाली (Purposive Sampling Method)

4. अन्य निदर्शन (Other Sampling)

निदर्शन की विशेषतायें/आधार

निदर्शन के तीन आधारों का उल्लेख किया जा सकता है-

1. समग्र की सजातीयता – निदर्शन का सर्वप्रमुख आधार या विशेषता समग्र की एकरूपता है अर्थात् समुदाय की विभिन्न इकाइयों में समानता का होना, जिससे कि प्रतिनिधि परिणामों को व्यक्त किया जा सके। किसी भी समूह या समुदाय की विभिन्न इकाइयाँ बाहर से देखने पर प्रायः भिन्न-भिन्न अर्थात् असमान दिखाई देती है, किन्तु यदि उन विभिन्न इकाइयों का सूक्ष्म अध्ययन किया जाये, तो प्रत्येक इकाई में कुछ न कुछ मौलिक एकरूपता का दर्शन अवश्य होगा। उदाहरणार्थ, एक कक्षा विशेष के विद्यार्थियों में अनेक विविधतायें होते हुए भी उनमें कुछ न कुछ मौलिक एकरूपता देखने को मिलती है, अतः थोड़े से ही विद्यार्थियों से प्राप्त परिणामों को समस्त विद्यार्थी समूह पर लागू किया जा सकता है। किसी समूह में अन्तर्निहित सजातीयता के आधार पर ही निदर्शन को समग्र या प्रतिनिधित्वपूर्ण माना जाता है। निदर्शन के चुनाव में अत्यधिक सावधानी तथा सतर्कता बरतनी चाहिए, ताकि इन विविधताओं में भी अन्तर्निहित सजातीयता को ढूँढ़ा जा सके और निदर्शन अत्यधिक प्रतिनिधित्वपूर्ण भी हो सके।

2. प्रतिनिधित्वपूर्ण चुनाव की सम्भावना- समग्र समूह में से कुछ इस प्रकार की इकाइयों को चुना जा सकता है, जो सम्पूर्ण समूह की प्रतिनिधि हों, अर्थात् वे समग्र का प्रतिनिधित्व कर सकें। समग्र का चुना हुआ भाग उन्हीं परिणामों को व्यक्त करता है, जो कि समग्र के द्वारा प्रकट होते हैं अर्थात् चुना हुआ भाग समग्र का प्रतिनिधि होता है। यह सम्भावना निदर्शन का दूसरा आधार या विशेषता है। समूह की विशालता के अनुसार ही निदर्शनों की संख्या का चुनाव होना चाहिए, तभी निष्कर्ष प्रतिनिधित्वपूर्ण हो सकेंगे, अन्यथा किसी भी विस्तृत समुदाय में एक या दो इकाई अथवा निदर्शनों के चुन लेने से ही हमारा निष्कर्ष प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं होगा।

3. लगभग सही होना- निदर्शन पद्धति की तीसरी मान्यता यह है कि परिणाम काफी सीमा तक शुद्ध होते हैं, शत-प्रतिशत नहीं, अतः इस पद्धति के अध्ययन में शत-प्रतिशत परिशुद्धता का होना अनिवार्य नहीं है। चाहे कितनी ही सावधानी अथवा सतर्कता से किसी भी निदर्शन या सैम्पल का चुनाव किया जाये, किन्तु वह सम्पूर्ण समूह का शत-प्रतिशत उचित रूप से प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता। चूंकि प्रत्येक इकाई में अन्तर होता ही है, इसलिये निदर्शन में यथासम्भव परिशुद्धता लाने का प्रयास करना चाहिए, ताकि हमारा निष्कर्ष अधिकाधिक यथार्थ तथा प्रतिनिधित्वपूर्ण हो सके। उदाहरणार्थ- किसी महाविद्यालय में यदि 300 छात्रों का अध्ययन निदर्शन विधि के द्वारा किये जाने से यह ज्ञात हुआ कि उनमें से लगभग 13 प्रतिशत छात्र पान मसाला या धूम्रपान के अत्यन्त आदी हैं, किन्तु सभी कक्षाओं की जाँच करने पर पता चला कि उन्में से मात्र 12.8 प्रतिशत छात्र ही पान मसाला या धूम्रपान करते हैं, तो हमारे निष्कर्षों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। इस प्रकार थोड़े-बहुत अन्तर के लिए अनुसंधानकर्ता को निदर्शन विधि को ही प्रयुक्त करना चाहिए।

निदर्शन पद्धति के उद्देश्य/लक्ष्य

1. इस पद्धति का सर्वप्रमुख उद्देश्य किसी वृहद् क्षेत्र के सम्बन्ध में कम से कम समय, धन और परिश्रम के द्वारा अधिकतम सूचनाओं को प्राप्त / संकलित करना ही है। निदर्शन विधि एक वह साधन है, जिसके द्वारा कम साधनों से अधिक गहन तथा विस्तारपूर्वक अध्ययन किया जाता है।

2. निदर्शन पद्धति का दूसरा मुख्य उद्देश्य अनुसंधानकर्ता को उन समस्त कठिनाइयों से बचाना है, जो कि उसे दूसरे लोगों में सम्पर्क स्थापित करने, सूचनायें एकत्रित करने तथा विस्तृत क्षेत्र का निरीक्षण करने में सामने आ खड़ी होती है।

3. इसी प्रकार निदर्शन पद्धति के द्वारा समय, धन तथा परिश्रम की बचत होती है। और समस्या का सूक्ष्म तथा गहन अध्ययन किया जाता है। जनगणना पद्धति अधिक धन व समय तथा अधिक परिश्रम चाहती है। इन सब साधनों को जुटाना वस्तुतः किसी भी अनुसंधानकर्ता के लिए सरल कार्य नहीं है। यही कारण है कि वर्तमान समय में निदर्शन पद्धति का उपयोग निरंतर बढ़ता ही जा रही है।

4. आधुनिक जटिल समाज में सीमित साधनों को देखते हुए यह पद्धति उपयोगिता की दृष्टि से अत्यन्त लाभप्रद और महत्वपूर्ण विधि मानी जा रही है। आधुनिक समय में समय की बचत पर भी पर्याप्त ध्यान दिया जाता है तथा निदर्शन ही एक ऐसा माध्यम है, जिससे अनुसंधानात्मक कार्यों में समय की बचत होती है।

प्रश्न 7 – एक श्रेष्ठ / उत्तम निदर्शन के गुण

एक श्रेष्ठ/उत्तम निदर्शन के गुण (Qualities of Good Sample)

1. एक अच्छा निदर्शन वह है, जो कि ‘समग्र का सही प्रतिनिधित्व’ करता हो। समग्र में विविधतापूर्ण इकाइयाँ रहती हैं। निदर्शन में इन सभी प्रकार की इकाइयों का चयन किया जाता है, ताकि निदर्शन में समग्र की सभी इकाइयों के लक्षणों का प्रतिनिधित्व हो सके।

2. एक श्रेष्ठ / उत्तम निदर्शन का दूसरा गुण उसका ‘पर्याप्त व समुचित आकार’ (Size) है। यह अध्ययन के क्षेत्र, अध्ययन की समस्या और उसकी प्रकृति पर निर्भर करता है कि निदर्शन का आकार कितना हो अर्थात् समग्र की समस्त इकाइयों में से कितने प्रतिशत इकाइयों को निदर्शन में सम्मिलित किया जाये। निदर्शन को न तो बहुत छोटा और न बहुत बड़ा ही होना चाहिए।

3. एक अच्छे निदर्शन में ‘तर्कपूर्ण’ होने का गुण भी विद्यमान होना आवश्यक है। निदर्शन की विभिन्न विधियों में से अध्ययन की आवश्यकतानुसार तर्क के आधार पर किसी एक से निदर्शन का चयन करना चाहिए।

4. निदर्शन अनुसंधानकर्ता के पास ‘उपलब्ध साधनों के अनुरूप’ ही होना चाहिए।

निदर्शन के लाभ/उपयोगिता/महत्व

1. कई बार समग्र की समस्त इकाइयों का अध्ययन अत्यन्त ही कठिन और लगभग असम्भव प्रायः होता है। इस स्थिति में समग्र का अध्ययन करने के लिए निदर्शन ही एकमेव मार्ग या विकल्प हो जाता है।

2. यदि सामग्री अत्यन्त विशाल है, तब समस्त इकाइयों का अध्ययन सम्भव नहीं होगा। निदर्शन प्रणाली से किये गये अध्ययन में समय, श्रम व धन की बचत तो होती ही है साथ ही साथ इससे निष्पक्ष / तटस्थ और वैज्ञानिक निष्कर्ष भी निकाले जा सकते हैं।

3. इसके अतिरिक्त समय का शीघ्र और निर्धारित समय में अध्ययन भी किया जा सकता है।

4. चूँकि निदर्शन समस्त लक्षणों से युक्त समग्र का छोटा प्रतिनिधि होता है, अतः उससे प्राप्त परिणाम समस्त समग्र पर लागू होने वाले होते हैं। निदर्शन प्रणाली का अनुसरण करके भी समस्या का गहन अध्ययन किया जा सकता है।

5. समग्र की समस्त इकाइयों का अध्ययन करने में एक बड़ी समस्या उसके प्रशासन की आती है, जबकि निदर्शन प्रणाली का प्रशासन अत्यन्त ही सरल होता है।

6. निदर्शन प्रणाली में अधिक अनुसंधानकर्ताओं की भी आवश्यकता नहीं होती।

इसके अतिरिक्त बड़ी मात्रा में समान प्रकृति की सूचनाओं के संग्रहण से भी बचाव हो जाता है।

निदर्शन पद्धति के दोष/सीमायें 

निदर्शन के चयन में थोड़ी सी भी गलती अनुसंधानकर्ता को सही निष्कर्षों से बहुत दूर ले जा सकती है। निष्पक्ष निदर्शन के चयन का अभाव अनुसंधान की वैषयिकता को ही समाप्त कर देता है। वैज्ञानिक निष्कर्षों की प्राप्ति हेतु आवश्यक है कि निदर्शन का चुनाव वैज्ञानिक प्रणाली से निष्पक्षतापूर्ण ढंग से किया जाये। निदर्शन में व्यक्तिगत अभिनति के समावेश की सम्भावना रहती है, अतः इससे बचकर ही भ्रमपूर्ण निष्कर्षों से सुरक्षा हो सकती है। निदर्शन का प्रतिनिधिपूर्ण होना अध्ययन की वैषयिकता और परिपूर्णता हेतु आवश्यक है। किन्तु प्रतिनिधिपूर्ण निदर्शन का चुनाव एक कठिन कार्य है, विशेषतः उस समय जबकि अध्ययन की इकाइयां विविधताओं से युक्त हो और अध्ययन विषय विविधताओं वाली प्रकृति का जटिल विषय हो । निदर्शन प्रणाली की इन कमियों / सीमाओं को ध्यान में रखकर यदि अनुसंधा कर्त्ता कुशलतापूर्वक निदर्शन का चुनाव करता है, तो इसके दोषों को काफी कुछ दूर किया जा सकता है।

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shubham yadav

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