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अन्तराभिवाची वाद क्या है? सुनवाई की प्रक्रिया | Interpleader Suit in Hindi

अन्तराभिवाची वाद क्या है
अन्तराभिवाची वाद क्या है

अन्तराभिवाची वाद क्या है? (Interpleader Suit in Hindi)

अन्तराभिवाची वाद क्या है – सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 88 एवं आदेश 35 में अन्तराभिवाची वाद के बारे में प्रावधान किया गया है। अन्तराभिवाची वाद एक ऐसा वाद है जिसमें कि विवाद वादी एंव प्रतिवादियों के मध्य न होकर प्रतिवादियों के ही मध्य होता है। इसमें प्रतिवादी ही एक दूसरे के विरुद्ध अभिवचन करते है, बादी का इसमें कोई हित नहीं होता।

संहिता की धारा 88 के अनुसार, जहाँ दो या अधिक व्यक्ति उसी धनराशि या अन्य जंगम या स्थावर सम्पत्ति के बारे में एक दूसरे के प्रतिकूल दावा किसी ऐसे अन्य व्यक्ति से करते हैं जो प्रभारों या खर्ची से भिन्न किसी हित का उसमें दावा नहीं करता है और जो अधिकारवान दावेदार को उसे देने या परिदत करने के लिए तैयार है |

यहाँ ऐसा अन्य व्यक्ति समस्त ऐसे दावेदारों के विरुद्ध अन्तराभिवाची वाद उस व्यक्ति के बारे में जिसे संदाय या परिदान किया जायेगा, विनिश्चिय अभिप्राप्त करने और अपने लिए परित्राण अभिप्राप्त करने के प्रयोजन से संस्थित कर सकेगा |

परन्तु जहाँ ऐसा कोई वाद लम्बित है जिसमें सभी पक्षकारों के अधिकार उचित रूप से विनिश्चित किये जा सकते हैं, वहाँ ऐसा वाद अन्तराभिवाची वाद संस्थित नहीं किया जायेगा। इस प्रकार अन्तराभिवाची वाद वह वाद है जिसमें वास्तविक विवाद प्रतियादियों के बीच रहता है और बादी वाद का विषय वस्तु में हित नहीं रखता है। प्रतिवादी अन्तराभिवचन करते हैं, जैसा कि सामान्य वाद में नहीं होता।

इस वाद में प्रतिवादी ही एक दूसरे के विरुद्ध अभिवचन करते हैं और ऐसे ऋण या सम्पत्ति के दावों के सम्बन्ध में अभिवचन करते है जिसमें यादी अपना कोई हित नहीं रखता और जिसे वह अधिकारी प्रतिवादी (जो उस सम्पत्ति के हक का अधिकारी है) को प्रदान करने के लिए तैयार होता है।

धारा 88 के अनुसार जहाँ दो या अधिक व्यक्ति उसी ऋण, धनराशि या चल या अचल सम्पत्ति के बारे में एक दूसरे के प्रतिकूल दावा किसी ऐसे अन्य व्यक्ति से करते हैं जिसका ऐसा सम्पत्ति के प्रभारों या खचों के अतिरिक्त और कोई हित नहीं और ऐसा अन्य व्यक्ति उस है, बादी का इसमें कोई हित नहीं होता।

संहिता की धारा 88 के अनुसार, जहाँ दो या अधिक व्यक्ति उसी धनराशि या अन्य जंगम या स्थावर सम्पत्ति के बारे में एक दूसरे के प्रतिकूल दावा किसी ऐसे अन्य व्यक्ति से करते हैं जो प्रभारों या खर्ची से भिन्न किसी हित का उसमें दावा नहीं करता है और जो अधिकारवान दावेदार को उसे देने या परिदत करने के लिए तैयार है यहाँ ऐसा अन्य व्यक्ति समस्त ऐसे दावेदारों के विरुद्ध अन्तराभिवाची वाद उस व्यक्ति के बारे में जिसे संदाय या परिदान किया जायेगा, विनिश्चिय अभिप्राप्त करने और अपने लिए परित्राण अभिप्राप्त करने के प्रयोजन से संस्थित कर सकेगा |

परन्तु जहाँ ऐसा कोई वाद लम्बित है जिसमें सभी पक्षकारों के अधिकार उचित रूप से विनिश्चित किये जा सकते हैं, वहाँ ऐसा वाद अन्तराभिवाची वाद संस्थित नहीं किया जायेगा। इस प्रकार अन्तराभिवाची वाद वह वाद है जिसमें वास्तविक विवाद प्रतियादियों के बीच रहता है और बादी वाद का विषय वस्तु में हित नहीं रखता है। प्रतिवादी अन्तराभिवचन करते हैं, जैसा कि सामान्य वाद में नहीं होता।

इस वाद में प्रतिवादी ही एक दूसरे के विरुद्ध अभिवचन करते हैं और ऐसे ऋण या सम्पत्ति के दावों के सम्बन्ध में अभिवचन करते है जिसमें यादी अपना कोई हित नहीं रखता और जिसे वह अधिकारी प्रतिवादी (जो उस सम्पत्ति के हक का अधिकारी है) को प्रदान करने के लिए तैयार होता है।

धारा 88 के अनुसार जहाँ दो या अधिक व्यक्ति उसी ऋण, धनराशि या चल या अचल सम्पत्ति के बारे में एक दूसरे के प्रतिकूल दावा किसी ऐसे अन्य व्यक्ति से करते हैं जिसका ऐसा सम्पत्ति के प्रभारों या खचों के अतिरिक्त और कोई हित नहीं और ऐसा अन्य व्यक्ति उस सम्पत्ति के अधिकारवान दावेदार को देने या परिदत्त करने के लिए तैयार है, |

वहाँ ऐसा अन्य व्यक्ति ऐसे सम्पत्ति दावेदारों के विरुद्ध एक अन्तराभिवाची वाद इस उद्देश्य से संस्थित करेगा कि इस बात का विनिश्चय किया जा सके कि सम्पत्ति किसे परिदान करना है या अगर ऋण है तो किसको संदाय करना है। परन्तु जहाँ ऐसा कोई वाद लम्बित है जिसमें सभी पक्षकारों के अधिकार उचित रूप से विनिश्चित किये जा सकते हैं वहाँ ऐसा कोई अन्तराभिवाची वाद संस्थित नहीं किया जायेगा। अन्तराभिवाची वाद से सम्बन्धित प्रक्रिया संहिता के आदेश 35 में उपबन्धित है।

किसी भी अन्तराभिवाची वाद के वाद-पत्र में अन्य कथनों के अलावा निम्न तथ्यों का भी कथन अवश्य होगा।

(1) कि वादी प्रभारों या खर्चों के लिए वाद करने से भिन्न किसी हित का दावा विवाद की विषयवस्तु में नहीं करता है।

(2) प्रतिवादियों द्वारा पृथकतः किये गये दावे कथित होंगे|

(3) यह कथन होगा कि वादी और प्रतिवादियों में से किसी भी प्रतिवादी के बीच कोई दुस्सन्धि नहीं है।

जहाँ दावाकृत चीज ऐसी है कि वह न्यायालय में जमा की जा सकती है या न्यायालय की अभिरक्षा में रखी जा सकती है वहाँ वादी से यह अपेक्षा की जा सकेगी कि वह सम्पत्ति या तो न्यायालय में जमा कर दे या उसे न्यायालय की अभिरक्षा में रख दे।

पहली सुनवाई में प्रक्रिया

पहली सुनवाई में न्यायालय यह घोषित कर सकेगा कि वादी दावाकृत चीज के सम्बन्ध में प्रतिवादियों के प्रति सभी दायित्वों से उन्मुक्त हो गया है, उसे खर्चे परिदान कर सकेगा और वाद से खारिज कर सकेगा। दूसरे शब्दों में न्यायालय वादी को प्रथम सुनवाई में सभी दायित्वों से मुक्त घोषित कर सकता है उसे उसके खर्चे प्रदान कर सकता है और उसका नाम बाद में खारिज कर सकता है।

परन्तु जहाँ न्यायालय न्याय और सुविधा की दृष्टि से उचित समझता है वहाँ वाद का अन्तिम निपटारा होने तक सभी पक्षकारों को बनाये रख सकता है। जहाँ पक्षकारों की स्वीकृतियाँ और अन्य साक्ष्य पर्याप्त है, कि उनके आधार पर निर्णय किया जा सकता है वहाँ न्यायालय दावाकृत चीज पर के हक का न्यायनिर्णयन कर सकेगा।

परन्तु जहाँ पक्षकारों की स्वीकृतियाँ विवादित वस्तु पर न्याय निर्णयन सम्भव नहीं बना पाती वहाँ न्यायालय यह आदेश दे सकेगा कि पक्षकारों के बीच विषयक या विवाद्यक की रचना को जाये और उनका विचारण किया जाए तथा मूल वादी के बदले या उसके अलिखित किसी दावेदार को वादी बना दिया जाये |

एक अन्तराभिवाची वाद के बाद पत्र में आवश्यक संशोधन नयी सम्पत्ति को सम्मिलित करने के लिए या नए पक्षकारों के संयोजन के लिए किया जा सकता है।

अन्तराभिवचनीय वाद का वर्जन (नियम 3 एवं 5) –

निम्नलिखित अवस्थाओं में अन्तराभिवचनीय वाद संस्थित नहीं किया जायेगा |

(i) जहाँ पूर्व से ही न्यायालय के समक्ष ऐसा कोई वाद लम्बित हो, जिसके द्वारा कि पक्षकारों के अधिकारों का सम्यक् रूपेण विनिश्चय किया जा सकेगा। (नियम 3)

(ii) अभिकर्ता एवं अधिकारी अन्तराभिवाची वाद संस्थित नहीं कर सकेंगे। (नियम 5)

दृष्टान्त- आभूषणों का बक्श अपने अभिकर्ता के रूप में ‘ख’ के पास ‘क’ निक्षिप्त करता है। ‘ग’ का यह अभिकथन है कि आभूषण’क’ ने उससे सदोष अभिप्राप्त किये थे और वह उन्हें ‘ख’ से लेने के लिए दावा करता है।

‘क’ और ‘ग’ के विरुद्ध अन्तराभिवचनीय वाद ‘ख’ संस्थित नहीं कर सकता। क्योंकि अभिकर्ता अपने मालिक के विरुद्ध इस प्रयोजन के लिए वाद नहीं ला सकता।

वादी के खर्ची का भार – जहाँ वाद उचित रूप में संस्थित किया गया है वहाँ न्यायालय मूल वादी के खर्चों के लिए उपबन्ध दावाकृत चीज पर उसका भार डालकर या अन्य प्रभावी तौर पर कर सकेगा।

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shubham yadav

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