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शैक्षिक/अनुदेशन प्रारूप तकनीकी (Educational/Instructional Design Technology)
शैक्षिक/अनुदेशन प्रारूप तकनीकी- शैक्षिक तकनीकी का चतुर्थ वर्ग अनुदेशन प्रारूप है। शिक्षण प्रक्रिया में अनुदेशन प्रारूप का महत्वपूर्ण स्थान है। अनुदेशन प्रारूप दो शब्दों- अनुदेशन और प्रारूप से मिलकर बना है।
अनुदेशन का अर्थ है सूचनाएँ देना तथा प्रारूप का अभिप्राय वैज्ञानिक विधियों के द्वारा जाँच किए गए सिद्धान्तों से है। संसार के समस्त व्यक्ति कुछ आधारभूत लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु कार्य करते हैं और उनका मूल्यांकन करते हैं। प्रत्येक शोध का एक प्रारूप होता है और शिक्षण के क्षेत्र में जिन प्रारूपों पर कार्य किया जाता है, उन्हें अनुदेशन प्रारूप कहते हैं।
According to David Maerill, “Instructional design is the process of specifying and producing particular environmental situation which cause the leaner to interact in such a way that a specified change accrues in his behaviour.”
डेरिक अनविन ने इसका अर्थ बताते हुए स्पष्ट किया है कि अनुदेशन प्रारूप आधुनिक कौशल, प्रविधियों तथा युक्तियों का शिक्षा और प्रशिक्षण में प्रयोग है। अनुदेशन प्रारूप इन कौशलों, प्रविधियों तथा युक्तियों के माध्यम से शैक्षिक वातावरण को नियंत्रित करते हैं। और कक्षा में सीखने तथा सिखाने के कार्य सरल, सुगम तथा उपादेय बनाने में सहायता करते हैं।”
According to Derick Unnwin, “Instructional design is concerned application of modern skill and techniques of requirement of education and teaching. This includes the facilitation of learning by manipulation of media and methods and the control of environment is so for as this reflects on learning.”
अनुदेशन प्रारूप की मान्यताएँ (Assumptions of Instructional Design)
अनुदेशन प्रारूप की मान्यताएँ निम्नलिखित हैं-
(1) अनुदेशन प्रारूप, शिक्षण सिद्धान्तों पर आधारित होता है।
(2) अनुदेशन प्रारूप में नियम, सिद्धान्त तथा रचना की आवश्यकता होती है।
(3) शिक्षक को अनुदेशन प्रारूप प्रशिक्षण के द्वारा प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
(4) अनुदेशन प्रारूप के अनुसार शिक्षण कला एवं विज्ञान दोनो हैं।
(5) अनुदेशन प्रारूप में अधिगम व्यवहार का मापन प्रतिमानों की सहायता से किया जाता है।
(6) अनुदेशन प्रारूप परिकल्पनात्मक तथ्यों को सहज रूप में परीक्षण के लिए स्वीकार करता है।
अनुदेशन प्रारूप के प्रकार (Types of Instructional Design)
अनुदेशन प्रारूप को मुख्यतः तीन भागों में विभाजित किया गया है जो निम्नलिखित हैं-
(1) प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप (Training Psychology Design) – प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप कार्य विश्लेषण तथा उसके सम्बन्धित तत्वों पर बल देता है। प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप शैक्षिक तकनीकों के अदा पक्ष से सम्बन्धित है। इसकी खोज सैनिकों की अनुक्रियाओं के परिणामस्वरूप हुई थी। इस प्रारूप में विश्लेषण विधि की सहायता ली जाती है जिसमें प्रशिक्षण अंगों का विकास किया जाता है। प्रशिक्षण मनोविज्ञान प्रारूप उद्देश्यों तथा कार्यों पर बल देता है।
(2) सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रारूप (Cybernetic Design ) – सम्प्रेषण नियंत्रण शब्द अंग्रेजी के Cybernatics (साइबरनेटिक्स) से लिया गया है। Cybernatics ग्रीक भाषा के Kybernets (काइबरनेट्स) से निकला है जिसका अर्थ है पायलट या प्रशासक। काइबरनेट्स से अभिप्राय शासन करने से है अतः यह कहा जा सकता है कि सम्प्रेषण नियन्त्रण प्रशासन करने की एक व्यवस्था अथवा प्रारूप है। यह प्रारूप छात्रों के व्यवहार को नियंत्रित कर उनके व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाने का कार्य करता है।
(3) प्रणाली उपागम (System Approach) – प्रणाली उपागम का जन्म द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हुआ। इस उपागम ने उस समय से लेकर आज तक सरकार, सेना तथा व्यापार के क्षेत्र से सम्बन्धित प्रबंधकीय निर्णयों को विशेष रूप से प्रभावित किया है। इसका अभिप्राय एक निश्चित क्रमबद्ध व्यवस्था से है जिसमें संगठन के प्रत्येक भाग का सम्बन्ध संगठन के दूसरे भाग से स्पष्ट होना चाहिए। प्रणाली उपागम के अन्तर्गत निम्नलिखित तीन बिन्दु प्रमुख रूप से हैं-
(i) प्रणाली उपागम (System Approach),
(ii) प्रणाली विश्लेषण (System Analysis) एवं
(iii) प्रणाली (System) |
अनुदेशन में मीडिया की भूमिका (Role of Media in Instruction)
मीडिया का उपयोग करके शिक्षक अनुदेशन के उद्देश्यों को सरलता से प्राप्त कर सकता हैं। मीडिया का उपयोग शिक्षक शिक्षार्थियों को सूचना प्रदान करने के माध्यम के रूप में करते हैं। मीडिया, अनुदेशन में प्रौद्योगिकियों के साथ-साथ अवधारणाओं और सन्दर्भों के उपयोग पर भी ध्यान केन्द्रित करती है। सामान्य अर्थों में मीडिया का उपयोग सूचनाओं के आदान-प्रदान या हस्तान्तरण हेतु किया जाता है। किन्तु शिक्षण के परिप्रेक्ष्य में मीडिया का प्रयोग छात्रों को प्रभावी अनुदेशन प्रदान करने हेतु उचित शिक्षण सामग्री उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है। अनुदेशन में मीडिया का उपयोग वही शिक्षक कर सकता है जिसको उसके प्रयोग में कुशलता प्राप्त हो। शिक्षक अपने अनुदेशन को प्रभावी बनाने के लिए विभिन्न श्रव्य-दृश्य साधनों, जैसे- टेलीविजन, कम्प्यूटर आदि का प्रयोग मीडिया / माध्यम के रूप में कर सकता है।
अनुदेशन में मीडिया की भूमिका को निम्नलिखित बिन्दुओं के माध्यम से सरलता से समझा जा सकता है-
(1) अनुदेशनात्मक मीडिया की सहायता से अधिगम सामग्री के वितरण को मानकीकृत किया जा सकता है।
(2) अधिगम प्रक्रिया को और अधिक स्पष्ट एवं रुचिकर बनाने के लिए मीडिया तथ्यों एवं घटनाओं को विभिन्न रूपों, जैसे ध्वनि, चित्र, गति और रंग, प्राकृति या कृत्रिम रूप में प्रसारित करता है जिससे शिक्षक को अधिगम वातावरण को जीवंत बनाने में सहायता प्राप्त होती है।
(3) मीडिया के प्रयोग से नीरस एवं थकाऊ अधिगम प्रक्रिया को रुचिकर बनाया जा सकता है।
(4) मीडिया द्वारा शिक्षक की भूमिका को परिवर्तित करके और अधिक उत्पादक (Productive) एवं सकारात्मक (Positive) बनाया जा सकता है जिससे वह अन्य शैक्षिक परिप्रेक्ष्य, जैसे- अधिगम में हो रही कठिनाइयों में छात्रों की मदद करना, व्यक्तित्व गठन में सहायता करना, अधिगम हेतु प्रेरित करना आदि की ओर ध्यान आकर्षित कर सके।
(5) मीडिया छात्रों एवं अधिगम सामग्री के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण का निर्माण करती है।
(6) मीडिया के माध्यम से छात्रों को विज्ञान एवं स्वयं के ज्ञान के स्रोत के प्रति प्रोत्साहित करके अधिगम प्रक्रिया को और अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
(7) अनुदेशनात्मक मीडिया छात्रों को इस योग्य बनाता है जिसके माध्यम से छात्र बिना शिक्षक के भी कहीं भी, कभी भी अधिगम कर सकता है।
(8) सूचना यदि मौखिक रूप से छात्रों को प्रदान की जाती है तो वह उनके स्मृति में कुछ समय के लिए ही रहती है किन्तु यदि यह सूचना गतिविधियों को देखकर, स्पर्श कर या मीडिया द्वारा स्वयं अनुभव किया है तो वह सूचना छात्रों के स्मृति में अधिक समय तक रहती है।
(9) अनुदेशनात्मक मीडिया के प्रयोग द्वारा छात्रों के अधिगम परिणामों में सुधार किया जा सकता है।
(10) अनुदेशात्मक मीडिया के माध्यम से कम से कम समय एवं परिश्रम द्वारा अधिगम उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है।
(11) शिक्षक को व्याख्या करने के लिए शिक्षण सामग्री की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मीडिया के एक बार प्रयोग करने पर ही छात्रों को प्रकरण आसानी से समझ में आ जाता है।
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