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अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से आपका क्या अभिप्राय है?
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से अभिप्राय एक ऐसी भावना से है जो एक राष्ट्र के नागरिकों में दूसरे राष्ट्रों के नागरिकों के प्रति मैत्री एवं बन्धुत्व का भाव उत्पन्न करती है, उन्हें उसके सुख-दुःख में साथ देने के लिये प्रेरित करती है। इसके द्वारा विश्व के समस्त राष्ट्रों का कल्याण करने की आकांक्षा उत्पन्न होती है तथा सम्पूर्ण संसार को एक कुटुम्ब के रूप में देखने की समझ उत्पन्न होती है। यूनेस्को के पूर्व प्रधान निदेशक डॉ. वाल्टर एच.जी. लेब्स (Dr. Walter H.G. Laver) ने अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव का अर्थ स्पष्ट करते हुए लिखा है- “अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना से तात्पर्य आलोचनात्मक तथा निष्पक्ष रूप से निरीक्षण करने तथा लोगों की राष्ट्रीयता या संस्कृति पर बिना ध्यान दिये हुए उसके व्यवहार की उत्तमताओं की एक-दूसरे से प्रशंसा करने की योग्यता है। ऐसा करने के लिये मनुष्य को इस योग्य होना चाहिये कि वह समस्त राष्ट्रीयताओं, संस्कृतियों एवं प्रगतियों का इस पृथ्वी पर रहने वाले व्यक्तियों का समान रूप से महत्त्वपूर्ण विभिन्नताओं के रूप में निरीक्षण कर सके।”
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिये शिक्षा का महत्त्व (Importance of education for international understanding)
अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना के लिये शिक्षा का महत्त्व निम्नलिखित प्रकार है-
(1) शिक्षा द्वारा छात्रों को विश्व-नागरिकता के लिये तैयार किया जाये।
(2) विश्व की उन सभी समस्याओं से छात्रों को परिचित कराया जाय जो सभी देशों से सामान्य रूप से सम्बन्धित हैं और उनका समाधान करने के लिये जनतन्त्रीय पद्धतियों का ज्ञान कराया जाये।
(3) उन्हें विश्व समाज के निर्माण के लिये मूल्यों एवं उद्देश्यों में आस्था रखने की शिक्षा प्रदान की जाये।
(4) उन्हें सांस्कृतिक विभिन्नताओं में मानव हित के लिये कल्याणकारी समान तत्वों को खोजने के लिये प्रोत्साहित तथा प्रशिक्षण प्रदान किया जाय।
(5) उन्हें उन समस्त आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक तथा सांस्कृतिक तत्वों की पूर्ण जानकारी कराया जाना शिक्षा द्वारा ही सम्भव है, जिसके कारण ही विश्व के समस्त राष्ट्र एक-दूसरे पर आधारित हैं।
डॉ. वाल्टर एच. जी. लेब्स (Dr. Walter H.G. Laver) के अनुसार छात्रों में अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के विकास के लिये शिक्षा के अग्रलिखित उद्देश्य होने चाहिये –
(1) उन्हें इस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जाती है, जिसमें समस्त व्यक्तियों के रहन-सहन के ढंगों, मूल्यों एवं आकांक्षाओं का ज्ञान हो सके।
(2) छात्र-छात्राओं को समाज के निर्माण में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये तैयार किया जाता है।
(3) शिक्षा द्वारा उन्हें एक साथ रहने के लिये आवश्यक बातों का ज्ञान प्रदान किया जाता है।
(4) शिक्षा द्वारा सभी राष्ट्रीयताओं, संस्कृतियों एवं प्रजातियों के व्यक्तियों को समान समझने की भावना का सृजन किया जा सकता है।
(5) उन्हें अपने स्वयं की सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पक्षपात को महत्त्व न देने की शिक्षा प्रदान की जाय।