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निश्चायक उपधारणा का अर्थ | Conclusive Presumption in Hindi

निश्चायक उपधारणा का अर्थ
निश्चायक उपधारणा का अर्थ

निश्चायक उपधारणा या निश्चायक सबूत (Conclusive Presumption)- यह विधि की एक ऐसी उपधारणा है जिसे न्यायालय अंतिम मानता है एवं ऐसी उपधारणा को साक्ष्य देकर भी खण्डित नहीं किया जा सकता है इसलिए इसे विधि की अखण्डनीय उपधारणा भी कहा जाता है। इस प्रकार की उपधारणा है (धारा 41, 112, 113, 115 116 117 तथा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 82 )

धारा 4 खण्ड 3 निश्चायक उपधारणा है। इस खण्ड में कहा गया है कि ‘जहाँ कि इस अधिनियम द्वारा एक तथ्य किसी अन्य तथ्य का निश्चायक सबूत घोषित किया गया है और वहाँ न्यायालय उस एक तथ्य के साबित हो जाने पर उस अन्य को साबित मानेगा और उसे नासावित करने के प्रयोजन के लिए साक्ष्य दिये जाने की अनुज्ञा नहीं देगा।

उदाहरण धारा 112 के अनुसार, जब किसी व्यक्ति का जन्म उसकी माता और किसी पुरुष के बीच वैध विवाह के कायम रहते हुए या विवाह के विघटन के बाद, माता के अविवाहित रहते हुए 280 दिनों के भीतर हुआ है तो इस बात का निश्चायक सबूत होगा कि वह है उस पुरुष का धर्मज या वैध संतान है। धारा 112 में एक अपवाद भी है कि यदि गर्भ धारण करने के दौरान पति एवं पत्नी

के बीच मुलाकात ही नहीं हुई है तो ऐसी उपधारणा निश्चायक सबूत नहीं होगी।

निश्चायक सबूत का अर्थ (Conclusive proof in Hindi)

कुछ तथ्य ऐसे होते हैं यदि उसे साबित कर दिया जाय तो एक दूसरा तथ्य अपने आप साबित मान लिया जाता है और उसे साबित करने की जरूरत नहीं रहती। वे तथ्य ऐसे होते एक दूसरा तथ्य अपने हैं कि यदि एक तथ्य का अस्तित्व साबित कर दिया जाय तो दूसरे तथ्य जिसका कि पहला तथ्य निनायक सबूत है का होना निश्चित होता है इस नियम का आधार विधि की ऐसी उपधारणाएँ हैं जिसका खण्डन नहीं किया जा सकता।

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 4 में निशायक सबूत के बारे में यह कहा गया है कि जहाँ कि उसे अधिनियम द्वारा एक तथ्य के साबित हो जाने पर उस अन्य को साबित मानेगा और उसे ना साबित करने के प्रयोजन के लिए साक्ष्य दिए जाने की अनुज्ञा नहीं देगा।

उदाहरण यदि यह हो कि क, ख का जायज पुत्र है या नहीं यदि क यह साबित कर दे कि उसका जन्म उसकी माँ और ख के वैध विवाह के दौरान हुआ था तो यह साबित मान लिया जाएगा कि क ख का वैध पुत्र है तब विरोधी पक्षकार को इसका खण्डन करने के लिए साक्ष्य देने की अनुमति नहीं दी जाएगी। (धारा 112 भा0सा0अधि)

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