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अधिगम प्रोन्नति के लिए प्रतिपुष्टि आंकलन | Assessment Feedback to Promote Learning in Hindi

अधिगम प्रोन्नति के लिए प्रतिपुष्टि आंकलन
अधिगम प्रोन्नति के लिए प्रतिपुष्टि आंकलन

अधिगम प्रोन्नति के लिए प्रतिपुष्टि आंकलन (Assessment Feedback to Promote Learning)

अधिगम प्रोन्नति के लिए प्रतिपुष्टि आंकलन- विद्यार्थी के आंकलन कार्यों पर प्रतिपुष्टि – सामान्य रूप से कहा जाता है। कि अध्यापक द्वारा प्रतिपुष्ट टिप्पणियाँ विद्यार्थी पढ़ते हैं। साहित्य से यह ज्ञात होता है कि आंशिक रूप से अध्यापक और विद्यार्थी प्रतिपुष्टि को शिक्षण और अधिगम प्रक्रिया के अन्य पक्षों से विलग कर देखते हैं और प्रतिपुष्टि को मुख्यतः अध्यापकों से सम्बन्धित कार्य समझते हैं। इसके विपरीत साहित्य में यह सुझाव भी मिलता है कि प्रतिपुष्टि प्रक्रिया तभी सर्वाधिक प्रभावी होती है जब शिक्षा से सम्बन्धित सभी वर्ग इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से सम्मिलित या सन्निहित होते हैं यद्यपि कुछ विद्यार्थी मुख्य रूप से ग्रेड पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, पर इस प्रक्रिया में छात्रों के अधिकतम संलिप्तता के लिए अनेक रणनीतियाँ उपलब्ध हैं। एक रणनीति कार्यों का डिजाईन इस प्रकार तैयार करना है जिससे प्रतिपुष्टि सलाह पर ध्यान देने के प्रत्यक्ष लाभ छात्रों को दृष्टिगत हो सकें। इसके लिए एक रणनीति कार्य को स्तरों में विभाजित करना है और ऐसी प्रतिपुष्टि प्रदान करना जो आगे के स्तर के सफलता पूर्वक पूरा होने के लिए आवश्यक हो। इसके अतिरिक्त विद्यार्थियों को इसका लेखा-जोखा रखना वांछित हो कि वे आगे के स्तर के लिए प्रतिपुष्टि का किस प्रकार प्रयोग करेंगे जिससे वे उसमें सफल हो सकें। इस रणनीति का अतिरिक्त लाभ विद्यार्थियों के मेटा कोगनीशन को प्रोत्साहित करना और उन्हें प्रतिपुष्टि अधिगम चक्र में अधिक सक्रिय भागीदार बनाना है अध्यापकों को कार्य भार और समय को उत्पादन के अन्त में प्रतिपुष्टि न देने की आवश्यकता द्वारा कम किया जा सकता है।

दूसरी रणनीति प्रतिपुष्टि टिप्पणियों पर अस्थाई ग्रेड प्रदान कर विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया जा सकता है, और उन्हें कार्य पर चर्चा करने के लिए आमंत्रित कर सम्मानित ग्रेड को सुधारने का अवसर प्रदान किया जा सकता है। कुछ प्रवक्ता सुझाते हैं कि ग्रेड को उस समय तक रोक कर रखना चाहिए जब तक विद्यार्थी उन टिप्पणियों को पढ़ न ले और उन्हें किसी रूप में इंगित न कर यह सम्भव है कि विद्यार्थी टिप्पणियों पर ध्यान न दें क्योंकि उनके लिए वे व्यर्थ होती हैं या वे प्रतिपुष्टि प्रक्रिया के उद्देश्य को समझते ही न हों। यह समस्या तब और जटिल हो जाती है जब प्रतिपुष्टि केवल अध्यापक द्वारा दी जाए जो प्रायः विद्यार्थी के नम्बरों या ग्रेड से सम्बन्धित होती है तथा जो सही या गलत होती है। बहुत-से अध्यापक केवल सुधारात्मक पक्ष पर बल देते हैं बजाय प्रतिपुष्टि के निर्देशात्मक पक्ष के।

पहले से सावधानी पूर्वक की गई तैयारी विद्यार्थियों को प्रतिपुष्टि की प्रकृति के सम्बन्ध में और अधिगम प्रक्रिया में उसकी भूमिका के सम्बन्ध में इंगित करेगी। प्रतिपुष्टि का लक्ष्य और उद्देश्य तथा कसौटी का क्या अर्थ है, को समझने के लिए विद्यार्थियों को सक्रिय रूप से अधिगम में सन्निहित होना पड़ेगा। विशेष रूप में इस सन्दर्भ में विद्यार्थियों को चिन्हांकन तक पहुँचने में सहायता प्राप्त होगी तथा पूर्व के कार्य के उदाहरणों पर निर्दिष्ट कसौटी के सम्बन्ध में प्रतिपुष्टि प्राप्त होगी और इस पर कक्षा में चर्चा हो सकेगी। जैसा कि साधारणतया होता है उसकी अपेक्षा इस प्रकार का अभ्यास विद्यार्थियों को कसौटी की अधिक शुद्ध व्याख्या करने में सहायता देगा । यह अध्यापक द्वारा कसौटी के अर्थ और विद्यार्थियों द्वारा उसकी व्याख्या के अन्तर या खाई को कम कर देगा। इसके अतिरिक्त प्रतिपुष्टि को स्पष्ट रूप से आंकलन कसौटी से सम्बन्धित होना चाहिए। अन्त में विद्यार्थी प्रतिपुष्टि प्रक्रिया में तभी भाग लेंगे जब स्वयं और साथियों द्वारा आंकलन, सम्पूर्ण आंकलन प्रक्रिया का एक भाग होना वांछित होगा।

सार रूप में यह कहा जा सकता है कि जब वार्तालाप, आंकलन और प्रतिपुष्टि के चहुँ ओर होता है तब विद्यार्थी समस्त प्रक्रिया में अधिक सक्रिय भागीदार होते हैं और तभी प्रतिपुष्टि विद्यार्थियों के अधिगम में सर्वाधिक उपयोगी होने की सम्भावना होती है। वह सम्भाव्यता तब भी अध्यापक और विद्यार्थी दोनों के लिए सहायक होती है जब आगे के सम्बन्ध में अनुभव करो वाक्य का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि यह अध्यापकों और विद्यार्थियों दोनों को भावी अधिगम पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए प्रोत्साहित करता है।

अधिगम चक्र की किस अवस्था में प्रतिपुष्टि अधिक प्रभावी होगी ? (At what stage in the learning cycle will feedback be more effective ?)– सामान्यतः प्रतिपुष्टि अधिगम कार्य पूरा हो जाने के बाद शीघ्रतः शीघ्र दी जाती है। विद्यार्थियों को भी यह देखना चाहिए जो प्रतिपुष्टि दी गई है वह आगे के निष्पादन में शामिल की जा सकती है और उनके समग्र अधिगम को धनात्मक या सकारात्मक रूप प्रभावित करती है। साथ ही कभी-कभी कुछ अवस्थाओं में प्रतिपुष्टि को अस्थाई रूप से रोक लिया जाता है ताकि विद्यार्थी कार्य की प्रक्रिया और अधिगम की गई सामग्री को आत्मसात कर सकें।

क्या प्रतिपुष्टि के लिए विशेष शैली और भाषा प्रयोग होता है? (Is there a particular style and language that should becaused when giving feedback?)— यह प्रतिपुष्टि का बहुत महत्त्वपूर्ण पक्ष है और प्रतिपुष्टि का प्रयोग करेंगे या नहीं से सम्बन्धित है। शोधों से यह ज्ञात होता है कि विद्यार्थियों पर टिप्पणियाँ प्रायः ऐसी भाषा में लिखी जाती हैं जो प्रवक्ताओं के लिए सार्थक होती है पर जो विद्यार्थियों के लिए बोधगम्य नहीं होती यदि ऐसा है तो प्रतिपुष्टि प्रवक्ता से एक पक्षीय संचार है और विद्यार्थियों से कुछ लेना-देना नहीं है जहाँ तक उनके बाद को व्यवहार का सम्बन्ध है।

इनमें से कुछ समस्याओं को गत अनुभवों की चर्चाओं और उनसे सहचरित कसौटियों के पूर्व आंकलन द्वारा व्यवस्थित किया जा सकता है। इस प्रकार के पूर्व आंकलन के शिक्षण और तैयारियों से प्रतिपुष्टि शब्दावली की सभ्य समझ विकसित होती है। इसके अतिरिक्त आंकलनकर्ता और जिसका आंकलन किया जाता है के मध्य इस प्रकार की परम्परागत प्रक्रिया का अर्थ अधिक साझा शक्ति से है और इस प्रकार की स्थितियाँ प्रतिपुष्टि के लिए, विद्यार्थियों के लिए अधिक उपयुक्त होती है। अधिगम उपलब्धि पर प्रतिपुष्टि का प्रभाव तब कम होती है जब प्रतिपुष्टि प्रशंसा, पारितोषिक या दण्ड पर केन्द्रित होती है। प्रतिपुष्टि तब अधिक प्रभावी होती है जब वह उपलब्धि लक्ष्यों के प्रति हो।

इसके अतिरिक्त, विद्यार्थियों को अधिगम को अधिकतम करने के लिए लिए प्रतिपुष्टि को अधिगम लक्ष्यों से सम्बन्धित करना चाहिए। प्रतिपुष्टि का मुख्य उद्देश्य वर्तमान समझ और निष्पादन तथा लक्ष्य के मध्य की खाई

को पाटना है। इस प्रारूप में प्रतिपुष्टि को तीन प्रश्नों के उत्तर देने चाहिए—

1. मैं कहाँ जा रहा हूँ ? (लक्ष्य क्या है ?)

2. मैं कैसे जा रहा हूँ ? (लक्ष्य के प्रति क्या प्रगति की है ?)

3. आगे क्या करना है ? (उत्तम प्रगति के लिए किन क्रियाओं को करना है?)

हेरी और टिम्परले का प्रारूप यह दर्शाता है कि टिप्पणियाँ किस प्रकार उपर्युक्त तीन प्रश्नों से चार विभिन्न स्तरों, कृत्य प्रक्रिया, आत्मनियमन, और आत्म-प्रतिपुष्टि से सम्बन्धित हैं। यह चार स्तर कृत्य पर इन तीनों प्रश्नों से सम्बन्धित प्रायः सर्वोत्तम कार्य करते हैं जब प्रक्रियाओं और अधिगम की उपयुक्त व्याख्या के साथ होते हैं यदि प्रतिपुष्टि आत्म-परावर्तन के कुछ अंशों और व्यवस्थापन के साथ हों। अर्थात् प्रतिपुष्टि अपनी सर्वोत्तम ऊँचाई और प्रभाववक्ता पर होता है, जब वह कृत्य पर निष्पादन को बढ़ाने पर उपयुक्त प्रदर्शन करता है, और जो वह रणनीति ग्रहण करता है जो सुधार के लिए अधिगमकर्त्ता को अधिक उत्तरदायित्व के लिए आमन्त्रित करती है। इसके विपरीत ‘एक व्यक्ति के रूप में स्वयं के सम्बन्ध’ में प्रतिपुष्टि का अधिगम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, क्योंकि यह भावी अधिगम व्यवस्थापन या व्यवहार के कृत्या के लक्ष्य से जुड़ा हुआ नहीं है। के अनुसार विद्यार्थियों की – प्रशंसा के प्रभावी होने की सम्भावना कम है क्योंकि यह उपर्युक्त तीन प्रश्नों के उत्तर प्रदान करने की बहुत कम सूचना रखती है और प्रायः कृत्य से ध्यान को उचाटती है। यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रकार की प्रशंसा का उस प्रशंसा से विभेद करना चाहिए जो कृत्य के निष्पादन की ओर निर्देशित हो तो और जो अधिगम के लिए लाभकारी होते हैं।

अधिगम बढ़ाने के प्रतिपुष्टि के प्रारूप (Model of Feedback to entrance Learning)

उद्देश्य (Purpose) — इसका उद्देश्य वर्तमान समझ या निष्पादन और इच्छित लक्ष्य के मध्य की दूरी को कम करना है। इस दूरी या भिन्नता को निम्नांकित प्रकार से जा सकता है- दूर किया

विद्यार्थी (Students) – विद्यार्थियों द्वारा बढ़ाकर या अधिक प्रभावकारी रणनीति अपना कर अथवा लक्ष्य छोड़कर या उसे कम कर प्राप्त किया जा सकता है।

अध्यापकों द्वारा चुनौतीपूर्ण और विशिष्ट लक्ष्य प्रदान कर विद्यार्थियों को प्रभावी-अधिगम रणनीति में सहायता प्रदान कर तथा प्रतिपुष्टि द्वारा।

प्रभावी प्रतिपुष्टि तीन प्रश्नों का उत्तर प्रदान करता है-

1. मैं कहाँ जा रहा हूँ (लक्ष्य)

2. मैं कैसे जा रहा हूँ

3. आगे क्या करना है

हर प्रतिपुष्टि प्रश्न चार स्तरों पर कार्य करता है-

कृत्यस्तर मुख्य प्रक्रिया आत्म-निर्देशन व्यक्तिगत
कृत्य को कितनी भली प्रकार समझाया गया या निष्पादित किया गया। के कृत्य को समझना चाहिए निष्पादन कृत्य क्रियाओं को निर्देशित करना और निरन्तर करना मूल्यांकन और प्रभाव अधिगमकर्ता के सम्बन्ध में

इस प्रश्नों के उत्तर बहुत अधिक सार्थक हो जाते हैं जब अध्यापक और विद्यार्थी सभी प्रतिपुष्ट प्रक्रिया में सन्निहित होते हैं और जब इसे कर व्यवस्थापक अधिगमकर्ता के आत्म-मूल्यांकन और नियमन को बढ़ाने के लिए किया जाता है (किसी भी प्रभावी अधिगम प्रक्रिया का बहुत महत्त्वपूर्ण पक्ष है)।

इस परम्परा के अनुसार कि हम प्रतिपुष्टि प्रक्रिया का विस्तार करना चाहते हैं और अधिगमकर्ता का आत्म-नियमन प्रतिपुष्टि प्रक्रिया का एक महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है तथा स्वयं और साथी आंकलन की रणनीति इस प्रक्रिया में शामिल किया जा सकता है। एक सरल उपागम विद्यार्थियों को आत्म-आकलन प्रपत्र जमा करने के लिए कहा जाए तो कृत्य कसौटी पर आधारित हो तथा और विद्यार्थी आत्म-आंकलन की प्रतिपुष्टि प्रदान करेगा न कि स्वयं कृत्य की अधिगम पर वार्ता अधिगमकर्ता और विद्यार्थियों के मध्य समझ बढ़ेगी और दोनों के मध्य शक्ति का सन्तुलन घटेगा जब साथी की प्रतिपुष्टि इसमें सम्मिलित कर ली जाए। यदि प्रतिपुष्टि संरचनात्मक हैं, तो प्रतिपुष्टि के एक विस्तार का प्रभाव विद्यार्थी पर पड़ सकता है और वह कृत्य की गुणवत्ता पर गहराई से सोच सकता है। साथियों की प्रतिपुष्टि का दूसरा सकारात्मक पक्ष यह है विद्यार्थी अन्य विद्यार्थियों के कार्य को देख सकता है जो उसमें अधिगम लक्ष्यों की समझ को और गहरा बना सकती है।

कृत्य आंकलन पर कितनी प्रतिपुष्टि दी जाए (How Much Feedback should be given on Assessment task) — इस प्रश्न का उत्तर कि कितनी प्रतिपुष्टि दी जाए सरल नहीं है यद्यपि विस्तृत रूप से इस तथ्य पर सहमति है कि केवल प्रतिपुष्टि की मात्रा बढ़ाना आवश्यक रूप से लाभकारी नहीं है। एक रणनीति यह हो सकती है कि विद्यार्थियों से उनके कार्य के विभिन्न क्षेत्र चयन करने के लिए कहा जाए (कसौटी के सम्बन्ध में) जिन पर वे हर कृत्य पर गुणवत्तायुक्त, प्रतिपुष्टि चाहते हैं। इससे विद्यार्थी आंकलन प्रक्रिया पर अधिक ध्यान देने के लिए अभिप्रेरित होंगे। प्रतिपुष्टि की मात्रा इससे सम्बन्धित है कि कृत्य को कितना अच्छी तरह से प्रस्तुत किया गया है। प्रतिपुष्टि पर चर्चा उसकी उपयोगिता के लिए सदैव महत्त्वपूर्ण होती है।

अच्छी प्रतिपुष्टि के सिद्धांत (Principles of Good Feedback) 

1. आंकलन कार्य के लक्ष्य के सम्बन्ध में वार्ता को बढ़ावा देना।

2. प्रतिपुष्टि के निर्देशात्मक पक्ष पर बल देना और केवल सुधारात्मक आयाम को ही अवधान में न रखना।

3. Feed forward देने की याद रखिए विद्यार्थियों को यह बताइए कि वे सोचे कि उनका निष्पादन उन्हें लक्ष्य के निकट ले जाएं।

4. आंकलन कार्य के लक्ष्यों को स्पष्ट करिए और प्रतिपुष्टि का प्रयोग विद्यार्थियों के निष्पादन का निर्देशित आंकलन लक्ष्यों से सम्बन्धित करिए

5. विद्यार्थियों को कार्य की कसौटी को समझने के लिए व्यावहारिक अभ्यास और चर्चा में व्यस्त रखें

6. विद्यार्थियों को प्रतिपुष्टि के उद्देश्य के सम्बन्ध में वार्ता में व्यस्त रखें।

7. प्रतिपुष्टि को इस प्रकार डिजाईन करिए जिससे विद्यार्थी आत्म-मूल्यांकन और भावी आत्म-अधिगम व्यवस्थापन के लिए प्रेषित हो।

8. प्रतिपुष्टि में अधिक-से-अधिक भागीदारी को आश्वस्त कर उसका विस्तार बढ़ाइए तथा प्रतिपुष्टि चर्चा में स्वयं और साथियों की प्रतिपुष्टि को सम्मिलित करिए।

अच्छा आकलन और प्रतिपुष्टि (Good Assessment and Feedback) :

1. इसे स्पष्ट करने में सहायता करिए कि उत्तम निष्पादन क्या है (लक्ष्य, कसौटी मानक)- आपके कोर्स में विद्यार्थी किस सीमा तक सक्रिय रूप से आंकलन की अवधि; उसके पश्चात् और उससे पहले लक्ष्य, कसौटी और मानकों में व्यस्त रहने के अवसर पाते हैं।

2. चुनौती पूर्ण अधिगम कार्यों पर समय और प्रयास को प्रोत्साहित करिए – किस सीमा तक आपका आंकलन कक्षा और कक्षा के बाहर गहन अध्ययन को प्रोत्साहित करता है।

3. उच्चकोटि की गुणात्मक प्रतिपुष्टि सूचना प्रदान करिए जो अधिगमकर्ता को आत्म-सुधार में सहायक हो- अध्यापक प्रतिपुष्टि किस प्रकार की प्रदान करता है, वह किस प्रकार विद्यार्थी को आत्म-आंकलन और आत्म-सुधार में सहायक होता है।

4. प्रतिपुष्टि पर क्रियान्वयन का अवसर प्रदान करिए ताकि वर्तमान और वांछित निष्पादन की खाई को समाप्त किया जा सके- विद्यार्थियों द्वारा किस सीमा तक प्रतिपुष्टि पर ध्यान दिया जाता है और उस पर कार्य किया जाता है, यदि हो तो कैसे।

5. इस तथ्य से आश्वस्त हो जाइये कि योगात्मक आंकलन का अधिगम पर सकारात्मक प्रभाव पड़ें- संरचनात्मक और योगात्मक आंकलन किस सीमा तथा एक-दूसरे के पूरक ‘हैं और मूल्यात्मक गुणवत्ता, कौशल तथा समझ के विकास में सहायक है

6. साथी और अध्यापक विद्यार्थी के स्वयं अन्तः क्रिया और वार्ता को अधिगम के चहुँ ओर प्रोत्साहित करिए – आपके कोर्स में आंकलन कार्य पर प्रतिपुष्टि पर वार्ता की क्या सुविधा और अवसर उपलब्ध है।

7. अधिगम पर प्रतिबिम्ब और आत्म आंकलन के विकास को सुविधा प्रदान करिए- आपके कोर्स में आत्म-आंकलन या साथी के आंकलन पर प्रतिबिम्ब के औपचारिक अवसर किस सीमा तक हैं।

8. विषय, विधि, कसौटी, महत्त्व या आंकलन के समय के चयन के अवसर दें- विषय, विधि, कसौटी महत्त्व और अधिगम तथा कृत्य के आंकलन के समय को चयन के अवसर विद्यार्थियों को किस सीमा तक उपलब्ध है।

9. विद्यार्थियों को आंकलन की नीति और आरोपण में निर्णय लेने में सम्मिलित करिए – आपके कोर्स में विद्यार्थियों को किस सीमा तक आंकलन नीति निर्णय में शामिल किया जाता है या उन्हें सूचित किया जाता है।

10. अधिगम समूह और समुदाय के विकास को सहायता दें- आपके आंकलन और प्रतिपुष्टि प्रक्रिया विद्यार्थियों में सामाजिक सम्बन्धों और अधिगम समुदाय के विकास को किस सीमा तक बढ़ाती है।

11. सकारात्मक अभिप्रेरणात्मक विश्वास और (Self-esteem) को प्रोत्साहित करिए- आपके आंकलन और प्रतिपुष्टि प्रक्रिया किस सीमा तक विद्यार्थियों में अधिगम के लिए और सफल होने के लिए अभिप्रेरणा को बढ़ाते हैं ।

12. शिक्षकों को उनके शिक्षण को सुधारने में सहायक सूचना प्रदान करें- आपके आंकलन और प्रतिपुष्टि प्रक्रिया किस सीमा तक आपके शिक्षण को प्रारूप की सूचना प्रदान करते हैं?

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shubham yadav

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