हकीम अजमल खां का जीवन परिचय (Biography of Hakim Ajmal Khan in Hindi)- संपूर्ण राष्ट्रीय विचारधारा के प्रबल समर्थक एवं यूनानी चिकित्सा पद्धति के विख्यात चिकित्सक हकीम अजमल खां का जन्म 1865 में दिल्ली के उस परिवार में हुआ, जिसके पूर्वज मुगल शासकों के पारिवारिक चिकित्सक रहते आए थे। अजमल खां हकीमी की शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात् 10 वर्षों तक रामपुर रियासत में हकीम सेवाकार्य करते रहे। 1902 में ये इराक चले गए और लौटने पर दिल्ली में ‘मदरसे तिब्बिया’ की बुनियाद रखी, जो आज ‘तिब्बिया महाविद्यालय’ के नाम से विख्यात है। 1918 में हकीम अजमल खां कांग्रेस पार्टी के सदस्य बन गए। 1920 में इन्होंने ‘जामिया मिलिया‘ की स्थापना में भी हाथ बंटाया। 1921 में इन्होंने कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन की और खिलाफत कांफ्रेंस की सदारत भी की। ‘ऑल इंडिया गौ-रक्षा कांफ्रेंस’, जिसके अध्यक्ष लाला लाजपतराय थे, उसकी स्वागत समिति की अध्यक्षता की जिम्मेदारी का निर्वहन भी हकीम साहब ने ही किया था। उस सम्मेलन में मुसलमानों से गुजारिश की गई थी कि ये इस गौ-रक्षा में हिंदुओं की भावनाओं का आदर करें।
अजमल खां की यूनानी चिकित्सक के रूप में राष्ट्रीय प्रतिष्ठा रही थी। इन्होंने सेवा को अपना मकसद माना, धन कमाने को नहीं। इनके लिए सभी रोगी समान थे। एक गरीब बालक की चिकित्सा में व्यस्त रहने के कारण समयाभाव होने से इन्होंने ग्वालियर नरेश का अग्रिम भेजा दस हजार रुपया वापस कर दिया था। ये राजनीति के क्षेत्र में सिर्फ नौ वर्ष ही सक्रिय रह सके। 29 दिसंबर, 1927 को इनकी मृत्यु हो गई, किंतु एक सच्चे मुसलमान की रूह को इन्होंने स्वयं में जीवित रखा। मजहबी कट्टरपंथियों के लिए इनका जीवन मिसाल है।
भारतभूमि पर हिंदू-मुस्लिम की साझा गंगा-जमनी संस्कृति का लंबा इतिहास रहा है। अंग्रेजों की फूट डालो और राज्य करो की नीति का अनुसरण आजाद भारतवर्ष में वोटों के ध्रुवीकरण के लिए अपेक्षाकृत ज्यादा बेशर्मी के साथ किया गया, लेकिन हकीम अजमान खां जैसे लोगों का जीवन वर्तमान में सौहार्द्र भाव के लिए एक मशाल की भांति प्रतीत होता है। जाहिर है कि शिक्षित व्यक्ति वर्ग- विभेद की स्वार्थी रानजीति की ज्यादा विवेकपूर्ण समीक्षा कर सकता है, अतः शिक्षा की रोशनी से सरोबार लोगों को राष्ट्र की एकता व अखंडता को प्रमुख स्थान पर रखना चाहिए।
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