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निर्देशन के लक्ष्य (Aims of Guidance)
निर्देशन सेवा एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है। बिना लक्ष्य निर्धारण के इस प्रक्रिया का पूरा होना सम्भव नहीं हो सकता। निर्देशन सेवा के कार्य क्षेत्रों में विभिन्नता होने के कारण इसके लक्ष्य भी भिन्न होते हैं। निर्देशन के कुछ मुख्य लक्ष्य इस प्रकार हैं-
(1) व्यक्ति को उसकी योग्यता, क्षमता, रुचि, अभिरुचि एवं शक्ति के विकास में सहयोग देना।
(2) व्यक्ति को उसकी योग्यता, क्षमता एवं रुचि के अनुरूप उपलब्ध शैक्षिक एवं व्यावसायिक अवसरों का ज्ञान कराना एवं उनके चयन में सहायता प्रदान करना।
(3) व्यक्ति के सन्तुलित शारीरिक, मानसिक, भावात्मक एवं सामाजिक विकास में इस प्रकार सहायता देना जिससे वह अपने आस-पास के वातावरण के साथ सन्तोषजनक एवं व्यवस्थित ढंग से समायोजन स्थापित कर सके।
(4) व्यक्ति में स्वनिर्देशन की क्षमता विकसित करना अर्थात् व्यक्ति को इस योग्य बनाना कि वह भिन्न-भिन्न परिस्थितियों में अपनी समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हो जिससे कि वह स्वयं का एवं समाज का अधिक से अधिक हित कर सके।
अलग-अलग विद्वानों ने निर्देशन के लक्ष्यों पर प्रकाश डाला है। यहाँ पर कुछ प्रमुख विद्वानों द्वारा बताए गए निर्देशन के लक्ष्यों को संक्षेप में स्पष्ट किया गया है।
हम्फ्रीज एवं ट्रैक्सलर (Humphreys and Traxler) ने निर्देशन के निम्न लक्ष्य बताए हैं-
(1) स्वयं के विषय में अवगत होना।
(2) अपनी क्षमता, प्रतिभा, रुचि एवं उपस्थित अन्य गुणों का पूर्ण लाभ उठाना।
(3) अपने परिवेश में उत्पन्न विभिन्न परिस्थितियों से सामन्जस्य स्थापित करना।
(4) व्यक्ति में स्वयं निर्णय लेने की क्षमता का विकास करना।
(5) व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार उपलब्ध शैक्षिक और व्यावसायिक अवसरों का ज्ञान कराना।
(6) समाज में योगदान हेतु पूर्ण सहयोग देना।
(7) व्यक्ति में स्वयं समाधान की योग्यता इस प्रकार विकसित करना जिससे वह स्वयं एवं समाज का अधिकाधिक हित कर सके।
बकर मेंहदी (Baquer Mehdi) ने निर्देशन के निम्नलिखित लक्ष्य बताए हैं-
(1) छात्रों को शिक्षा के नए उद्देश्यों से परिचित कराने में सहायता प्रदान करना।
(2) छात्रों को श्रेष्ठ नियोजन की आवश्यकता से परिचित कराने में सहायता प्रदान करना।
(3) छात्रों को उनकी रुचि के विषयों के चयन में सहायता प्रदान कर शैक्षिक समायोजन में सहायता।
(4) छात्रों में अध्ययन के प्रति उचित अभिप्रेरणा उत्पन्न करना।
(5) छात्रों की विषय से सम्बन्धित कठिनाइयों / समस्याओं को दूर कर उनमें अच्छे अध्ययन कौशल का विकास करना जिससे शिक्षा में उन्नति करने में सहायता मिल सके।
एरिक्सन (Erikson) के अनुसार निर्देशन के निम्नलिखित लक्ष्य हैं-
(1) व्यक्ति विशेष का सावधानीपूर्वक अध्ययन करना (Careful Study of an Individual)- निर्देशन सेवा को प्रभावी बनाने के लिए व्यक्ति विशेष के विषय में पूर्ण अध्ययन आवश्यक है। इसके लिए अनेक विधियाँ उपलब्ध हैं।
(2) परामर्श प्रदान करना (Provide Counselling)- परामर्श वह वैयक्तिक सहायता है जो किसी व्यक्ति विशेष को उसके समायोजन की समस्या के सन्दर्भ में प्रदान की जाती है। निर्देशन सेवा में परामर्श की आवश्यकता तब होती है जब विद्यार्थियों को विशिष्ट एवं वैयक्तिक सहायता की आवश्यकता हो।
(3) नियुक्ति एवं अनुकरण (Placement and Followup)- निर्देशन सेवा छात्रों को विभिन्न संस्थाओं एवं व्यवसायों में नियुक्त होने में सहायता प्रदान करती है। इसके बाद निर्देशन सेवा इस बात का भी अध्ययन करती है कि वे अपने कार्य सम्पादन में कितने सफल हैं? यह उन्हें सफलता प्राप्त करने में सहायता प्रदान करती है।
(4) सूचनात्मक सेवाएँ (Informational Services)– कोई भी छात्र अपने जीवन में तभी सफलता प्राप्त कर सकता है / अपनी समस्याओं का समाधान कर सकता है जब उन्हें जीवन के प्रत्येक क्षेत्रों से सम्बन्धित पर्याप्त सूचनाएँ उपलब्ध हों। निर्देशन सेवाओं द्वारा छात्रों / व्यक्तियों को ये सूचनाएँ प्रदान की जानी चाहिए। इसके लिए विभिन्न सूचना सेवाओं, जैसे- वैयक्तिक परिसूची सेवा एवं व्यावसायिक सूचना सेवा आदि की व्यवस्था होनी चाहिए।
(5) विद्यालय कर्मचारियों की सहायता करना (Assists School Staff)- निर्देशन कार्यक्रम द्वारा सम्पूर्ण विद्यालय को सेवा प्रदान की जाती है। इसके द्वारा सभी को महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ प्रदान की जाती हैं। वस्तुतः निर्देशन सेवा का उद्देश्य विद्यालय की सभी क्रियाओं को सशक्त बनाना एवं विकसित करना है।
(6) समन्वय (Coordination/Adjustment)- निर्देशन सेवा व्यक्ति / छात्र / बालक पर विद्यालय, घर, पास-पड़ोस एवं समाज के पड़ने वाले प्रभावों में तालमेल स्थापित करने का प्रयास करता है।
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