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सूक्ष्म-शिक्षण का इतिहास, अर्थ एवं परिभाषाएँ, विशेषताएँ, उद्देश्य, सिद्धान्त, अवस्थाएँ, प्रक्रिया या सोपान, उपयोग, लाभ, सीमाएँ, सावधानियाँ

सूक्ष्म-शिक्षण

Micro Teaching in Hindi (सूक्ष्म-शिक्षण)- वर्तमान समय में यह अवधारणा है कि शिक्षक जन्मजात होते हैं परन्तु इस बात का खण्डन करते हुए कहा गया कि शिक्षक बनाए भी जाते हैं और इस अवधारणा को भी बल मिला है। शिक्षकों को शिक्षण के विभिन्न कौशलों में निपुण किया जा सकता है। यह सर्वविदित है कि शिक्षण कौशल में दक्ष शिक्षक तैयार करने का दायित्व प्रशिक्षण संस्थाओं पर है। इसके लिए बहुत सी प्रविधियाँ प्रचलित हैं जिनमें से सूक्ष्म-शिक्षण को अत्यन्त प्रभावी पृष्ठपोषण विधि माना गया है।

इसके माध्यम से शिक्षकों या छात्राध्यापकों को शिक्षण की जटिलताओं से अलग रखकर उन्हें एक सरलीकृत शैक्षणिक परिस्थितियों में शिक्षण कौशल का अभ्यास कराया जाता है। सूक्ष्म-शिक्षण अध्यापक के शिक्षण व्यवहार में सुधार सुनिश्चित करने का एक तरीका है।

सूक्ष्म-शिक्षण की अवधारणाएँ इस प्रकार हैं-

(1) सूक्ष्म-शिक्षण द्वारा शिक्षण क्रिया की जटिलताओं को कम किया जा सकता है।

(2) सूक्ष्म – शिक्षण द्वारा शिक्षण कौशलों का विकास किया जाता है।

(3) सूक्ष्म-शिक्षण एक वास्तविक शिक्षण है।

(4) सूक्ष्म-शिक्षण पूर्ण रूप में एक व्यक्तिगत प्रशिक्षण (Individualised Training) का कार्यक्रम है।

(5) सूक्ष्म-शिक्षण प्रतिपुष्टि (Feedback) के माध्यम से अभ्यास को नियंत्रित कर सकता है।

(6) सूक्ष्म – शिक्षण में प्रतिपुष्टि विभिन्न साधनों द्वारा दी जा सकती है। जैसे, प्रशिक्षक द्वारा प्रेक्षण करके, पाठ की वीडियो फिल्म बनाकर तथा साथी छात्राध्यापकों द्वारा ।

सूक्ष्म-शिक्षण का इतिहास (History of Micro-Teaching)

सूक्ष्म-शिक्षण का विकास 20वीं सदी की देन है। सन् 1961 में कीथ एचीसन स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय अमेरिका में शोध कार्य के लिए गए थे। वहाँ अपने साथी आर. एन. बुश तथा डी.डब्ल्यू. एलन के साथ शोध किया जिसके लिए उन्हें फोर्ड फाउन्डेशन से अनुदान प्राप्त हुआ। एलन का अनुसंधान शिक्षण व्यवहार एवं शिक्षण क्रियाओं से सम्बन्धित था।

एचीसन, बुश तथा एलन ने संकुचित अध्ययन – अभ्यास क्रम प्रारम्भ किया। कीथ एचीसन ‘प्रभावी शिक्षण हेतु किन-किन शिक्षण कौशलों की आवश्यकता होती है एवं इसके मापन हेतु किन-किन उपकरणों अथवा यन्त्रों की आवश्यकता होती है इस पर कार्य कर रहे थे।

एचीसन ने एक समाचार पत्र में टेप रिकार्डिंग मशीन के बारे में पढ़ा तथा उसका नाम मैट्रोनिक्स रखा था। इस मशीन के द्वारा छात्राध्यापकों (Pupil Teacher) के शिक्षण कार्यों को रिकार्ड करके उनके व्यवहार में वांछित परिवर्तन लाने के लिए प्रयोग किया था। इसके बाद लोगों ने वीडियों टेप रिकॉर्डर का प्रयोग शिक्षण व्यवहार को सुधारने के लिए करने लगे। इस प्रकार 1963 से सूक्ष्म पाठ की शुरुआत हुई।

स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के ही शोध छात्र हैरी गैरीसन ने अध्यापक सामर्थ्य से सम्बन्धित विषय पर शोध किया तथा ‘स्टेनफोर्ड अध्यापक सामर्थ्य ग्रहण दीपिका (Stanford Teacher Competence Appraisal Guide) तैयार की। वीडियो टेप रिकॉर्डर को सूक्ष्म-शिक्षण के लिए उपयोगी बनाया।

सेन्ट जोसफ स्टेट विश्वविद्यालय के छात्राध्यापकों को 1963 में क्लेन बैक (Klen Back) ने दो समूहों में विभाजित किया। सूक्ष्म-शिक्षण के द्वारा एक समूह को दूसरे समूह के अनुभवों द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। इस प्रकार दोनों की निष्पत्ति स्तर समान ही पाया गया परन्तु सूक्ष्म-शिक्षण के द्वारा बहुत कम समय में ही शिक्षण की बारीकियों का पता लग जाता है जो कि परम्परागत शिक्षण से कहीं बेहतर था।

इसके अतिरिक्त 1966 में टर्नी ने ब्रिटेन में, वोर्ग ने केलिफोर्निया, 1970 में रैसनिक आदि ने सूक्ष्म- शिक्षण पर शोध करके नवीन शिक्षण विधियों का प्रतिपादन किया।

भारत में 1967 में डी. डी. तिवारी ने सूक्ष्म-शिक्षण का प्रारम्भ किया। जो केन्द्रीय शैक्षणिक संस्थान, इलाहाबाद में कार्यरत थे। सन् 1970 में बड़ौदा एम. एस. (M.S) यूनिवर्सिटी में जी.बी. शॉ (G.B. Shaw) ने सूक्ष्म- शिक्षण पर शोध किए। तब तकनीकी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान (TTTI), मद्रास ने सूक्ष्म-शिक्षण का प्रयोग तकनीकी शिक्षकों को प्रशिक्षित करने में किया।

सन् 1947 में एन.एल. दोशाज (N.L. Dosajh) ने शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान चण्डीगढ़ में सूक्ष्म-शिक्षण को एक शिक्षण उपकरण के रूप में प्रयोग किया। इन्होंने मॉडीफिकेशन ऑफ टीचर विहेवियर थ्रो माइक्रो टीचिंग (Modification of Teacher Behaviour Through Micro Teaching) पुस्तक लिखी। एनसीईआरटी तथा एससीईआरटी ने अलग-अलग राज्यों में इस अवधारणा का प्रचार किया।

सूक्ष्म-शिक्षण का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Micro Teaching)

सूक्ष्म शब्द अंग्रेजी के माइक्रो (Micro) शब्द का हिन्दी रूपान्तरण है जिसका अर्थ है लघु अर्थात् लघु स्तर पर कार्य करना। इसके विपरीत मैक्रो (Macro) का अर्थ है वृहद अर्थात् बड़े स्तर पर कार्य करना अन्य शब्दों में, किसी बड़े स्तर पर किए जाने वाले कार्य को जब हम पहले लघु स्तर पर आयोजित करते हैं तो उसे सूक्ष्म कार्य कहा जाता है। सूक्ष्म-शिक्षण भी वृहद शिक्षण का सूक्ष्मीकरण है।

ए. डब्ल्यू. डी. एलेन के अनुसार, सूक्ष्म-शिक्षण समस्त शिक्षण को लघु क्रियाओं में बाँटना हैं।”

According to A.W.D. Allen, “Micro teaching is the scale down teaching encounter.”

अरविन के अनुसार, सूक्ष्म शिक्षण, वास्तविक कक्षा शिक्षण की अपेक्षाकृत एक अनुकरणीय शिक्षा है।”

According to Arwin, “Micro-teaching is a simulated teaching instead of real class-room.”

बी. एम. शोर के अनुसार, “सूक्ष्म-शिक्षण कम अवधि कम शिक्षण क्रियाओं वाली प्रविधि हैं।”

According to B.M. Shore, “Micro-teaching is a real teaching range of activities.” स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसार, सूक्ष्म-शिक्षण अध्यापन, अभ्यास, कक्षा आकार व कक्षा अवधि में न्यूनीकृत अनुमाप हैं।

According to Stanford University, “Micro-teaching is scale down teaching incounter in classroom and class-time”

मैक एलीज एवं अन्विन के अनुसार, “शिक्षक प्रशिक्षणार्थी द्वारा सरलीकृत वातावरण में किए गए शिक्षण व्यवहारों को तत्काल प्रतिपुष्टि प्रदान करने के लिए क्लोज सर्किट टेलीविजन के प्रयोग को प्रायः सूक्ष्म-शिक्षण कहा जाता है।”

According to Mc.Allese and Unwin, “The term micro-teaching is most often applied to the use of closed circuit television to give immediate feedback of a trainee teachers performance in a simplified environment.”

सूक्ष्म-शिक्षण की विशेषताएँ (Characteristics of Micro-Teaching)

सूक्ष्म-शिक्षण की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) सूक्ष्म – शिक्षण में शिक्षण के तत्वों को सूक्ष्म स्वरूप दिया जाता है।

(2) कक्षा शिक्षण के दौरान आने वाली समस्याओं एवं कठिनाइयों को सूक्ष्म-शिक्षण के द्वारा दूर किया जा सकता है।

(3) यह प्रशिक्षण विश्लेषण की प्रभावी विधि है।

(4) यह कम समय में अधिक दक्षता प्रदान करने वाली विधि है।

(5) सूक्ष्म-शिक्षण व्यक्तिगत शिक्षण की प्रविधि है।

(6) इसमें कक्षा का आकार, समयावधि एवं विषयवस्तु कम होती हैं।

7) यह शिक्षकों में व्यावसायिक परिपक्वता का विकास करती है।

(8) निरीक्षक छात्राध्यापक ही निर्देशक का कार्य करता है।

(9) छात्रों को तत्काल प्रतिपुष्टि प्राप्त हो जाती है।

सूक्ष्म शिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Micro Teaching)

सूक्ष्म-शिक्षण के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-

(1) छात्राध्यापक को एक-एक शिक्षण कौशल में निपुणता प्राप्त कराना।

(2) वृहद शिक्षण में आने वाली कठिनाइयों का ज्ञान छात्राध्यापकों को कराना।

(3) छात्राध्यापकों के आत्मविश्वास में वृद्धि करना।

(4) छात्राध्यापक को तुरन्त पृष्ठपोषण दिए जाने से वह अपनी शिक्षण त्रुटियों में तुरन्त सुधार कर लेता है।

(5) छात्राध्यापकों द्वारा की जा रही त्रुटियों को दूर करने के लिए इस कौशल – विशेष का बार-बार अभ्यास कराया जाता है।

(6) छात्राध्यापकों के सम्मुख कम छात्र होने से वे आत्मविश्वास के साथ शिक्षण करते हैं।

सूक्ष्म-शिक्षण के सिद्धान्त (Principle of Micro Teaching)

सूक्ष्म-शिक्षण के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं-

(1) सूक्ष्म-शिक्षण एक जटिल प्रक्रिया है, जिसे आसान कौशलों में विश्लेषित किया जा सकता है।

(2) सूक्ष्म-शिक्षण वास्तविक शिक्षण होता है।

(3) सूक्ष्म-शिक्षण सरल शिक्षण परिवेश में एक-एक घटक शिक्षण कौशलों को लेकर उन पर कुशलता प्राप्त की जा सकती है।

(4) पृष्ठपोषण सहित प्रशिक्षण कौशल में सहायता करता है।

(5) एक समय में किसी भी एक कौशल के प्रशिक्षण पर बल दिया जाता है। वास्तविक शिक्षण के लिए उन्हें फिर मिलाया जा सकता है।

(6) कौशल प्रशिक्षण वास्तविक शिक्षण में परिवर्तित किया जा सकता है।

सूक्ष्म-शिक्षण की अवस्थाएँ (Phases of Micro Teaching)

सूक्ष्म- शिक्षण मुख्य रूप से तीन चरणों में विभाजित हैं-

(1) ज्ञान प्राप्ति अवस्था (Knowledge Acquisition Phase),

(2) कौशल प्राप्ति अवस्था (Skill Acquisition Phase) एवं

(3) स्थानान्तरण अवस्था (Transfer Phase)

(1) ज्ञान प्राप्ति अवस्था (Knowledge Acquisition Phase)- इस अवस्था में छात्राध्यापक उन शिक्षण कौशलों का ज्ञान प्राप्त करता है जिसका उसे प्रशिक्षण प्राप्त करना है। इस कार्य हेतु वह कौशल में प्रयुक्त होने वाले घटकों तथा कक्षागत शिक्षण में इस कौशल की उपयोगिता एवं महत्व के बारे में जानकारी प्राप्त करता है। ज्ञान प्राप्ति की अवस्था कई रूपों में पूरी की जाती है। इसके तहत प्रशिक्षणार्थी संदर्भित साहित्य पढ़कर, कौशल के बारे में दिए गए प्रदर्शन को देखकर और कौशल को विभिन्न घटकों में विभक्त कर सीखता है।

(2) कौशल सम्प्राप्ति की अवस्था (Skill Acquisition Phase) – इस चरण में छात्राध्यापक प्रदर्शन पाठ को देखने के बाद सूक्ष्म-शिक्षण हेतु पाठ योजना का निर्माण करता है वह सम्बन्धित कौशल का अभ्यास तब तक करता है जब तक उसे उस कौशल में सम्पूर्ण रूप से दक्षता प्राप्त नहीं हो जाती है। इस अवस्था को मुख्य रूप से दो घटकों में बांटा गया है-

(i) प्रतिपुष्टि स्तर एवं

(ii) सूक्ष्म शिक्षण नियोजन की अवस्था।

सूक्ष्म-शिक्षण के तहत कौशल अभ्यास की अवस्था में प्रशिक्षक छात्राध्यापक को प्रतिपुष्टि प्रदान करता है जिसमें सीखे जाने वाले कौशल की अपेक्षाओं के अनुरूप न्यूनताओं के बारे में भी विशेष उल्लेख होता है जिसके आधार पर छात्राध्यापक अपने शिक्षण कौशल को संशोधित करता है कक्षा नियोजन में कक्षा का आकार, समयावधि, पर्यवेक्षक का प्रतिपुष्टि प्रदान करने का तरीका आदि घटक होते हैं।

(3) स्थानान्तरण स्तर (Transfer Phase) – इस अवस्था में छात्राध्यापक सूक्ष्म-शिक्षण में कौशलार्जन चरण द्वारा सीखे हुए कौशल का वास्तविक कक्षा की परिस्थिति में स्थानान्तरण करता है। इस प्रकार सूक्ष्म शिक्षण के विभिन्न कौशलों के समन्वय में दक्षता प्राप्त करना इस अवस्था का मुख्य प्रयोजन होता है।

सूक्ष्म-शिक्षण की प्रक्रिया या सोपान (Process or Step of Micro Teaching)

सूक्ष्म-शिक्षण प्रक्रिया सामान्यतः निम्न सोपानों में की जाती है-

(1) प्रथम सोपान- पाठ-योजना निर्माण (Construction of Lesson Plan)- छात्राध्यापक को एक शिक्षण कौशल, जैसे- वर्णन करना (Narration) व्याख्या करना (Exposition), प्रश्न पूछना ( Question asking) आदि में से किसी एक जिसे कि छात्राध्यापक को सीखना है का ज्ञान उसे प्रशिक्षण की परिस्थिति में करा दिया जाता है और उस पर आधारित सूक्ष्म शिक्षण की पाठ योजना तैयार की जाती है।

(2) द्वितीय सोपान – कक्षा शिक्षण (Class Teaching)- छात्राध्यापक छोटे से पाठ को अपने सहयोगी छात्रों द्वारा 5-10 मिनट तक पढ़ाता है यह सोपान सूक्ष्म-शिक्षण का शिक्षण- सत्र (Teaching-session) कहलाता है।

(3) तृतीय सोपान- प्रतिपुष्टि (Feedback)- छात्राध्यापक द्वारा पढ़ाए गए पाठ की प्रभाविता के विषय में पर्यवेक्षक द्वारा एक विशेष रूप से विकसित मूल्यांकन प्रपत्र (Evaluation-Proforma ) की सहायता से जानकारी दी जाती है या सम्पूर्ण पाठ को ऑडियो टेप के माध्यम से रिकार्ड कर लिया जाता है तथा पर्यवेक्षक, प्रशिक्षणार्थी को आडियो टेप सुना कर उसकी कमियों को इंगित करता है। शिक्षण की समाप्ति के पश्चात् छात्राध्यापकों के साथ पर्यवेक्षक मूल्यांकन प्रपत्र की सहायता से पाठ की प्रभाविता पर विचार-विमर्श (Discussion) करता है इस प्रकार पर्यवेक्षक छात्राध्यापक को तुरन्त प्रतिपुष्टि प्रदान करता है।

(4) चतुर्थ सोपान – पुनः पाठ-योजना (Re-Lesson Planning) – प्रतिपुष्टि के तुरन्त बाद छात्राध्यापक सुझाए गए विचारों के आधार पर फिर पाठ को पुनः नियोजित करता है सूक्ष्म-शिक्षण का यह सोपान पुनर्योजना सत्र (Re-plan session) कहलाता है।

(5) पंचम सोपान – पुनर्शिक्षण (Re-Teaching)- पुनर्योजना के पश्चात् पुनर्योजित पाठ को उसी के समान स्तर के दूसरे समूह पर पुनर्शिक्षण कराया जाता है। यह सोपान पुनर्शिक्षण सत्र (Re-teaching session) कहलाता है।

(6) षष्ठ्म सोपान – पुनः प्रतिपुष्टि (Re-Feedback) – पुनर्योजित पुनर्शिक्षण पाठ को पुनः पर्यवेक्षित कर पर्यवेक्षक छात्राध्यापक से फिर पाठ सम्बन्धित विचार-विमर्श करता है व पुनः प्रतिपुष्टि प्रदान करता है।

सूक्ष्म-शिक्षण की प्रक्रिया को शिक्षण पदों में विभाजित करके सम्पन्न किया जाता है। इस शिक्षण प्रक्रिया में प्रत्येक पद / कौशल का पृथक रूप से प्रशिक्षण दिया जाता है। किसी एक कौशल के प्रशिक्षण में प्रयुक्त प्रविधियों के अनुसार सामान्य रूप से अलग- अलग समय लगता है जो निम्न प्रविधियों के अनुसार विभाजित है।

सूक्ष्म-शिक्षण का उपयोग (Uses of Micro Teaching)

छात्राध्यापकों के प्रभावी अध्यापन प्रक्रिया के लिए सूक्ष्म-शिक्षण एक महत्वपूर्ण एवं उपयोगी प्रविधि है। छात्राध्यापकों के प्रशिक्षण में शिक्षण कौशलों के विकास में शिक्षण घटकों को विकसित करने के लिए सूक्ष्म-शिक्षण का उपयोग किया जाता है। सूक्ष्म-शिक्षण के प्रयोग हेतु योग्य शिक्षकों एवं उचित व्यवस्था की आवश्यकता है तभी प्रशिक्षणार्थियों को सही ज्ञान तथा प्रशिक्षण दिया जा सकता है। अतः सूक्ष्म-शिक्षण विधि का उपयोग निम्नलिखत प्रकार से है-

(1) आदर्श पाठ हेतु उपयोगी (Useful for Model Lesson)- प्रशिक्षणार्थियों को विभिन्न शिक्षण-कौशलों पर आधारित आदर्श पाठों को वीडियो से या टेपरिकार्डर के माध्यम से दिखाए या सुनाए जाते हैं जिसके परिणाम स्वरूप विभिन्न शिक्षण कौशलों के विषय में छात्राध्यापकों को पूर्ण व गहन जानकारी प्राप्त हो जाती है।

(2) व्यावसायिक परिपक्वता या निपुणता हेतु उपयोग (Useful for Professional Maturity or Efficiency)- छात्राध्यापकों में कक्षा शिक्षण की सफलता हेतु सूक्ष्म-शिक्षण के द्वारा आत्म-विश्वास विकसित होता है। सूक्ष्म-शिक्षण से प्रशिक्षणार्थियाँ में व्यावसायिक निपुणता तथा परिपक्वता विकसित होती है। सूक्ष्म-शिक्षण द्वारा विशिष्ट विषय या अध्यापन प्रणाली का चयन करके कम समय में अभ्यास कराकर शिक्षक विभिन्न कौशल की प्रभावशीलता एवं सफलता का मूल्यांकन कर सकते हैं।

(3) सेवारत प्रशिक्षण हेतु उपयोग (Useful for In-Service Training) – छात्राध्यापकों को शिक्षण कौशलों की पूर्व तैयारी कराने में सूक्ष्म-शिक्षण उपयोगी एवं सहायक होता है। छात्राध्यापक के समक्ष अप्रत्यक्ष रूप से कक्षा शिक्षण से सम्बन्धित परिस्थितियाँ उत्पन्न की जाती हैं। सेवारत शिक्षकों के व्यवहार में अनेक प्रकार की दृढ़ता तथा कुछ बातें उनकी आदत सी बन जाती है। इस दृढ़ता को कम करने एवं आदतों में सुधार लाने के लिए सूक्ष्म-शिक्षण एक उपयोगी विधि है। सूक्ष्म-शिक्षण की उपयोगिता सेवापूर्ण एवं सेवारत शिक्षक के सम्बन्ध में निम्नलिखित प्रकार से उपयोगी होती है।

(i) सेवापूर्व शिक्षक के लिए उपयोगी- सेवापूर्व स्थिति में शिक्षक के लिए सूक्ष्म-शिक्षण निम्नलिखित प्रकार से उपयोगी है।

(a) प्रशिक्षणार्थी को भली-भाँति शिक्षण कौशल का ज्ञान हो जाता है।

(b) छात्राध्यापक को शिक्षित करने में सहायक होता है।

(c) सूक्ष्म-शिक्षण का अभ्यास करके प्रशिक्षार्थी भली-भाँति शिक्षण कार्य कर सकता है।

(ii) सेवारत शिक्षक के लिए उपयोगी सूक्ष्म-शिक्षण सेवारत शिक्षक के लिए निम्नलिखित प्रकार से उपयोगी है।

(a) शिक्षक जिस कौशल को सुधारना चाहता हो उसे सूक्ष्म-शिक्षण के द्वारा विस्तृत रूप से प्राप्त कर सकता है।

(b) इससे शिक्षण योजना में सुधार होता है।

(c) शिक्षक को नवीन कौशल को सिखाने में सहायक होती है।

(4) स्व मूल्यांकन के लिए उपयोगी (Useful for Self-Evaluation)- शिक्षक अपने पाठ की स्वालोचना तथा स्व मूल्यांकन सूक्ष्म-शिक्षण की सहायता से कर सकता है। वीडियो टेप व टेप रिकार्डर की सहायता से अपने पाठ की रिकार्डिंग करके उसे स्वयं सुनकर उसमें सुधार कर सकता है। इस प्रकार सूक्ष्म-शिक्षण स्व मूल्यांकन के लिए उपयोगी हैं।

(5) निरन्तर प्रशिक्षण का साधन (Continuous Training)- शिक्षक निरन्तर अभ्यास एवं प्रशिक्षण से अपने शिक्षण-व्यवहार में कार्य कुशलता एवं प्रभावशीलता प्राप्त कर सकता है। शिक्षकों को सूक्ष्म-शिक्षण के द्वारा कम समय में वांछित कौशल व प्रणाली का प्रशिक्षण दिया जा सकता है। इस प्रकार सूक्ष्म-शिक्षण निरन्तर प्रशिक्षण के मुख्य साधन के रूप में है।

(6) अनुसंधान का साधन (Resource of Research) – अनुसंधान की परिस्थिति में सूक्ष्म-शिक्षण का प्रारम्भ हुआ तभी से सूक्ष्म-शिक्षण का प्रयोग शिक्षण-कला के रूप में होता आ रहा है। विश्व के अनेक स्थानों पर सूक्ष्म-शिक्षण से सम्बन्धित अनेक शोध कार्य चल रहे हैं। अतः सूक्ष्म-शिक्षण का उपयोग अनुसंधान के साधन के रूप में किया जाता है।

(7) पर्यवेक्षण प्रणाली को नया स्वरुप प्रदान करने में उपयोगी (Useful in Providing Supervision System of New Pattern) – पर्यवेक्षक कम समय में सम्पूर्ण पाठ देखकर एक ही कौशल पर सुझाव देता है जिसे समझकर छात्राध्यापक सूक्ष्म-शिक्षण द्वारा शीघ्र ही सुधार करके पुनः पाठ पढ़ाने की स्थिति में आ जाता है। इस प्रकार पर्यवेक्षण प्रणाली को नया स्वरूप प्रदान करने में सूक्ष्म-शिक्षण उपयोगी होता है।

(8) सिद्धान्त एवं व्यवहार का एकीकरण करने में सहायक (Instrumental in Integration of Theory and Practice)- छात्राध्यापकों में शिक्षण प्रक्रिया की सफलता हेतु उचित एवं पर्याप्त अभिप्रेरण होना आवश्यक है। सभी कौशलों के पर्याप्त अभ्यास के बाद सम्पूर्ण कौशल योग्यताओं का एकीकरण विस्तृत पाठ में किया जाता है। छात्राध्यापक प्रारम्भिक प्रशिक्षण शिक्षण कौशलों के एकीकरण से ही प्राप्त करता है।

सूक्ष्म-शिक्षण के लाभ (Advantages of Micro-Teaching)

प्रशिक्षण विधि के रूप में सूक्ष्म-शिक्षण के लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) सूक्ष्म – शिक्षण कक्षा शिक्षण की जटिलताओं को कम करता है।

(2) सूक्ष्म- शिक्षण से शिक्षण प्रक्रिया सरल हो जाती है।

(3) यह विधि छात्राध्यापकों में आत्मविश्वास उत्पन्न करता है।

(4) सूक्ष्म – शिक्षण छात्राध्यापकों के अनुसार परिवर्तन में अधिक प्रभावी होता है।

(5) सेवारत अध्यापकों के व्यवहार में सुधार लाने के लिए यह विधि उपयोगी है।

(6) छात्राध्यापक क्रमशः अपनी योग्यतानुसार शिक्षण कौशलों पर अपना ध्यान केन्द्रित करते हुए विकसित करता है तथा सीखने का प्रयत्न करता है।

(7) सूक्ष्म- शिक्षण छात्राध्यापकों को कम समय में अधिक सिखाता है।

(8) छात्राध्यापक को मूल्यांकन में अपना पक्ष रखने का पूर्ण अधिकार होता है। मूल्यांकन प्रक्रिया में छात्राध्यापक सक्रिय रखा जाता है।

(9) सूक्ष्म- शिक्षण में छात्राध्यापक शिक्षण कार्य के लिए सीधे बड़ी कक्षा में न जाकर छोटी कक्षा, कम छात्र तथा छोटी पाठयोजना के माध्यम से अध्यापन कार्य सिखाया जाता है। जो छात्राध्यापक के लिए लाभदायक सिद्ध होता है।

(10) सूक्ष्म- शिक्षण निरीक्षण प्रणाली को नया स्वरूप प्रदान करती है।

(11) इसके द्वारा शिक्षण कौशलों का अभ्यास वास्तविक जटिल परिस्थितियों की अपेक्षा अधिक सरल परिस्थितियों में कराया जाता है।

(12) सूक्ष्म – शिक्षण प्रविधि से छात्राध्यापक का वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन किया जाता है।

सूक्ष्म-शिक्षण के प्रशिक्षण विधि के रूप इससे होने वाले लाभ को देखते हुए डा. के.पी. पाण्डेय ने कहा है कि- “सूक्ष्म-शिक्षण का औचित्य इसके सरलीकृत स्वरूप, सुगम एवं सुरक्षित परिस्थितियों की उपलब्धता तथा प्रतिपुष्टि की निश्चयात्मक तकनीकों के लिए स्थापित किया गया है। यह शिक्षण व्यवहार के अध्ययन हेतु एक महत्वपूर्ण साधन तथा सेवारत एवं सेवापूर्ण दोनों ही प्रकार के शिक्षकों के व्यवहार में कुशलता लाने हेतु लाभदायक एवं प्रभावी विधि है।

सूक्ष्म-शिक्षण की सीमाएँ (Limitations of Micro Teaching)

सूक्ष्म-शिक्षण की कुछ सीमाएँ होती हैं जो कि इस प्रकार हैं-

(1) इस प्रणाली को ‘यांत्रिक’ बताकर इसे अच्छी प्रणाली नहीं माना गया है।

(2) इसमें प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव है।

(3) वास्तविक कक्षा में 25 से 30 तक विद्यार्थी होते हैं जबकि सूक्ष्म शिक्षण में 5 से 10 तक छात्र होते हैं। इससे छात्राध्यापक को वास्तविक कक्षा अनुशासनहीनता की समस्या का सामना करना पड़ता है।

(4) सूक्ष्म – शिक्षण सम्पूर्ण शिक्षक प्रशिक्षण प्रणाली का स्थान लेने की क्षमता नहीं रखता है।

(5) सभी शिक्षक-प्रशिक्षण महाविद्यालयों में वीडियो फिल्म, टेप रिकार्डर आदि उपलब्ध नहीं होते हैं।

(6) कौशल के घटकों पर बल दिया जाता है एवं विषयवस्तु गौण रहती है। सूक्ष्म-शिक्षण की कुछ सीमाएँ या दोष होते हुए भी यह एक महत्वपूर्ण शिक्षण-पद्धति है।

सूक्ष्म-शिक्षण अनेक शिक्षण सम्बन्धी खोजों में से एक महत्वपूर्ण खोज है। यह छात्राध्यापकों को स्व-अभ्यास के लिए प्रेरित करके उसका उचित मार्गदर्शन करती है।

सूक्ष्म-शिक्षण के प्रयोग में सावधानियाँ ( Precautions in Use of Micro-Teaching)

सूक्ष्म-शिक्षण का प्रयोग करते समय निम्नलिखित सावधानियां रखनी चाहिए-

(1) सूक्ष्म-शिक्षण कौशल के अभ्यास हेतु कक्षा का आकार छोटा होना चाहिए।

(2) सूक्ष्म-शिक्षण करते समय सम्बन्धित शिक्षण कौशल के घटकों को ही आधार बनाया जाए।

(3) किसी विशिष्ट सूक्ष्म-शिक्षण पर आधारित पाठ्य-वस्तु का शिक्षण समय अधिकतम 10 से 12 मिनट ही लेना चाहिए।

(4) एक समय में केवल एक ही कौशल सिखाया जाए तथा उसी पर ध्यान केन्द्रित किया जाए।

(5) सूक्ष्म-शिक्षण कौशल से पूर्व छात्राध्यापक को अपनी पाठ योजना बना लेनी चाहिए।

(6) पाठ से पूर्व शिक्षण कौशलों का निर्धारण कर लेना चाहिए।

(7) प्रशिक्षण तथा शिक्षण उद्देश्यों की विशिष्टता स्पष्ट की जानी चाहिए।

(8) निरीक्षण प्रपत्र पर छात्राध्यापक के हस्ताक्षर करवाया जाए जिससे उसे अपने शिक्षण सम्बन्धी स्तर का ज्ञान हो सके।

(9) छात्राध्यापक को अपना शिक्षण प्रभावशाली बनाने के लिए सभी शिक्षण कौशलों में दक्षता प्राप्त होनी चाहिए।

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shubham yadav

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