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अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ, परिभाषाएं, प्रकार, महत्त्व, उपयोग/लाभ, सीमाएँ

अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ
अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ

अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ

सही शिक्षण का अर्थ है कि बालक को प्रेरित कर नये व्यवहारों को अर्जित करने में सहायत प्रदान करना। यह सहायता मुख्यतः अध्यापक द्वारा प्रदान की जाती है। अध्यापक पर कार्य-भार (Work-load) बढ़ जाने के कारण इस कार्य को शिक्षक के स्थान पर विशेष शिक्षण सामग्री को कुछ सीमा तक सौंपा जा रहा है, यह विशेष प्रकार की सामग्री जिसमें बालक स्वयं की सीखने की गति से सीखता है, उसे स्वयं अध्ययन करना होता है तथा उसके उत्तरों की जाँच तुरन्त की जाती है अभिक्रमित-अनुदेशन कहलाता है।

अभिक्रमित अनुदेशन की परिभाषाएं (Definition of Programmed Instruction)

प्रो. रूश के अनुसार, ’’अधिगम में एक विशेष प्रकार का निर्देशन जो विद्यार्थी को नयी सामग्री सिखाता है और अपने अधिगम को जाँचने का अवसर देता है, अभिक्रमित अनुदेशन या कभी-कभी स्वचालित अनुदेशन कहा जाता है।’’

एन. एस. मावी के अनुसार, ’’अभिक्रमित अनुदेशन प्राणवान अनुदेशनात्मक प्रक्रिया को स्व अधिगम अथवा स्व-अनुदेशन में परिवर्तित करने की वह तकनीक है जिसमें विषय-वस्तु को छोटी-छोटी शृंखलाओं में विभाजित किया जाता है। अधिगम कर्ता को इन्हें पढ़़कर सही अथवा गलत कैसी भी अनुक्रिया करनी होती है। अपनी गलत अनुक्रिया को ठीक करना होता है तथा सही अनुक्रिया करनी होती है। अपनी गलत अनुक्रिया को ठीक करना होता है तथा सही अनुक्रिया की प्रतिपुष्टि करनी होती है।’’

फ्रैड स्टोफेल के अनुसार, ’’ज्ञान के छोटे-छोटे घटकों की तार्किक क्रम में व्यवस्था की अभिक्रिया है तथा इस प्रकार की सम्पूर्ण अभिक्रमित अधिगम कहलाती है।’’

सुसान माइकल के अनुसार, ’’अभिक्रमित अधिगम वैयक्तिक अनुदेशन की एक ऐसी विधि है जिसमें विद्यार्थी स्वयं को संलग्र रखते हुए अपनी गति के अनुसार अग्रसर होता है एवं उसे परिणामों की जानकारी भी तुरन्त मिल जाती है।’’

डेल एजर के अनुसार, ’’अभिक्रमित अनुदेशन एक क्रमबद्ध पद से पद तक स्वशिक्षण कार्यक्रम है जो पूर्व निर्धारित व्यवहार के अधिगम को सुनिश्चित करता है।’’

अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार (Types of Programmed Instruction)

मुख्य रूप से अभिक्रमित-अनुदेशन दो प्रकार के होते हैं-

(क) रेखीय-अभिक्रमित अनुदेशन (Linear Programmed Instruction),
(ख) शाखीय-अभिक्रमित अनुदेशन (Branching Programmed Instruction),

रेखीय-अभिक्रमित अनुदेशन

रेखीय-अभिक्रमित अनुदेशन के खोजकर्ता प्रोफेसर बी० एफ० स्किनर हैं। इन्होंने सर्वप्रथम हॉलैण्ड की सहायता से पहिला अभिक्रमित अनुदेशन तैयार किया। रेखीय-अभिक्रमित अनुदेशन में विद्यार्थी को प्रत्येक पद को पढ़ना पड़ता है और इस प्रकार वह धीरे-धीरे अपेक्षित व्यवहार अर्जित कर लेता है। उदाहरण निम्न चित्र के अनुसार-

रेखीय-अभिक्रमित अनुदेशन

रेखीय-अभिक्रमित अनुदेशन

इस उदाहरण से स्पष्ट है कि यहाँ विद्यार्थी सर्वप्रथम पहले, फिर दूसरे, बाद में तीसरे तथा इसी क्रम में एक के बाद एक फ्रेम को पढ़ता जाता है तथा अन्त तक सभी फ्रेमों को पढ़ता है। चूँकि यह प्रक्रिया एक सीधी रेखा द्वारा प्रदर्शित की जा सकती है। अतः इस अभिक्रम का नाम रेखीय-अभिक्रमित-अनुदेशन रखा गया है। यहाँ पर बालक के पढ़ने का मार्ग बाह्य रूप से अभिक्रमित-अनुदेशन लिखने वाले द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसलिए इसे ‘बहिनिहित अभिक्रम’ भी कह देते हैं परन्तु सामान्यः यह.रेखीय-अभिक्रमित-अनुदेशन के नाम से ही पुकारा जाता है।

रेखीय-अभिक्रमित-अनुदेशन की अवधारणाएँ

यह अभिक्रमित-अनुदेशन निम्न धारणाओं पर आधारित है।

1. यह त्रुटियों को महत्त्व नहीं देता है, इसका मानना है कि बालक कम त्रुटियाँ करने से अधिक सीखता है।

2. पाठ्य-वस्तु को बोधगम्य बनाने के लिए इसे विद्यार्थी के सम्मुख छोटे-छोटे पदों में प्रस्तुत किया जाता है।

3. छात्र सीखने की स्वगति से अधिक सीखता है।

4. बालक यदि सक्रिय रहे तो उसका अधिगम प्रभावी रूप से होता है।

5. अनुक्रिया उत्पन्न होते ही यदि उसको सही बताकर उसकी प्रतिपुष्टि की जाए तो अधिगम अधिक स्थायी बनेगा।

रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन का रूप

रेखीय-अभिक्रमित-अनुदेशन में पद या फ्रेम का आकार छोटा होता है। वह इतना ही होता है कि एक बार में छात्र उसे पढ़कर आसानी से समझ लें। प्रत्येक पद में उद्दीपन, अनक्रिया तथा पुनर्बलन की व्यवस्था होना आवश्यक है। फ्रेम या पद की प्रकृति के आधार पर इन्हें निम्न भागों में बाँटा जा सकता है-

प्रस्तावना-पद (Introductory Frame)

इस प्रकार के पद अभिक्रमित अनुदेशन के प्रारम्भ में होते हैं तथा ये बालक के पूर्व-ज्ञान तथा सीखे जाने वाले पाठ के बीच एक माध्यम का कार्य करते हैं। ये प्रमुख रूप से पाठ की प्रस्तावना से सम्बन्धित होते हैं।

शिक्षण-पद (Teaching Frame)

ये पद विषय-वस्तु से सम्बन्धित होते हैं। इनसे छात्रों को नया ज्ञान दिया जाता है जो कि इस क्रम में व्यवस्थित होता है कि धीरे धीरे वह पूरा पाठ समझ लेता है। इस प्रकार के पदों की संख्या अधिक होती है।

परीक्षण-पद (Testing Frame)

किसी एक उप-इकाई को अभिक्रमित-अनुदेशन के द्वारा पढ़ाने के पश्चात् यह आवश्यक है कि बालक इसे किस सीमा तक सीख पाए हैं, इसकी जानकारी ली जानी चाहिए। इस हेतु शिक्षण पद के बाद अभिक्रमित अनुदेशन में परीक्षण पद या फ्रेम रखे जाते हैं। इस प्रकार के पदों में अनुबोधक का उपयोग नहीं किया जाता तथा इन पदों का सही उत्तर प्राप्त करने पर यह समझा जाता है कि विद्यार्थी सम्बन्धित उप-इकाई को पूर्णत: समझ चुका है।

रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन की विशेषताएँ (Characteristics of Linear Programmed Instruction)

रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन का उपयोग बहुत अधिक किया जाता है। इसमें निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-

1. इस प्रकार के अभिक्रमित अनुदेशन का निर्माण करना आसान है।

2. यह मनोविज्ञान के सिद्धान्त पर आधारित है।

3. पाठ्य-वस्तु को छोटे-छोटे फ्रेमों में प्रस्तुत ककिया जाता है अत: इसको समझना बालक के लिए आसान है।

4. इसमें व्यक्तिगत विभिन्नताओं के अनुरूप शिक्षण सम्भव है।

5. रेखीय-अभिक्रमित-अनुदेशन में विद्यार्थी क्रियाशील होकर सीखता है।

अभिक्रमित अनुदेशन के उपयोग/लाभ

अभिक्रमित अनुदेशन शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया को सुव्यवस्थित क्रमबद्ध और वैज्ञानिक बनाने के लिए एवं अध्यापन पर आधारित एक नवीनतम शैक्षिक तकनीकी है। अभिक्रमित अनुदेशन आज आधुनिक शिक्षण-प्रशिक्षण का अनिवार्य अंग बन चुका है। इस विधि की प्रासंगिकता इतनी अधिक है कि इसे परम्परागत शिक्षण विधि के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाने लगा है। पश्चिमी देशों में तो इसका उपयोग लगभग सभी विकसित देशों में किया जाता है। कोठारी आयोग ने अपने प्रतिवेदन में अभिक्रमित अनुदेशन की प्रासंगिकता के अध्ययन पर जोर दिया था। अभिक्रमित अनुदेशन की प्रासंगिकता अथवा उपयोग को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

(1) अभिक्रमित अनुदेशन छात्रों के स्वाभाविक शैक्षिक एवं शारीरिक विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी एवं प्रासंगिक है।

(2) अभिक्रमित अनुदेशन के द्वारा छात्र स्वाध्याय, स्व-गति तथा स्वमूल्यांकन के माध्यम से विषय में कुशलता प्राप्त करते हैं।

(3) अभिक्रमित अनुदेशन की विधि से शिक्षण करने से छात्रों में आत्म-निर्भरता बढ़ती है।

(4) यह विधि रोचकता, लचीली तथा सरल से कठिन होने के कारण मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी प्रासंगिक है।

(5) यह विधि पारस्परिक शिक्षण के साथ-साथ शिक्षक प्रशिक्षण, पत्राचार-पाठ्यक्रम अनौपचारिक तथा सतत् शिक्षा तथा कार्यरत कर्मचारियों की शिक्षा के लिए उपयोगी है।

(6) इस विधि में अभिप्रेरणा, प्रतिपुष्टि, पुनर्बलन इत्यादि मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का सार्थक उपयोग किया गया है।

(7) इस विधि में वैधता, विश्वसनीयता, वस्तुनिष्ठता तथा विभेदीकरण आदि समस्त वैज्ञानिक विशेषताएँ होने के कारण छात्रों को प्रामाणिक ज्ञान मिलता है।

(8) अभिक्रमित अनुदेशन रेडियो, दूरदर्शन, कम्प्यूटर, इन्टरनेट तथा ई-मेल इत्यादि सभी की दृष्टि से भी उपयोगी हो।

(9) अभिक्रमित अनुदेशन के द्वारा शिक्षण से छात्र सदैव क्रियाशील एवं सक्रिय रहता है।

(10) अभिक्रमित अनुदेशन शिक्षकों की कमी की समस्या को कुछ हद तक दूर करने में सहायक है।

(11) यह विधि छात्रों की वैयक्तिक विभिन्नता का भी ध्यान रखती है।

(12) यह निदानात्मक तथा उपचारात्मक शिक्षा प्रदान करने के लिए उपयोगी है।

(13) यह विधि छात्रों में रचनात्मकता, चिन्तन, तर्क, त्वरित निर्णय शक्ति इत्यादि गुणों का विकास करने में सहायक है।

(14) अभिक्रमित अनुदेशन आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ भविष्य की शिक्षा के लिए भी उपयोगी एवं प्रासंगिक रहेगी।

अनुदेशन के उद्देश्य

अभिक्रमित अनुदेशन निम्नलिखित उद्देश्यों को ध्यान में रखकर दिया जाता है-

1. छात्रों को, उनकी व्यक्तिगत क्षमताओं के अनुरूप सीखने का अवसर प्रदान करना।

2. विद्यार्थियों को स्वाध्याय हेतु अभिप्रेरित करना।

3.नियमित अध्ययन के अवसर से वंचित छात्रों को सहज, सुगम पाठ्य-वस्तु उपलब्ध कराना

4. शिक्षक के अभाव में भी अधिगम की सुगम पद्धति द्वारा अध्ययन का अवसर प्राप्त कराना।

5. छात्रों को लघु इकाइयों के द्वारा ज्ञान कराना।

6.छात्रों को अध्ययन की दिशा में प्रेरित करना।

7. स्व-मूल्यांकन का छात्रों को अवसर प्रदान करना।

अभिक्रमित अनुदेशन का महत्त्व

अभिक्रमित अनुदेशन का महत्त्व भी निम्नलिखित है.

1. यह शिक्षक के अभाव में भी सीखने का समुचित अवसर प्रदान करने वाली पद्धति है।

2. इसके अन्तर्गत, छात्रों को स्व-मूल्यांकन का अवसर प्राप्त होता है।

3. इसके द्वारा छात्र आसानी से ज्ञानार्जन करते हैं।

4. यह ज्ञान प्राप्ति हेतु छात्रों को यथासमय पुनर्बलन प्रदान करता है।

5. यह वैयक्तिक भिन्नता के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त को साकार करता है।

6. छात्रों को अपनी वैयक्तिक भिन्नताओं के अनुरूप अधिगम का अवसर प्राप्त होता है।

7. इस विधि का सामूहिक स्तर पर भी प्रयोग किया जा सकता है।

8. इस विधि के द्वारा छात्र निर्भीक रहकर ज्ञानार्जन करते हैं।

9. यह प्रायः समस्त विषयों हेतु प्रयुक्त की जा सकती है।

10. इस विधि के अनन्तर समय अथवा स्थान विशेष का बन्धन नहीं रहता है।

11. यह विधि, छात्रों की दृष्टि से अपेक्षाकृत कम व्ययपूर्ण है।

6. यह इस मान्यता पर आधारित है कि बालक कम त्रुटियों से सीखता है। यदि वह त्रुटि करेगा तो उसका पुनर्बलन नहीं हो सकेगा। एक आदर्श रेखीय-अभिक्रमित-अनुदेशन में बालक कोई त्रुटि नहीं करेगा, ऐसी उनकी मान्यता है। फिर भी दस प्रतिशत तक की सीमा तक त्रुटियों को रेखीय-अभिक्रमित-अनुदेशन में स्वीकार किया जा सकता है।

रेखीय अभिक्रमित अनुदेशन की सीमाएँ

रेखीय-अभिक्रमित-अनुदेशन की निम्नांकित सीमाएँ हैं-

1. इसके अनुदेशन में सबसे बड़ी कमी यह है कि यह छात्र द्वारा त्रुटि करने पर यह बताने में समर्थ नहीं है कि वह गलत क्यों है। त्रुटि करने पर उसे वह फ्रेम पुनः पढ़ना पड़ता है।

2. प्रत्येक विद्यार्थी को, चाहे उसे बीच की बातें आती ही हों, प्रत्येक फ्रेम की पढ़ना पड़ता है। इस प्रकार एक ही क्रम में पढ़ने से बालकों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं का ध्यान नहीं रखा गया है।

3. रेखीय-अभिक्रमित-अनुदेशन से सृजनात्मक तथा उच्च तार्किक-चिन्तन की क्षमता विकसित किया जाना सम्भव नहीं है।

4. प्रतिभाशाली विद्यार्थी छोटे-छोटे पदों को पढ़ने की रुचि नहीं दिखाते हैं क्योंकि ये पद उनके लिए बहुत सरल सिद्ध होते हैं

5. सभी विषयों में इसका निर्माण किया जाना सम्भव नहीं है।

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shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

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