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उच्चतम न्यायालय में अपील का प्रावधान | Appeal in The Supreme Court in Hindi

उच्चतम न्यायालय में अपील का प्रावधान
उच्चतम न्यायालय में अपील का प्रावधान

उच्चतम न्यायालय में अपील का प्रावधान – उच्चतम न्यायालय में अपील में सम्बन्धित प्रावधान आदेश 45 में दिया गया है, जिसका मुख्य प्रावधान निम्न है

1. डिक्री की परिभाषा (Definition of Decree)

इस आदेश में, जब तक की विषय या सन्दर्भ में कोई बात विरुद्ध न हो, “डिक्क्री” पद के अन्तर्गत अन्तिम आदेश भी आयेगा।

2. उस न्यायालय से आवेदन जिसकी डिक्री परिवादित है –(1) जो कोई उच्चतम न्यायालय में अपील करना चाहता है वह उस न्यायालय में अर्जी द्वारा आवेदन करेगा जिसकी डिक्री परिवादित है।

(2) उपनियम (1) के अधीन हर अर्जी की सुनवाई यथासम्भव शीघ्रता से की जायेगी और आवेदन के निपटारे को उस तारीख से जिसकी वह अर्जी उपनियम (1) के अधीन न्यायालय में उपस्थित की जाती है, साठ दिन के भीतर समाप्त करने का प्रयास किया जायेगा।

3. मूल्य या औचित्य के बारे में प्रमाण-पत्र – (1) हर अर्जी में अपील के आधार कथित होंगे और ऐसे प्रमाण पत्र के लिये प्रार्थना होगी कि (i) मामले में सामान्य महत्व का सारवान् विधि प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है, तथा

(ii) न्यायालय की राय में उक्त प्रश्न का विनिश्चय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाना आवश्यक है।

(2) न्यायालय ऐसी अर्जी की प्राप्ति पर निदेश देगा कि विरोधी पक्षकार पर इस सूचना की तामील की जाये कि वह यह हेतुक दर्शित करे कि उक्त प्रमाण-पत्र क्यों न दे दिया जाये।

4. वादों का समेकन- सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1973 (1973 का 49) की धारा 4 द्वारा निरसित है।

5. प्रथम बार के न्यायालय को विवाद का पुनः भेजा जाना – सिविल प्रक्रिया संहिता (संशोधन) अधिनियम, 1973 (1973 का 49) की धारा 4 द्वारा निरसित |

6. प्रमाण पत्र देने से इन्कार का प्रभाव – जहाँ ऐसा प्रमाण-पत्र देने से इन्कार कर दिया जाता है वहाँ अर्जी खारिज की जायेगी।

7. प्रमाण पत्र दिये जाने पर अपेक्षित प्रतिभूति और निक्षेप – (1) जहाँ प्रमाण-पत्र दे दिया जाता है वहाँ आवेदक परिवादित डिक्री की तारीख से नब्बे दिन या हेतुक दर्शित किये जाने पर न्यायालय द्वारा अनुज्ञात की जाने वाली साठ दिन से अनधिक अतिरिक्त अवधि के भीतर या प्रमाण-पत्र दिये जाने की तारीख से छह सप्ताह की अवधि के भीतर जो भी तारीख पश्चात्वर्ती हो,

(क) प्रत्यर्थी के खर्चों के लिये प्रतिभूति या सरकारी प्रतिभूतियों में देगा, तथा

(ख) वह रकम निक्षिप्त करेगा जो बाद में के पूरे अभिलेख को अनुवाद कराने, अनुलिपि, कराने, अनुक्रमणिका तैयार करने, मुद्रण और उसकी शुद्ध प्रति उच्चतम न्यायालय को पारेषण के व्ययों की पूर्ति के लिये अपेक्षित हो किन्तु निम्नलिखित के लिये रकम निश्चित नहीं करायी जायेगी |

(1) वे प्ररूपित दस्तावेजें जिनको अपवर्तित किया जाना उच्चतम न्यायालय के तत्समय प्रवृत्त किसी भी नियम द्वारा निर्दिष्ट हों;

(2) ऐसे कागज जिन्हें पक्षकार अपवर्तित करने के लिये सहमत हो जायें;

(3) ऐसे लेखा या लेखाओं के प्रभाग, जिन्हें न्यायालय द्वारा इस प्रयोजन के लिये सशक्त अधिकारी अनावश्यक समझे और जिनके बारे में पक्षकारों ने विनिर्दिष्ट रूप में माँग नहीं की है कि वे सम्मिलित किये जायें; तथा

(4) ऐसे अन्य दस्तावेजों जिन्हें अपवर्जित करने के लिये उच्च न्यायालय निदेश दे परन्तु न्यायालय प्रमाण पत्र देने के समय किसी ऐसे विरोधी पक्षकार को जो उपसंजात सुनने के पश्चात्, विशेष कष्ट के आधार पर यह आदेश दे सकेगा कि प्रतिभूति किसी अन्य हो, रूप में दी जाये |

परन्तु यह और कि ऐसी प्रतिभूति की प्रकृति के सम्बन्ध में प्रतिवाद विरोधी पक्षकार को कोई भी स्थगन नहीं दिया जायेगा।

8. अपील का ग्रहण और उस पर प्रक्रिया- जहाँ न्यायालय को समाधानप्रद रूप में ऐसी प्रतिभूति दे दी गयी है और निक्षेप कर दिया गया है, वहाँ न्यायालय-

(क) यह घोषित करेगा कि अपील ग्रहण कर ली गयी है,

(ख) उसकी सूचना प्रत्यर्थी को देगा,

(ग) उक्त अभिलेख की यथापूर्वोक्ति के सिवाय प्रति न्यायालय की मुद्रा सहित (उच्चतम न्यायालय) को पारेषित करेगा, तथा

(घ) दोनो में से किसी भी पक्षकार को वाद के कागजों में से किसी भी कागज की एक या अधिक अधिप्रमाणीकृत प्रतियाँ उनके लिये उसके द्वारा आवेदन किये जाने पर और उनकी तैयारी में उपगत युक्तियुक्त व्ययों के संदत्त किये जाने पर देगा।

9. प्रतिभूति के प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण – न्यायालय अपील के ग्रहण किये जाने के पूर्व किसी भी समय हेतुक दर्शित किये जाने पर किसी ऐसी प्रतिभूति के प्रतिग्रहण का प्रतिसंहरण कर सकेगा और उसके बारे में अतिरिक्त निदेश दे सकेगा।

9-क. मृत पक्षकारों की दशा में सूचना दिये जाने से अभिमुक्ति देने की शक्ति – इन नियमों की किसी भी बात के बारे में जो विरोधी पक्षकार या प्रत्यर्थी पर किसी भी सूचना की तामील या किसी सूचना का उसे दिया जाना अपेक्षित करता है यह नहीं समझा जायेगा कि वह मत विरोधी पक्षकार या मृत प्रत्यर्थी के विधिक प्रतिनिधि पर किसी सूचना की तामील या उसे ऐसी किसी सूचना का दिया जाना उस दशा में भी अपेक्षित करती है जिसमें ऐसा विरोधी पक्षकार या प्रत्यर्थी उस न्यायालय में जिसकी डिक्री परिवादित है, सुनवाई के समय या उस न्यायालय की डिक्री के पश्चात्वर्ती किन्हीं कार्यवाहियों में उपसंजात नहीं हुआ है |

परन्तु नियम 3 के उपनियम (2) के अधीन और नियम 8 के अधीन सूचनायें उस जिले के न्यायाधीश के न्याय-सदन में जिस जिले में बाद मूलत लाया गया था, किसी सहज दृश्य स्थान में लगा कर दी जायेगी और ऐसे समाचार-पत्रों में जो न्यायालय निर्दिष्ट करे, प्रकाशन द्वारा दी जायेंगी।

10. अतिरिक्त प्रतिभूति या संदाय का आदेश देने की शक्ति – जहाँ अपील के ग्रहण किये जाने के पश्चात् किन्तु यथापूर्वोक्त के सिवाय अभिलेख की प्रति उच्चतम न्यायालय को पारेषित किये जाने के पूर्व किसी भी समय ऐसी प्रतिभूति अपर्याप्त प्रतीत हो; अथवा यथापूर्वोक्त के सिवाय अभिलेख के अनुवाद कराने, अनुलिपि कराने, मुद्रण, अनुक्रमणिका तैयार करने या उसके प्रति का पारेषण करने के प्रयोजन के लिये अतिरिक्त संदाय अपेक्षित हो, वहाँ न्यायालय अपीलार्थी को आदेश दे सकेगा कि वह अन्य ओर पर्याप्त प्रतिभूति उस समय के भीतर दे जो न्यायालय द्वारा नियम किया जायेगा और उतने ही समय के भीतर वह संदाय करे जो अपेक्षित है।

11. आदेश का अनुपालन करने में असफलता का प्रभाव – जहाँ अपीलार्थी ऐसे आदेश का अनुपालन करने में असफल रहता है, वहाँ कार्यवाहियाँ रोक दी जायेंगी, और अपील में उच्चतम न्यायालय के इस निमित्त आदेश के बिना आगे कार्यवाही नहीं की जायेगी, और जिस डिक्री की अपील की गयी है उसका निष्पादन इस बीच नहीं रोका जायेगा।

12. निक्षेप की बाकी की वापसी – जब यथापूर्वोक्त के सिवाय अभिलेख की प्रति उच्चतम न्यायालय का पारेषित कर दी गयी तब अपीलार्थी नियम 7 के अधीन उसके द्वारा निक्षेप की गयी रकम की बाकी को, यदि कोई हो, वापस ले सकेगा।

13. अपील लम्बित रहने तक न्यायालय की शक्तियाँ – (1) जब तक न्यायालय अन्यथा निर्दिष्ट न करे तब तक उस डिक्री का जिसकी अपील की गयी है, बिना शर्त निष्पादन किसी अपील के ग्रहण के लिये प्रमाण पत्र के दे दिये जाने पर भी किया जायेगा।

(2) यदि न्यायालय ठीक समझे तो वह ऐसे विषेष हेतुक से जो बाद में हितबद्ध किसी द्वारा दर्शित किया गया हो या न्यायालय को न्यथा प्रतीत हुआ हो-

(क) विवादग्रस्त किसी भी जंगम सम्पत्ति को या उसके किसी भी भाग को परिबद्ध कर सकेगा, अथवा

(ख) प्रत्यर्थी से ऐसी प्रतिभूति लेकर जो न्यायालय किसी ऐसे आदेश के सम्यक् पालन के लिये ठीक समझे, जो उच्चतम न्यायालय अपील में करे, उस डिक्री का जिसकी अपील की गयी है, निष्पादन अनुज्ञात कर सकेगा, अथवा

(ग) अपीलार्थी से ऐसी प्रतिभूति लेकर उस डिक्री के जिसकी अपील की गयी है या ऐसी डिक्री या आदेश के जो उच्चतम न्यायालय अपील में करे, सम्यक पालन के लिये न्यायालय ठीक समझे उस डिक्री का जिसकी अपील की गयी है, निष्पादन रोक सकेगा; अथवा

14. अपर्याप्त पाये जाने पर प्रतिभूति का बढ़ाया जाना – (1) जहाँ दोनों में किसी भी पक्षकार द्वारा दी गयी प्रतिभूति अपील के लम्बित रहने के दौरान में किसी भी समय अपर्याप्त प्रतीत हो वहाँ न्यायालय दूसरे पक्षकार के आवेदन पर अतिरिक्त प्रतिभूति अपेक्षित कर सकेगा।

(2) न्यायालय द्वारा यथा अपेक्षित प्रतिभूति के दिये जाने में व्यतिक्रम होने पर (क) उस दशा में जिसमें मूल प्रतिभूति अपीलार्थी द्वारा दी गयी थी, न्यायालय उस डिक्री का जिसकी अपील की गयी है, निष्पादन प्रत्यर्थी के आवेदन पर ऐसे कर सकेगा मानों अपीलार्थी ने ऐसी प्रतिभूति न दी हो;

(ख) उस दशा में जिसमें मूल प्रतिभूति द्वारा दी गयी थीं, न्यायालय डिक्री का अतिरिक्त निष्पादन, जहाँ तक सम्भव हो सके, रोक देगा और पक्षकारों को उसी स्थिति में ले आयेगा जिसमें वे उस समय थे जब वह प्रतिभूति दी गयी थी जो अपर्याप्त प्रतीत होती है या अपील की विषय वस्तु की बाबत ऐसा निदेश देगा जो वह ठीक समझे।

15. उच्चतम न्यायालय के आदेशों को प्रवृत्त कराने की प्रक्रिया – (1) जो कोई उच्चतम न्यायालय की किसी डिक्री या आदेश का निश्पदन कराना चाहता है वह उस डिक्री की जो अपील में पारित की गयी थी या उस आदेश की जो अपील में किया गया था, और जिसका निष्पादन चाहा गया है, प्रमाणित प्रति के सहित अर्जी द्वारा उस न्यायालय से आवेदन करेगा जिसकी अपील उच्चतम न्यायालय में की गयी थी।

(2) ऐसा न्यायालय उच्चतम न्यायालय की डिक्री या आदेश को उस न्यायालय को पारेषित करेगा जिसने वह पहली डिक्री जिसकी अपील की गयी है, पारित की गयी थी या ऐसे अन्य न्यायालय को पारेषित करेगा जो उच्चतम न्यायालय ऐसी डिक्री या आदेश द्वारा निर्दिष्ट करे |

और (दोनों पक्षकारों में से किसी भी पक्षकार के आवेदन पर) ऐसे निदेश देगा जो उसके निष्पादन के लिये अपेक्षित हों और वह न्यायालय जिसे उक्त डिक्री या आदेश ऐसे पारेषित किया गया है, तद्नुसार उसका निष्पादन उस रीति से और उप उपबन्धनों के अनुसार करेगा जो उसकी अपनी मूल डिक्रियों के निष्पादन को लागू होते हैं।

(3) जब तक कि उच्चतम न्यायालय अन्यथा निदेश न दे उस न्यायालय की कोई भी डिक्री या आदेश इस आधार पर अप्रवर्तनीय न होगा कि किसी मृत विरोधी पक्षकार या मृत प्रत्यर्थी के विधिक प्रतिनिधि पर किसी ऐसे मामले में जिसमें ऐसा विरोधी पक्षकार या प्रत्यर्थी सुनवाई के समय पर उस न्यायालय में जिसकी डिक्री परिवादित है या उस न्यायालय की डिक्री की पश्चात्वर्ती किन्हीं भी कार्यवाहियों में उपसंजात हुआ था, किसी सूचना की तामील नहीं की गयी थी या उसे ऐसी सूचना नहीं दी गयी थी किन्तु ऐसे आदेश का वही बल और प्रभाव होगा मानों वह आदेश सत्य होने से पूर्व दिया गया हो।

उच्चतम न्यायालय में किन वादों में अपील दायर की जा सकती है? In what cases can an appeal be filed in the Supreme Court

सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 109 उच्चतम न्यायालय में अपील का उपबन्ध करती है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 132 133 और 134 (क) में भी सिविल मामले में सर्वोच्च न्यायालय में अपील का प्रावधान है। सर्वोच्च न्यायालय में अपील सम्बन्धित सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 45 में दिया हुआ है।

संविधान का अनुच्छेद 133-

संविधान के तीसवें संशोधन को 1972 में पारित किया गया। इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय में अपील, उच्च न्यायालय के किसी निर्णय डिक्री या अन्तिम आदेश में निम्नलिखित परिस्थितयों में तभी की जा सकती थी जब वह उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करता कि-

(अ) विवादग्रस्त विषय वस्तु का मूल्य प्रथम बार में और अपील में भी 20,000 रुपये से कम नहीं है, या

(ब) निर्णय, डिक्री या अन्तिम आदेश प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षतः रूप से जिस दावे या सम्पत्ति सम्बन्धी प्रश्न को अन्तर्वलित करता है उसका मूल्य 20,000 रुपये से कम नहीं है, या

(स) मामला सर्वोच्च न्यायालय में अपील के योग्य है। परन्तु जो संविधान संशोधन 1972 में (तीसर्वी) पारित किया गया उसके अनुसार उच्च न्यायालय की सिविल कार्यवाही में किसी निर्णय, डिक्री या अन्तिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित कर देता है कि-

(1) मामले में व्यापक महत्व का कोई सारवान विधिक प्रश्न अन्तर्वलित हैं, तथा

(2) उच्च न्यायालय की राय में उस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा विनिश्चय आवश्यक है |

सर्वोच्च न्यायालय में अपील की आवश्यक शर्तें 

संहिता की धारा 109 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय में तभी अपील की जा सकती है जब निम्नलिखित शर्त पूरी की जायें –

(1) कोई निर्णय डिक्री या अन्तिम आदेश उच्च न्यायालय द्वारा पारित किया गया है,

(2) मामले में व्यापक महत्व का कोई सारवान विधिक प्रश्न अन्तर्वलित है, और

(3) उच्च न्यायालय की राय में इस प्रश्न का उच्चतम न्यायालय द्वारा विनिश्चय आवश्यक है |

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shubham yadav

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