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भारतीय शिक्षा में मैकाले के योगदान
भारतीय शिक्षा में मैकाले के योगदान- लॉर्ड मैकॉले एक सुयोग्य शिक्षाशास्त्री, राजनीतिज्ञ एवं कुशल प्रशासक था। वह अंग्रेजी साहित्य का प्रकाण्ड विद्वान था। वह ओजस्वी लेखक एवं वक्ता भी था। उसने 10 जून, 1834 को गर्वनर जनरल की काउन्सिल के कानूनी सदस्य (Legal Advisor) के रूप में कार्य करना प्रारम्भ किया था। वह ऐसे समय में भारत में इस दायित्त्व को ग्रहण करने आया था, जबकि सम्पूर्ण अंग्रेज जाति अपने पराभव पर थी। वे अपने साहित्य, संस्कृति का आधिपत्य विश्व के अधिकांश भागों में जमा चुके थे। मैकॉले इन सभी महत्त्वाकांक्षी गुणों से परिपूर्ण था। मैकॉले के पाश्चात्यवादी दृष्टिकोण में अंग्रेजी के महत्त्व को अग्रलिखित बिन्दुओं से समझाया जा सकता है, जो कि उसके विवरण-पत्र (Minute) में सर्वत्र बिखरे पड़े हैं-
(1) अंग्रेजी समस्त विश्व में शासकों की भाषा है तथा सर्वश्रेष्ठ साहित्य से सम्वर्द्धित है।
(2) अंग्रेजी पढ़ने हेतु भारत के अधिकांश लोग आतुर हैं।
(3) ‘अंग्रेजी’ एवं अंग्रेजी संस्कृति ने विश्व के अनेक राष्ट्रों को जंगलियों की दशा से उठाकर सभ्य बनाया है।
(4) अंग्रेजी भाषा भारत में नवीन संस्कृति का पुनरुत्थान कर सकेगी।
(5) प्राच्य शिक्षा ग्रहण करने के लिए बालकों को छात्रवृत्ति आदि देकर प्रोत्साहित किया जाता है, किन्तु अंग्रेजी पढ़ने के लिए छात्र स्वयं खर्च वहन करने को तैयार हैं।
(6) केवल मुस्लिम एवं हिन्दुओं को न्याय दिलवाने हेतु उनके अरबी, हिन्दू शास्त्रों को अंग्रेजी में अनुवाद कराने से ही काम चल सकता है न कि उनकी फौज तैयार करके।
(7) ” अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने का हमारा अभिप्राय इस देश में एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना है जो रक्त एवं रंग में तो भारतीय हों, पर वह रुचियों, विचारों, नैतिकता एवं विद्वता में अंग्रेज जैसा हो।”
मैकॉले का विवरण-पत्र 1813 के आज्ञा-पत्र के सन्दर्भ में 43वीं धारा की विवेचना एवं व्याख्या
मैकॉले का विवरण-पत्र 1813 के आज्ञा-पत्र के सन्दर्भ में 43वीं धारा की विवेचना एवं व्याख्या निम्नलिखित रूप में प्रस्तुत करता है-
(1) ईस्ट इण्डिया कम्पनी शिक्षा के लिए केवल एक लाख रुपया सालाना व्यय करने के लिए तो बाध्य है, किन्तु इस धनराशि को वह किस आधार पर व्यय करेगी यह उसकी स्वेच्छा पर निर्भर है।
(2) 1813 के आज्ञा पत्र ( Charter) में जो कथन साहित्य के पुनर्जीवन तथा परिमार्जन (Improvement and revival of Literature) के लिए प्रयुक्त किया गया है, उस ‘साहित्य’ का तात्पर्य केवल अरबी अथवा संस्कृत से नहीं है, उसमें ‘अंग्रेजी’ साहित्य को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।
(3) तीसरा महत्त्वपूर्ण पद जो इस आज्ञा-पत्र में दिया गया है वह है-“The encouragement of learned Natives of India” (भारतीय विद्वानों को प्रोत्साहन)। यहाँ ‘भारतीय विद्वान’ शब्द का अर्थ ऐसे विद्वान व्यक्ति से है, जिसे लॉक एवं मिल्टन की कविताओं का उच्च ज्ञान हो, न्यूटन की भौतिकी में निपुण हो न कि उस व्यक्ति से जिसे हिन्दू शास्त्र कण्ठस्थ हो तथा समस्त दैवीय रहस्यों का अनुपालन करने वाला हो। आगे मैकॉले ने कहा है फिर भी यदि हम प्राच्यवादियों से सहमत हो जायें तो भावी परिवर्तनों के विरुद्ध निर्णायक कदम होगा।
(4) प्राच्यवादियों (Orientalists) ने अंग्रेज विद्वानों का जोरदार खण्डन करते हुए उसने पाश्चात्यीकरण (Westernization) की पुष्टि करते हुए निम्नलिखित अकाट्य, अतिरंजित, अंग्रेजी अहम् एवं संस्कृति से परिपूर्ण तर्क प्रस्तुत किये थे
1. “ भारतीयों में प्रचलित क्षेत्रीय भाषाएँ साहित्यिक एवं वैज्ञानिक दुर्बलता का शिकार हैं। वे पूर्ण अपरिपक्व तथा असभ्य हैं। उन्हें किसी भी बाह्य शब्द भण्डार द्वारा इस स्थिति में सम्वर्द्धित नहीं किया जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में उस भाषा द्वारा किसी अन्य भाषा के साहित्य एवं विज्ञान के अनुवाद की कल्पना कर पाना असम्भव है।”
2. इसी विवरण- पत्र में अन्य स्थान पर भारतीय भाषाओं एवं साहित्य का घोर अपमान करते हुए लिखा है-
” यद्यपि मैं संस्कृत एवं अरबी भाषा के ज्ञान से अनभिज्ञ हूँ। किन्तु श्रेष्ठ यूरोपीय पुस्तकालय की मात्र एक अलमारी, भारतीय एवं अरबी भाषा के सम्पूर्ण साहित्य से अधिक मूल्यवान है। इस तथ्य को प्राच्यवादी भी सहर्ष स्वीकार करेंगे।”
3. अंग्रेजी भाषा की महत्ता को अतिरंजित रूप में व्यक्त करते हुए आगे मैकॉले ने लिखा है-
“यह भाषा पाश्चात्य भाषाओं में भी सर्वोपरि है। जो इस भाषा को जानता है, वह सुगमता से उस विशाल भण्डार को प्राप्त कर लेता है, जिसकी रचना विश्व के श्रेष्ठतम व्यक्तियों ने की है।”
मैकॉले के अनुसार अंग्रेजी का महत्त्व
संक्षेप में मैकॉले के पाश्चात्यवादी दृष्टिकोण में अंग्रेजी के महत्त्व को अग्रलिखित बिन्दुओं से समझाया जा सकता है, जो कि उसके विवरण- पत्र (Minute ) में सर्वत्र बिखरे पड़े हैं-
(1) अंग्रेजी समस्त विश्व में शासकों की भाषा है तथा सर्वश्रेष्ठ साहित्य से सम्वर्द्धित है।
(2) अंग्रेजी पढ़ने हेतु भारत के अधिकांश लोग आतुर हैं।
(3) ‘अंग्रेजी’ एवं अंग्रेजी संस्कृति ने विश्व के अनेक राष्ट्रों को जंगलियों की दशा से उठाकर सभ्य बनाया है।
(4) अंग्रेजी भाषा भारत में नवीन संस्कृति का पुनरुत्थान कर सकेगी।
(5) प्राच्य शिक्षा ग्रहण करने के लिए बालकों को छात्रवृत्ति आदि देकर प्रोत्साहित किया जाता है, किन्तु अंग्रेजी पढ़ने के लिए छात्र स्वयं खर्च वहन करने को तैयार हैं।
(6) केवल मुस्लिम एवं हिन्दुओं को न्याय दिलवाने हेतु उनके अरबी, हिन्दू शास्त्रों को अंग्रेजी में अनुवाद कराने से ही काम चल सकता है न कि उनकी फौज तैयार करके।
“ अंग्रेजी शिक्षा प्रदान करने का हमारा अभिप्राय इस देश में एक ऐसे वर्ग का निर्माण करना है जो रक्त एवं रंग में तो भारतीय हों, पर वह रुचियों, विचारों, नैतिकता एवं विद्वता में अंग्रेज जैसा हो।”