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आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय (Biography of Acharya Vinoba Bhave in Hindi)
आज हम अपने इस पोस्ट में आपके लिए आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय (Biography of Acharya Vinoba Bhave in Hindi) लाये है.Acharya Vinoba bhave biography Quotes in hindi आचार्य विनोबा भावे का नाम भारत के महात्माओं के नामों के बीच अंकित है. … ये महात्मा गाँधी के अग्रणी शिष्यों में एक थे,
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आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय (Biography of Acharya Vinoba Bhave in Hindi)
नाम : विनायक नरहरि भावे
जन्म : 11 सिंतबर 1895. गागोदे (जि. रायगड).
पिता : नरहरि भावे
माता : रुक्मिणी भावे
अरंभिक जीवन :
विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरि भावे था। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में एक गांव है, गागोदा. यहां के चितपावन ब्राह्मण थे, नरहरि भावे. गणित के प्रेमी और वैज्ञानिक सूझबूझ वाले. रसायन विज्ञान में उनकी रुचि थी। उन दिनों रंगों को बाहर से आयात करना पड़ता था। नरहरि भावे रात-दिन रंगों की खोज में लगे रहते. बस एक धुन थी उनकी कि भारत को इस मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सके. उनकी पत्नी रुक्मिणी बाई विदुषी महिला थीं। उदार-चित्त, आठों याम भक्ति-भाव में डूबी रहतीं. इसका असर उनके दैनिक कार्य पर भी पड़ता था। मन कहीं ओर रमा होता तो कभी सब्जी में नमक कम पड़ जाता, कभी ज्यादा.
आचार्य विनोबा भावे एक अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी थे, इसके अलावा उनकी पहचान समाज सुधारक, आध्यात्मिक गुरु के रूप में भी हैं. और महात्मा गाँधी के अनुयायी रहे आचार्यजी को अहिंसा और समाज में समानता लाने के लिए, किये गये प्रयासों के लिए जाना जाता हैं. उन्होंने अपना जीवन ना केवल गरीबों और पिछड़े वर्ग के उत्थान में लगा दिया बल्कि जीवन में सही-गलत के मध्य अंतर को आध्यात्म के मार्ग से भी समझाया. विनोबा जी ने एक बार कहा था “सभी परिवर्तन और सुधार का मुख्य स्त्रोत आध्यात्म हैं.” उन्हें “भूदान-आंदोलन” के लिए जाना जाता हैं.
आचार्य विनोबा भावे के बारे में कुछ जानकारी (Brief Information about Acharya Vinoba Bhave)
नाम (Name) | आचार्य विनोबा भावे |
वास्तविक नाम (Actual Name) | विनायक नरहरी भावे |
अन्य नाम(Nick name) | विनोबा भावे |
शीर्षक (Title) | आचार्य |
जन्म दिन(Birth date) | 11 सितम्बर 1895 |
जन्मस्थान (Birth place) | महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोडे में |
पेशा (Proffesion) | समाज-सुधारक |
राजनीतिक पार्टी (Political party) | कांग्रेस के समर्थक लेकिन सक्रिय सदस्य नहीं,मुख्य कार्य समाज-सुधार |
आंदोलन (Movement) | भूदान आंदोलन,सत्याग्रह,पद-यात्रा |
राजनीतिक विचारधारा (Political Ideology) | असहयोग आन्दोलन और स्वतंत्रता प्राप्ति का लक्ष्य |
मृत्यु (Death) | 15 नवम्बर 1982 |
मृत्यु का कारण (Death cause) | पहले बिमार हुए बाद में संथारा लेकर प्राण त्यागे |
मृत्यु स्थान (Death place) | महाराष्ट्र के पौनार में ब्रह्मा विद्या मंदिर |
उम्र (Age) | 88 वर्ष |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
जाति (Caste) | कोकनास्था ब्राह्मिण या चितपवन(Kokanastha Brahmin or The Chitpavan) |
राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
गृहनगर (Home town) | वर्तमान गुजरात का बडौदा |
पसंदीदा खाना (Food habit) | – |
शौक (Hobby) | – |
पसंदीदा राजनेता (Favourite leader) | महात्मा गांधी |
राशि (Zodiac sign) | कन्या (virgo) |
वैवाहिक स्थिति (Marital status) | अविवाहित |
पारिवारिक जानकारी (Family Details)
पिता (Father) | नरहरी शंभू |
दादा | शम्भुराव |
माता (Mother) | रुक्मणी देवी |
पत्नी (Wife) | अविवाहित |
- विनोबा अपने परिवार में सबसे बड़ी सन्तान थे, उनके परिवार में उनके अलावा 3 भाई और 1 बहिन भी थी. उनकी माँ बहुत धार्मिक महिला थी, और विनोबा में अपनी माँ के कारण ही आध्यात्म की भावना विकसित हुयी थी.
- अपने छात्र जीवन में विनोबा को गणित विषय बहुत पसंद था. उन्होंने बहुत कम उम्र में अपने दादा से भगवद गीता का ज्ञान लिया था, और इसे समझ भी लिया था.
- हालांकि पढाई के प्रति रूचि होते हुए भी विनोबा को पारम्परिक शिक्षा पद्धति ने कभी आकर्षित नही किया. और उन्होंने सामाजिक जीवन छोड़कर हिमालय की यात्रा की और पूरे देश का भ्रमण किया. देश में घूमते हुए बहुत सी क्षेत्रीय भाषाएँ सीखी,जबकि उन्हें संस्कृत का भी अच्छा ज्ञान था.
- वो जब वाराणसी में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के उद्घाटन समारोह में गांधीजीका भाषण सूना तो उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया,और वो गांधीजी के अनुयायी बन गये. इसके बाद उन्होंने बहुत समय तक गांधीजी से पत्र-व्यवहार किया.
- विनोबा भावे को किशोरावस्था में ही ब्रह्मचर्य का सत्य समझ आ गया था इसलिए उन्होंने विवाह नहीं किया एवं आजीवन ब्रह्मचारी का जीवन बिताया था.
शिक्षा (Education)
- 1916 में जब वो इंटरमीडिएट का एग्जाम देने मुंबई गये,उस समय उन्होंने अपने स्कूल और कॉलेज के सभी सर्टिफिकेट जला दिए. उनके पत्रों से गांधीजी भी विनोबाजी से प्रभावित हो गये, उस समय उनकी उम्र मात्र 20 वर्ष की थी. और उन्हें अहमदाबाद के कोचरब आश्रम (Kochrab Ashram) में बुला लिया.
- इस तरह विनोबा गांधीजी से 7 जून 1916 में मिले, और इसके बाद गांधीजी के साबरमती आश्रम में उन्होंने विभिन्न काम जैसे रसोई, उद्यान का रख-रखाव इत्यादि करने शुरू किए. उन्होंने गांधीजी द्वारा चलाया जाने वाले खादी आंदोलन और उनकी अन्य शिक्षाओं में स्वयं का जीवन समर्पित कर दिया.
- इसी आश्रम में उन्हें विनोबा नाम भी मिला, मामा फड़के ने उन्हें ये नाम दिया गया था इस शब्द का उपयोग मराठी में सम्मान दिखाने के लिए किया जाता हैं.
विनोबा भावे का राजनीतिक करियर
- विनोबा भावे ने गांधीजी को अपना गुरु बना लिया था क्योंकि गांधीजी के राजनीतिक और आध्यात्मिक विचारों से वो बहुत प्रभावित हो गये थे. समय के साथ विनोबा और गांधी का रिश्ता भी मजबूत होने लगा था,दोनों एक साथ शौचालय साफ़ करते,एवं गीता और उपनिषद का अध्ययन करते.
- 1920 में जब जमनालाल बजाज गांधीजी के सम्पर्क में आये तो उन्होंने वर्धा में भी एक आश्रम स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की , और 8 अप्रैल, 1921 को विनोबा, गांधी से निर्देशों के तहत गांधी-आश्रम का प्रभार लेने के लिए वर्धा गए थे. वर्धा में अपने प्रवास के दौरान, भावे ने महाराष्ट्र में मासिक पत्रिका शुरू की, जिसका नाम ‘महाराष्ट्र धर्म’ रखा गया. मासिक पत्रिका में उपनिषदों पर उनके निबंध शामिल थे.
- उनके राजनीतिक कार्यों में मुख्य रूप से असहयोग आन्दोलन और देश को स्वतंत्रता दिलाने का लक्ष्य शामिल था. वो गांधीजी के सभी अभियानों में हिस्सा लेते थे,चाहे वो राजनैतिक हो या गैर-राजनैतिक. इसके अलावा गांधीजी के सामाजिक न्याय के विश्वास पर भी उनका पूरा भरोसा था और वो भी सभी भारतीयों में समानता एवं विभिन्न धर्मों को मानते थे.
- उन्होंने असहयोग आन्दोलन के दौरान स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार किया. उन्होंने ना केवल खुद खादी बनाने के लिए चरखा चलाना सीखा बल्कि अन्य कई लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित किया.
- 1932 में ब्रिटिश सरकार ने विनोबा भावे को 6 महीने के लिए धुलिया की जेल में डाल दिया. यहाँ उन्होंने अपने सह-कैदियों को मराठी में भगवद गीता को विभिन्न सन्दर्भों में समझाया. इस दौरान दिए गये सभी लेक्चर्स एक किताब के रूप में प्रकाशित किये गए.
- 1940 के पहले तक गांधीजी के साथ विविध अभियानों में सक्रिय योगदान देने के उपरांत भी विनोबा भावे को बहुत कम लोग जानते थे. 5 अक्टूबर 1940 को गांधीजी ने उन्हें पहला सत्याग्रही चुना और पूरे राष्ट्र से विनोबा भावे का परिचय करवाया. 1940 से 1941 के मध्य में विनोबा भावे नागपुर की जेल में 3 बार गये. 1942 में भावे ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया, जिसके लिए उन्हें 3 वर्ष के लिए वेल्लोर और सिओनी (Seoni) की जेल में कारावास की सजा हुयी. उन्होंने दक्षिण भारतीय भाषाएँ सीख ली थी और “लोक नगरी” नाम की पुस्तक(script) लिखी.
- विनोबा भावे ने गांधीजी के पद-चिन्हों पर चलते हुए भारतीय समाज में व्याप्त असमानता के खिलाफ संघर्ष किया, और हरिजन कहलाने वाले वर्ग को स्नेह एवं सम्मान दिलाने के लिए अथक प्रयास किये. गांधीजी की तरह उनका भी ऐसे भारत का सपना था जहां सभी को समान रूप से स्वतंत्रता मिले, उन्होंने गांधीजी के “सर्वोदय” शब्द को आधार बनाया, जिसका अर्थ होता हैं ”सभी का उत्थान”. 1950 में सर्वोदय अभियान के अंतर्गत बहुत से कार्यक्रम शुरू किये जिनमें मुख्य – भूदान अभियान था.
- विनोबा भावे को शंकर राव देव से हैदराबाद के पास शिवरामपल्ली में आयोजित होने वाले दुसरे सर्वोदय सम्मेलन में शामिल होने के लिए आमंत्रण मिला, विनोबा ने सम्मेलन में शामिल होने के लिए वर्धा से पैदल चलकर 300 मील दूर स्थित शिवरामपल्ली पहुँचने की घोषणा की. इस कांफ्रेंस के समापन पर उन्होंने आतंक-ग्रस्त तेलांगना में बिना किसी सुरक्षा के भ्रमण की इच्छा व्यक्त की और 18 अप्रैल 1951 को वो तेलांगना पहुँच गए.
- भूदान अभियान: 1951 में विनोबा भावे ने दंगों में डूबे तेलंगाना क्षेत्र में शांति यात्रा शुरू की, उस समय उन्हें ये पता नहीं था कि ये यात्रा अहिंसा आंदोलन के इतिहास में एक नयी शुरुआत हैं. 18 अप्रैल 1951 को पोचमपल्ली गाँव के हरिजनों ने उनसे आवास के लिए 80 एकड़ जमीन की व्यवस्था करने का आग्रह किया. विनोबा ने इस सन्दर्भ में गाँव के जमीदारों से बात की और हरिजनों के हितों की रक्षा के लिए गाँव की कुछ जमीन दान करने की मांग की. और एक जमींदार राम चन्द्र रेड्डी ने 100 एकड़ जमीन दान करने का प्रस्ताव रखा. इस घटना ने भूमि-हीनों की समस्या का नया समाधान खोज दिया जिसे भू-दान कहा जाता हैं. इस गाँव में हुयी घटना से उत्साहित होकर ही भावे ने तमिल नाडू,केरल,उड़ीसा,उत्तर-प्रदेश जैसे अन्य राज्यों में भी भूदान आन्दोलन शुरू किया. और उस समय ये बहुत आश्चर्यजनक था कि जमीदारों ने भूमि हीनो के लिए आवश्यक भूमि को छोड़ दिया, कुछ ने तो गाँव वालो को ग्रामदान तक किया. उड़ीसा और बिहार में उन्होंने 1.6 लाख गाँव एकत्र ग्रामदान में दिए. वास्तव में इस घटना ने भारतीय इतिहास में त्याग और अहिंसा का एक नया अध्याय लिख दिया, और ये आंदोलन अगले 13 वर्ष तक चला जिसमे विनोबा भावे ने पूरे देश का भ्रमण किया, इस दौरान 58741 किलोमीटर की यात्रा की. इस अवधि में उन्होंने 4.4 मिलियन एकड़ भूमि पर अधिग्रहण हासिल किया और इसमें से 1.3 मिलियन भूमि को गरीब एवं भूमि-विहीन किसानों में बाँट दिया. इस आन्दोलन ने पूरे विश्व का ध्यान आकर्षित किया, और इस तरह के त्याग और उदारता की देश के बाहर भी काफी प्रशंसा हुयी.
- भूदान आन्दोलन की सफलता के बाद उनके द्वारा समाप्ति दान, श्रमदान, शांति सेना,सर्वोदय पत्र और जीवन दान जैसे कई अन्य अभियान भी चलाए गये.
- 1948 में मार्च के प्रारम्भ में सेवाग्राम में एक अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन किया गया,जिसमें राजेंद्र प्रसाद, जवाहरलाल नेहरू, अबुल कलाम आजाद, जेबी कृपलानी, शंकरराव देव, कालेलकर, आरआर दिवाकर, दादा धर्मधिकाड़ी, पीसी घोष और जयप्रकाश नारायण जैसे कई सम्मानीय नेता शामिल हुए और इन सबने भावे के साथ मिलकर वैश्विक स्तर पर सर्वोदय समाज की स्थापना की.
- स्वतंत्रता के पश्चात नेहरूजी के आग्रह पर उन्होंने कुछ समय शरणार्थियों के साथ बिताया था, जब वो आश्रम लौटे तो विभाजन के घावों को भरने के लिए 1950 की शुरुआत में भावे ने “कंचन-मुक्ति” अभियान शुरू किया. जिसके अंतर्गत सोने या पैसे पर से निर्भरता को समाप्त करने पर जोर दिया गया. इसके आलावा “ऋषि खेती” भी शुरू किया गया, जिसमें बैलों का उपयोग नहीं करना और प्राचीन काल के ऋषियों के जैसे खेती करना जैसे कार्यक्रम शामिल थे. वो एवं एक उनके अनुयायी केवल वो भोजन करते थे जिसे आश्रम में उगाया जा सके, श्रमदान के अतिरिक्त कोई भी दान लेना बंद कर दिया गया.
- पदयात्रा: गांधीजी की तरह ही भावे को भी पदयात्रा का महत्व पता था. अपने जीवन में उन्होंने लगभग 13 वर्ष तक पद-यात्राएं की. उन्होंने 12 सितम्बर 1951 को पदयात्रा शुरू की थी जो कि 10 अप्रैल 1964 को पूरे भारत का भ्रमण करने के बाद समाप्त हुयी. इसके बाद 1965 में उन्होंने तूफ़ान यात्रा शुरू की जिसमें उन्होंने साधन का उपयोग किया, ये यात्रा 1969 में पूरी हुयी.
- 1962 में बर्ट्रैंड रसेल ने लंदन में एंटी-न्यूक्लियर मार्च में शामिल होने के लिए विनोबा भावे को आमंत्रित किया था, जिसमें उन्हें “मानव मामलों में विवेक की भूमिका का प्रतीक” बताया गया था. आर्थर कोएस्टलर ने उन्हें तीन बार मुलाकात की और भूदान आंदोलन को “गांधी के बाद से सबसे बड़ी शांति क्रांति” कहा. एल्सवर्थ बंकर ने उन्हें “एक संत के रूप में वर्णित किया जो एक छोटे से शरीर और महान भावना में प्राचीन भारतीय परंपरा का सार है.
इस तरह उक्त सामजिक कार्यों के अतिरिक्त उन्होंने धर्म और साहित्य में भी अभूतपूर्व योगदान दिया. उनके द्वारा किये गये मुख्य धार्मिक और सामाजिक कार्य निम्न हैं-
धार्मिक कार्य (Religious Work)
- विनोबा पर भगवद गीता का और इसके विचारों बहुत प्रभाव था, और उन्होंने अपने जीवन में इसी की दिशा-निर्देशों के पालन का प्रयास किया था. उन्होंने बहुत से आश्रमों की स्थापना की जहां पर सादा जीवन-उच्च विचार की अवधारणा को मजबूत किया गया, एवं आध्यात्म पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए भी उन्होंने इन आश्रमों में कई तरह के कार्यक्रमों का आयोजन किया.
- 1959 में उन्होंने महिलाओं के एक छोटे से समूह के साथ ब्रह्मा विद्या मंदिर की स्थापना की, जिसमे महात्मा गाँधी की सिद्धांतों की शिक्षा दी जाती थी. उन्होंने गौ-हत्या की कड़ी निंदा की और जब तक भारत में इस पर प्रतिबन्ध ना लग जाए तब तक उपवास पर रहने की घोषणा की.
साहित्यिक कार्य (Literary Work)
उन्होंने अपने जीवन में बहुत सी किताबे लिखी थी, जैसा कि ऊपर भी बताया वो मराठी, तेलुगु, गुजराती, कन्नड़, हिंदी, उर्दू, इंग्लिश और संस्कृत भाषा के जानकार थे. और उन्होंने बहुत से संस्कृत किताबों का अनुवाद किया था. विभिन्न भाषाओँ उनकी लिखी मुख्य किताबें निम्न हैं-
अंग्रेजी | खादी एवं कुछ अन्य पुस्तकें |
मराठी | भारत रतन आचार्य विनोबा गाथा,एकी राहा,नेकिने वागा,भारताचा धर्मविचार,संतांचा प्रसाद,आध्यात्म-तत्व सुधा,समता आजचा युगधर्म,ग्रामस्वराज्य,सत्याग्रह-विचार,स्वराज्य-शास्त्र,ही एकादश सेवावी…,नाम माला,विचार पोथी,महागुहेत प्रवेश,सर्व धर्म प्रभुचे पाय,मनुशासनम,वेलोर प्रवचने,स्थितप्रज्ञ-दर्शन,गीता-प्रवचने,गीताई,ज्ञान ते सांगतो पुन्हा,गीता जीवनाचा ग्रन्थ,गीताई शब्द कोष,ज्ञानोबा माउली,तुका आकाशाएवढा,अभंग व्रते, शिक्ष्ण तत्व आणि व्यवहार,गीताई चिंतनिका,मी माणूस आहे,विठोबाचे दर्शन,गीता-सार, इत्यादि |
हिंदी | वेदामृत,विनायांजली,अहिंसा की तलाश,इस्लाम का पैगाम, इत्यादि |
मृत्यु (Death)
नवंबर 1982 में जब उन्हें लगा कि उनकी मृत्यु नजदीक है तो उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया जिसके परिणामस्वरूप 15 नवम्बर, 1982 को उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने मौत का जो रास्ता तय किया था उसे प्रायोपवेश कहते हैं जिसके अंतर्गत इंसान खाना-पीना छोड़ अपना जीवन त्याग देता है. गांधी जी को अपना मार्गदर्शक समझने वाले विनोबा भावे ने समाज में जन-जागृति लाने के लिए कई महत्वपूर्ण और सफल प्रयास किए. उनके सम्मान में उनके निधन के पश्चात हज़ारीबाग विश्वविद्यालय का नाम विनोबा भावे विश्वविद्यालय रखा गया
- विनोबा भावे ने अपने जीवन के अंतिम दिन महाराष्ट्र के पौनार में ब्रह्मा विद्या मंदिर में बिताये थे, उन्होंने संथारा/समाधि लेते हुए कोई भी तरह का भोजन और दवाई लेना बंद कर दिया था.
- प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उस समय मोस्को सोवियत नेता लियोनिड ब्रेजह्नेव के अंतिम संस्कार में शामिल होने गयी थी, लेकिन भावे के अंतिम-संस्कार के लिए वो तुरंत लौट आई.
अवार्ड एवं धरोहर (Awards and legacy)
- विनोबा भावे रमन मेग्नससे अवार्ड जीतने वाले पहले व्यक्ति थे. उन्हें ये अवार्ड 1958 में मिला था. उन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न भी दिया गया था. उनकी मृत्यु के एक वर्ष बाद 15 नवम्बर 1983 को सरकार ने उन पर पोस्टेज स्टाम्प ज़ारी किया था.
विवाद और आलोचना (Controversy and Criticism)
- 1975 में जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा की तब विनोबा भावे ने उनके इस फैसले का समर्थन किया. हालांकि इस कारण उनकी काफी आलोचना की गयी.
विनोबाजी से जुड़े रोचक तथ्य (Interesting facts about Vinoba Bhave)
- विनोबा जी तो गांधीजी से प्रभावित थे ही लेकिन गांधीजी भी उनसे इस हद तक प्रभावित हो गये थे कि उन्होंने सी.जी. एंड्रयू को उनके बारे में बताते हुए लिखा था “ये व्यक्ति आश्रम के चुनिंदा हीरों में से एक हैं,ये यहाँ आश्रम में आशीर्वाद लेने नही बल्कि खुद आशीर्वाद बनकर आया हैं.
- विनोबा ने कहा था कि -ये केवल मैं समझ सकता हूँ कि आश्रम में आकर मैंने क्या हासिल किया हैं, शुरू में मैं खुद को कुछ हिंसक गतिविधियों में शामिल करके देश को स्वतंत्र करवाना चाहता था लेकिन बापू ने मेरी महत्वाकांक्षा, क्रोध और जूनून को सही दिशा दी, मैंने आश्रम में प्रति दिन प्रगति की हैं. उन्होंने गांधीजी के साथ पहली मुलाक़ात के बारे में बताया कि जब मैं काशी में था तो मेरी इच्छा हिमालय जाने की थी, और मेरा अंतर्मन बंगाल भी जाना चाहता था. लेकिन मेरी नियति मुझे गांधीजी के पास ले गयी और वहाँ मुझे ना केवल हिमालय की शांति मिली बल्कि बंगाल की क्रांतिकारी वाला उत्साह भी मिला और मेरी दोनों इच्छाएं पूरी हो गयी.
- एक बार साबरमती में नहाते हुए विनोबा ने संतुलन खो दिया और पानी में डूबने लगे, लेकिन उस समय वो भयभीत होकर नही चिल्लाए बल्कि चीखकर ये कहा “मेरा नमस्कार बापू तक पहुंचा देना और उन्हें बताना कि विनोबा का शरीर खत्म हो गया लेकिन उसकी आत्मा अमर हैं. लेकिन किस्मत से विनोबा जल्द ही सम्भल गये और किनारे पहुँच गये.
- काका साहेब केलकर ने विनोबा के सम्बंध में एक घटना बताई थी, जिसके अनुसार वो दोनों किसी गाँव की यात्रा पर थे और शाम के समय में एक ब्रिज पर रेल्वे लाइन के साथ चलते हुए लौट रहे थे, वो जब पटरियां पार कर रहे थे उन्होंने ट्रेन के आने की आवाज़ सुनी. वहाँ पर दोनों तरफ कोई रेलिंग या फूट-पाथ नही था, काकासाहेब दो पटरियों के बीच बने लकड़ी के ब्रिज पर चढकर दौड़ने लगे. विनोबा की दृष्टि थोड़ी कमजोर थी इसलिए उन्होने ककासाहेब का पीछा करना शुरू किया. उस समय एक छोटी सी चुक होती तो वो लोग नीचे नदी में गिर सकते थे ,लेकिन तब उनकी गणित उनके काम आई और उन्होंने बिना लकड़ी के पट्टे को देखे ही इसकी गणितीय स्थिति मतलब चौड़ाई को समझ लिया. इंजिन जब नजदीक आ गया तब तक काकासाहेब ने तो ब्रिज पार कर लिया था लेकिन विनोबा अब भी दौड़ रहे थे, तब काकसाहेब ने चिल्लाकर उनसे कहा कि वो बायीं तरफ कूदे, उन्होंने ऐसा किया और वो बच गये.
- वो सामजिक एकता के साथ ही विभिन्न धर्मों पर भी विश्वास करते थे,इसलिए उन्होंने इस्लाम का अध्ययन किया था. एक वर्ष तक उन्होंने कुरान पढ़ी और इसके लिए अरेबिक भाषा भी सीखी.
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