जोश मलीहाबादी का जीवन परिचय
क्रांतिकारी नज्मों के धनी जोश मलीहाबादी का जन्म 5 दिसंबर, 1894 को अलीहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इन्हें आजादी के पूर्व क्रांतिकारी शायरी के कारण ‘शायर-ए-इंकलाब’ का खिताब अता किया गया था। नौजवान इनकी शायरी पढ़ते हुए गर्व के साथ जेल जाया करते थे। जोश मलीहाबादी कमाल के शायर थे। अपने विचारों को अभिव्यक्त करने में बहुत माहिर भी थे। शब्दों के द्वारा ये ऐसी आग लगा देते थे, जिससे दिल दहल उठते थे । मलीहाबादी नाम इनके नाम के साथ इस कारण जुड़ा, क्योंकि ये मलीहाबादी (लखनऊ) में पैदा हुए थे। आजादी के बाद पाकिस्तान जाने का निर्णय चौंकाने वाला था। इस कारण यहां भारत में इनकी आलोचना भी हुई। बाद में खुद जोश साहब ने अपने निर्णय पर पछतावा व्यक्त किया था।
जोश मलीहाबादी |
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पूरा नाम | शब्बीर हसन खान |
अन्य नाम | जोश मलीहाबादी (उपनाम) |
जन्म | 5 दिसंबर, 1894 |
जन्म भूमि | मलीहाबाद, लखनऊ, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 22 फ़रवरी, 1982 |
मृत्यु स्थान | इस्लामाबाद, पाकिस्तान |
अभिभावक | बशीर अहमद खान (पिता) |
संतान | सज्जाद हैदर खरोश |
कर्म भूमि | भारत, पाकिस्तान |
कर्म-क्षेत्र | कवि, शायर, गीतकार |
मुख्य रचनाएँ | शोला-ओ-शबनम, जुनून-ओ-हिकमत, फ़िक्र-ओ-निशात, सुंबल-ओ-सलासल, हर्फ़-ओ-हिकायत, सरोद-ओ-खरो |
भाषा | उर्दू, अरबी और फ़ारसी |
विद्यालय | सेंट पीटर्स कॉलेज आगरा |
पुरस्कार-उपाधि | पद्म भूषण (1954) |
प्रसिद्धि | शायर-ए-इन्कलाब |
आत्मकथा | यादों की बारात |
अन्य जानकारी | फ़िल्म निर्देशक डब्ल्यू. ज़ी. अहमद की राय पर इन्होंने शालीमार पिक्चर्स के लिए गीत भी लिखे। |
यूं ‘जोश’ उच्च परिवार में जन्मे थे। ये बड़े नफ़ासतपसंद, किंतु बेखौफ तबियत के साहसी और भावुक युवा थे। जिन मुशायरों में मुल्ला लोगों की संख्या ज्यादा होती, उसमें ये चुन-चुनकर ऐसी नज्में पढ़ते, जिनमें इन्हें फटकारा गया हो; सरकारी लोगों की महफिल होती तो अपनी मशहूर नज्म ‘मातमे-आजादी’ पढ़ते और स्त्रियों की संख्या ज्यादा होती तो ‘हाय जवानी, हाय जवानी’ पढ़ा करते।
मुल्ला लोग नाक-भौं सिकोड़ते, दफ्तरों के बाबू सरगोशियां करते और स्त्रियां उठ कर बाहर चली जातीं, किंतु ‘जोश’ पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता था।
भारी कद-काठी और रोबदार शख्सियत के धनी ‘जोश’ मलीहाबादी प्रायः मिलने वालों पर व्यंग्य कसते व इन्हें फटकारते नजर आते थे। ये कोई भी गलत बात सुनने को कभी भी तैयार नहीं होते थे । इनका पूरा नाम शब्बीर हसन खां, तखल्लुस ‘जोश’ था। जागीरदार घराने में इनका जन्म हुआ था। बाल्यकाल से ही ये बेहद शरारती थे। बच्चों को छड़ी से पीटकर तंग करने में इन्हें लुत्फ आता था। युवा होने पर ये धर्म विषयक ढकोसलों के विरुद्ध हो गए। देश के स्वाधीनता संग्राम से ये बेजार नहीं रहे और क्रांति के समर्थन में विस्फोटक नज्में लिखने लगे। इनकी लिखी पुस्तकें छिपे तौर पर लाखों की संख्या में बंटती और पढ़ी भी जातीं। यह माना जाता रहा है कि इन्होंने उर्दू रोमांसवादी शायरी में एक नए प्रकार की आक्रामक शायरी की पहल की थी।
रोजगार के लिए ‘जोश’ साहब चंद वर्ष हैदराबाद में भी रहे, लेकिन वहां भी निबाह नहीं हो पाया था। फिर ये दिल्ली जा पहुंचे और ‘कलीम’ नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया। आजादी मिलने के पश्चात् नेहरू जी ने इन्हें ‘आजकल’ मासिक के उर्दू संस्करण का संपादक बना दिया, किंतु 1955 में कुछ 4 पाकिस्तानी नेताओं के भुलावे में फंसकर ये कराची चले गए। वहां ये कभी खुश नहीं रहे। इनसे जो वादे किए गए थे, इन्हें पूरा नहीं किया गया और लोगों ने भी इनकी बड़ी भर्त्सना की। भारत में तो उनका विरोध होना ही था। 1967 में इनकी नौकरी छीन ली गई और 1983 के अपने आखिरी दिनों तक ये निराशा और गुमनामी में इस्लामाबाद में रहते रहे। अपनी आत्मकथा ‘यादों की बारात’ में इन्होंने इन तमाम बातों का विवरण दिया है। इसमें इन्होंने हिंदुस्तान और यहां के नेताओं की प्रशंसा की थी, अतः पाकिस्तान में यह किताब जब्त कर ली गई। इनके एक दर्जन के करीब कविता-संग्रह प्रकाशित हुए हैं।
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