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साइबर विधि क्या है? साइबर विधि की आवश्यकता | What is cyber law

साइबर विधि क्या है
साइबर विधि क्या है

साइबर विधि क्या है( What is cyber law)

साइबर विधि क्या है साइबर विधि का आशय एक ऐसी विधि से है जो वस्तुतः कई विधियों का समूह है, यथा, संगणक विधि (computer law), अन्तरजाल विधि (internet law), और सूचना प्रौद्योगिकी विधि (information technology law)। अन्तरजाल विधि (internet law), और सूचना प्रौद्योगिकी विधि (information technology law)। अन्तरजाल विधि एवं सूचना प्रौद्योगिकी विधि प्रायः समानार्थी की तरह प्रयुक्त होते हैं। संगणक विधि (Computer law) एक सुभिन्न विधि है, यद्यपि इसमें और पूर्वोक्त विधियों में सर्वश्रेष्ठ तत्वों की उपस्थिति से इनकार नहीं किया जा सकता।

इसलिए, जब हम संगणक प्रौद्योगिकी विधि (computer technology law), या सिर्फ संगणक विधि (computer law) का अध्ययन करते हैं तो हम अभिन्यास अभिकल्प ( layout designs), एकस्व (patent), प्रतिलिप्याधिकार, आदि से सम्बन्धित विधियों का, जहाँ तक संगणक (Computer) और उसकी सामान्य कार्य प्रणाली में इनका अनुप्रयोग है, अध्ययन करते हैं। दूसरी तरफ, जब हम सूचना प्रौद्योगिकी विधि की बातें करते हैं तो हमारा उद्देश्य इस प्रौद्योगिकी के संगणकों एवं इस तरह के अन्य उपकरणों पर अनुप्रयोग से उत्पन्न विधिक पहलुओं पर विचार करना होता है जिनका सम्बन्ध आँकड़ों की पहचान, मान्यता, प्रमाणन, श्रेय, संरक्षण, पारेषण एवं संसूचना और ऐसी ही अन्य बातों से होता है।

अतः यह कह सकते हैं कि साइवर विधि समुच्चय बोधिनी संज्ञा (collective noun) है जबकि उपरोक्त दूसरी विधियाँ व्यक्ति बोधिनी संज्ञाएँ हैं। परन्तु कभी-कभी इस तरह की सुभिन्नता के बगैर भी काम चल जाता है। उदाहरणार्थ, जब हम साइवर दुष्कृत्य या साइवर अपराध की बात करते हैं तो इससे वे सभी अपराध अभिप्रेत होते हैं, जो किसी संगणक या संगणक प्रक्रम (computer system) या संगणक संजालों (computer networks) के सन्दर्भ में कारित होते हैं।

साइबर विधि की आवश्यकता(Necessity of Cyber Law)

साइबर विधि की आवश्यकता – विधि का मुख्य प्रयोजन समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करना तथा शांति व्यवस्था बनाए रखना है। सामाजिक परिवर्तनों के साथ विधि में भी परिवर्तन करना आवश्यक होता है। इसी श्रृंखला में सूचना प्रौद्योगिकी एवं कम्प्यूटर विज्ञान की प्रगति के फलस्वरूप इनसे जुड़े अपराधों की रोकथाम के लिए कानून निर्मित किये जाना तथा विद्यामान कानूनों में संशोधन किया जाना आवश्यक हुआ।

वर्तमान 21 सदी के कम्प्यूटर युग में अनेक ऐसे नये अपराध अस्तित्व में आये जिनके बारे में पहले कभी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। जब साइबर अपराध एक ही स्थान से दूरस्थ देशों में विभिन्न जगहों पर कारित होना सम्भव हो गया है। जबकि अपराधी का अपराध के स्थान पर उपस्थित रहना आवश्यक नहीं है। नई प्रौद्योगिकी के परिणामस्वरूप दूर संचार क्षेत्र में प्रगति के कारण अब कम्प्यूटर की छोटी सी डिस्क या फाइल में सन्देशों या जानकारी का अपार भंडार संग्रहीत करना, परिचालित करना या डाटा इधर-उधर वितरित करना अत्यन्त सरल हो गया है परन्तु साइबर अपराधियों द्वारा इनका दुरुपयोग किये जाने के अवसरों में भी उतनी ही वृद्धि हुई है।

इनसे कम्प्यूटर नेटवर्क के माध्यम से डाटा की चोरी, अश्लील सामग्री का प्रसारण, अनधिकृत-अभिगमन (unauthorized access or Hacking), वाणिज्यिक एवं बैंकों में धोखाधड़ी, गबन आदि के साइबर अपराध बहुलता से घटित हो रहे हैं। चूँकि साइबर अन्तरिक्ष की कोई

भौगोलिक सीमाएँ नहीं होती और न इसमें लिंग, आयु, स्वभाव आदि जैसे मानवीय लक्षण ही होते हैं, इसलिए विधि प्रवर्तनकारियों के लिए साइबर स्पेस में घटित होने वाले अपराधों पर नियन्त्रण रखना कठिन होता है। यद्यपि व्यावहारिक दृष्टि से इन्टरनेट का उपयोग करने वाला व्यक्ति (Internet user) ऑनलाइन गतिविधियों के लिए अपने देश के विधि द्वारा प्रशासित होता है, परन्तु जब दूर संचार देश के बाहर पारेषित किया जाता है और उसके सम्बन्ध में कोई विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है तो इन्हें हल करने हेतु कोई अन्तर्राष्ट्रीय साइवर कानून अस्तित्व में नहीं होने के कारण समस्या उत्पन्न हो जाना स्वाभाविक ही है।

साइवर अपराधी की गुमनामी (anonymity) तथा उसके पकड़े जाने की संभावना न्यूनतम होने के कारण वे कम्प्यूटर तकनीक से अपराध कारित करना बेहतर समझते हैं क्योंकि उत्पीड़ित व्यक्ति के लिए अपराधी की पहचान करना सम्भव नहीं होता है। तथापि भारत में साइबर अपराधों के निवारण एवं नियन्त्रण के लिए दंडविधि तथा साक्ष्य विधि में कतिपय संशोधनों के अतिरिक्त एक पृथक कानून अस्तित्व में लाया गया है, जो सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 के रूप में प्रभावी है।

ज्ञातव्य है कि साइबर अपराधों की बहुलता की दृष्टि से विश्व में भारत पाँचवें स्थान पर है। सन् 2010-2014 की अवधि में भारत हुए वेबसाइट हैलिंग की वार्षिक औसत दर 9500/ के लगभग है। वर्तमान समय में साइबर अपराधियों ने अपना दायरा केवल कम्प्यूटर तक सीमित न रखते हुए सेल फोन, स्मार्टफोन, मोबाइल और टेबलेट्स पर साइबर हमले तक बढ़ा लिया

अधिकांश प्रमुख सर्विस प्रोवाइडर जैसे याहू, हॉटमेल, गूगल, फेसबुक, ट्विटर आदि अमेरिका से संचालित होने के कारण, साइबर अपराध सम्बन्धी किसी सूचना को प्राप्त करने में लगभग 15 से 45 दिनों का समय लगता है जो स्वयं में काफी लम्बा समय है।

इसके अतिरिक्त अनेक मामलों की छानबीन के लिए लाग्ज (Logs) प्रोफाइल तथा ई-मेल के टेपस्ट की आवश्यकता होती है। इस कारण आपसी विधिक सहायता सन्धि (Mutual Legal Assistance Trityl MLAT) तथा लेटर रोगेटरी (Latter Rogatory-LR) माध्यम सहायता करने में हिचकिचाते हैं। क्योंकि इसमें एक अत्यन्त दीर्घकालीन प्रक्रिया अन्तर्निहित होती है जिससे अन्वेषण कार्यवाही के व्यर्थ सिद्ध होने की सम्भावनाएँ बनी रहती हैं।

साइबर अपराधों की सूचनाओं के त्वरित (शीघ्र) आदान-प्रदान हेतु भारत ने अमेरिका के समक्ष प्रस्ताव रखा है कि एक भारत-अमेरिका चेतावनी तथा निगरानी नेटवर्क (Indo-American Alert, Watch & Warn Network) स्थापित किया जाए जिसमें दोनों देशों की अन्वेषण-एजेन्सियों आपस में साइबर अपरार्थों सम्बन्धी सूचनाओं का आदान-प्रदान करें ताकि इनका अविलम्ब पता लगाकर कार्यवाही की जा सके।

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shubham yadav

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