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मुख्य धारा में शामिल करने की अवधारणा | Concept of Mainstreaming in Hindi

मुख्य धारा में शामिल करने की अवधारणा
मुख्य धारा में शामिल करने की अवधारणा

मुख्य धारा में शामिल करने की अवधारणा (Concept of Mainstreaming)

मुख्य धारा में शामिल करने की अवधारणा- ‘मुख्यधारा में शामिल करने’ का अर्थ हैं, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की उन विशेष व्यवस्थाओं के तहत जीने, सीखने तथा काम करने में सहायता करना, जिससे उन्हें अधिक से अधिक स्वतंत्र बन पाने का सबसे ज्यादा अवसर मिले। दूसरे शब्दों में, मुख्यधारा में शामिल करने का मतलब विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को सामान्य विद्यालयों में समन्वित करना है। यह समस्या वाले बच्चों को नियमित पूर्व स्कूली अनुभव द्वारा जीवन की मुख्यधारा में सम्मिलित होने, सामान्य बच्चों को अपने विकलांग मित्रों की क्षमताओं एवं दुर्बलताओं को अनुभव करते हुए सीखने एवं विकसित होने तथा उन्हें समझने और देखने को अवसर प्रदान करता है।

मुख्यधारा में शामिल करने के अंतर्गत केवल समस्याग्रस्त बच्चों को मुख्यधारा के स्कूलों में सामान्य बच्चों के साथ भर्ती कर लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि समस्या वाले बच्चे कक्षा की गतिविधियों में सक्रिय एवं पूर्णरूप से भागीदारी करें।

मुख्यधारा में शामिल करना नया नहीं है। शुरू से ही, अन्य कार्यक्रमों में समस्या वाले बच्चों को गैर-समस्या बच्चों के साथ शामिल किया जाता रहा है। 86 वें संविधान संशोधन (2002) के तहत सभी विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए शिक्षा अनिवार्य बना दी गई है और अनुच्छेद 21 (क) में कहा गया है कि सभी बच्चों को ‘निःशुल्क एवं समुचित ‘शिक्षा’ प्रदान की जाए। इस तरह, मुख्यधारा में शामिल किया जाना, विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा में एक महत्त्वपूर्ण तथा व्यापक रूप से मान्य दृष्टिकोण बन गया है।

विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की शिक्षा के लिए अन्य बच्चों के साथ एक एकीकृत विन्यास में अथवा मुख्यधारा परिवेश में समस्या वाले बच्चों की विशेष आवश्यकताओं को पूरा करना चाहिए; तथा समस्या वाले बच्चों की सेवा कर रही अन्य संस्थाओं व संगठनों की साथ घनिष्ठ रूप से जुड़कर काम करना चाहिए, ताकि विकलांग बच्चों की पहचान की जा सके, और बच्चे की विकास आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यक सेवाओं की संपूर्ण श्रृंखला उपलब्ध कराई जा सके।

शोध अध्ययनों के मुताबिक बच्चों के परिज्ञानशील, संचार, सामाजिक तथा भावनात्मक विकास को बाल्यावस्था में सबसे अधिक प्रभावित किया जा सकता है। यदि इस अवस्था में उनकी विशेष आवश्यकताओं की पहचान तथा उनकी पूर्ति कर दी जाए तो विकलांग बच्चों की सक्षम एवं स्वतंत्र वयस्कों के रूप में विकसित होने की संभावना कहीं अधिक बढ़ जाती है। यदि विकलांग बच्चों को अन्य बच्चों को साथ खेलने का मौका मिलता है, तो वे अपना तथा दैनिक जीवन के साथ किस तरह तालमेल बैठाया जाय, इसके बारे में अधिक सीख पाते हैं। यह आत्मनिर्भरता विकसित करने की दशा में पहले कदमों में से एक है।

मुख्यधारा में शामिल करने के सिद्धांत को लागू करने की रणनीतियाँ (Common Strategies for Implementing the Principle of Mainstreaming):

(i) मुख्यधारा के स्कूलों के सामान्य शिक्षकों को विकलांग बच्चों को उन शैक्षिक गतिविधियों से रू-ब-रू कराने के लिए प्रोत्साहित करना जो गैर-विकलांग बच्चों पर धनात्मक प्रभाव डालते हों।

(ii) सामान्य शिक्षकों की सहायता के लिए उन्हें विशिष्ट अध्यापक की कंसल्टेंट सुविधा मुहैया कराना ताकि वे विकलांग बच्चों के शैक्षिक आवश्यकताओं की पूर्ति आसानी से कर सकें।

(iii) विभिन्न क्षमता स्तर वाले बच्चों के बीच समन्वित अधिगम को बढ़ावा देने वाले वर्ग कक्ष गतिविधियों की रचना करना।

(iv) वैसे वर्ग कक्ष गतिविधियों की रचना करना ताकि गैर-विकलांग बालक अपनी कक्षा के विकलांग सहपाठियों के लिए ट्यूटर का काम हो सके।

(v) गैर-विकलांग बालकों में अपने विकलांग सहपाठियों के प्रति स्वस्थ सोच विकसित करने के लिए उपयुक्त पाठ्यचर्या सामग्रियों का उपयोग करना।

मुख्यधारा में शामिल करने की प्रक्रिया (Process of Mainstreaming)

विशेष आवश्यकता वाले बच्चे को मुख्यधारा में लाने का काम अनेक प्रकार से किया जा सकता है। शिक्षक जब किसी समस्या वाले बच्चे को मुख्यधारा में लाने का निर्णय लेते हैं। तो यह बच्चे की सबलताओं, दुर्बलताओं व आवश्यकताओं एवं माता-पिता, कर्मचारियों व कार्यक्रम एवं समुदाय के उपलब्ध साधनों पर निर्भर करेगा जैसा कि हम सब जानते हैं, प्रत्येक बच्चे की भिन्न आवश्यकताओं व क्षमताएँ होती हैं। यह समस्या वाले बच्चों के लिए भी उतना ही सच है। वे नाना प्रकार के आचरणों व क्षमताओं का प्रदर्शन करते हैं।

कुछ समस्या वाले बच्चे सामान्य बच्चों के साथ पूरे दिन के कार्यक्रम में उन्नति कर सकते हैं। अन्य के लिए समेकित शिक्षा का माहौल में कुछ समय तक रहना, विशेष कक्षाओं में उपस्थित होना या शेष समय घर पर रहना सबसे अच्छा रहता है। इसके अलावा हो सकता है कि कुछ अन्य को मुख्यधारा में लाना अधिक सहायतापूर्ण न हो। इसमें इस सिद्धांत का पालन करना कि समस्या वाले बच्चों को “कम से कम प्रतिबंधित पर्यावरण” में रखा जाए। इसका मतलब है कि समस्या वाले बच्चों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के साथ-साथ उनके पूर्व अनुभव (जहाँ तक संभव हो) सामान्य बच्चों के अनुभवों होने चाहिए।

मुख्यधारा के सम्मिलन में अनेक व्यक्तियों के एक दल के रूप में किए जाने वाले प्रयास सम्मिलित होते हैं-शिक्षक, बच्चे के माता-पिता, कार्यक्रम के कर्मचारी, सामाजिक कार्यकर्ता, अन्य विशेषज्ञ, ऐसी संस्थाएँ जो समस्या वाले बच्चों की सेवा करती हैं, और समुदाय के प्राथमिक विद्यालय। इन दल की किसी समस्या वाले बच्चे की आवश्यकताओं की पहचान, विकास एवं उनके समायोजन करने के लिए एक चुनौती भरा व क्रांतिकारी कदम उठाने की आवश्यकता है।

मुख्यधारा में शामिल करने में शिक्षक की भूमिका (Role of Teacher in Mainstreaming)

विशेष आवश्यकता वाले बच्चे को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के लिए एक शिक्षक को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए:

(i) ऐसे व्यक्तिगत कार्यक्रम को विकसित करके लागू करना जो कक्षा के प्रत्येक बच्चे की आवश्यकताओं की पूर्ति करे व जिसमें किसी समस्या वाले बच्चे की विशेष आवश्यकताओं भी शामिल हों।

(ii) समस्या वाले बच्चे के माता-पिता के साथ मिलकर कार्य करना जिससे कि सीखने की अवस्थाओं का घर पर माता-पिता द्वारा प्रबलीकरण किया जा सके।

(iii) अपने विकलांगता समन्वयकर्ता या सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा यह पता लगाना कि किसी समस्या वाले बच्चे को क्या विशेष सेवायें दी जा रही हैं और आप अपनी कक्षा के शिक्षण में सहायता हेतु किसी विशेषज्ञ की सेवाएँ किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं।

(iv) यदि आप महसूस करते हैं कि किसी बच्चे को कोई ऐसी समस्या है जो साफ तौर से पहचानी नहीं गई है, तो अपने विकलांगता समन्वयक या सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा उसको सलाह लेने के लिए भेजने की व्यवस्था करना।

मुख्यधारा में लाने के लाभ (Benefits of Mainstreaming)

मुख्यधारा में शामिल होने के निम्नलिखित फायदे हैं।

(i) विकलांग बच्चों के लिए लाभदायक (Beneficial for Disabled Children)-मुख्यधारा कक्षा में भाग लेना विशेष आवश्यकता वाले बच्चे को आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा देना है और उन्हें नए कौशलों में पारंगत बनाता है। अन्य बच्चों के साथ काम करना तथा खेलना समस्या वाले बच्चों को बड़ी उपलब्धियों हेतु प्रयत्नशील रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। बड़ी उपलब्धियों की दिशा में काम करना, एक स्वस्थ एवं सकारात्मक आत्मविश्वास विकसित करने में उनकी सहायता करता हैं।

मुख्यधारा में लाया जाना उन समस्याओं के समाधान का मूल्यवान तरीका है, जिनका रोग निदान नहीं हुआ हो। कुछ समस्याएँ तब तक उजागर नहीं होता, जब तक कि बच्चा प्राथमिक स्कूल में दाखिल नहीं ले लेता है लेकिन तब तक सीखने का काफी महत्त्वपूर्ण समय बेकार हो चुका होता है। ऐसे में यह पूर्व स्कूली बच्चों के लिए काफी उपयोगी साबित होता है।

(ii) सामान्य बच्चों के लिए लाभदायकं ( Beneficial for Non- Handicapped Child)- मुख्यधारा में शामिल करने की प्रक्रिया सामान्य बच्चों के लिए भी लाभदायक होता है। इसके जरिए वे लोगों के बीच व्यक्तिगत भेदों को स्वीकार करने तथा उनके साथ सहूलियत से रहना सीख जाते हैं। शोध अध्ययनों के मुताबिक तब सामान्य बच्चों को विकलांग बच्चों के साथ नियमित रूप से खेलने का मौका मिलता है तो विकलांग बच्चों के प्रति उनका रुख और अधिक सकारात्मक बन जाता है। एक मुख्यधारा कक्षा में उन्हें विभिन्न व्यक्तियों के साथ दोस्ती करने का अवसर मिलता है।

(iii) माता-पिता के लिए लाभदायक (Beneficial for Parents) – मुख्यधारा में लाना विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के माता-पिता के लिए भी लाभदायक होता है। शिक्षकों, अन्य स्कूली स्टाफ तथा विशेषज्ञों द्वारा किसी बच्चे की शिक्षा में परस्पर योगदान करने से माता-पिता कम अकेलापन महसूस करते हैं। वे अपने बच्चे की सहायता करने के नए तरीके सीख सकते हैं। जब वे अपने बच्चे को सामान्य बच्चों के साथ प्रगति करते और खेलते हुए देखते हैं, तो माता-पिता को अपने बच्चे के बारे में अधिक वास्तविक ढंग से सोच पाने में मदद मिलती है। इस तरह माता-पिता की भावनाएँ अपने व अपने बच्चों के प्रति ज्यादा अच्छी हो जाती हैं।

(iv) शिक्षा के लिए लाभदायक (Beneficial for Teachers)- मुख्यधारा में लाना शिक्षक के लिये भी लाभदायक होता है। शिक्षक को विकलांग बच्चे पर सार्थक प्रभाव डालने का अवसर प्राप्त होता है। शिक्षक द्वारा विशेष सहायता वाले बच्चों के लिए विकसित की गई तकनीकें उन सामान्य बच्चों के लिए भी उतनी ही लाभदायक होती है जिनको उन्हीं क्षेत्रों में थोड़ी बहुत कमजोरी होती है। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों साथ कार्य करने से शिक्षक के शिक्षण और व्यक्तिगत अनुभवों का विकास भी होता है।

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shubham yadav

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