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पंचशील समझौता क्या है? Panchsheel Treaty in Hindi
पंचशील समझौता क्या है? Panchsheel Treaty in Hindi – Hello Students Currentshub.com पर आपका एक बार फिर से स्वागत है मुझे आशा है आप सभी अच्छे होंगे. दोस्तो जैसा की आप सभी जानते हैं की हम यहाँ रोजाना Study Material अपलोड करते हैं. ठीक उसी तरह आज हम पंचशील समझौता क्या है? Panchsheel Treaty in Hindi” शेयर कर रहे है.पंचशील समझौते पर 50 साल पहले 29 अप्रैल 1954 को हस्ताक्षर हुए थे. चीन के क्षेत्र तिब्बत और भारत के बीच व्यापार और आपसी संबंधों को लेकर ये समझौता हुआ था. … पंचशीलशब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है जो कि बौद्ध भिक्षुओं का व्यवहार निर्धारित करने वाले पाँच निषेध होते हैं.
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पंचशील समझौता क्या है? Panchsheel Treaty in Hindi
आज से 63 साल पहले 29 अप्रैल, 1954 को भारत और चीन के बीच एक समझौता हुआ था जिसे पंचशील समझौता (Panchsheel Treaty or Panchsheel Agreement) के नाम से जाना जाता है. आजादी के बाद से ही चीन, भारत की विदेश नीति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा माना जाता रहा है. भारत और चीन के बीच लगभग 3,500 Km. की सीमा रेखा है. सीमा को लेकर दोनों देशों के बीच कई मतभेद हैं जिसके चलते बीच-बीच में दोनों देशों में तनाव पैदा हो जाता है. भारत-चीन के बीच जब भी तनाव पैदा होता तो पंचशील सिद्धांत की बात जरुर आती है और जब पंचशील सिद्धांत की बात होती है तो इसे नेहरु की सबसे बड़ी भूल करार दिया जाता है. आपके मन में भी यह सवाल जरुर आया होगा कि पंचशील सिद्धांत क्या है और क्यूँ इसे नेहरु की सबसे बड़ी भूल माना जाता है? तो चलिए हम आपको 29 अप्रैल, 1954 को भारत-चीन के बीच हुए पंचशील समझौते के बारे में बताते हैं.
तिब्बत चीन में शामिल
भारत 1947 में आजाद हुआ और उसके ठीक दो साल बाद चीन People’s Republic of China के नाम से एक साम्यवादी देश बना. दोनों देशों का मौजूदा सफ़र एक साथ ही शुरू हुआ. चीन ने 1950 में एक बड़ी घटना को अंजाम दिया. चीन ने भारत और उसके बीच अलग आजाद मुल्क तिब्बत पर हमला कर दिया और देखते-ही-देखते उस पर कब्ज़ा कर लिया. चीन ने तिब्बत को अपना एक राज्य घोषित कर दिया. तिब्बत के भारत और चीन में होने के कारण दोनों देशों में हमेशा फासला रहा था. चीन के इस कब्जे ने उस फासले को हमेशा के लिए ख़त्म कर दिया और अब तक जो शरहद सिर्फ कश्मीर के एक छोटे से हिस्से तक ही सीमित थी, वह बढ़कर आज के उत्तराखंड से लेकर भारत के North-East तक फ़ैल गई थी. साफ़ था कि तिब्बत पर चीन के कब्जे का असर सबसे ज्यादा भारत पर पड़ने वाला था. तिब्बत पर चीन के कब्जे ने भारत के सुरक्षा के लिए नए सवाल खड़े कर दिए. नेहरु ने इस पर बयान दिया कि चीन के साथ हमें अपनी दोस्ती में ही सुरक्षा ढूँढनी चाहिए. प्रधानमंत्री नेहरु तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद भी सीमा का मामला उठाने के लिए तैयार नहीं थे. प्रधानमंत्री की यह सोच थी कि जब तक चीन अपनी तरफ से सीमा का मामला नहीं उठाता, इसके बारे में किसी भी स्तर पर बातचीत की जरुरत नहीं है. गृहमंत्री बल्लभभाई पटेल ने चीन के मामले पर 1950 में एक चिट्ठी प्रधानमंत्री नेहरु को लिखी. उन्होंने लिखा —“चीन ने हमारे देश के साथ धोखा और विश्वासघात किया है. चीन असम के कुछ हिस्सों पर भी नज़र गड़ाए हुए है. समस्या का तत्काल समाधान करें.”
McMahon Line
तब के नेफा (NEFA- North-East Frontier Agency) और आज के अरुणाचल प्रदेश की सीमा जो चीन से लगती है, उसे McMahon Line कहते हैं जिसे शिमला में ब्रिटिश इंडिया, तिब्बत और चीन ने 1914 में मिलकर तय किया था. चीन की सरकार इसे जबरन तैयार की गई सीमा रेखा मानती थी. भारत के स्वतंत्रता के बाद इस सीमा को लेकर चीन ने चुप्पी साधी हुई थी. 1952 में भारत और चीन के बीच इस मामले को लेकर मीटिंग हुई जिसमें भारत जानना चाहता था कि आखिर चीन के मन में चल क्या रहा है? भारत ने चीन की चुप्पी को चीन की सहमति समझा. भारत समझने लगा कि McMahon लाइन के विषय में चीन को कोई दिक्कत नहीं है. पर बात यहीं नहीं रुकी. 29 अप्रैल, 1954 को भारत ने उस संधि पर दस्तखत कर दिया जिसे पंचशील समझौता कहा जाता है. इसमें शान्ति के साथ-साथ रहने और दोस्ताना सम्बन्ध की बात कही गई थी.
पंचशील समझौता
पंचशील शब्द ऐतिहासिक बौद्ध अभिलेखों से लिया गया है. बौद्ध अभिलेखों में भिक्षुओं के व्यवहार को निर्धारित करने के लिए पंचशील नियम मिलते हैं. बौद्ध अभिलेखों से ही भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु ने पंचशील शब्द को चुना था. 31 December, 1953 और 29 April, 1954 को हुई बैठक के बाद भारत-चीन ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए. समझौते के प्रस्तावना में इन पाँच बातों का उल्लेख किया गया था –
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पंचशील
अप्रैल 1954 में भारत ने तिब्बत को चीन का हिस्सा मानते हुए चीन के साथ ‘पंचशील’ के सिद्धांत पर समझौता कर लिया. इस सिद्धांत के मुख्य बिंदु थे:
(1) सभी देशों द्वारा अन्य देशों की क्षेत्रीय अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना
(2) दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
(3) दूसरे देश पर आक्रमण न करना
(4) परस्पर सहयोग एवं लाभ को बढ़ावा देना
(5) शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति का पालन करना
इस सिद्धांत को जोर शोर से प्रचारित किया गया और कई देशों ने इसे मानने की प्रतिबद्धता दिखाई. हालांकि तत्कालीन विदेश सचिव गिरिजा शंकर बाजपेई ने इसकी मुखालफ़त की थी. उन्होंने नेहरू को आगाह किया कि चीन के सामय्वाद और रूस के समाजवाद में कोई ख़ास अंतर नहीं है और दोनों ही विस्तारवाद में यकीन करते हैं. नेहरू ने इस राय को भी अनसुना किया और 1954 में चीन की यात्रा पर निकल पड़े.
चीन द्वारा नेहरू का छद्म स्वागत
जब जवाहरलाल नेहरू चीन पहुंचे तो उनका भव्य स्वागत हुआ. चीनी सरकारी तंत्र ने उनके स्वागत में ज़बरदस्त भीड़ जुटाई जिसे देखकर नेहरू अभिभूत हो गए. वापस आकर उन्होंने देश को यकीन दिलाया कि चीन हिंदुस्तान पर किसी भी प्रकार का आक्रमण नहीं करेगा. चीन को उन्होंने भारत का स्वाभाविक दोस्त बताया.
दो साल बाद चीनी प्रीमियर चाऊ-एन-लाई भारत आये तो उनके साथ तो ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ का नारा बुलंद किया गया. चाऊ के साथ तिब्बत के दलाई लामा भी आये थे. उन्होंने नेहरू को तिब्बत में बिगड़ते हालात की जानकारी दी और कहा कि संभव है उन्हें भारत में शरण लेनी पड़े. नेहरू ने जब चाऊ से इस मुद्दे पर बात की तो उन्होंने तिब्बत में हो रही घटनाओं पर ध्यान देने का वादा किया. नेहरू संतुष्ट हो गए.
अब आपको बताते हैं कि इस समझौते में ऐसा क्या था जिसकी वजह से नेहरु की आलोचना होती है. समझौते के बाद भारत और चीन के बीच तनाव काफी कम हो गया जिससे भारत को यह समझौता बहुत फायदेमंद लग रहा था. इस समझौते की हर जगह तारीफ़ हो रही थी. शुरूआती दौर में इस agreement के बाद हिंदी-चीनी भाई-भाई के नारे लगाए जाने लगे. लग रहा था कि दुनिया की दो बड़ी सभ्यताओं ने साथ रहने की नई मिशाल पेश की है. पर हिंदी-चीनी भाई-भाई के पीछे कुछ जरुरी बातें दब गयीं. इसकी बड़ी कीमत भारत को चुकानी पड़ी. दरअसल, समझौते के अंतर्गत भारत ने तिब्बत को चीन का एक क्षेत्र स्वीकार कर लिया. भारत को 1904 की Anglo-Tibetan Treaty के तहत तिब्बत के सम्बन्ध में जो अधिकार मिले थे, भारत ने वे सारे अधिकार इस संधि के बाद छोड़ दिए. इस पर नेहरु का जवाब था कि उन्होंने क्षेत्र में शान्ति को सबसे ज्यादा अहमियत दी और चीन के रूप में एक विश्वनीय दोस्त देखा.
पंचशील समझौते (Panchsheel Treaty) के बाद चीन के प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई भारत आये. दुनिया भर की बातें हुईं पर सीमा के बारे में कोई बात नहीं हुई. नेहरु भी चीन गए जहाँ उनका जबरदस्त स्वागत हुआ. इसी माहौल में 1956 के नवम्बर महीने में एक बड़ी घटना हुई. चाऊ-एन-लाई विदेशी दौरे में भारत में थे. तिब्बत के सबसे बड़े धर्म गुरु दलाई लामा भी भारत में थे. वह तिब्बत में चीन की नीतियों से परेशान थे. उन्होंने एक बड़ी पहल की. वह भारत में शरण लेने आये. पर प्रधानमंत्री नेहरु ने उन्हें शरण देने में असमर्थता जताई. उन्हें समझा-बुझा कर वापस भेज दिया गया. नेहरु तिब्बत को लेकर चीन की परेशानियों को बढ़ाना नहीं चाहते थे. लेकिन दूसरी तरफ, 1957 के सितम्बर महीने में चीन की सरकारी अखबार “People’s Daily” में एक खबर छपी कि चीन के सिंकियांग से तिब्बत तक जाने वाली सड़क पूरी तरह से बन चुकी है. यह भारत के लिए बहुत बड़ा झटका था.
सिंकियांग से तिब्बत तक जाने वाली सड़क अक्साई चीन से होकर जाती थी. यह वही इलाका था जिसे भारत अपना मानता था. चीन की अक्साई चीन को लेकर असली नियत क्या है यह जानने के लिए प्रधानमंत्री ने सीधे चाऊ-एन-लाई को चिट्ठी लिखी. चीन के प्रधानमंत्री ने नेहरु के इस ख़त का जवाब एक महीने बाद दिया. उन्होंने कहा था कि चीन और भारत की सीमा औपचारिक तौर पर तय नहीं हुई थी और चीन ने यह मसला इसलिए नहीं उठाया क्योंकि वह दूसरे कामों में व्यस्त था. साफ़ था कि चीन का रवैया बदल रहा था. भारत चीन के बदले हुए रुख को परख पाता इससे पहले इन घटनाओं ने एक नया रुख ले लिया.
तिब्बत में चीन के खिलाफ बगावत हो गई. दलाई लामा को लगा कि चीन की फ़ौज उन्हें गिरफ्तार करने वाली है. वह अपने साथियों के साथ तिब्बत से भाग गए और एक बार फिर भारत के तरफ आये. भारत सरकार ने उन्हें आने की इजाजत दे दी और 24 अप्रैल, 1959 में नेहरु खुद उनसे मसूरी में मिलने गए. प्रधानमंत्री का दलाई लामा से मिलना चीन को रास नहीं आया. दलाई लामा का जिस तरह से भारत में स्वागत हुआ वह भी उन्हें रास नहीं आया. अब दोनों देशों में diplomacy कम राजनीति ज्यादा होने लगी. प्रधानमंत्री नेहरु चीन के साथ बिगड़ते रिश्तों को ज्यादा publicity नहीं देना चाहते थे पर यह मसला संसद में थमा नहीं. अन्य सांसद नेहरु पर जानकारी छुपाने का आरोप लगाने लगे.
1962 का युद्ध
Panchsheel Treaty की 8 साल की validity थी. Validity ख़त्म होने के ठीक बाद चीन ने भारत पर आक्रमण किया जिसमें भारत को हार का मुँह देखना पड़ा. हालाँकि पंचशील सिद्धांत मौखिक रूप से आज भी चल रहा है. लेकिन 1962 के बाद इसकी आत्मा मर चुकी है.
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