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आंकलन और मूल्यांकन में अन्तर | Difference between Assessment and Evaluation in Hindi

आंकलन और मूल्यांकन में अन्तर
आंकलन और मूल्यांकन में अन्तर

आंकलन और मूल्यांकन में अन्तर (Difference between Assessment and Evaluation)

आंकलन और मूल्यांकन के सम्बन्ध में तथा आंकलन, परीक्षण और मूल्यांकन से सम्बन्धित अन्य पदों के समबन्ध में काफी भ्रम है। मैं अब भी संरचनात्मक (Formative) और योगात्मक (Summative) पदों से भ्रमित हूँ ( पर मुझे हाल ही में बताया गया कि योगात्मक का अर्थ समाप्त करना या निर्णय लेना है, और इससे मुझे सहायता मिली है। हर ओर से इस आवाज का उठना और इस पर शोर मचाना कि ‘कोई बच्चा पीछे न छूट जाये’ (No child left behind) ने आंकलन परीक्षण और मूल्यांकन को महत्त्वपूर्ण विषय बना दिया है।

आंकलन वह सूचना है जो शिक्षा देने के लिये अध्यापक और छात्र द्वारा संकलित की जाती है, जबकि मूल्यांकन, इकाई (Unit) के अन्त अध्यापक द्वारा किसी उपकरण का प्रयोग कर छात्र का स्थान निर्धारण करना है जिससे इस सूचना का प्रयोग तुलना या छात्रों की छँटनी के लिये किया जा सके। आंकलन, अधिगम की क्रिया में छात्र और अध्यापक के लिये हैं जबकि मूल्यांकन प्रायः अन्य लोगों के लिये है।

“Assessement is for the student and the teacher in the act of learning while evaluation is usually for others.”

यदि गणित के अध्यापकों को अपने प्रयास कक्षा के आंकलन पर केन्द्रित करने थे तो वह मुख्यतः संरचनात्मक प्रकृति हैं, और इसमें विद्यार्थियों का शैक्षिक लाभ प्रभावकारी होगा । इन प्रयासों में कक्षा में प्रश्न और चर्चा के माध्यम से विभिन्न आंकलन कार्यों का प्रयोग कर प्रदत्तों का संकलन सम्मिलित होगा, और मुख्यतः विद्यार्थी क्या जानते और समझते हैं पर ध्यान दिया जायेगा।

आंकलन बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह शिक्षा का अभिन्न अंग है। दुर्भाग्यवश मूल्यांकन की माँगों के कारण इसमें बाधा पड़ती या रुकावट आती है। मूल्यांकन की सबसे बड़ी माँग ग्रेडिंग (Grading) या रिपोर्ट कार्ड हैं। वास्तव में उसके साथ समस्या नहीं होनी चाहिये थी सिवाय इसके कि परम्परागत रूप में मूल्यांकन (ग्रेड) का निर्धारण केवल छात्र के आंकिक औसत की गणना से होता है जो कागज और पेन्सिल पर उसके आंकलन से किया जाता है जिसे परीक्षण कहते हैं।

सर्वाधिक अनुभवी अध्यापक यह कहेंगे कि वे अपने छात्रों को वे क्या जानते हैं, विभिन्न परिस्थितियों में कैसा निष्पादन करते हैं, और उसके विभिन्न स्तरों पर कौशल की क्या उपलब्धि है, के परिप्रेक्ष्य में भली प्रकार जानते हैं। दुर्भाग्यवश जब ग्रेड प्रदान करने का समय आता है तब वे अपने इस धनी खजाने को उपेक्षित कर देते हैं और परीक्षण के अंकों तथा कठोर औसतांकों पर विश्वास करते हैं जो सम्पूर्ण कहानी का एक लघु भाग है।

वेन डी वाले और लेविन (Wan de Walle and Lavin, 2006) के अनुसार- “The myth of grading by statistical Number crunching is so firmly ingrained in schooling at all levels that you may find it hard to abandon. But it is unfair to students to parents, and as the teacher to ignore all of the information you get almost daily from a problem based approach in favour of a handful of numbers based on tests that usually focus on low level skills.”

इस समस्या का कारण यह है कि विद्यार्थी यह सीख जाते हैं कि क्या मूल्यवान है और उन्हीं वस्तुओं के लिये प्रयत्न करते हैं। यदि यूनिट के अन्त में परीक्षण (Tests) आपका ग्रेड निर्धारित करते हैं, तो अनुमान लगाइये कि बच्चे क्या अच्छा करना चाहेंगे, या यूनिट के अन्त में परीक्षण में ? आप तमाम अच्छी और महान् क्रियायें कर सकते हैं, पर यदि परीक्षण के परिणाम को ही हर कोई मूल्यावन मानता है—अध्यापक, विद्यार्थी और अभिभावक तो आप क्या करेंगे?

हमें अच्छा करने के लिये अपने द्वारा नित्यप्रति की जाने वाली क्रियाओं को महत्त्व देना चाहिये और यह सीखना चाहिये कि उन्हें आंकलन और मूल्यांकन दोनों के लिये कैसे प्रयोग किया जाये।

यह एक आसान कार्य नहीं है। हम जो कुछ कर रहे हैं यह उससे बहुत भिन्न है हम पढ़ाने और तब आंकलन करने के अभ्यस्त हैं। वास्तव में पढ़ाने और आंकलन के मध्य रेखा बहुत धुन्धली है (WCTM, 2000)। रुचिकर सत्य यह है कि कुछ भाषाओं में अधिगम (Learning) और अध्यापन (Teaching) एक ही शब्द हैं (Fosnot and Dolla)। आवश्यकता इस बात की है कि हम नित्यप्रति के आधार पर आंकलन करें जिससे हमें यह चयन करने की सूचना प्राप्त हो कि हमें अगले दिन क्या पढ़ाना है? यदि हम पूरी यूनिट पढ़ाते है और यह जानने के लिये कि बालक क्या जानता है, यूनिट के अन्त में टेस्ट की प्रतीक्षा करते हैं, तो हम अप्रसन्न रूप से आश्चर्यचकित होंगे। दूसरी ओर यदि हम नित्यप्रति के आधार पर पूरी यूनिट की अवधि में आंकलन करते हैं तो हमें अन्तिम मूल्यांकन के लिये इन सभी आंकलनों का औसत ज्ञात नहीं करना पड़ेगा। वरन् उस अन्तिम मूल्यांकन के लिए हमें अति तात्कालिक आंकलन का प्रयोग करना पड़ेगा। इस प्रकार हम उस छात्र को दण्डित नहीं करेंगे जो यूनिट के प्रारम्भ में कुछ नहीं जानता और सिखने के लिये वास्तव में परिश्रम करता है, जो आप अनुभव करेंगे कि एक महान विचार है। अतः इस प्रकार आप यूनिट के अन्त में उसका निर्धारण (Rate) वहाँ करते हैं जहाँ वे हैं। यह, जहाँ वे निष्पादन कर रहे हैं उसका अधिक सही मूल्यांकन करते हैं।

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shubham yadav

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