Ajmer District GK in Hindi
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Ajmer District GK in Hindi | अजमेर जिले की सम्पूर्ण जानकारी | अजमेर जिला Rajasthan GK in Hindi
अजमेर
राजस्थान का हृदय, राजस्थान का नाका, भारत का मक्का कहलाने वाले इस नगर की स्थापना चौहान राजा अजरायज (अजयपाल) ने 1113 ई. में की।
अजमेर के दर्शनीय स्थल
सोनी जी की नसियां : मूलचन्द्र सोनी द्वारा निर्माण कार्य 1864 में प्रारम्भ व उसके पुत्र टीकमचन्द द्वारा 1865 में पूर्ण भगवान ऋषभदेव का मंदिर। लाल रंग का होने के कारण इसे लाल मंदिर भी कहते हैं।
इस स्थान पर सिद्धकूट चैतनालय (दिगम्बर जैन मंदिर स्थित है।
मैग्जीन दुर्ग : अकबर द्वारा अजमेर में निर्मित (1571-72) यह किला मोईनुद्दीन चिश्ती के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने हेतु बनवाया गया। अजमेर शहर के बीच स्थित यह किला अकबर का दौलतखाना या मैग्जीन (शस्त्रागार) के रूप में भी जाना जाता है। यह वर्तमान में राजपूताना म्यूजियम (राजकीय संग्रहालय) का रूप ले चुका है।
• अकबर के दौलतखाना नाम से प्रसिद्ध मुस्लिम दुर्ग निर्माण पद्धति से बनाया हुआ राजस्थान का एकमात्र दुर्ग है।
• ज्ञातव्य है कि सर टॉमस रॉ जो ब्रिटिश शासक जेम्स प्रथम का राजदूत था, ने अपना परिचय पत्र सम्राट जहाँगीर को 10 जनवरी, 1616 में यही प्रस्तुत किया था तथा हल्दीघाटी के युद्ध को अंतिम रूप इसी किले में दिया गया था।
तारागढ़ दुर्ग :
अजयमेरू व गढ़बीठली राजस्थान का जिब्राल्टर (बिशप हैबर द्वारा दिया गया नाम) आदि उपनामों से प्रसिद्ध व अजयपाल द्वारा 1100 ई. में 2865 फुट ऊँची पहाड़ी पर निर्मित इस दुर्ग ने अनेक लड़ाईयाँ देखी हैं।
17 वीं सदी में शाहजहाँ के एक सेनापति बीठलदास द्वारा इस किले की मरम्मत करवायी गयी।
तारागढ़ दुर्ग का सबसे ऊँचा भाग मीरान साहब (तारागढ़ के प्रथम गर्वनर मीर सैयद हुसैन खिंगसवार) की दरगाह कहलाता है।
• अजमेर में तारागढ़ पर हजरत मीरान साहब की दरगाह परिसर में स्थित घोड़े की मजार पूरे हिन्दुस्तान में केवल अजमेर में ही है। यह घोड़ा हजरत मीरान साहब का सबसे प्रिय घोड़ा था।
मेवाड़ के महाराणा पृथ्वीराज सिसोदिया ने महल आदि बनवाकर अपनी पत्नी ताराबाई के नाम पर इसका नामकरण तारागढ़ किया।
चश्मा-ए-नूर : तारागढ़ के पश्चिम की तरफ घाटी का एक रमणीक स्थल। मुगल बादशाह जहाँगीर ने अपने नाम नुरूद्ददीन जहाँगीर पर इसका नाम चश्मा-ए-नूर रखा।
तिलोनिया : अजमेर जिले का यह गाँव पेचवर्क के लिए चर्चित है। पेचवर्क में विविध रंग के कपड़ों को विविध डिजाइनों में काटकर कपड़े पर सिलाई की जाती है। सूचना के अधिकार की अग्रणी श्रीमती अरुणा राय व उसके पति बंकर राय की यह कार्यस्थली भी है।
आनासागर झील : इस झील का निर्माण पृथ्वीराज चौहान के पितामह अर्णोराज (आनाजी) ने 1135 ई. के आस-पास अजमेर की दो पहाड़ियों के मध्य करवाया। सम्राट जहाँगीर ने यहाँ दौलत बाग (वर्तमान में सुभाष उद्यान) का निर्माण करवाया। दौलत बाग के गुलाब उद्यान में नूरजहाँ की माँ ने गुलाब के इत्र का आविष्कार किया।
जब मुगल सम्राट शाहजहाँ यहाँ आया तो उन्होंने संगमरमर के कई सुन्दर मण्डप बनवाये तथा झील के किनारे संगमरमर की 5 बारहदरी का निर्माण करवाया।
फॉयसागर झील : इस झील का निर्माण इंजीनियर फॉय के निर्देशन में हुआ। यह झील बाढ़ राहत परियोजना के अन्तर्गत अजमेर नगर परिषद् द्वारा निर्मित की गई। इस झील में बाण्डी नदी का जल एकत्रित होता है। ध्यान रहे कि अजमेर नगरपरिषद् सबसे पुरानी नगर परिषद् है।
टॉडगढ़ का किला : जेम्स टॉड द्वारा निर्मित, इसका मूल नाम बोराड़ बाड़ा था।
काचरिया मंदिर :किशनगढ़ (अजमेर) में स्थित इस मंदिर में राधाकृष्ण का स्वरूप विराजमान है। कृष्ण का विग्रह अष्ट धातु निर्मित घनश्याम वर्ण का है।
वहीं राधारानी का विग्रह पीतल का है। मंदिर में भगवान की सेवा निम्बार्क पद्धति से की जाती है।
ख्वाजा साहब की दरगाह
यहाँ हर वर्ष हिजरी संवत् के अनुसार पहली रज्जब से नौ रज्जब तक ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती (हजरत शेख उस्मान हारुनी के शिष्य) की याद में ख्वाजा साहब का उर्स मनाया जाता है। ज्ञातव्य है कि हिन्दुल्लवली, अताऐ रसूल हजरत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्मी का जन्म सीस्तान (ईरान) में हुआ। 10 मुहर्रम 561 हिजरी को ये अजमेर आये। इनका इन्तकाल 633 हिजरी को हुआ। इस संत का संदेश रास्ते अलग-अलग है मंजिल एक है विश्व में मानवता का नायाब पैगाम है।
दरगाह का मुख्य धरातल सफेद संगमरमर का बना हुआ है। इसके निर्माण की शुरुआत इल्तुतमिश द्वारा की गई तथा निर्माण कार्य हुमायूँ द्वारा पूर्ण करवाया गया।
दरगाह के ऊपर एक आकर्षक गुम्बद (सुल्तान ग्यासुद्दीन ने इसको बनवाया) है जिस पर सुनहरा कलश है तथा मजार पर मखमल की गिलाफ चढ़ी हुयी है।
इसके चारों ओर परिक्रमा के स्थान पर चाँदी के कटघरे (जहाँगीर द्वारा निर्मित) बने हैं।
मजार का दरवाजा बादशाह मांडू ने बनवाया।
दरगाह का मुख्य स्थान महफिलखाना है जिसका निर्माण हैदराबाद के नवाब बशीरुद्दौला ने करवाया।
छोटी देग-बड़ी देग : मुगल सम्राट जहाँगीर द्वारा भेंट की गयी छोटी देग (चावल पकाने की क्षमता 80 मन) बुलन्द दरवाजे के पूर्वी भाग तथा सम्राट अकबर द्वारा भेंट की गयी बड़ी देग (चावल पकाने की क्षमता 100 मन) बुलन्द दरवाजे के पश्चिमी भाग में रखी गयी है। इसमें पक्की खाद्य सामग्नी जो
गरीबों में बांटी जाती है, को तबरूंक कहा जाता है।
सहन चिराग : यह चिराग दरगाह के प्रवेश द्वार बुलन्द दरवाजे के सामने आंगन में रखा हुआ है। इसको मुगल बादशाह अकबर ने भेंट किया था।
नक्कारखाना उस्मानी : इस नक्कारखाने का निर्माण 1331 हिजरी में हैदराबाद के नवाब मीर महबूब अली खां ने करवाया। इस पर प्रतिदिन 5 बार नौबत बजाई जाती है।
नक्कारखाना शाहजहानी : इस नक्कारखाने का निर्माण शाहजहाँ ने हिजरी 1047 में लाल पत्थर से करवाया। इस नक्कारखाने के ऊपरी हिस्से पर अकबरी नक्कारे रखे हुए हैं।
दरगाह की अन्य मजारें: यहाँ ख्वाजा साहब की पुत्री बीबी हाफिज जमाल, शाहजहाँ की बेटी चिमनी बेगम (जिसका बालपन में ही चेचक से अजमेर में देहान्त हो गया था), ख्वाजा मुइनुद्दीन के दो पोते, मांडू के दो सुल्तान तथा उस भिश्ती सुल्तान की कब्न भी दरगाह क्षेत्र में ही है, जिसे डेढ़ दिन के लिए
दिल्ली का सुल्तान बनाया गया था। उस भिश्ती ने बादशाह हुमायूँ को गंगा में डूबने से बचाया था। खादिमों के पूर्वज फक्रूद्दीन की मजार भी दरगाह क्षेत्र में है।
तीर्थराज पुष्कर
देवताओं की उप-नगरी के रूप में प्रसिद्ध। पद्म पुराण के सृष्टि खंड में लिखा है कि पुष्कर का निर्माण ब्रह्मा द्वारा गिरायी गयी कमल की पंखुड़ियों से हुआ। जहाँ ये पंखुड़ियाँ गिरी वहीं ज्येष्ठ, मध्यम और कनिष्ठ पुष्कर का निर्माण हुआ। कनिष्ठ पुष्कर को बुद्ध पुष्कर भी कहते हैं। इंडियन नेशनल ट्रस्ट
ऑफ आर्ट कल्चरल व हेरिटेज (इंटेक) द्वारा पुष्कर को हेरिटेज तीर्थ के रूप में विकसित करने का फैसला लिया है। पुष्कर में फूलों की आधुनिक मण्डी भी विकसित की जा रही है।
ॐ ब्रह्माजी का मंदिर : केन्द्र सरकार के भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने जगत पिता ब्रह्मा मंदिर को राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया है। इसका निर्माण गोकुलचन्द पारीक द्वारा किया गया।
सावित्री का मंदिर : ब्रह्मा जी की पत्नी सावित्री जी का यह मंदिर सम्पूर्ण भारत में एकमात्र इसी स्थान पर स्थित है। यहाँ सावित्री जी के चरण और उनकी पुत्री सरस्वती जी की मूर्ति प्रतिष्ठित है। इसका निर्माण गोकुलचन्द पारीक द्वारा किया गया।
रंगनाथजी : दक्षिण भारतीय शैली में बना राजस्थान का सबसे बड़ा मंदिर। यह मंदिर भगवान विष्णु, लक्ष्मी एवं नृसिंह की मूर्तियों से मंडित है।
पुष्कर झील : अर्द्ध-चन्द्राकार में फैली इस झील में बावन घाट बने हुए हैं। 1809 में मराठा सरदारों ने गौघाट का पुननिर्माण करवाया। 1911 में महारानी मेरी जब पुष्कर देखने आयी तो उसने यहाँ महिलाओं के लिए अलग घाट का निर्माण करवाया। इसी स्थान पर महात्मा गांधी की अस्थियाँ प्रवाहित की गयी थी तभी से इसे गांधी घाट कहते हैं।
वराह मंदिर:इसका निर्माण अर्णोराज ने (1123-50) करवाया।
पुष्कर मेला: पुष्कर में कार्तिक (अक्टूबर- नवम्बर) मास की एकादशी से पूर्णिमा तक विशाल मेले का आयोजन किया जाता है। इसे राजस्थान का सबसे रंगीन मेला माना जाता है।
अढाई दिन का झोंपड़ा
बीसलदेव (विग्रहराज चतुर्थ) द्वारा मूलतः संस्कृत पाठशाला के रूप में 1153 ई. में निर्मित इस इमारत को कुतुबुद्दीन ऐबक ने मस्जिद के रूप में परिवर्तित (1193 ई.) करवाया।
इस परिवर्तन (सात मेहराबों का निर्माण) का कार्य सुल्तान शमसुद्दीन अल्तमश के समय में हुआ। इसके दस गुम्बद 124 स्तम्भों पर टिके हुए हैं।
इसकी निर्माण अवधि के अढ़ाई दिन होने तथा यहाँ एक मुसलमान फकीर पंजाब शाह का अढाई दिन का उर्स लगने के फलस्वरूप यह इमारत अढ़ाई दिन का झोंपड़ा कहलाती है।
ए. कनिंघम ने भूरी-भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि भारत में कोई इमारत न तो ऐतिहासिक दृष्टि से और न ही पुरातात्विक दृष्टि से इतनी संरक्षित बची है।
किशनगढ़ शैली : इस शैली प्राकृतिक दृश्यों के अंतर्गत झील, हंस, बतख तथा केले वृक्ष का अधिकता से प्रयोग किया गया है। रागमाला, भगवत् पुराण, रामायण, आर्ष रामायण, मेवाड़ शैली, बणी-ठणी, कृष्णलीला, दीपावली आदि चित्र किशनगढ़ शैली के है।
अद्भुत नारी सौन्दर्य (लम्बा चेहरा, नुकीली नाक, पतली कमर) इस शैली की प्रमुख विशेषता है।
बणी-ठणी के चित्र, जो सांवतसिंह (नागरीदास) के समय चित्रकार निहालचन्द द्वारा बनाया गया, को एरिक डिक्सन ने भारतीय कला इतिहास में मोनालिसा कहा है।
ब्यावर : कर्नल डिक्सन द्वारा स्थापित इस नगर की तिलपट्टी प्रसिद्ध है। यहाँ धुलण्डी के दूसरे दिन (चैत्र बदी) बादशाह मेले में बादशाह सवारी बड़ी धूमधाम से निकाली जाती है।
दादाबाड़ी : श्वेताम्बर सम्प्रदाय के संत श्री जिनदत्त सूरि (जिनवल्लभ सूरि के शिष्य) की स्मृति में निर्मित समाधि स्थल।
लाखन कोठरी: हिजड़ों की सबसे बड़ी गद्दीं यहां स्थित है।
रामसर : यहाँ बकरी प्रजनन एवं चारा उत्पादन अनुसंधान केन्द्र स्थित है।
मेयो कॉलेज : भारत के वायसराय लॉर्ड मेयो (1869-72) द्वारा श्वेत संगमरमर से निर्मित इस कॉलेज का निर्माण तत्कालीन शासकों की संतानों की शिक्षा देने के लिए किया गया।
आँतेड़ की छतरियाँ : यहाँ दिगम्बर जैन सम्प्रदाय की छतरियाँ स्थित है।
अब्दुल्ला खां का मकबरा : राज फरुखसियर के एक मंत्री हुसैन अली खां के पिता अब्दुल्ला खां का यह मकबरा रेलवे स्टेशन के निकट स्थित है। इसका निर्माण 1710 में हुआ। इसके पास ही अब्दुल्ला खां की बेगम का मकबरा भी स्थित है।
जेठाना : एशियाई विकास बैंक के वित्तीय सहयोग से इस स्थान पर 600 मेगावाट का पॉवर ग्रिड स्टेशन की स्थापना की गयी है।
तबीजी : यहाँ देश का पहला बीज मसाला अनुसंधान केन्द्र स्थापित है तथा सम्प्रति यहाँ खुली जेल का निर्माण किया जा रहा है।
केहरीगढ़ किला: किशनगढ़ के गूंदोलाव तालाब के निकट स्थित इस किले को अब हैरिटेज होटल बनाया गया है। इस किले के आंतरिक भाग को जीवरक्खा कहते हैं।
अजमेर की विषय में स्मरणीय तथ्य
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- मसूदा : राजस्थान का प्रथम पूर्ण साक्षर गाँव।
- सलेमाबादः निम्बार्क सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र अजमेर जिले में है।
- अजमेर का फेल्सपार उत्पादन की दृष्टि से राज्य में एकाधिकार है।
- दयानन्द सरस्वती का निधन अजमेर में
- पुष्कर की घाटी फूलों के लिए प्रसिद्ध है।
- मध्य अरावली की सबसे ऊँची चोटी तारागढ़ अजमेर जिले में है।
- पूर्व में अजमेर मेरवाड़ा नाम से जाना जाता था।
- हिन्दुस्तान मशीन टूल्स (केन्द्र सरकार का उपक्रम) अजमेर जिले में स्थित है।
- राज्य का प्रथम भूकम्प सूचना केन्द्र अजमेर जिले में स्थित है।
- 1904 में राजस्थान की पहली सहकारी समिति की स्थापना अजमेर जिले के भिनाय नामक स्थान पर हुई।
- द कृष्णा मिल्स लिमिटेड (1889), राज्य की पहली सूती वस्त्र मिल अजमेर के ब्यावर में स्थापित की गई।
- अजमेर जिले के सरवाड़ नामक स्थान पर सैय्यद ख्वाजा फखरुद्दीन की दरगाह स्थित है।
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