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मानसिक मंदता के कारण | Causes of Mental Retardation in Hindi

मानसिक मंदता के कारण
मानसिक मंदता के कारण

मानसिक मंदता के कारण (Causes of Mental Retardation)

मानसिक मंदता कई कारणों से होता है। इन्हें निम्नांकित तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है : (1) प्रसव पूर्व (2) प्रसवकालीन और (3) प्रसवोत्तर कारण।

1. प्रसव पूर्व (Pre-natal) :

(i) क्रोमोजोम संबंधी विकार (Chromosomal Abnormality)- जैसा कि हम जानते हैं कि मानव कोशिका में 23 जोड़े क्रोमोजोम होते हैं जिसमें वह आधा क्रोमोजोम माता से और आधा क्रोमोजोम पिता से प्राप्त करता है। लेकिन किसी विकारवश क्रोमोजोम की अधिकता और कमी मानसिक मंदता का कारण बनती है। उदाहरणार्थ 21वें जोड़े क्रोमोजोम पर यदि एक अतिरिक्त क्रोमोजोम आ जाए तो इस स्थिति को डाउन सिन्ड्रोम कहा जाता है इसे मंगोलिज्म भी कहा जाता है। इस विकार से पीड़ित बालकों में दूर-दूर स्थित तिरछी आँखें, दबा हुआ नासादण्ड, मोटी जीभ, छोटे कान, खुला मुँह आदि सरीखे लक्षण दिखाई देते हैं।

वहीं दूसरी तरफ यदि क्रोमोजोम के 23वें जोड़े का एक क्रोमोजोम, सामान्यतः X-क्रोमोजोम की कमी को टर्नर सिन्ड्रोम कहा जाता है । यानि इस सिंड्रोम से पीड़ित व्यक्ति के 23वें जोड़े क्रोमोजोम में केवल एक क्रोमोजोम होता है । इससे बालिकाएँ ज्यादातर प्रभावित होती हैं। पीड़ित बालिकाएँ अधिगम एवं श्रवण अक्षमताग्रस्त हो जाती हैं।

(ii) आनुवंशिक विकार (Genetic Abnormality)- माता अथवा पिता में से यदि किसी एक के जीन में भी दोष हो तो उनके संतान में मानसिक मंदता होने की संभावना 50-50 प्रतिशत होती है। हो सकता है कि उक्त बच्चों में मानसिक मंदता न हो लेकिन दूसरे पुस्त के बच्चों में मानसिक मंदता होने की संभावना ज्यादा होती है। इस अवस्था को प्रभावशाली इनहेरिटेंस कहा जाता है। उदाहरणार्थ- ट्यूब्रस स्केलेरोसिस।

वहीं जब माता अथवा पिता में से यदि किसी में मानसिक मंदता के लक्षण न हों और यदि वे मानसिक मंदता वाले दोषयुक्त जीन के वाहक हों तो उनकी संतानों के मानसिक मंदता में होने की संभावना 25 प्रतिशत होती है। उदाहरणार्थ-फेनाइलकीटोन्यूरिया।

(iii) गर्भावस्था के प्रारंभिक महीने में एक्स-रे करवाना, हानिकारक दवाईयाँ लेना, कुछ आपस्माररोधी दवाईयाँ लेने और हार्मोन लेने से बढ़ते हुए भ्रूण को क्षति पहुँच सकती है। माता को दौरे, बुखार लगने और गिरने से दुर्घटना से बढ़ते हुए भ्रूण को क्षति पहुँच सकती है और यह मानसिक मंदन का कारण हो सकती है।

(iv) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के जन्मजात दोष जैसे हाईड्रोसिफालस, माइक्रोसिफाली और मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में हुए अनेक दोष मानसिक मंदन से संबद्ध होते हैं।

(v) माता में संक्रमण, विशेषतः गर्भावस्था के पहले तीन महीनों के दौरान होने पर भ्रूण के मस्तिष्क के विकास को क्षति पहुँचा सकते हैं। कुछ संक्रमण, जिनसे भ्रूण प्रभावित होता है, वे हैं: रुबेला, जर्मन मीजल, हर्पीज और साईटोमिगेली, अंतस्थ पिंड रोग, टोक्सोप्लासमोसिस, सिफलिस और ट्यूबरक्लोसिस।

(vi) माता को मधुमेह और उच्च रक्तचाप गुर्दे की चिरकालिक समस्याएँ कुपोषण बढ़ते हुए भ्रूण को क्षति पहुँचा सकती है। माता में अल्पक्रियता की स्थिति होने से बच्चा बौना पैदा हो सकता है। माता में ग्रंथि के बढ़ने से (अल्पक्रियता) बढ़ते हुए भ्रूण की केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र में दोष उत्पन्न हो सकते हैं जिसके फलस्वरूप मानसिक मंदन हो सकती है। इसके अलावा माँ-बच्चे के रक्त के Rh – फैक्टर की असंगतता भी मानसिक मंदता का कारण बनती है।

2. प्रसवकालीन कारण (Natal Causes) मानसिक मंदन की प्रसवकालीन कारण निम्नलिखित हैं :

(i) समयपूर्व जन्म (250 दिन से पहले बच्चे के जन्म के कारण)।

(ii) 9 महीने से अधिक अवधि में बच्चा पैदा होना ।

(iii) कम वजन वाला शिशु (2 किग्रा. से कम)।

(iv) जन्म के समय गर्भस्थ शिशु के सिरा का उल्टी स्थिति में होना।

(v) जन्म के तत्काल बाद साँस न लेना और बर्थ क्राई देर से होना।

(vi) नवजात शिशु के सिर में चोट लगना।

(vii) बच्चा जनने के समय संक्रमित ब्लेड का उपयोग करना।

(viii) गर्भाशय में भ्रूण की अपसामान्य स्थिति।

(ix) भ्रूण के चारों ओर नाभिनाल का अत्यधिक कुण्डलीकरण।

(x) गर्भनाल की अपसामान्य स्थिति।

(xi) माता में उच्च रक्तचाप और दौरा पड़ने के कारण गर्भावस्था में जीव विषरक्तता।

(xii) नवजात शिशु के सिर में विभिन्न कारणों से रक्तस्राव।

(xiii) नवजात शिशु को विभिन्न कारणों से तीव्र पीलिया।

(xiv) माता को दी गई दवाईयाँ जैसे-बेहोशी की और पीड़ानाशक दवाईयाँ।

3. प्रसवोत्तर कारण (Post-natal causes) : (i) बच्चों में कुपोषण – गर्भायु के 12-18 सप्ताह के दौरान और बच्चे के पैदा होने से 2 वर्ष का होने तक कुपोषण के लिए नाजुक है । इस अवधि के दौरान अपर्याप्त प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट लेना मानसिक मंदन का कारण हो सकता है।

(ii) बच्चे में संक्रमण जैसे तानिका शोथ (मेनिनजाइटिस) या मस्तिष्क ज्वर (एन्सेफाइलाईटिस) मानसिक मंदन का कारण हो सकता है।

(iii) तपेदिक रोग के कारण बच्चा मानसिक मंदता का शिकार हो सकता है।

(iv) बच्चे को बार-बार दौरा पड़ने से दिमाग क्षतिग्रस्त हो सकता है और मानसिक मंदता का कारण हो सकता है।

(v) शीशा के विषैले प्रभाव से मंदता हो सकता है।

(vi) दुर्घटना या गिरने से मस्तिष्क में कोई चोट लगना मानसिक मंदन का कारण हो सकता है।

मानसिक मंदता का रोक-थाम (Prevention)

निम्नलिखित तीन अवस्थाओं में मानसिक मंदता का रोक-थाम किया जा सकता है-

1. प्रसवपूर्व की अवधि (Pre-natal Period),

2. प्रसव के दौरान की अवधि (Natal Period), और

3. प्रसवोत्तर की अवधि (Post-natal Period)।

1. प्रसवपूर्ण की अवधि (Pre-natal Period) – (a) गर्भवती महिला की समय-समय पर डॉक्टरी जाँच अत्यन्त महत्वपूर्ण है। गभर्वती महिला को पर्याप्त संतुलित आहार देना चाहिए। यदि पहले हुई प्रसूतियों में कोई विकृति हो या कई बार गर्भपात हुए हों तो उसे अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए तथा उसे अतिरिक्त जाँच के लिए संपूर्ण सुविधाएँ मुहैया कराना चाहिए।

(b) अगर गर्भवती महिला यौनजनित रोगग्रस्त है तो प्रसव होने से पहले उसका इलाज कराना चाहिए।

(c) गर्भवती महिला को डॉक्टरी सलाह के बिना दवाईयाँ नहीं लेनी चाहिए।

(d) यदि गर्भवती महिला गर्भपात कराना चाहती है तो उसे गर्भपात किसी योग्य डॉक्टर से करवाना चाहिए और गर्भपात के लिए स्थानीय तरीकों का सहारा नहीं लेना चाहिए।

(e) गर्भवती महिला को विशेषतः गर्भावस्था की प्रारंभिक अवस्थाओं में एक्स-रे नहीं करवाने चाहिए।

(f) गर्भवती महिला को खसरा और टेटनस जैसे रोगों से बचाव के लिए टीके लगवाए जाने चाहिए।

(g) यदि गर्भवती महिला को मधुमेह, उच्च रक्तचाप है या उसे बार-बार दौरे पड़ते हों तो उसकी निरंतर किसी योग्य डॉक्टर से अवश्य जाँच करवाते रहना चाहिए।

(h) गर्भावस्था के दौरान मेहनत वाले काम जैसे भारी वजन उठाना, विशेषतः खेतों में, और अन्य कार्य जिनसे दुर्घटना होने की संभावना हो जैसे फिसलन वाली जगह पर चलना, छोटे स्टूलों और कुर्सियों पर चढ़ने से बचाना चाहिए।

(i) यदि बच्चे में आनुवंशिक समस्या है तो गर्भवती महिला को ऐसे स्थान पर भेजा जाए जहाँ गर्भ में ऐसी अपसामान्यताओं का पता लगाने के परीक्षण उपलब्ध हों।

2. प्रसव के दौरान की अवधि (During Natal Period) : (i) प्रसव के गर्भवती महिला का उचित देखभाल करना चाहिए।

(ii) प्रसव प्रशिक्षित चिकित्सकों से करवाना चाहिए। विषमताओं का प्रारंभिक अवस्था में अवश्य पता लगा लेना चाहिए और डॉक्टर को उस स्थिति के बारे में बता देना चाहिए। अगर संभव हो तो प्रसव अस्पताल में ही करवाना चाहिए।

(iii) गर्भाशय में गर्भ की असामान्य स्थिति के मामले में, प्रसव किसी योग्य डॉक्टर से अवश्य करवाया जाना चाहिए।

(iv) यदि गर्भवती महिला का योनिद्वार छोटी हो ऐसी स्थिति में अस्पताल में योग्य सर्जन के माध्यम से ऑपरेशन करवाकर बच्चा जनना चाहिए।

(v) जन्म के समय यदि बच्चा नीला है या बच्चा देर से रोता है तो बच्चे को तत्काल ऑक्सीजन अवश्य देनी चाहिए।

(vi) अगर गर्भस्थ शिशु का सिर उल्टी अवस्था में हो तो डॉक्टरी सहायता से इसे ठीक करवा लेना चाहिए।

(vii) यदि कोई जन्मजात अपसामान्यता दिखाई पड़ती है तो बच्चे को देखरेख के लिए विशेषज्ञ के पास भेजा जाना चाहिए।

3. प्रसवोत्तर अवधि (During Post-natal Period) : (i) बच्चे को डिप्थीरिया, पोलियो, टिटनस, खसरा, तपेदिक और कुकुरखाँसी जैसे सभी संक्रामक रोगों से बचाव के टीके लगवाना चाहिए

(ii) यदि बच्चे को बहुत तेज बुखार है तो उस पर ठण्डे पानी की पट्टी रख कर ज्वर को तत्काल कम करने का प्रयास करना चाहिए।

(iii) यदि बच्चे को मिरगी के दौरे पड़ते हों तो उसे नियंत्रित किया जाना चाहिए और आगे दौरे न पड़े इसके लिए दवाई आदि देना चाहिए।

(iv) बच्चों को मस्तिष्कीय शोध से बचाना चाहिए तथा उसे मस्तिष्कशोथ के अन्य रोगियों के प्रभाव में नहीं लाया जाना चाहिए।

(v) बच्चे को पर्याप्त पोषक दिया जाना चाहिए ताकि उनका उचित मानसिक विकास हो सके।

(vi) यदि बच्चा छोटे या बड़े सिर वाला अथवा ऐंठे हुए अंग वाला पैदा होता है तो उसे आगे होने वाली अशक्तताओं बचाव के लिए डॉक्टर के पास ले जाया जाना चाहिए।

(vii) यदि बच्चे को पहले छः माह के दौरान उचित अवस्था प्राप्त करने में काफी विलम्ब होता है तो बच्चे की विकासात्मक अशक्तताओं के संपूर्ण मूल्यांकन के लिए विशेषज्ञ से जाँच कराना चाहिए।

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shubham yadav

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