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अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध का क्षेत्र
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध का क्षेत्र – वर्तमान समय में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का क्षेत्र काफी विस्तृत हो चुका है। अब विद्वानों का ध्यान अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों एवं संस्थाओं के क्षेत्र विशेष तथा विदेश नीति के रणनीतिक पहलुओं के अध्ययन की ओर गया है। इससे राष्ट्रीय मुक्ति संघर्ष और उपनिवेश विरोधी आन्दोलन की गत्यात्मकता की बेहतर समझ पैदा करने की कोशिशों में तेजी आई है। युद्ध के दौरान संयुक्त राष्ट्र की स्थापना हो जाने से राष्ट्रों के बीच सम्बन्धों के पुनर्निर्माण की दिशा में सोच बेहतर हुई है। यद्यपि संघर्ष आज भी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध का केन्द्रीय विषय है, तथापि सहयोगपरक मामलों का अध्ययन महत्वपूर्ण हो उठा है। युद्ध का तात्कालिक प्रभाव इसी रचनात्मक दृष्टिकोण के रूप में सामने आया। यह ईनिस क्लाड की पुस्तक सोर्ड्स इन्टू प्लोशेयर्स जैसे शीर्षक वाली किताबों के शीर्षकों से भी जाहिर होता है शीतयुद्ध के दौरान विचारधारा एवं निशस्त्रीकरण जैसे विचारों को अभूतपूर्व महत्व प्राप्त हुआ। इसी तरह गठबन्धन और क्षेत्रीयतावाद भी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध के महत्वपूर्ण अंग बन गये।
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों के अधीन राजनयिक इतिहास, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, अन्तर्राष्ट्रीय विधि एवं क्षेत्रवार अध्ययन के सभी आयामों का अध्ययन शामिल है। अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की अन्तर्वस्तु के बारे में लिखते हुए कुछ दशक पहले थामर और पर्किन्स ने कहा था कि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध ‘संक्रमणकालीन विश्व समुदाय का अध्ययन है।” यह निष्कर्ष आज भी बहुत हद तक सच है। संक्रमण काल अभी भी उत्कर्ष बिन्दु तक नहीं पहुँचा है। हालांकि अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध के अन्तर्निहित कारक नहीं बदले हैं, फिर भी विश्व परिदृश्य बदल गया है और वह आज भी बदल रहा है। राज्य व्यवस्था संशोधनों के दौर से गुजर रही है, बड़े पैमाने पर प्रौद्योगिकी का विकास हुआ है तथा अफ्रीका और एशिया के नये देशों की भूमिका लगातार बढ़ती जा रही है। भारत आज दृढ़ निर्णय लेने की स्थिति में है। जैसा कि उसने 1996 में व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि (सी.टी.बी. टी.) पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करके स्पष्ट किया। साथ ही आज सर्वत्र बढ़ती आकांक्षाओं की भी क्रान्ति हो रही है। इसलिए पामर और पर्किन्स ने लिखा था सम-सामयिक अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध में नये और पुराने तत्वों का आपस में गुँधा होना अनिवार्य है। वैसे तो आज भी राष्ट्र राज्य व्यवस्था व अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध ही इसके केन्द्र बिन्दु हैं, किन्तु अनेक संगठनों व समूहों के क्रिया-कलापों व अन्तर्क्रियाओं का ध्यान रखना भी जरूरी हो गया है। “
वास्तव में अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध का क्षेत्र बीसवी सदी के अन्त में बहुत व्यापक हो गया । राज्यों के बीच पारस्परिक निर्भरता में इतनी बढ़ोतरी हुई है कि पूरी दुनिया वास्तव में एक विश्व ग्राम में बदल गई है। राज्यों के आर्थिक सम्बन्ध, अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं, जैसे विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार संगठन की भूमिका आज समस्त संसार की आर्थिक गतिविधि को प्रभावित करते हैं। संयुक्त राष्ट्र एवं उसके अन्य अभिकरण अनेक सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक गतिविधियों में लिप्त है। मानवीय अस्तित्व के लिए अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद का बढ़ता संकट विश्व की सामान्य चिन्ता का विषय है। बहुराष्ट्रीय निगम जो, वास्तव में विश्व भर में कारोबार करने वाली बड़ी कम्पनियाँ हैं, अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गैर-राज्यीय तत्व के रूप में उभरे हैं। कहने का मतलब यह है कि अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति की परिधि काफी व्यापक हो गयी है।