B.Ed./M.Ed.

ब्लूम का शैक्षिक उद्देश्य का वर्गीकरण – ज्ञानात्मक उद्देश्य , भावात्मक उद्देश्य, मनोगत्यात्मक उद्देश्य | bloom’s taxonomy in Hindi |

ब्लूम का शैक्षिक उद्देश्य का वर्गीकरण
ब्लूम का शैक्षिक उद्देश्य का वर्गीकरण

अनुक्रम (Contents)

शिक्षा मनोविज्ञान हेतु ब्लूम के शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण की विस्तृत रूप से विवेचना कीजिये।

ब्लूम का शैक्षिक उद्देश्य का वर्गीकरण

ब्लूम का शैक्षिक उद्देश्य का वर्गीकरण – जीव विज्ञान शिक्षण के वर्गीकरण हेतु अनेक प्रयास किये गये, जिनके फलस्वरूप यह प्रारम्भिक रूप में दो वर्गों में विभाजित किये गये-

1. सामान्य (General),
2.विशिष्ट (Specific)

सामान्य उद्देश्य वह है जो शिक्षण प्रक्रिया से पूर्णतः सम्बन्धित रहते हैं। उदाहरणार्थ समस्या समाधान (Problem solving), आलोचनात्मक चिन्तन (Critical thinking) एवं सृजनात्मकता (Creativity) है।

विशिष्ट उद्देश्य साधारणत: पाठ्य-वस्तु के प्रत्ययों तथा सिद्धान्तों तक ही सीमित रहते हैं। शिक्षकों ने सामान्य उद्देश्यों को वांछित लक्ष्यों के रूप में स्वीकार किया किन्तु इनकी अस्पष्टता ने शिक्षण में इनके प्रयोग में अधिक सहायता नहीं दी। इस दोष को दूर करने हेतु मनोवैज्ञानिकों के एक समूह ने सन् 1948 में मानव व्यवहार के समान तत्त्वों के वर्गीकृत करने हेतु प्रयास किये। थोड़े से अनुसन्धान के पश्चात् ही इस समूह ने उद्देश्यों को तीन वर्गों (Domains) में विभाजित किया जिनका नामांकन निम्न प्रकार किया-

1. ज्ञानात्मक उद्देश्य (Cognitive Objectives),
2. भावात्मक उद्देश्य (Affective Objectives),
3. मनोगत्यात्मक उद्देश्य (Psychomotor Objectives) |

इस समूह ने एक वर्गीकरण (Taxonomy) का निर्माण किया जिसका आधार ‘मूर्त से अमूर्त’ (From Concrete to Obstruct) और ‘सरल से जटिल’ (From simple to Complex) था। Bloom और उसके सहयोगियों ने भी शिकागो विश्वविद्यालय में इन तीनों वर्गों का वर्गीकरण प्रस्तुत किया।

ज्ञानात्मक पक्ष का Bloom ने सन् 1956 में, भावात्मक पक्ष का ब्लूम कर्थवाल तथा मसीहा ने सन् 1964 में तथा मनोगत्यात्मक पक्ष Sympson (सिम्पसन) ने सन् 1963 में वर्गीकरण प्रस्तुत किया।

इस वर्गीकरण को निम्न तालिका द्वारा दिखाया जा सकता है-

शिक्षण उद्देश्यों का वर्गीकरण (Taxonomy of Instructional Objectives)

ज्ञानात्मक पक्ष
(Cognitive Domain)
भावात्मक पक्ष
(Affective Domain)
मनोगत्यात्मक पक्ष
(Psychomotor Domain)
1. ज्ञान
(Knowledge)
1. ग्रहण करना
(Receiving)
1. उद्दीपन
(Impulsion)
2. बोध
(Comprehension)
2. अनुक्रिया
(Responding)
2. कार्य करना
(Manipulation)
3. प्रयोग
( (Application)
3. अनुमूलन
(Valuing)
3. नियन्त्रण
(Control)
4. विश्लेषण
(Analysis)
4. विचारना
(Conceptualization)
4. समायोजन
(Co-ordination)
5. संश्लेषण
(Synthesis)
5. व्यवस्था
(Organization)
5. स्वभावीकरण
(Naturalization)
6. मूल्यांकन
(Evaluation)
6. मूल्य समूह का विशेषीकरण
(Characterization of a Value System)
6. आदत निर्माण
(Habit formation)

ज्ञानात्मक उद्देश्य (Cognitive Objectives)

ज्ञान (Knowledge)-इससे सम्बन्धित व्यवहार में पुनः स्मरण (Recall) तथा पहचान (recognition) की मानसिक प्रक्रियाएँ सक्रिय रहती हैं।

इस उद्देश्य में निम्न प्रकार के ज्ञान सक्रिय रहते हैं-

1. विशिष्ट बातों का ज्ञान।
2. विशिष्ट तथ्यों को प्राप्त करने की विधियों का ज्ञान।
3. मान्यताओं एवं परम्पराओं का ज्ञान।
4. प्रक्रियाओं एवं घटनाओं की गतिविधियों का ज्ञान।
5. विधियों एवं प्रविधियों का ज्ञान।
6.विषय के अन्तर्गत पाये जाने वाले वर्गीकरण व श्रेणियों का ज्ञान।
7. सिद्धान्तों एवं सामान्यीकरण का ज्ञान।

प्रश्न  ज्ञानात्मक पक्ष के विभिन्न स्तरों का उदाहरण सहित उल्लेख कीजिए।
अथवा
ब्लूम के शैक्षिक उद्देश्यों के वर्गीकरण के ज्ञानात्मक पक्ष का उल्लेख कीजिए।

ज्ञानात्मक पक्ष के स्तर (Cognitive Domain)

पाठ्य-वस्तु के दृष्टिकोण से इस वर्ग के मुख्यतः तीन स्तर हैं-

1.विशिष्ट बातों का ज्ञान (Knowledge of Specifies)-इसको दो भागों में विभाजित किया जाता है

(अ) पदों का ज्ञान (Knowledge of Terminology)-यह विशिष्ट मौखिक तथा अमौखिक सन्दर्भ का ज्ञान है। इसके अन्तर्गत सामान्य चिह्न, विशिष्ट पदों की परिभाषा उनके गुणों, सम्बन्धों तथा अंगों का वर्णन किया जाता है।

(ब) विशिष्ट तथ्यों का ज्ञान (Knowledge of Specific facts)-इसके अन्तर्गत घटनाएँ, तिथि, स्थान एवं व्यक्ति विशेष आदि का ज्ञान होता है।

2. विशिष्ट से सम्बन्धित साधनों व रीतियों का ज्ञान (Knowledge of ways and meaning of dealings with Specifies)- इसके अन्तर्गत परम्पराओं का ज्ञान (Knowledge of Conventions), क्रम तथा प्रवृत्तियों का ज्ञान (Knowledge of Trends and Sequences), मानदण्डों का ज्ञान (Knowledge of Criteria’s), विधियों का ज्ञान (Knowledge of Methodology), वर्गीकरण और श्रेणियों का ज्ञान (Knowledge of Classification and Categories) आ जाते हैं।

3. सामान्यीकरण का ज्ञान (Knowledge of Universals and Abstractions)-इसके दो रूप होते हैं जोकि नियमों तथा सामान्यीकरण का ज्ञान तथा सिद्धान्तों व रचनाओं का ज्ञान है।

(A) बोध (Comprehension)-इसके अन्तर्गत निम्न तीन प्रकार के व्यवहार आ जाते हैं-

1. अनुवाद (Translation)-

(अ) अमूर्त के एक स्तर से दूसरे में
(ब) एक संकेत (Symbolic form) से दूसरे प्रकार में।

2. व्याख्या (Interpretation)-

3. उल्लेख (Extrapolation)-इसके अन्तर्गत समस्या के उत्पन्न होने से उसके समाधान तक समस्त स्तर आ जाते हैं।

(B) विश्लेषण (Analysis)- इसके अन्तर्गत पाठ्य-वस्तु को तत्त्वों में विभाजित करके उनके मध्य परस्पर सम्बन्ध स्थापित किया जाता है। इसके भी तीन स्तर होते हैं-

(अ) तत्वों का विश्लेषण (Analysis of elements),
(ब) सम्बन्धों का विश्लेषण (Analysis of relationship),
(स) व्यवस्थित सिद्धान्तों के रूप में विश्लेषण (Analysis of organisational principles)|

(C) संश्लेषण (Synthesis)-इसके अन्तर्गत विभिन्न तत्त्वों को एकत्रित करके पूर्णरूप में परिवर्तित किया जाता है। इसके भी तीन स्तर होते हैं-
(अ) तत्त्वों का अनोखा सम्प्रेषण करना (Production of unique Communication) ।
(ब) नवीन योजना प्रस्तावित करना (Production of proposed Set of operations) ।
(स) तत्त्वों के अमूर्त सम्बन्ध खोजना (Derivation of a Set of abstract relation)।

(D) मूल्यांकन (Evaluation)-यह जानने के लिये कि निर्धारित उद्देश्य किस मात्रा तक प्राप्त हुए और कितने प्रभावशाली रहे, मूल्यांकन किया जाता है।

विश्लेषण, संश्लेषण एवं मूल्यांकन को R.C.E.M. System (Regional College of Education Mysore) में एक प्रमुख उद्देश्य सृजनात्मक (Creativity) के अन्तर्गत माना है।

प्रश्न. भावात्मक शिक्षण के उद्देश्य बताइये।

भावात्मक शिक्षण उद्देश्य (Affective Domain)

(A) ग्रहण करना (Receiving)- यह किसी उद्दीपक (Stimulus) की उपस्थिति में संवेदनशीलता से सम्बन्धित होता है, इसके तीन स्तर हैं-

1. क्रिया की जागरूकता (Awareness of the phenomena)
2. क्रिया प्राप्त करने की इच्छा (Willingness to receive phenomena)
3. क्रिया का नियन्त्रित ध्यान (Controlled or Selected Scheme) |

(B) अनुक्रिया (Responding)- यह अगली स्थिति होती है, इसके भी तीन स्तर होते हैं-

1. अनुक्रिया में सहमति (Acquiescence in responding)
2. अनुक्रिया की इच्छा (Willingness in responding,
3. अनुक्रिया में सन्तोष (Satisfaction in responding)।

(C) अनुमूलन (Valuing) – यह क्योंकि मूल्यों के प्रति आस्था से सम्बन्धित होती है। इस कारण विशिष्ट मूल्यों के प्रति, स्वीकृति, प्राथमिकता व निष्ठा आ जाती है।

(D) विचारना (Conceptualization) – मूल्यों की विविधता के फलस्वरूप धारणा करने की समस्या निराकरण हेतु प्रत्यय निर्माण इसके अन्तर्गत आता है।

(E) व्यवस्था (Organization)- प्रत्यय निर्माण हेतु चयनित मूल्यों का क्रमबद्ध समायोजन इसके अन्तर्गत आता है।

(F) मूल्य समूह का विशेषीकरण (Characterization of a Value System) नियन्त्रित मूल्यों, विचारों एवं निष्ठाओं के सन्दर्भ में मानव व्यवहार का विशेषीकरण इसके अन्तर्गत आता है।

प्रश्न .क्रियात्मक स्रोत या उद्देश्य बताइये।

मनोगत्यात्मक या क्रियात्मक स्रोत (Psychomotor Domain)

इसके अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के कौशल (Skills) आ जाते हैं। मानसिक रूप से प्रत्यक्षीकरण से आरम्भ होकर शारीरिक जटिल प्रत्यक्ष अनुक्रिया (Complex overt response) कौशल के अन्तर्गत आते हैं। विज्ञान शिक्षण में मुख्यतः निम्न कौशल आ जाते हैं

1. प्रयोगात्मक कौशल (Experimental Skill)- इसमें उपकरण व यन्त्रों का कुशलतापूर्वक प्रयोग, प्रयोगों व उपकरणों को क्रमबद्ध करना एवं उपकरण एवं प्रतिरूप (Specimen) को रक्षित करना आ जाते हैं।

2. रचनात्मक कौशल (Constructional Skill)-इसमें स्वनिर्मित उपकरणों का निर्माण एवं बिगड़े हुये उपकरणों को ठीक करने के कौशल आ जाते हैं।

3. रेखांकन कौशल (Drawing Skill)-इसके अन्तर्गत, प्रयोगों, उपकरणों आदि का आलेखन आ जाता है।

4. समस्या समाधान कौशल (Problem Solving Skill)।

5.निरीक्षण कौशल (Observational Skill)।

इसी भी पढ़ें…

  1. थाईडाइक के सीखने के सिद्धांत
  2. पुनर्बलन का सिद्धांत/ हल का सिद्धांत
  3. बान्डुरा का सामाजिक अधिगम सिद्धांत
  4. क्रिया-प्रसुत का अधिगम् सिद्धांत
  5. पावलव का अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत
  6. कोहलर का अर्न्तदृष्टि या सूझ का सिद्धांत
  7. जीन पियाजे का संज्ञानवादी सिद्धांत

इसी भी पढ़ें…

About the author

shubham yadav

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

Leave a Comment